निद्रा है टूटेगी , तीव्र घात करो
कोमल अंगों पर वज्राघात करो
पर उससे पहले तुम तो जागो
ऐसे कंबल ओढ़ कर मत भागो
जब चारो ओर आग लगी है
आलोड़नों से हर प्राण ठगी है
झकोरों की चपेटें हैं घनघोर
खोजो! उसी में छिपा है भोर
उस भोर से चिनगियाँ छिटकाओ
हर बुझी मशाल को फिर जलाओ
जब बुझी मशाल पुन: जलती है
तब रुढियों की हड्डियां गलती है
अंधविश्वास भस्मासुर बन जाता है
स्वयं अपनी आँच में जल जाता है
किया जा सकता है तभी बहुत कुछ
यहीं तय करो तुम अभी सब कुछ
आशा-ही-आशा में ओंठ न सुखाओ
कमजोरी कुचल कर अलख जगाओ
समय की शंकाओं पर विवाद करो
समाधान सोच कर नव नाद करो
स्व उत्थान से ही नवयुग आता है
औ' कल्पित स्वर्ग सच हो जाता है
निद्रा है टूटेगी , तीव्र घात करो
कोमल अंगों पर वज्राघात करो .
आशा-ही-आशा में ओंठ न सुखाओ
ReplyDeleteकमजोरी कुचल कर अलख जगाओ
निद्रा है टूटेगी , तीव्र घात करो
ReplyDeleteकोमल अंगों पर वज्राघात करो ...
क्या बात है ... श्रेष्ठ भाव ...
स्व उत्थान से ही नवयुग आता है
ReplyDeleteऔ' कल्पित स्वर्ग सच हो जाता है
बहुत सुंदर ....उत्कृष्ट भाव ....आज इसी सोच की प्रबल आवश्यकता है ....अद्भुत ....!!
अद्भुत भाव-शबलता है इस रचना में. बहुत ज़रूरी है इंसान अपनी लघुता में निहित असीमित संभावनाओं का भान करे. सुन्दर सन्देश देती कृति.
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteस्व उत्थान से ही नवयुग आता है
ReplyDeleteऔ' कल्पित स्वर्ग सच हो जाता है
बहुत सुन्दर सन्देश...
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [22.07.2013]
ReplyDeleteचर्चामंच 1314 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
जोश से लबरेज कविता
ReplyDeleteoj gun se bharpoor sundar kvita
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल रविवार, दिनांक 21/07/13 को ब्लॉग प्रसारण पर भी http://blogprasaran.blogspot.in/ कृपया पधारें । औरों को भी पढ़ें
सुन्दर और प्रेरक। जागना तो होगा, और रूढ़ियों की हड्डियाँ भी गलानी पड़ेंगी। ज़रूरी है ये स्व-उत्थान।
ReplyDeleteमन ठोस कर सतत आगे बढ़ो ..
ReplyDeleteतीव्र घात करो, वज्राघात करो..
इंसान ही सब कुछ करता है और उसे ही लड़ना होगा...स्व उत्थान के बिना सब बेमानी है....
Superb!! :)
ReplyDeleteउत्थान की आशा और आवाहनात्मक कविता। प्रवाहत्मकता के साथ परिरवर्तन की आशा अलख जगाने का काम कर रही है।
ReplyDeleteYour comens are positive directional.It will give encouraged to writers.
DeleteYour comens are positive directional.It will give encouraged to writers.
Deleteवीर सिन्हा जी आभार। पढने वाले पढे-सोचे और लिखे। ब्लॉग एक सार्थक चर्चा का मंच है जहां विचार-चिंतन होता है। नई दुनिया में साहित्य निर्मिति का ताकतवर हथियार भी। प्रतिक्रियाएं भी ऐसी हो जिससे लेखक का हौसला बढाए और मार्गदर्शन करें। मेरी छोटी टिप्पणी पर गौर करने के लिए आभार।
Deleteस्व उत्थान से ही नवयुग आता है
ReplyDeleteऔ' कल्पित स्वर्ग सच हो जाता है
sach hai...sundar rachna
स्वयं को और सब को, जगाना ही होगा....कर्मरत हों..
ReplyDeleteउस भोर से चिनगियाँ छिटकाओ
ReplyDeleteहर बुझी मशाल को फिर जलाओ ..
भाव मय ... इस मशाल को जलाने का प्रयास जरूरी है सतत ...
सारगर्भित भाव...... अब तो ऊर्जा जुटानी ही होगी ....
ReplyDeleteस्व उत्थान से ही नवयुग आता है -- एकदम सच है यह । ओजपूर्ण और सार्थक सन्देश देती रचना । बधाई । सस्नेह
ReplyDeleteस्व उत्थान से ही नवयुग आता है
ReplyDeleteऔ' कल्पित स्वर्ग सच हो जाता है
सुंदर आह्वान करती अच्छी रचना ।
वर्तमान में हो रही शर्मनाक घटनाओं से प्रेरित
ReplyDeleteमन में उठते आंदोलन को सही दिशा देती
गहन अनुभूति की रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
अशुभ के निवारणार्थ मशालों का जलना -जलते रहना आवश्यक है !
ReplyDeleteओजमय कविता !
ReplyDeleteगहन भाव लिए ,स्व उत्थान के लिए अति उत्तम आह्वान .
बेहतरीन ....बहुत ही बढ़िया पंक्तियाँ
ReplyDeleteस्नील शेखर
हम जागें तो जग जागेगा....सुंदर बोध देतीं पंक्तियाँ...
ReplyDeleteउत्थान के लिये स्वयं ही प्रयास करना होगा, बहुत ही जोश व उमंग भरी रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
प्रयासों को व्यवहारिक करना ही होगा.......आशा का संचार करती बहुत ही शानदार पोस्ट.........हैट्स ऑफ इसके लिए।
ReplyDeleteआशा-ही-आशा में ओंठ न सुखाओ
ReplyDeleteकमजोरी कुचल कर अलख जगाओ
...बहुत खूब....बहुत सुन्दर और प्रेरक रचना...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
समय की शंकाओं पर विवाद करो
ReplyDeleteसमाधान सोच कर नव नाद करो
स्व उत्थान से ही नवयुग आता है
औ' कल्पित स्वर्ग सच हो जाता है
निद्रा है टूटेगी , तीव्र घात करो
कोमल अंगों पर वज्राघात करो .
निःशब्द निःशब्द सचमुच
शब्द शब्द आव्हान से भरपूर । बहुत बढिया .
ReplyDeleteआशा की अट्टालिकाओं पर चढ़कर सार्थक बदलाव का उत्ताल आहवान।
ReplyDeleteप्रयाण से पूर्व की तंद्रा पर प्रहार करती कविता. बहुत सुंदर.
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