फिर पितर लोक में
उत्सवी चहल-पहल है ...
अगस्त्य मुनि पत्नी लोपामुद्रा के साथ
पिंडदानियों के सुन्दर स्वागत में
जी-जान से लग गये हैं
उनके लिए विशेष पैकेज की
विशेष रूप से व्यवस्था करवा रहे हैं...
पितृपक्ष मेला दुल्हन की तरह
सज-संवर रहा है....
प्रेतशिला पर्वत से लेकर तलहटी तक
पिंडवेदी पर कौवे मंडरा रहे हैं
और आत्माएं आस्था के ब्रह्मकुंड में
लगातार लग रही डुबकियों से
सांस नहीं ले पा रही है....
देवघाट के सामने बहती फल्गु
शापित होकर भी मोक्षदायिनी है...
गाय , तुलसी और ब्राह्मण
सबका मार्ग रोक- रोककर
बता रहे है मुक्ति का मार्ग
और असली नक्शा लिए बरगद
गद-गद है गर्दन हिला-हिला कर
पर उसका सच सुनने वाला कोई नहीं......
इस तर्पण-अर्पण में
सर्वकुल , नाम-गोत्र आदि
नोट से ही अपनी पहचान दे रहे हैं
उसी में भूल-चुक , क्षमा-प्राप्ति आदि का भी
प्रमुख प्रावधान सुरक्षित है
और सबके लिए स्वर्ग तो
बेटा पैदा होने के साथ ही आरक्षित है.....
जो होशियार व हाईटेक हैं
वे अपने घर में ही जीते-जी
माँ-बाप को नर्क-भोग करा रहे हैं....
वैसे भी आज न कल
इस पतित धरती का मोह
सबको छोड़ना ही होता है
इसलिए समय रहते ही वे
व्यावसायिक रूप से
अमानवीय व्यवहार को कैश करा कर
उन्हें जमीन-जायदाद आदि से
बेरहमी से बेदखल करके
गया का महात्म्य समझा रहे है.....
माँ-बाप भी हैं कि
अपने ही बच्चों की नजरों में
सबसे पहले नकारा होकर
अपने मोक्ष-मोह में
न जाने किस स्वर्ग के लिए
सीढ़ी पर सीढ़ी बना रहे हैं .
उत्सवी चहल-पहल है ...
अगस्त्य मुनि पत्नी लोपामुद्रा के साथ
पिंडदानियों के सुन्दर स्वागत में
जी-जान से लग गये हैं
उनके लिए विशेष पैकेज की
विशेष रूप से व्यवस्था करवा रहे हैं...
पितृपक्ष मेला दुल्हन की तरह
सज-संवर रहा है....
प्रेतशिला पर्वत से लेकर तलहटी तक
पिंडवेदी पर कौवे मंडरा रहे हैं
और आत्माएं आस्था के ब्रह्मकुंड में
लगातार लग रही डुबकियों से
सांस नहीं ले पा रही है....
देवघाट के सामने बहती फल्गु
शापित होकर भी मोक्षदायिनी है...
गाय , तुलसी और ब्राह्मण
सबका मार्ग रोक- रोककर
बता रहे है मुक्ति का मार्ग
और असली नक्शा लिए बरगद
गद-गद है गर्दन हिला-हिला कर
पर उसका सच सुनने वाला कोई नहीं......
इस तर्पण-अर्पण में
सर्वकुल , नाम-गोत्र आदि
नोट से ही अपनी पहचान दे रहे हैं
उसी में भूल-चुक , क्षमा-प्राप्ति आदि का भी
प्रमुख प्रावधान सुरक्षित है
और सबके लिए स्वर्ग तो
बेटा पैदा होने के साथ ही आरक्षित है.....
जो होशियार व हाईटेक हैं
वे अपने घर में ही जीते-जी
माँ-बाप को नर्क-भोग करा रहे हैं....
वैसे भी आज न कल
इस पतित धरती का मोह
सबको छोड़ना ही होता है
इसलिए समय रहते ही वे
व्यावसायिक रूप से
अमानवीय व्यवहार को कैश करा कर
उन्हें जमीन-जायदाद आदि से
बेरहमी से बेदखल करके
गया का महात्म्य समझा रहे है.....
माँ-बाप भी हैं कि
अपने ही बच्चों की नजरों में
सबसे पहले नकारा होकर
अपने मोक्ष-मोह में
न जाने किस स्वर्ग के लिए
सीढ़ी पर सीढ़ी बना रहे हैं .
“अजेय-असीम{Unlimited Potential}”
ReplyDelete-मार्मिक ,यथार्थ रचना |
अब समझी पितृ पक्ष का महात्म्य.....
ReplyDeleteपैनी रचना..
अनु
बस पेंशनधारी माँ-बाप को कुछ त्राण मिल जाता है. यहाँ तो बेटा-बेटी के हाथों स्वर्ग प्राप्ति की धारणा नहीं है लेकिन फिर भी स्वर्ग चाहना के जो हथकंडे अपनाये जाते हैं वो देखकर हतप्रभ हो जाता हूँ (हास्यास्पद भी है). स्वर्ग चीज ही है ऐसी.चाह है कि जाती नहीं.
ReplyDeleteपितृमोक्ष से मृतआत्मा को शांती मिलती है,,,
ReplyDeleteRECENT POST : हल निकलेगा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - सोमवार - 23/09/2013 को
ReplyDeleteजंगली बेल सी बढती है बेटियां , - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः22 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
बढ़िया है।
ReplyDeleteपितृ श्राद्ध्य कैसे होंगे जब जीवित बड़े-बूढ़ों की अनेक प्रकार से उपेक्षा हो रही हो।
ReplyDeleteबाजार में सब बिक रहा है, मुमुक्षु लोगों के लिए मोक्ष भी बिकता है !
ReplyDeleteबाजार में सब बिक रहा है, मुमुक्षु लोगों के लिए मोक्ष भी बिकता है !
ReplyDeleteआज की कर्म कान्डिय व्यावसायिकता पर बेहतरीन टिपण्णी।
ReplyDeleteआज की कर्म कान्डिय व्यावसायिकता पर बेहतरीन टिपण्णी।
ReplyDeleteसंयुक्त परिवार का टूटना, बाजारीकरण और आधुनिकता या ऐसे ही अनेक कारणों से हमारा समाज अधपतन के रास्तों से गुजर रहा है। 'मोक्ष-मोह' के माध्यम से आपने वास्तव पर प्रकाश डाला है।
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ReplyDeleteमोक्ष एक काल्पनिक तत्त्व है ,इसपर धंधे बहुत होता है - सटीक रचना
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पूरी कविता के बाद बरबस हँसी छूट गई. क्योंकि इस कविता में ऐसी सच्चाई ब्यान की गई है जो हम बूढ़े लोगों के मन के बहुत अनुकूल बैठती है- आशाओं और आशंकाओं दोनों के मामले में. बहुत खूब.
ReplyDeleteअमृता जी हैट्स ऑफ..... हैट्स ऑफ..... हैट्स ऑफ …… और शब्द नहीं है :-)))
ReplyDeleteबहुत सारगर्भित और सटीक चिंतन....
ReplyDeleteसार्थक एवं समसामयिक प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमेरी नई रचना :- चलो अवध का धाम
ReplyDeleteमूर्ख लोग मोक्ष की कामना करते हैं स्वर्ग में जाने अपनों के चले जाने की बात करते हैं स्वर्ग में जाना आवागमन के चक्कर में फंसे रहना है मुक्ति है भगवान् को प्राप्त होना। उसके गोलोक में दिव्य शरीर धारण कर गोपी भाव में रहना। बने रहना। ॐ शान्ति। बेहतरीन पोस्ट।
jite ji log apne mata pita ki seva kare to unko sukhad moksh milegi aur seva karne vaale ki agli pidhi bhi seva ka gun virasat me legi
ReplyDeleteदेवघाट के सामने बहती फल्गु
ReplyDeleteशापित होकर भी मोक्षदायिनी है...
.........
गया का महात्म्य समझा रहे है.....
धारदार !!!!
शापित होकर भी मोक्षदायिनी है...
ReplyDeleteबेहद गहन भाव लिये सशक्त अभिव्यक्ति
जीवित माता- पिता बोल सुनने को ही तरसे , बाद में जिमाये पकवान सारे !
ReplyDeleteकितना सटीक व्यंग्य है ...!!गहन एवं धारदार ....
ReplyDeleteआपके रचना पढने के बाद कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं ..कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं बाद अमृत पिलाने से क्या फ़ायदा ...महज एक रस्म रह गया है सब कुछ ...स्वर्ग तो धरती पर ही ..कुछ लोग इसका सुख भी भोग रहे हैं ,,,,बड़ी ही धारदार रचना ..अंदर तक झाँकने को बिबश करती है ..आपकी अगली रचना के इंतज़ार के साथ
ReplyDeleteजैसे जीवन यहाँ प्रताड़ित,
ReplyDeleteकैसे माने, वहाँ सुखद हैं।
सटीक व्यंग्य.....
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