आज कोई भी बहाना न बनाओ
पुकारा है तुम्हें, अब चले आओ
तप्त सूरज सागर में समाये
गो-रज से गोधूलि डगमगाए
एक दूरी से विहग लौट आये
दीप भी देहरी पे निकल आये
जब विकल नेह है अनुराग है
क्यों शलभ से विमुख आग है ?
आज तारों में भी कुछ तनी है
चाँद की किस से यूँ ठनी है ?
न बादलों की बात ही बनी है
नदियाँ भी चलती अनमनी है
जब अपने राह चलती चाह है
क्यों भ्रम में भटकती आह है ?
बैरिन बिंदिया भी विरहन गाये
सुन , चूड़ियाँ भी चुप्पी लगाए
मेंहदी पर न वह रंग ही आये
आंसू में ही महावर धुल जाए
जब प्राण से प्राण मोल है लिया
क्यों यह व्यथा अनमोल दिया ?
साँसें सिमटी जाती सुनसान में
धड़कन धूल-सी उड़ी वितान में
ह्रदय कुछ कहता है यूँ कान में
आँखें घूम जाती है अनजान में
जब आस पर ही तो विश्वास है
क्यों चातक से चूकी प्यास है ?
अब मेघ घिर रहे हैं चले आओ
फूल खिल भर रहे हैं चले आओ
सब झूले तन गये हैं चले आओ
देखो!सावन है आया चले आओ
जब विवश-सा नेह है अनुराग है
तो मिलन से ही बुझती आग है
पुकारा है तुम्हें, अब चले आओ
आज कोई भी बहाना न बनाओ .
बहुत सुंदर भाव और शब्दों का प्रयोग , शुभकामनाये
ReplyDeleteमन भावन सावन..बहुत खुबसूरत....
ReplyDeleteबेहतरीन पुकार..... बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteआज तारों में भी कुछ तनी है
ReplyDeleteचाँद की किस से यूँ ठनी है ?
न बादलों की बात ही बनी है
नदियाँ भी चलती अनमनी है
बहुत ही भावपूर्ण एवम खूबसूरत रचना.
रामराम.
वाह...
ReplyDeleteसुन्दर सा मनुहार भरा गीत...मन भिगो गया सच्ची....
अनु
ये सावन बड़ा जालिम मिजाज तेवर लिए हुए आता है...इतने नेह और आस से जब कोई पुकारेगा तो ..........
ReplyDeleteकोमल, सावन,
ReplyDeleteभाव मनभावन।
जब आस पर ही तो विश्वास है
ReplyDeleteक्यों चातक से चूकी प्यास है ?
उत्कृष्ट भाव ...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति अमृता जी ...!!
भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण एवम खूबसूरत रचना
ReplyDeleteकाफी दिनों बाद
ReplyDeleteलेकिन बहुत सुंदर रचना,
अंदर के भावों को शब्द देना आसान नहीं
बहुत सुंदर
मुझे लगता है कि राजनीति से जुड़ी दो बातें आपको जाननी जरूरी है।
"आधा सच " ब्लाग पर BJP के लिए खतरा बन रहे आडवाणी !
http://aadhasachonline.blogspot.in/2013/07/bjp.html?showComment=1374596042756#c7527682429187200337
और हमारे दूसरे ब्लाग रोजनामचा पर बुरे फस गए बेचारे राहुल !
http://dailyreportsonline.blogspot.in/2013/07/blog-post.html
बहुत सुन्दर भाव... सावन आया, मनभावन संग...
ReplyDeleteसावन की पुकार गूँज भर गई चहुँ ओर !
ReplyDeleteमधुर गीत .... इतनी मनुहार तो आ ही जाएंगे .... बहाना कब तक बनाएँगे
ReplyDeleteतप्त सूरज सागर में समाये
ReplyDeleteगो-रज से गोधूलि डगमगाए
एक दूरी से विहग लौट आये
दीप भी देहरी पे निकल आये-
बहुत ही भावपूर्ण, खूबसूरत रचना
latest दिल के टुकड़े
latest post क्या अर्पण करूँ !
सटीक उलाहना-
ReplyDeleteबधाई आदरेया-
मनुहार भरी कुछ प्यार भरी
ReplyDeleteपुकार है यह अनुराग भरी..
कोमल भाव पूर्ण सुंदर रचना !
खूबसूरत रचना
ReplyDeleteकाबिले तारीफ़ ..एक एक पंक्ति एक एक शब्द बिलकुल सधा हुआ ..सादर बधाई के साथ
ReplyDeleteइतनी मधुर मनुहार पर भी न पिघले वो पत्थर ही हो सकता है.......अति सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावों से परिपूर्ण कविता ...
ReplyDeleteकोमल मान मनुहार ह्रदय को स्पंदित कर गयी .. बहुत ही सुन्दर !
पर एक इस पंक्ति को पुनः देखिये ..
गो-रज से गोधूलि डगमगाए
गो रज और गोधूलि एक ही चीज़ है फिर इसका एक की पंक्ति में प्रयोग ??
शालिनी जी , यहाँ गो-रज का अर्थ है गाय के पैरों से उड़ने वाली धूल जब वे संध्या को अपने घर लौटती हैं और गोधूलि का अर्थ है संध्या( साँझ ) . आशा है कि अब अर्थ स्पष्ट हो गया होगा .आभार.
Deleteसुंदर रचना....
ReplyDeleteआज तारों में भी कुछ तनी है
ReplyDeleteचाँद की किस से यूँ ठनी है ?
न बादलों की बात ही बनी है
नदियाँ भी चलती अनमनी है
बढ़िया बिम्ब विस्तार लगता है प्रकृति (देह )पुरुष (आत्मा )से रूठ गई है .ओम शान्ति
तड़पता अनुरोध किस प्रकार
ReplyDeleteकाश सावन हो जाए सदाबहार.........!!!
वाह .....बहुत बढ़िया !!!
ReplyDeleteयही है चातक और चकोरी का सच्चा प्रेम और विछोह से उपजा अनुराग।
ReplyDeleteइतनी सुन्दर सशक्त भाव कविता किस पाषाण ह्रदय को न पिघला दे!शब्द शब्द संवाद है भाव भाव संघात !
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता अमृता ! अब हम आपकी उन्ही कविताओं पर आया करेगें जिन्हें सौ में निन्यानबे नंबर और सौ मिलेगें -इसके लिए सौ में सौ !
सावन का अनुराग तंतु बहुत मज़बूत खींच रखता है. सुंदर कविता.
ReplyDeleteये सावन की पुकार है ये प्रेम-संचित शब्दों की तेज बारिश, निर्णय कर पाना मुश्किल हो रहा है. खैर जो भी है, पाठक को बह जाने के सिवा कोई रास्ता नहीं है. आनंदित हुआ मन.
ReplyDeleteजब विवश-सा नेह है अनुराग है
ReplyDeleteतो मिलन से ही बुझती आग है
sunder prastuti