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Wednesday, August 1, 2012

धुंधलके में ...


साँझ के
धुंधलके में
हम तुम
जब मिलते हैं
कोई
गद्गद गीत
उभरता है ...
गा-गा कर
अक्षत अम्बर को
थिरकाता है
तर्षित तारों को
झिलमिलाता है
बातुल बिजुरी को
मचलाता है
और
चंचल चाँद को
और अधिक
दमकाता है ...
साँझ के
धुंधलके में
मंदिम-मंदिम
कहीं दीपक
जल सिहरता है
मंजिम-मंजिम
लौ झुक कर
ऐसे लिपटता है
जैसे
विकल विरह
मानो पिघलता है ...
साँझ के
धुंधलके में
क्षण-क्षण
संकोचित संगम
होता है
और सागर
सागर को ही
डूबोता है ...
प्राणों में
प्रतीक्षातुर
प्रीत लिए दिन
जैसे-जैसे
रात में
खोता है .

48 comments:

  1. रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं .... !!

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  2. साँझ के
    धुंधलके में

    जैसे
    विकल विरह
    मानो पिघलता है .....

    ..............

    सांझ की देहरी पर..

    पल..पल मन आँगन है....

    चंचल चाँद के चित्त में

    लौ सी रात कितनी मद्धिम है.......

    अप्रतिम.. अप्रतिम..अप्रतिम............

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  3. और सागर
    सागर को ही
    डूबोता है ...
    प्राणों में
    प्रतीक्षातुर
    प्रीत लिए दिन
    जैसे-जैसे
    रात में
    खोता है .
    वाह वाह अद्दभुत बिम्ब सुन्दर भाव बहुत बहुत बधाई

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  4. इस कविता में एक विशेषता है. चाहे इसे ऊपर से नीचे पढ़ें या नीचे से ऊपर को, पाठक एक ही भाव को प्राप्त होता हैं. इसे व्यष्टि से समष्टि की ओर आना कहें या उसके विपरीत. भाव एक ही है. अभिव्यक्ति की सुंदरता कमाल है.
    रक्षाबंधन की शुभकामनाएँ.

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    1. सही कहा भूषण जी आप ने लाजवाब..

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  5. वाह....
    बहुत सुन्दर.....
    भूषण की टिप्पणी देख कर फिर से पढ़ी....नीचे से...
    वाकई..लाजवाब...

    अनु

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    Replies
    1. *आदरणीय भूषण सर ...
      क्षमा चाहती हूँ....जाने कैसे जल्दी में लिख गयी.
      सादर

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  6. खुबसूरत भाव में बहती
    बहुत - बहुत सुन्दर रचना...
    :-)

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  7. Amrita,

    DO PREMIYON KAA SURAJ DHALNE PAR MILNE BAAD MANSIK KALPANAON KAA BAHUT SUNDER LIKHAA HAI.

    Take care

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  8. साँझ के
    धुंधलके में
    क्षण-क्षण
    संकोचित संगम
    होता है,,,,,,,,,,

    भाव लिए सुन्दर प्रस्तुति,,,,,बधाई

    रक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
    RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,

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  9. संयोग आनंदिता या मिलन मुदिता के गहन अभिसार के उदभाव
    तन से आगे भाग रहा मन मनमोहन में रम जाने को ...

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  10. ऐसा तो कभी-कभी ही होता है जबकि मन अक्सर तुम्हारे पास ही भागता है

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  11. बहुत ही कोमल भाव छलकायें हैं आपने इतने कम शब्दों से..

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  12. अमृता,
    कविता के भाव अच्छे हैं, शिल्प भी।

    ***
    आपसे इतनी तुकबंदी की ज़रूरत नहीं समझता।

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  13. अति सुंदर कविता ...शुभकामनायें

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  14. अमृता जी इतना ही कहूँगा- अद्भुत... ह्रदय के तार झनझना उठे

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  15. जैसे धरती और क्षितिज ,सागर और क्षितिज का मिलन,ऐसे हो इस विरहणी का प्रेमी से मिलन ,अभिसार का रस लिए ,चंदा का अर्क लिए .ज़मी से अर्श पल्लवन ले निशि बासर .बढ़िया भाव स्तुति ,राग स्तुति प्रेम अग्नि शिखा में निखरे रूप की स्वरूप की ..शुक्रिया इस प्रस्तुति के लिए .भाव मार्जन के लिए .

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  16. हाँ "मद्धिम -मद्धिम"कर लें.

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  17. अच्छी रचना
    आपको पढना वाकई अच्छा लगता है
    बहुत बढिया

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  18. कल 03/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  19. अनुपम भाव लिए उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति

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  20. साँझ के
    धुंधलके में

    जैसे
    विकल विरह
    मानो पिघलता है

    बेहतरीन भावों की अभिव्यक्ति जहाँ सिर्फ प्रेम समर्पण और निष्ठां के भाव परिलक्षित होते हैं ....

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  21. विशिष्ट शैली, 'विशेषण' के अद्भुत प्रयोग ने रचना के सौंदर्य में कई गुना वृद्धि कर दी.

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  22. इस प्यार को कोई नाम नहीं दे सकते

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  23. साँझ के धुंधलके में मिलन होने पर कितना कुछ होता है सुंदर उपमाओं से सजाया है रचना को

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  24. बहुत ही कोमल भाव लिए सुन्दर रचना..

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  25. कोमल रचना , सुंदर अभिव्यक्ति !:)

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  26. कविता या बहती नदी.... अद्भुत...

    सादर।

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  27. ऐसे ही सिमट जाती है मन सामने कविता कोई.....!!

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  28. सुन्दर प्रेमगीत ! पढ़ कर जी करता है ऐसे ही किसी शाम के धुंधलके में गम हो जाने का !

    बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति. शुभकामनाएं.

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  29. Awesome concept.. Thanks for sharing.. keep writing.

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  30. सुंदर चित्र खींचा है आपने।

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  31. काबिल-ए-तारीफ पंक्तियों का अद्भुत प्रयोग। स्वागत है।

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  32. साँझ के
    धुंधलके में
    क्षण-क्षण
    संकोचित संगम
    होता है
    और सागर
    सागर को ही
    डूबोता है ...lajabab rachna sunder bhav..aapkee rachnaaon ko padhkar lagta hai jaise aap chitrakaar hain aaur shabdon se panting kartee hain..is rachna ke liye bhee mere shabd hain,,,behtarin

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  33. मदिर मदिर प्राणवायु बह रही है . अति सुँदर .

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  34. सुंदर शब्दावली...गहरे भाव और आपकी कलम फिर क्या कहने...

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  35. रूहानी प्रेम की श्रृंगारमय अभिव्यक्ति....सुन्दर कल्पनाओं से सुसज्जित

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  36. कोमल भाव प्रेम और समर्पण की भावनात्मक अनुभूति.

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  37. साँझ का जादू जब सारे आकाश और धरती छा जाता है ,तब अंतर में उठती भावनायें एक निराला लोक रच देती हैं -बहुत गहन अभिव्यक्ति !

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  38. मिलन और समर्पण .........जैसे जीवन्तं हो गए

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  39. प्राणों में
    प्रतीक्षातुर
    प्रीत लिए दिन
    जैसे-जैसे
    रात में
    खोता है .

    ....बहुत सुन्दर भावपूर्ण शब्द चित्र...

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  40. साँझ के धुंधलके में हम तुम मिलते हैं तो रहस्यमय रोमांचक मधुरिम स्वप्न साकार होता है ...
    शब्दों की जादूगरी दृश्य को जैसे साकार कर रही है !
    मनभावन !

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  41. बहुत ही सुन्दर समां बाँधा है.....शानदार......जज़्बात पर कुदरत के नज़ारे भी देखें।

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  42. बहुत ही सुन्दर कविता अमृता जी |

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  43. और सागर
    सागर को ही
    डुबोता है...

    वाह!
    अदभुत अनुपम प्रस्तुति.

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  44. भौतिक द्वंद्व क्या होता है यह आपने ठीक से समझा दिया है .कवियित्री अमृता तन्मय भाव बोध और शब्द सामर्थ्य बड़ा व्यापक है ,नए शब्द लातीं हैं आप .आप की कृति की "चर्चा" समीक्षा बड़ी सटीक रही .डॉ राम विलास शर्मा जी ने हिंदी में इक प्रत्यय लगाकर शब्द टकसाल गढ़ी थी जैसे इतिहास से इतिहासिक ,समाज से समाजिक ,विज्ञानी ,शब्द का इस्तेमाल भी आपने ही सबसे पहले किया था .साइंटिफिक के लिए वैज्ञानिक (विज्ञानिक भी हो सकता है इस तरह ),भाषा को सीमा बद्ध क्यों कीजिएगा विकसित होने दो बढ़ने दो अंग्रेजी की तरह जिसके आज अनेक संस्करण चल पड़े हैं ,ब्रितानी अंग्रेजी अलग है अमरीकी अलग .हिन्दुस्तानी हिंगलिश अलग है .

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