ओ ! आसमान के रखवाले
तुम्हारे मौसम तक
जमीन को किया है
तुम्हारे ईमान के हवाले...
चाहे तो तू
जमीन का खून पी ले
या उसे पूरा ही खा ले
पर उनकी बददुआ
तुम तक ही जायेगी
और तुम्हें जब
जख्म मिलेगा तो
कोई भी मरहम-पट्टी
तुम्हारे काम न आएगी....
थोड़ी शर्म कर !
अपनी जमीर की सुन !
इन्सानियत के नाते ही सही
तू उनकी बददुआ ना ले...
याद रख !
जमीन जब फटेगी तो
तुझे ही निगल जायेगी
तब उस खिचड़ी की याद
तुम्हें बहुत रूलायेगी
जिससे ललचाकर
तुम आसमान बन जाते हो
और भरे मौसम में भी
जमीन पर सिर्फ
सूखा ही उगाते हो....
ऐसी पढ़ाई से तो
वो अनपढ़ भला
जो खिचड़ी न खा कर
अपने घास-पात पर है पला...
अब जाओ !
उन सूनी गोद को
कुछ मुआवजा से भर दो
अगले मौसम की भी
तैयारी करनी है तो
हर लाश पर
एक झाड़ूमार नौकरी के साथ
खून टपकाता हुआ
एक घर दो .
तुम्हारे मौसम तक
जमीन को किया है
तुम्हारे ईमान के हवाले...
चाहे तो तू
जमीन का खून पी ले
या उसे पूरा ही खा ले
पर उनकी बददुआ
तुम तक ही जायेगी
और तुम्हें जब
जख्म मिलेगा तो
कोई भी मरहम-पट्टी
तुम्हारे काम न आएगी....
थोड़ी शर्म कर !
अपनी जमीर की सुन !
इन्सानियत के नाते ही सही
तू उनकी बददुआ ना ले...
याद रख !
जमीन जब फटेगी तो
तुझे ही निगल जायेगी
तब उस खिचड़ी की याद
तुम्हें बहुत रूलायेगी
जिससे ललचाकर
तुम आसमान बन जाते हो
और भरे मौसम में भी
जमीन पर सिर्फ
सूखा ही उगाते हो....
ऐसी पढ़ाई से तो
वो अनपढ़ भला
जो खिचड़ी न खा कर
अपने घास-पात पर है पला...
अब जाओ !
उन सूनी गोद को
कुछ मुआवजा से भर दो
अगले मौसम की भी
तैयारी करनी है तो
हर लाश पर
एक झाड़ूमार नौकरी के साथ
खून टपकाता हुआ
एक घर दो .
ReplyDeleteअफरा-तफरी मच गई, खा के मिड-डे मील |
अफसर तफरी कर रहे, बीस छात्र लें लील |
बीस छात्र लें लील, ढील सत्ता की दीखे |
मुवावजा ऐलान, यही इक ढर्रा सीखे |
आने लगे बयान, पार्टियां बिफरी बिफरी |
किन्तु जा रही जान, मची है अफरा तफरी ||
हर लाश पर
ReplyDeleteएक झाड़ूमार नौकरी के साथ
खून टपकाता हुआ
एक घर दो .
सशक्त लेखन .....
हृदय विदारित करती पंक्तियाँ .....
पिछले साल गाँव पांच साल बाद गया था तो मेरे मध्य विद्यालय का स्वरुप बिलकुल बदला हुआ था. नवीन भवन और साथ में एक छोटा सा घर जिसपर बड़े-बड़े अक्षरों से लिखा हुआ था-पाकशाला. वहां के हालात देखे तो तभी लगा था कि गंदगी कोई हादसा बन न उभरे. अभी यह जान बहुत दुःख हुआ. मुवाअजा मिलने के बाद शायद परिवार वाले चुप हो जाएँ लेकिन जो चले गए .........
ReplyDeleteमार्मिक, गरीबों का हाय से लौह भस्म हो जाए...
ReplyDeleteआभार
अत्यंत दुखद।
ReplyDeleteबेहद दर्दनाक ..
ReplyDeleteअब जाओ !
ReplyDeleteउन सूनी गोद को
कुछ मुआवजा से भर दो
अगले मौसम की भी
तैयारी करनी है तो
हर लाश पर
एक झाड़ूमार नौकरी के साथ
खून टपकाता हुआ
एक घर दो .
सत्य को कहती मार्मिक पंक्तियाँ ..... मुआवजा दे कर सरकार अपनी जिम्मेदारिसे मुक्त हो जाती है ।
मार्मिक, आपकी यह रचना कल गुरुवार (18-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteदुखद .....जीवन का मोल ही नहीं है जैसे..... संवेदना लिये भाव
ReplyDeleteबहुत दुखद ....
ReplyDeleteबेहद सटीक रचना और कुछ बच्चों को पटना इलाज़ के लिए भेजना पढ़ा
ReplyDeleteपता नहीं सरकार और अधिकारी कब समझेगें आम इंसान के दर्द को
बेहद दर्दपूर्ण.
ReplyDeleteरामराम.
हमारे देश में हर सरकारी योजना फेल है चाहे वह मिड डे मील हो, चाहे प्रौढ शिक्षा, चाहे सर्व शिक्षा। सरकार अपने चमचों को पालने के लिए और खुश करने के लिए योजनाओं को चलाती है। और खेल खेलती है सामान्य जनता के जीवन और गरीब जनता के साथ, बच्चों की जान के साथ खिलवाड होता है। बस सभी मुआवजा मिले तो खुश। पर जिनको इस घटना से गुजरना पडा है वह दुबारा अपने बच्चों को ऐसा खाना खिलाने की इजाजत नहीं देंगे। हमें सोचना है भाई अपने देश में बच्चे अपने बलबूते और भरौसे जने सरकार के नहीं। सरकार तो .... है। समझ ले मिड डे मील स्कूली बच्चों के लिए मजाग है। उससे दूर रहने में ही भलाई है।
ReplyDeleteउफ़ ! हृदय विदारक पंक्तियाँ, इन्सान के गिरने की कोई सीमा नहीं..
ReplyDeleteएक ह्रदयविदारक घटना को ऐसे भी
ReplyDeleteशब्दों में बांधा जा सकता है।
बहुत सुंदर..
ये सब युज्नाएं बस अपनों का पेट भरने के लिए होती हैं ... ये नाता तो किसी का भला कर ही नहीं सकते ... अफ्सोसो होता है ऐसे हालात देख के ... शर्म इनको मगर नहीं आती ...
ReplyDeleteएक बेदना के साथ लिखी गयी पंक्तियाँ ...मन को चिंतन के लिए बिबश कर देती हैं ...आपकी कविता की ताजगी मेरे हमेशा से मेरे बिशेष आकर्षण का केंद्र रही हैं ..हार्दिक बधाई और हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ..सादर
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी चित्रण , दुखद .
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete......दुख है सब ओर, चूर-चूर हैं प्राण
Delete......फिर भी हो रहा है भारत निर्माण
बहुत दुखद मर्मस्पर्शी चित्रण ,.
ReplyDeleteRECENT POST : अभी भी आशा है,
बेहद दर्दनाक
ReplyDeleteदुखद
ReplyDeleteदुखद घटना, मन भीग गया..
ReplyDeleteसही आक्रोश
ReplyDeleteजमीन जब फटेगी तो
तुझे ही निगल जायेगी
तब उस खिचड़ी की याद
तुम्हें बहुत रूलायेगी
जिससे ललचाकर
तुम आसमान बन जाते हो
और भरे मौसम में भी
जमीन पर सिर्फ
सूखा ही उगाते हो..
कब स्थिति बदलेगी ?????
याद रख !
ReplyDeleteजमीन जब फटेगी तो
तुझे ही निगल जायेगी
तब उस खिचड़ी की याद
तुम्हें बहुत रूलायेगी
जिससे ललचाकर
तुम आसमान बन जाते हो
और भरे मौसम में भी
जमीन पर सिर्फ
सूखा ही उगाते हो....
करेंगे सो भरेंगें कर्मों का खाता साथ जाता है तिहाड़ खोरों भले आज तिहाड़ को महा तीर्थ समझ लो और मुआवज़े को सौगात .
सामाजिक न्याय, भारत निर्माण व सुशासन का दम भरने वाले लोग कहाँ हैं ? सब एक दूसरे के मुंह पर कालिख पोतने में लगे हुए हैं.... बढ़िया पोस्ट...
ReplyDeleteदिल से निकले लफ्ज़.......बहुत दर्दनाक
ReplyDeleteबेहद दर्दनाक .
ReplyDeleteदर्दनाक घटना...........इस तरह की घटनाओं के बाद भी सरकार मुआवजे देकर अपना पल्ला झाड़ लेगी लेकिन उस माँ का दर्द कौन समझेगा...................
ReplyDeleteये हादसों का देश है...हम यहाँ ताश के पत्ते से फेंटे जाते हैं और वक़्त की बिसात पे राजनिततेगयून व शशनाध्यक्षों के हाथ के मोहरे...हम सिर्फ मोहरे हैं और कुछ नहीं...
ReplyDeleteबहुत ही दर्दनाक वर्णन अमृता ...हृदय से उमड़ित और मन को उद्वेलित करती हुयी कविता...
ढूलकी पड़ी जिन्दगी ना देख पाने की तमन्ना।
ReplyDeleteबिछुड़े प्यारों ने पथराई आँखों के सपने थे टूटे। ~ प्रदीप यादव ~
Deleteबिछुड़े प्यारों के पथराई आँखों में सपने थे टूटे।
कृपया ,इस तरह पढ़ें
निसंदेह साधुवाद योग्य रचना....
ReplyDeleteबहुत व्यथित हूँ इस घटना से...और आपके इस कविता ने और भी दुःख गुस्सा बढ़ा दिया है :(
ReplyDeleteहृदय को कहीँ गहरे तक मथ देनेवाली रचना । उन माँओँ का दर्द कौन समझेगा ? ऐसी घटनाओँ के बाद भी क्या ?
ReplyDeleteप्रधानाध्यापिका के घर हर महीने दस हज़ार पहुँचाने की मशीन है मिड-डे मील.
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