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Saturday, July 20, 2013

निद्रा है टूटेगी ....

                   

                    निद्रा है टूटेगी , तीव्र घात करो
                    कोमल अंगों पर वज्राघात करो

                    पर उससे पहले तुम तो जागो
                   ऐसे कंबल ओढ़ कर मत भागो

                     जब चारो ओर आग लगी है
                    आलोड़नों से हर प्राण ठगी है

                    झकोरों की चपेटें हैं घनघोर
                    खोजो! उसी में छिपा है भोर

                 उस भोर से चिनगियाँ छिटकाओ
                  हर बुझी मशाल को फिर जलाओ

                   जब बुझी मशाल पुन: जलती है
                  तब रुढियों की हड्डियां गलती है

                अंधविश्वास भस्मासुर बन जाता है
                 स्वयं अपनी आँच में जल जाता है

                किया जा सकता है तभी बहुत कुछ
                 यहीं तय करो तुम अभी सब कुछ

                आशा-ही-आशा में ओंठ न सुखाओ
               कमजोरी कुचल कर अलख जगाओ

                समय की शंकाओं पर विवाद करो
                 समाधान सोच कर नव नाद करो

                 स्व उत्थान से ही नवयुग आता है
                 औ' कल्पित स्वर्ग सच हो जाता है

                   निद्रा है टूटेगी , तीव्र घात करो
                   कोमल अंगों पर वज्राघात करो .

35 comments:

  1. आशा-ही-आशा में ओंठ न सुखाओ
    कमजोरी कुचल कर अलख जगाओ

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  2. निद्रा है टूटेगी , तीव्र घात करो
    कोमल अंगों पर वज्राघात करो ...

    क्या बात है ... श्रेष्ठ भाव ...

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  3. स्व उत्थान से ही नवयुग आता है
    औ' कल्पित स्वर्ग सच हो जाता है

    बहुत सुंदर ....उत्कृष्ट भाव ....आज इसी सोच की प्रबल आवश्यकता है ....अद्भुत ....!!

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  4. अद्भुत भाव-शबलता है इस रचना में. बहुत ज़रूरी है इंसान अपनी लघुता में निहित असीमित संभावनाओं का भान करे. सुन्दर सन्देश देती कृति.

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  5. स्व उत्थान से ही नवयुग आता है
    औ' कल्पित स्वर्ग सच हो जाता है
    बहुत सुन्दर सन्देश...

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  6. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [22.07.2013]
    चर्चामंच 1314 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
    सादर
    सरिता भाटिया

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  7. जोश से लबरेज कविता

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  8. oj gun se bharpoor sundar kvita
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल रविवार, दिनांक 21/07/13 को ब्लॉग प्रसारण पर भी http://blogprasaran.blogspot.in/ कृपया पधारें । औरों को भी पढ़ें

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  9. सुन्दर और प्रेरक। जागना तो होगा, और रूढ़ियों की हड्डियाँ भी गलानी पड़ेंगी। ज़रूरी है ये स्व-उत्थान।

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  10. मन ठोस कर सतत आगे बढ़ो ..
    तीव्र घात करो, वज्राघात करो..
    इंसान ही सब कुछ करता है और उसे ही लड़ना होगा...स्व उत्थान के बिना सब बेमानी है....

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  11. उत्थान की आशा और आवाहनात्मक कविता। प्रवाहत्मकता के साथ परिरवर्तन की आशा अलख जगाने का काम कर रही है।

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    1. Your comens are positive directional.It will give encouraged to writers.

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    2. Your comens are positive directional.It will give encouraged to writers.

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    3. वीर सिन्हा जी आभार। पढने वाले पढे-सोचे और लिखे। ब्लॉग एक सार्थक चर्चा का मंच है जहां विचार-चिंतन होता है। नई दुनिया में साहित्य निर्मिति का ताकतवर हथियार भी। प्रतिक्रियाएं भी ऐसी हो जिससे लेखक का हौसला बढाए और मार्गदर्शन करें। मेरी छोटी टिप्पणी पर गौर करने के लिए आभार।

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  12. स्व उत्थान से ही नवयुग आता है
    औ' कल्पित स्वर्ग सच हो जाता है
    sach hai...sundar rachna

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  13. स्वयं को और सब को, जगाना ही होगा....कर्मरत हों..

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  14. उस भोर से चिनगियाँ छिटकाओ
    हर बुझी मशाल को फिर जलाओ ..

    भाव मय ... इस मशाल को जलाने का प्रयास जरूरी है सतत ...

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  15. सारगर्भित भाव...... अब तो ऊर्जा जुटानी ही होगी ....

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  16. स्व उत्थान से ही नवयुग आता है -- एकदम सच है यह । ओजपूर्ण और सार्थक सन्देश देती रचना । बधाई । सस्नेह

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  17. स्व उत्थान से ही नवयुग आता है
    औ' कल्पित स्वर्ग सच हो जाता है

    सुंदर आह्वान करती अच्छी रचना ।

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  18. वर्तमान में हो रही शर्मनाक घटनाओं से प्रेरित
    मन में उठते आंदोलन को सही दिशा देती
    गहन अनुभूति की रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर

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  19. अशुभ के निवारणार्थ मशालों का जलना -जलते रहना आवश्यक है !
    ओजमय कविता !

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  20. गहन भाव लिए ,स्व उत्थान के लिए अति उत्तम आह्वान .

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  21. बेहतरीन ....बहुत ही बढ़िया पंक्तियाँ
    स्नील शेखर

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  22. हम जागें तो जग जागेगा....सुंदर बोध देतीं पंक्तियाँ...

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  23. उत्थान के लिये स्वयं ही प्रयास करना होगा, बहुत ही जोश व उमंग भरी रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  24. प्रयासों को व्यवहारिक करना ही होगा.......आशा का संचार करती बहुत ही शानदार पोस्ट.........हैट्स ऑफ इसके लिए।

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  25. आशा-ही-आशा में ओंठ न सुखाओ
    कमजोरी कुचल कर अलख जगाओ

    ...बहुत खूब....बहुत सुन्दर और प्रेरक रचना...

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  26. समय की शंकाओं पर विवाद करो
    समाधान सोच कर नव नाद करो

    स्व उत्थान से ही नवयुग आता है
    औ' कल्पित स्वर्ग सच हो जाता है

    निद्रा है टूटेगी , तीव्र घात करो
    कोमल अंगों पर वज्राघात करो .

    निःशब्द निःशब्द सचमुच

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  27. शब्द शब्द आव्हान से भरपूर । बहुत बढिया .

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  28. आशा की अट्टालिकाओं पर चढ़कर सार्थक बदलाव का उत्‍ताल आहवान।

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  29. प्रयाण से पूर्व की तंद्रा पर प्रहार करती कविता. बहुत सुंदर.

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