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Friday, August 23, 2013

प्रेम को कौन कब समझ सका है....



कुछ न कुछ कचोटती-सी
ग्रथित गूँज जरूर रह गयी होगी
सुधि से एक गंध उठकर
संचारित साँसों से बह गयी होगी !

उन्हीं अभिभूत अनुस्मृतियों को
मैं अनंतक अभिसार दे रही हूँ
हाँ! जन्मों-जन्मों के बाद भी
तुम्हें फिर से पुकार दे रही हूँ !

यह जो निगूढ़ नाद है
न मालूम कबसे चल रहा है
हो-न-हो दो बिछुड़े शून्यों में
अश्लेष अर्थ-सा पल रहा है !

उन्हीं अर्थों को तबसे कितने ही
संभृत शब्दों में घोल रही हूँ
और तेरी स्मृति-मंजूषा को
मैं बोल-बोल कर खोल रही हूँ !

कहीं उन शंसित शब्दों की कौंध में
तुम्हें कुछ स्मरण आ जाए
और चिर-वंचित विस्मृतियाँ
अपने अवगुंठित अर्थों को पा जाए !

इस जीवन का अर्थ तुम्हीं से
औ' सौभाग्य का क्षण-क्षण प्रयोजन है
धूप-दीप , अर्चा , फूल , बंदनवार लिए
ह्रदय-महल का सजा ये सिंहासन है !

कितनी आकांक्षाओं-अभीप्साओं को ले
इस दुर्लभ जन्म को हमने पाया है
अब दिवस-रात निष्फल न बीते
इसलिए तो तुम्हें फिर से बुलाया है !

कुछ महत होने के है करीब आया
कोई विधि-विधान मत खोजो तुम
अनघट घटना ही घट रही है
सरस होकर उसे सहेजो तुम !

प्रेम को कौन कब समझ सका है
प्रयत प्रतीति है केवल खोने में
ये जन्मों-जन्मों की गंधवाही गूँज भी
सुन , कहती है  हो जा  मेरे होने में .
 

37 comments:

  1. खुश हो गया मन अबूझ प्रेम की इस सुन्दर कविता को पढ़कर!!!
    वाह!

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  2. कुछ महत होने के है करीब आया
    कोई विधि-विधान मत खोजो तुम
    अनघट घटना ही घट रही है
    सरस होकर उसे सहेजो तुम !

    सच्चे प्रेम की सुन्दर तस्वीर उकेरी है आपने
    आभार !

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  3. आ हा हा......नि:शब्‍दता व्‍याप्‍त हो गई चहुं ओर।

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  4. कुछ महत होने के है करीब आया
    कोई विधि-विधान मत खोजो तुम
    अनघट घटना ही घट रही है
    सरस होकर उसे सहेजो तुम !

    बहुत गहन और सूफ़ियाना रचना, बहुत बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  5. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शनिवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  6. मन प्रेम की अथक संभावनायें हर बार विचारने लगता है।

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  7. प्रेम को कौन कब समझ सका है
    प्रयत प्रतीति है केवल खोने में

    बहुत गहरे भाव से सजी रचना प्रीतिकर है अमृता जी - बधाई।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  8. सच्चे प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति प्रस्तुति की आपने....

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  9. उन्हीं अर्थों को तबसे कितने ही
    संभृत शब्दों में घोल रही हूँ
    और तेरी स्मृति-मंजूषा को
    मैं बोल-बोल कर खोल रही हूँ !

    वाह बहुत खूब ,

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  10. 'ये जन्मों-जन्मों की गंधवाही गूँज जब मन के द्वार दस्तक दे , चिर-वंचित विस्मृतियाँ अपने अवगुंठित अर्थों को गह पायें और यह दुर्लभ जन्म संचित आकांक्षाओं-अभीप्साओं के स्वस्ति-वाचन स्वर उठायें !

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  11. आनंदविभोर हो जाता है मन ऐसी रचनाओं को पढकर. जितनी अर्थ सबल पंक्तियाँ उतना ही अनुपम कृति शबलत्व.

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  12. उत्कृष्ट कविताई का नमूना है यह कविता. जिन अनुभवों को जानना तक कठिन होता है, उन्हें संप्रेषित करने का कार्य आपने किया है. जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है.

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  13. यह जो निगूढ़ नाद है
    न मालूम कबसे चल रहा है
    हो-न-हो दो बिछुड़े शून्यों में
    अश्लेष अर्थ-सा पल रहा है !

    आत्मा और परमात्मा अलग रहे बहु -काल,……

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  14. यह जो निगूढ़ नाद है
    न मालूम कबसे चल रहा है
    हो-न-हो दो बिछुड़े शून्यों में
    अश्लेष अर्थ-सा पल रहा है !

    आत्मा और परमात्मा अलग रहे बहु -काल,……

    प्रेम में खोना ही पाना है।

    तू मुझमें है मैं तुझमे हूँ।

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  15. यह जो निगूढ़ नाद है
    न मालूम कबसे चल रहा है
    हो-न-हो दो बिछुड़े शून्यों में
    अश्लेष अर्थ-सा पल रहा है !
    बहुत गहन अव्यक्त अनुभूति को व्यक्त करती बहुत सुन्दर रचना
    latest post आभार !
    latest post देश किधर जा रहा है ?

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  16. This comment has been removed by the author.

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  17. प्रेम की गहनता को और कोई जान पाया है या नहीं आपने खूब समझा है और बहुत ही प्रीतिकर ढेंग से उसे अन्य सभी को समझाने का प्रयास भी किया है ! प्रबल भाव एवँ सशक्त सबल अभिव्यक्ति के लिये मेरी बधाई स्वीकार कीजिये ! अनुपम रचना है यह !

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  18. prem me bahti hui... behtareen rachna..
    bahut shandaar abhivayakti hai aapki :)

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  19. प्रेम पर सुन्दर काव्य रचना की बधाई !

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  20. प्रेम को कौन कब समझ सका है...........????????????
    बस इतना सा ही अफसाना है...
    न कोई समझा है.....
    न कोई जाना है.......!!

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  21. सुंदर और संवेदनाओं की अभिव्यक्ति करने वाली कविता। अंत में एक शाश्वत सत्य सम्मुख रखती है, प्रेम को कोई समझ नही सका और निष्कर्षतः बता देती है कि प्रेम समझने की नहीं उसमें डूबने की बात है।

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  22. प्रेम को कौन कब समझ सका है
    प्रयत प्रतीति है केवल खोने में
    ये जन्मों-जन्मों की गंधवाही गूँज भी
    सुन , कहती है हो जा मेरे होने में ...गूढ़ अर्थ समेटे , दार्शनिकता से ओतप्रोत शसक्त रचना , प्रेम के बिना क्या है वाकई ....आप प्रेम पर प्रेम से लिखती रहिये सुधी जन प्रेम को प्रेम से पढ़ते रहेंगे ...पुनः ढेरो बधाई के साथ .सादर

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  23. कितनी आकांक्षाओं-अभीप्साओं को ले
    इस दुर्लभ जन्म को हमने पाया है
    अब दिवस-रात निष्फल न बीते
    इसलिए तो तुम्हें फिर से बुलाया है !

    प्रेम को कौन कब समझ सका है
    प्रयत प्रतीति है केवल खोने में
    ये जन्मों-जन्मों की गंधवाही गूँज भी
    सुन , कहती है हो जा मेरे होने में

    उच्च स्तरीय दर्शन और लाजवाब रचना

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  24. प्रेम को कौन कब समझ सका है
    प्रयत प्रतीति है केवल खोने में
    ये जन्मों-जन्मों की गंधवाही गूँज भी
    सुन , कहती है हो जा मेरे होने में .
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ .

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  25. प्रेम ना बाड़ी ऊपजै......
    प्रेम को समझना बहुत दुरूह है । अमृता, अद्भुत लिखती हैं आप ।

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  26. ये जन्मों-जन्मों की गंधवाही गूँज भी
    सुन , कहती है हो जा मेरे होने में .

    अद्भुत ! अमृता जी, इस कविया में एक शाश्वत संवाद घट रहा है..बधाई !

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  27. प्रेम - न समझा जा सकता है
    न समझ से परे है
    न बाँधा जा सकता है
    न बंधन से परे है
    प्रेम - अमृत भी,विष भी
    पर है सिर्फ अमरत्व
    भले ही विष पीना क्यूँ न पड़े !!!

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  28. शानदार शब्द सामर्थ्य है ..
    बधाई !

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  29. ममता, मोह और प्रेम से लिखा गया पवित्र ह्रदय का भाव.......

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  30. रेम को कौन कब समझ सका है
    प्रयत प्रतीति है केवल खोने में
    ये जन्मों-जन्मों की गंधवाही गूँज भी
    सुन , कहती है हो जा मेरे होने में .
    भावनाओं को शब्‍द देने में आप की लेखनी नि:शब्‍द कर देती है

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  31. निशब्द...........
    अजब प्रेम की गजब कहानी ...........

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  32. प्रेम को कौन कब समझ सका है
    प्रयत प्रतीति है केवल खोने में
    ये जन्मों-जन्मों की गंधवाही गूँज भी
    सुन , कहती है हो जा मेरे होने में ..
    यही तो शाश्वत प्रेम है ... मेरा हो जाने में ही तो जीवन है ...

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  33. bahut khoob............prem ko kaun samajh ska hai..!

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