तेरे ही बगल में मैं बैठ कर
तेरी ही कितनी प्रतीक्षा करूँ?
कभी तो थामेगा तू मुझे
बस इतनी ही इच्छा करूँ
दिवस-दिवस मधुर आशा में
हर एक दंश को चूमती हूँ
निराशा में विश्वास पालकर
पल-प्रतिपल मैं झूमती हूँ
छोटी-छोटी उर्मियाँ उठकर
एक अनोखी आस जगाती है
विलग-विलग किनारा छूकर
उस पार की झलक दिखाती है
एक धागा पिरोती रहती हूँ
मन के अन्स्युत मनकों में
सहन तक ही तुम आते हो
सुनती हूँ अस्फूट भनकों में
यह जो जीवन का तिमिर है
वह खोजता तेरा उजास है
स्नेह-ज्योति सहज ही घिर
ले आता मुझे तेरे पास है
तू जला दे शत दीपावलियाँ
मेरे प्रेम के कोने -कोने में
या बुझाकर मेरी ज्वाला को
बस हो जा मेरे ही होने में
बैठी हूँ, यूँ ही बैठी रहूँगी
चाहे जितना जन्म कम जाये
या अनियंत्रित रिसना घावों का
बह-बह कर यूँ थम जाए
कब परस करोगे जी को प्रिय!
क्यूँ ऐसी कोई मैं पृच्छा करूँ?
तेरे बगल में ही बैठकर
बस तेरी ही मैं प्रतीक्षा करूँ .
तेरी ही कितनी प्रतीक्षा करूँ?
कभी तो थामेगा तू मुझे
बस इतनी ही इच्छा करूँ
दिवस-दिवस मधुर आशा में
हर एक दंश को चूमती हूँ
निराशा में विश्वास पालकर
पल-प्रतिपल मैं झूमती हूँ
छोटी-छोटी उर्मियाँ उठकर
एक अनोखी आस जगाती है
विलग-विलग किनारा छूकर
उस पार की झलक दिखाती है
एक धागा पिरोती रहती हूँ
मन के अन्स्युत मनकों में
सहन तक ही तुम आते हो
सुनती हूँ अस्फूट भनकों में
यह जो जीवन का तिमिर है
वह खोजता तेरा उजास है
स्नेह-ज्योति सहज ही घिर
ले आता मुझे तेरे पास है
तू जला दे शत दीपावलियाँ
मेरे प्रेम के कोने -कोने में
या बुझाकर मेरी ज्वाला को
बस हो जा मेरे ही होने में
बैठी हूँ, यूँ ही बैठी रहूँगी
चाहे जितना जन्म कम जाये
या अनियंत्रित रिसना घावों का
बह-बह कर यूँ थम जाए
कब परस करोगे जी को प्रिय!
क्यूँ ऐसी कोई मैं पृच्छा करूँ?
तेरे बगल में ही बैठकर
बस तेरी ही मैं प्रतीक्षा करूँ .
यह जो जीवन का तिमिर है
ReplyDeleteवह खोजता तेरा उजास है
स्नेह-ज्योति सहज ही घिर
ले आता मुझे तेरे पास है
अमृता जी, एक भक्त के हृदय की यही तो पुकार है..असीम धैर्य के साथ प्रतीक्षा..और फिर मिलन तो एक दिन होना ही है..
छोटी-छोटी उर्मियाँ उठकर
ReplyDeleteएक अनोखी आस जगाती है
विलग-विलग किनारा छूकर
उस पार की झलक दिखाती है
ह्रदय विदारक मन की पीड़ा। …!!
जागी हुई आस ही तो जीवन जीने की लड़ी है !!
बहुत सुंदर …उत्कृष्ट काव्य। …
आपकी सृजनशीलता की जितनी तारीफ की जाये कम है। ……अमृता जी। …
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल बुधवार (18-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 120 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteसादर
सरिता भाटिया
गुज़ारिश
मन के असंख्य मनकों में से एक विशिष्ट मनके की आभा दीपित है, आपके इस सृजन में !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteप्रेमा भगती में ईश्वर के बिछोड़े में भगत की पीड़ा का एहसास कराती है यह रचना। ॐ शान्ति
ReplyDeleteकिसीमे समाया हुआ होकर भी मन कई बार खुद को उससे अलग कर लेता है। बगल में बैठकर तुमसे सबसे सन्निकट होकर भी मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करती हूँ। हालाकि मेरा मन प्रश्न करता है वह कहीं न कहीं तुम्हारे स्पर्श की आस में तुमसे प्रश्न करता है -
ReplyDeleteभक्त मुक्ति नहीं चाहता भक्त तो उसको देखना चाहता है। वह तो विभक्त है भाग का हिस्सा है। विभाग से विभक्त हुआ। वह अपने अस्तित्व को अपने प्रिय से रु -बी रु होकर बता करता है।
आध्यात्मिक प्रेम को सांसारिक प्रेम के शब्दों के सहारे अभिव्यक्ति देने की परंपरा सूफी संगीत में रही है. कुछ-कुछ उसी तरह की कविता....लेकिन नवीनता के भाव के प्रभाव के साथ बहुत सुंदर कविता. शुक्रिया.
ReplyDeleteबैठी हूँ, यूँ ही बैठी रहूँगी
ReplyDeleteचाहे जितना जन्म कम जाये
या अनियंत्रित रिसना घावों का
बह-बह कर यूँ थम जाए----intejaar kayaamat tak,bahut sundar.
latest post: क्षमा प्रार्थना (रुबैयाँ छन्द )
latest post कानून और दंड
अक्षर-अक्षर साधना..अक्षर-अक्षर तप.....हर शब्द से निखर रहा है प्रेम, पीड़ा व जीवन का मंत्रोच्चार....
ReplyDeleteकिसीमे समाया हुआ होकर भी मन कई बार खुद को उससे अलग कर लेता है। बगल में बैठकर तुमसे सबसे सन्निकट होकर भी मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करती हूँ। हालाकि मेरा मन प्रश्न करता है वह कहीं न कहीं तुम्हारे स्पर्श की आस में ही तुमसे प्रश्न करता है -
ReplyDeleteभक्त मुक्ति नहीं चाहता भक्त तो उसको देखना चाहता है। वह तो विभक्त है भाग का हिस्सा है। विभाग से विभक्त हुआ। वह अपने अस्तित्व को अपने प्रिय से रु -ब- रु होकर बता सकता है।यही परमानंद के स्थिति है। प्रेमा भक्ति का उत्कर्ष है। उज्जवल रचना है अमृता तन्मया की
मैं प्रतीक्षा करूँ ....
Amrita Tanmay
Amrita Tanmay
हमेशा की तरह उत्कृष्ट कृति!
ReplyDeleteछोटी-छोटी उर्मियाँ उठकर
ReplyDeleteएक अनोखी आस जगाती है
विलग-विलग किनारा छूकर
उस पार की झलक दिखाती है
बहुत सुन्दर.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteरामराम.
तेरे ही बगल में मैं बैठ कर
ReplyDeleteतेरी ही कितनी प्रतीक्षा करूँ?
कभी तो थामेगा तू मुझे
बस इतनी ही इच्छा करूँ
Bahut Badiya
जिसकी चाह है जिसकी साध है लगता तो निकट है पर स्पर्श अपरिहार्य है ..... छू कर जानने की उत्कंठा ही प्रतीक्षा कराती है , मन के भाव से ही ऐसी रचना लिखी जाती है ....... बहुत सुंदर
ReplyDeleteसाधो आ अमृता जी ,
ReplyDelete"बत्तीस पंक्तियों की जिवंत विरह बत्तीसी है आपकी रचना ..."
मेरा अभिनन्दन
तू जला दे शत दीपावलियाँ
ReplyDeleteमेरे प्रेम के कोने -कोने में
या बुझाकर मेरी ज्वाला को
बस हो जा मेरे ही होने में ..
मधुर आत्मिक क्षणों को प्रेम की कोमल डोर में बांधा है ... सुंदर भावाव्यक्ति ...
उत्कृष्ट काव्य का नमूना है आपकी ये रचना गहन भाव सुन्दर शब्द संयोजन …… शानदार |
ReplyDeleteसांसारिक व्यक्तित्व से अलग एक दार्शनिक 'अमृतात्व' में तरंगित स्नेह-लगन की पराकाष्ठा।
ReplyDeleteशब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें औ
बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeletedownloading sites के प्रीमियम अकाउंट के यूजर नाम और पासवर्ड
यह जो जीवन का तिमिर है
ReplyDeleteवह खोजता तेरा उजास है
स्नेह-ज्योति सहज ही घिर
ले आता मुझे तेरे पास है
...असीम विश्वास...बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
बहुत ही बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteअति सुन्दर...
:-)
आस न परिहास होती,
ReplyDeleteतुम न आते, मैं न खोती।
धैर्य और विश्वास जब इस तरह आशा संचरण करता रहे तो सकल अभिसार बस समय की बात होती है. सूफियाना रंग लिए अति सुन्दर कृति.
ReplyDeleteछोटी-छोटी उर्मियाँ उठकर
ReplyDeleteएक अनोखी आस जगाती है
विलग-विलग किनारा छूकर
उस पार की झलक दिखाती है
बहुत बहुत बहुत सुन्दर अमृता जी
बेहतरीन अभिव्यक्ति ..... प्रभावी विचार
ReplyDeleteयह जो जीवन का तिमिर है
ReplyDeleteवह खोजता तेरा उजास है
स्नेह-ज्योति सहज ही घिर
ले आता मुझे तेरे पास है
यह सहज काव्य है. बहुत ही सुंदर.
उफ़ ये इंतज़ार के पल ......कभी कम होंगे ???
ReplyDeleteकब परस करोगे जी को प्रिय!
ReplyDeleteक्यूँ ऐसी कोई मैं पृच्छा करूँ?
तेरे बगल में ही बैठकर
बस तेरी ही मैं प्रतीक्षा करूँ .
आपने सच कहा बेहतरीन भावनाएं
सुन्दर रचना!
ReplyDeleteशुभकामनाएं!
यहाँ आकर साहित्य का गाढापन नजर आता है .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव .. उत्कृष्ट रचना ..
ReplyDeleteउत्कंठित चिर प्रतीक्षिता :-)
ReplyDelete