तुममें खोई थी
कुछ बीजों को बोई थी
अब फूल खिलें हैं
काँटों में भी उलझे हैं....
तुममें खोती रही
बस तुम्हें
फूल ही फूल देती रही
और कांटे चुभोती रही....
चुभे काँटे हैं
दर्द देंगे ही
लाख मना करूँ
पर तुमसे कहेंगे ही....
तब तुम बाँहों में मुझे
यूँ घेर लेते हो
उन्हीं फूलों को
बिखेर देते हो
और कहते हो -
भूल जाओ दर्द को....
ये जिद ही है मेरी
कि मैं
तुममें यूँ ही खोती रहूँगी
और काँटे चुभोती रहूँगी
बस तुम्हें फूल देती रहूँगी
पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी
पुन:पुन:
बस तेरे बाँहों के घेरे में
होती रहूँगी और खोती रहूँगी .
बनी रहे ये ज़िद ....
ReplyDeleteतुममें खोई थी कुछ बीजों को बोई थी अब फूल खिलें हैं काँटों में भी उलझे हैं.... तुममें खोती रही बस तुम्हें फूल ही फूल देती रही और कांटे चुभोती रही.... चुभे काँटे हैं दर्द देंगे ही लाख मना करूँ पर तुमसे कहेंगे ही.... तब तुम बाँहों में मुझे यूँ घेर लेते हो उन्हीं फूलों को बिखेर देते हो और कहते हो - भूल जाओ दर्द को.... ये जिद ही है मेरी कि मैं तुममें यूँ ही खोती रहूँगी और काँटे चुभोती रहूँगी बस तुम्हें फूल देती रहूँगी पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी पुन:पुन: बस तेरे बाँहों के घेरे में होती रहूँगी और खोती रहूँगी .
ReplyDeleteयूं ही बढ़ता रहेगा मेरी बाहों का घेरा मुग्धा भाव लिए उस वायुवीय प्रेम को छूने एक परिकथा पिरोने जो ,तुम हो ...बढ़िया आत्म मिलन की रचना .
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रविवार, 3 जून 2012
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तुममें यूँ ही खोती रहूँगी
ReplyDeleteऔर काँटे चुभोती रहूँगी
बस तुम्हें फूल देती रहूँगी
पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी,,,
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,,
RECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,
कोमल प्रवाहमयी भाव..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.... वाह!
ReplyDeleteसादर।
सारे मौसम एक से, क्या पतझड़ मधुमास।
खारों के ही मध्य है, भँवरों का आकाश।।
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ ....आभार
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeletePREM BANDHAN KI ZID SUNDAR SHABDON MEIN PIROYI.
Take care
जीवन में उमंग का संचार करती भावनाओं को सुंदरता से अभिव्यक्त करती कविता।
ReplyDeleteतुममें यूँ ही खोती रहूँगी
ReplyDeleteऔर काँटे चुभोती रहूँगी
बस तुम्हें फूल देती रहूँगी
पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी,,बहुत ही खुबसूरत
और कोमल भावो की अभिवयक्ति..
...बस तुम्हें फूल देती रहूँगी
ReplyDeleteपुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी
आँखों में जल रहा मगर, दिखता नहीं धुआं
सच में, इस सौगात की उम्मीद नहीं थी.....
बेहतरीन पोस्ट...
जीवन इस सच से महरूम क्यों हो
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत रचना
बहुत खूब ..सार्थक शब्द रचना
ReplyDeleteबस इसीलिए तो इसे बंधन कहते हैं .....हर कोई चाहे अनचाहे बंधा रहना चाहता है इस पाश में....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति अमृताजी
ReplyDeletemuhaabbat ka ek hee usool na kaate naa phool...aapkee rachnadharmita kee nadi kee tamam uthtee hui behtarin lehron me se ek ...sadar badhayee aaur amanntran ke sath
ReplyDeleteये जिद ही है मेरी
ReplyDeleteकि मैं
तुममें यूँ ही खोती रहूँगी
और काँटे चुभोती रहूँगी
बस तुम्हें फूल देती रहूँगी
पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी.....जिद्द में आत्म विश्वास झलकता है..सुन्दर अभिव्यक्ति..
भाव और शब्द सौन्दर्य . बहुत सुँदर
ReplyDeleteसुंदर भाव।
ReplyDeleteकाँटों के चुभन का दर्द भी अच्छा लगता है.. अगर देनेवाले प्रेम और स्नेह के सच्चे फूल के साथ दे रहा हो..
ReplyDeleteसुन्दर रचना
सादर
फूलों और काटों से लगातार बिखरती उन परागकणों का क्या जो जीवन देती है और याद दिलाती रहती है इस गीत को ...
ReplyDelete"लेना होगा जनम कई कई बार ...
अत्यंत ही जीवंत और ममर्स्परसी भाव.शब्द छोटे पड़ गए हैं .अमृताजी कांटे तो नहीं पर फूलों को स्वीकार करें .
संयोग वियोग और आत्मोत्पीडन की यह कैसी निर्ममता :(
ReplyDeleteइसी कों तो प्रेम कहते हैं ... दूसरे के सुख के लिए खुद काँटों कों गले लगाना ... मन की भावनाओं का दर्पण है ये रचना ...
ReplyDeleteजिसको फूल की आकांक्षा है उसे काँटे तो झेलने ही होंगे...दोनों साथ साथ ही फबते हैं..
ReplyDeleteवाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteबहुत प्यारी सी जिद है ... बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteकभी कभी सोचता हूँ कि तुम इतना बेहतर कैसे लिख लेती हो कि मन तुम्हारी पंक्तियों के शब्दों में बहने लगता है और सोचता है कि सुबह न हो .....मुझे कुछ और तो नहीं सूझ रहा है अभी कहने के लिए .
ReplyDeleteसलाम कबुल करे अपनी इस नज़्म के लिए ..काश मैं इतनी अच्छी नज्मे लिख पाता.
शाश्वत प्रेम....बधाई
ReplyDelete..बस तुम्हें फूल देती रहूँगी
ReplyDeleteपुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी
वाह ... बेहतरीन ।
प्यार की जिद भी बहुत जिद्दी होती है |
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव अमृता जी...
ReplyDeleteऔर बेहतरीन शब्द संयोजन......
अनु
बहुत सुंदर भाव अमृता जी...
ReplyDeleteऔर बेहतरीन शब्द संयोजन......
अनु
क्यू अनीता जी की बात बिलकुल सही है.....इस विरोधाभास पर लिखी आपकी ये शानदार पोस्ट बहुत ही पसंद आई ।
ReplyDelete.....
ReplyDeleteबस तुम्हें फूल देती रहूँगी
पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी
पुन:पुन:
बस तेरे बाँहों के घेरे में
होती रहूँगी और खोती रहूँगी
बहुत सुंदर ....
क्या खूब लिखा है आपने, बधाई !!
प्रेम गर फूलों से है ...तो कांटे भी प्रिय हैं मुझे .....
ReplyDeleteयही वफ़ा का सिला है ..तो कोई बात नहीं ...
तुम्हीं ने दर्द दिया है तो कोई बात नहीं ...
बस यही इसी हाल में जीना स्वीकार लिया है.... प्रेम के कुछ अलग से भाव
ReplyDeleteबेहतरीन और प्रशंसनीय .
ReplyDeleteफूल और काँटें
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा प्रस्तुति है.
आपका अंदाज अनोखा होता है.
आपका भी मेरे ब्लॉग मेरा मन आने के लिए बहुत आभार
ReplyDeleteआपकी बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना...
आपका मैं फालोवर बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,......
मेरा एक ब्लॉग है
http://dineshpareek19.blogspot.in/
होती रहूँगी और खोती रहूँगी .
ReplyDelete....
इतना ही पर्याप्त है !
बहुत सुंदर भाव, बहुत ही उम्दा प्रस्तुति है***
ReplyDeleteतुममें यूँ ही खोती रहूँगी
ReplyDeleteऔर काँटे चुभोती रहूँगी
बस तुम्हें फूल देती रहूँगी
पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी
.....समर्पित प्रेम की बहुत भावमयी प्रस्तुति...बहुत सुन्दर
तुममें यूँ ही खोती रहूँगी
ReplyDeleteऔर काँटे चुभोती रहूँगी
बस तुम्हें फूल देती रहूँगी
पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी
जिद्दी प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत खूब ||||
ReplyDeleteकोमल भाव व्यक्त करती रचना...
आप एक समर्थ सर्जक हैं।
ReplyDeleteइस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं।
ये रचना अच्छी लगी है मुझे |
ReplyDeleteप्रेम में लिपटे सुख-दुख की निरंतर गाथा कहती सुंदर कविता. बहुत खूब.
ReplyDeleteतुममें खोई थी
ReplyDeleteकुछ बीजों को बोई थी
अब फूल खिलें हैं
काँटों में भी उलझे हैं....
तुममें खोती रही
बहुत सुन्दर
जिद ....!!! बहुत खूबसूरत
ReplyDelete