अक्सर
मेरी कविता
लाँघ जाती है
अनगिनत खींची हुई
लक्ष्मण रेखाओं को...
रावणों को
चकमा देकर
हथिया लेती है
पुष्पक विमान...
विस्मृति में कहीं
भटक रहे हैं
हनुमान...
जटायु को
ज़िंदा रखना है
इसलिए खुद ही
लाती है संजीवनी बूटी...
लम्बी सेवा के बाद
सुरसा को
मिली है छुट्टी...
पर उस
त्रिजटा को
कौन समझाए
जो कर रही है
प्रतिपल प्रतीक्षा
उसी अशोक वाटिका में .
बेहद गहन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteBeautifully expressed analogy! :)
ReplyDeleteयह तो कथानक ही बदल गया. लेकिन यह संभव था आज. सब की अपनी-अपनी भक्ति है. त्रिजटा की भी.
ReplyDeleteचरित्रों के माध्यम से जीवन कथा..
ReplyDeleteअक्सर मेरी कविता लाँघ जाती है अनगिनत खींची हुई लक्ष्मण रेखाओं को... रावणों को चमका देकर हथिया लेती है पुष्पक विमान... विस्मृति में कहीं भटक रहे हैं हनुमान... जटायु को ज़िंदा रखना है इसलिए खुद ही लाती है संजीवनी बूटी... लम्बी सेवा के बाद सुरसा को मिली है छुट्टी... पर उस त्रिजटा को कौन समझाए जो कर रही है प्रतिपल प्रतीक्षा उसी अशोक वाटिका में .
ReplyDeleteइतिहासिक पात्रों को समसामयिक सन्दर्भों पात्रों से जोडती बढ़िया रचना .कृपया 'चकमा 'देकर कर लें पुष्पक विमान का हथियाना .शुक्रिया .
और यहाँ भी दखल देंवें -
ram ram bhai
सोमवार, 28 मई 2012
क्रोनिक फटीग सिंड्रोम का नतीजा है ये ब्रेन फोगीनेस
http://veerubhai1947.blogspot.in/
बहुत ही बढिया ।
ReplyDeleteसुन्दर रचना ...अमृता जी खुद संजीवनी ला सके बिना किसी के सहायता के तो बात ही दीगर है नहीं तो प्रभु की याद और कर्म दोनों ....जय श्री राधे - भ्रमर 5
ReplyDeleteभ्रमर का दर्द और दर्पण
kavita ka lakshamn rekha ko langhana , aur ashok vaatika men trijata ke dwaara ki jaati pratiksha ... bahut nye bimb .... sundar abhivyakti
ReplyDeleteपर उस
ReplyDeleteत्रिजटा को
कौन समझाए
जो कर रही है
प्रतिपल प्रतीक्षा
उसी अशोक वाटिका में .
....बहुत खूब ! एक गहन और सशक्त प्रस्तुति...
विस्मृति में कहीं
ReplyDeleteभटक रहे हैं
हनुमान...
काफी दिलचस्प होता है आपके शब्दों को पढ़ना...
अशोक वाटिका चिर प्रतीक्षित नहीं रहेगा
ReplyDeleteकविता जब लक्ष्मण रेखा पार कर जाए तो समझो तुम अजेय हो ...त्रिजटा भी एक दिन पार कर लेगी , समझाने की ज़रूरत नहीं
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या कहने..
(छोटा सा करेक्शन है, शायद भूल से चमका लिख गईं है, चकमा की जगह)
बिम्बो के माध्यम से आपने बहुत ही गहरी बात कही है ...बधाई स्वीकार करे.
ReplyDeleteबहुत बढिया रचना.....बेहतरीन।
ReplyDeleteत्रिजटा को
ReplyDeleteकौन समझाए
जो कर रही है
प्रतिपल प्रतीक्षा
उसी अशोक वाटिका में .
वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,,
RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
सारा दृश्य कौंध गया आँखों के सामने ....कविता का लक्ष्मण रेखा को पार कर जाना ....बेहतर प्रयोग सारगर्भित .....!
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeleteYEH VARNAN ZARAA HAT KE HAI.
Take care
gahan abhivaykti....
ReplyDeleteहनुमान जटायु को जिन्दा रखना है इसलिए खुद ही लाती है
ReplyDeleteसंजीवनी बूटी ..........
खुबसूरत भाव जीवन का सत्य
बहुत अच्छे प्रतीक
ReplyDeleteसमय बड़ा बलवान!
ReplyDeleteअमृता जी, जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि...तो त्रिजटा के पार जाना भी कुछ मुश्किल नहीं है, वैसे भी वह अयोध्या के लायक है लंका के नहीं..
ReplyDeleteस्वागत है . सुँदर सन्दर्भ और विचारणीय कविता . हमेशा की तरह .
ReplyDeletebahut sundar..puri ramayan utar di aapne apni kavita me.....
ReplyDeleteनयी कल्पना...नयी बात...बहुत अच्छी रचना...बधाई..
ReplyDeleteनीरज
आज ही न जाने क्यों मुझे कैकेयी का कोपभवन प्रसंग भी शिद्दत से याद आता रहा :)
ReplyDeleteकहीं कोई संयोग साम्य?
बहुत ही गहन अभिव्यक्ति..
ReplyDeletekitna swachand bichran kartee hain aapkee kavitaayein..aapke naye nootan prayog man ko chote hain..sadar badhayee aaur amantran ke sath
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अमृता जी.........
ReplyDeleteबहुत सुंदर!!!!
अनु
सीमाओं का अतिक्रमण कविता को नै परवाज़ दे जाता है नया पैरहन और ठवन भी .बढ़िया प्रस्तुति है -
ReplyDeleteram ram bhai
बुधवार, 30 मई 2012
HIV-AIDS का इलाज़ नहीं शादी कर लो कमसिन से
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http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
कब खिलेंगे फूल कैसे जान लेते हैं पादप ?
भावनाओं का सुन्दर संयोजन रामायण के पात्रों और घटनाक्रम के साथ..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति.
क्या बात है... बिलकुल नए बिंबों और संकेतों में गूँथी रचना...
ReplyDeleteसादर।
दृढ़ ..सक्षम कविता ....!!
ReplyDeleteसशक्त अभिव्यक्ती ....!!
वर्जनाएं ,सीमाएं और लक्ष्मण रेखाएं खींची ही टूटने के लिए जातीं हैं .वह नियम क्या जिसका अपवाद न हो /फिर हर समय का एक सच होता है आज का सच वही है जो यह कविता बयाँ करती है .बधाई इतने सुन्दर रचाव के लिए
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -
बुधवार, 30 मई 2012
आदमी के खून से रोशन होता है यह भूतहा लैम्प
http://veerubhai1947.blogspot.in/
आदमी के खून से रोशन होता है यह भूतहा लैम्प
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क्या बात ...उम्दा
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट "बिहार की स्थापना के 100 वर्ष पर" आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
ReplyDeleteआपकी कविताओं में बिम्बों का अद्भुत प्रयोग और सधा हुआ काव्य शिल्प सदा प्रभावित करते रहे हैं। इस कविता की संक्षिप्तता में जो विशालता है, वह सचमुच अद्भुत है!
ReplyDeleteदेखें हमारी टीम य्दि इसे ‘आंच’ पर ला सकें।
लाजवाब....सीमाओं को लांघना ही कविता का असली मकसद है ।
ReplyDeleteपौराणिक पात्रों संग ,आज के विषय को खूब उठाया हैं ...बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति,पौराणिक पात्रों के साथ सुंदर रचना,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,
sunder bimbon aur bhavon ke sath achhchhi kavita....
ReplyDeleteAti Bhavpoorn....bahut sundar rachna Amrita....
ReplyDeleteek aur baat ham logon ke liye to snjeevni aapki kavita hai....
ReplyDeleteनये बिम्ब के पंख लगा कर उन्मुक्त गगन में विचरण करती अद्भुत रचना.
ReplyDeleteआह!
ReplyDeleteक्या अनोखी और उम्दा उड़ान है आपकी.
मस्त मस्त तन्मय करती हुई.
इसीलिए तो अमृता तन्मय हैं आप.
बहुत खूब..
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