कल्पना जिसकी संजोयी हूँ
उसे सामने कहीं पा न जाऊं
घड़ी -दो -घड़ी के लिए सही
मैं अधन्या उसे भा न जाऊं
उस की वंशी - धुन सुन कर
शहनाई सी कहीं बज न जाऊं
बिन श्रृंगार - पिटारी के ही
उसके रूप से सज न जाऊं
ठगे से इन नयन के ठांव में
मैं लुंठित कहीं लुट न जाऊं
और लज्जा की लालिमा ओढ़े
नवोढ़ा - सी ही घुट न जाऊं
ह्रदय पर जो हरक्षण छाई है
प्रिय -छवि तो अनोखी होगी
वह मधुर - बेला मिलन की
कितनी चकित चोखी होगी
उसके रंग के छिटके छींटे में
आभा मेरी भी निखरी होगी
मरुदेश सा इस मन मरघट में
इक हरियाली सी बिखरी होगी
हिलोर लेती छुई -मुई घटाएँ
गगन में ऐसे भी घिरती होगी
बन कर दाह की चिनगारियाँ
प्यास अधरों पर तिरती होगी
सरस-सरस स्वर ले -ले कर
अमराई बन छिटक न जाऊं
महक-महक कर मदमाती सी
जूही सी कहीं लिपट न जाऊं
यदि वो घड़ी अभी आ जाए तो
भावना में मैं ही बह न जाऊं
न जाने किस - किस भाषा में
क्या कुछ कहीं कह न जाऊं
ठिठक गये यदि पग मगर
मन लिए ही कहीं बढ़ न जाऊं
लोक - लीकों का तोड़ भरम
सोच के पार ही चढ़ न जाऊं
गरल विरह का पी - पी कर
प्रेम - गीत कहीं गा न जाऊं
कल्पना जिसकी संजोयी हूँ
उसे सामने कहीं पा न जाऊं .
:)
ReplyDeleteऐसा हो जाय तो कितना अद्भुत ही हो न जाए
ReplyDeleteधरती अपनी धुरी पर चलते कहीं रुक न जाए
:)
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteमहक-महक कर मदमाती सी
जूही सी कहीं लिपट न जाऊं
यदि वो घड़ी अभी आ जाए तो
भावना में मैं ही बह न जाऊं
खूबसूरत रचना.....
अनु
सरस-सरस स्वर ले -ले कर
ReplyDeleteअमराई बन छिटक न जाऊं...बहुत खुबसुरत भाव..अमृता जी..सुन्दर रचना
ऐसा हो जाए को क्या बात हो...!
ReplyDeleteबेहद सुन्दर दृश्य एवं संभावनाओं को गढ़ा है रचना में!
अद् भुत रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
वीरान वो इतना है...
ReplyDeleteकि जंगल न कोई होगा
एक शाम पहनने को
यादों ने बुना पानी...
महक-महक कर मदमाती सी...बेहद ही खूबसूरत रचना.......
गरल विरह का पी - पी कर
ReplyDeleteप्रेम - गीत कहीं गा न जाऊं
सुंदर एह्सास ....
दूब सी ....मखमली सी ...मुलयम सी रचना ....!!
wah---wah---
ReplyDeleteचाह काश राह पा जाती...
ReplyDeleteह्रदय पर जो हरक्षण छाई है
ReplyDeleteप्रिय -छवि तो अनोखी होगी
वह मधुर - बेला मिलन की
कितनी चकित चोखी होगी...bahut hee khoobsurat rachna..sadar badhayee
Amrita,
ReplyDeleteKISI KE LIYE PREM BHAWNAYEIN SEEMAA MEIN RAKNE KI ICHCHHA KA BAHUT ACHCHHA VARNAN KIYAA HAI AAPNE.
Take care
कल्पना जिसकी संजोयी हूँ
ReplyDeleteउसे सामने कहीं पा न जाऊं .
बेहद खूबसूरत रचना...
ठिठक गये यदि पग मगर
ReplyDeleteमन लिए ही कहीं बढ़ न जाऊं,,,,
मन के भावों की सुंदर अहसास,,,,
MY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...
:)
ReplyDeleteकुछ तन्मय सी,
नहीं अमृता ...?
अमृता जी,
ReplyDeleteद्रौपदी के चीरहरण के प्रसंग में किसी कवि ने लिखा था ..""नारी बीच साडी है या नारी किहि सारी है ,या सारी ही नारी है......"आज आपकी कविता पड कर ऐसा लगा की "कविता में ही नारी है या नारी ही कविता है.."कंहाँ से लगातार ऐसी भावमयी कविताएँ आपसे प्रवाहित होती हैं.हर सप्ताह सालों से लगातार इतनी भावपूर्ण रचना की पडने वाले बस खो कर रह जाएँ.मैंने बहुत चाहा की कोई भी पंक्ति को उधृत करूँ पर सारी की सारी अनमोल लगी.और अनमोल तो अनमोल ही है.मेरी सुभ कामना है की हिंदी कविता को आप इसी तरह समृद्ध करते रहे.आपकी कविताओं का इंतजार रहेगा.
ठिठक गये यदि पग मगर
ReplyDeleteमन लिए ही कहीं बढ़ न जाऊं
लोक - लीकों का तोड़ भरम
सोच के पार ही चढ़ न जाऊं
अब सामने पाने के बाद क्या होगा यह तो वक़्त ही बताएगा ॥पर अपनी भावनाओं को बहुत खूबसूरती से उकेरा है ...
मन की पुकार बड़ी बलशाली होती है.. कल्पनाओं के जहां से उतरकर वो चेहरा साने आ ही जायेगा एक न एक दिन...
ReplyDeleteबहरहाल.. इतनी सुन्दर, प्रवाहमयी.. औत अलंकृत रचना के लिए हार्दिक बधाई..
विरह गरल से मधुर गीत - निश्चित ही जीवनदायिनी होगी
ReplyDeleteबेहद गहन और शानदार पोस्ट ।....वक़्त मिले तो जज़्बात पर भी नज़रे इनायत हो ।
ReplyDeleteन जाने किस - किस भाषा में
ReplyDeleteक्या कुछ कहीं कह न जाऊं
ठिठक गये यदि पग मगर
मन लिए ही कहीं बढ़ न जाऊं
मिलन के क्षणों में होश बाकी नही रहता...लेकिन महामिलन में होश बहुत जरूरी है...बहुत सुंदर भाव...
बेहद खूबसूरत रचना.......सुंदर अभिव्यक्ति ...!
ReplyDeletebahut bahut bahut acchhi lagi aapki yah kavita. hairan hun ki kaise itne sunder shadon ki mala piro aisi rachna ka srijan kar leti hain. aapke shabd-kosh ko salaam.
ReplyDeleteBir sinha ji ki baat ko meri bhi baat samjhen.
गरल विरह का पी - पी कर
ReplyDeleteप्रेम - गीत कहीं गा न जाऊं
कल्पना जिसकी संजोयी हूँ
उसे सामने कहीं पा न जाऊं .
बहुत ही अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने .. .बेहतरीन प्रस्तुति
कल्पना जिसकी संजोयी हूँ
ReplyDeleteउसे सामने कहीं पा न जाऊं .
बहुत खूब .. किंकर्तव्यविमूढ़ करते हैं शायद ऐसे पल
waah bahut acche bhav.....milan aur virah ka sangam....
ReplyDeleteपिया मिलन की आस और . मिलने की हिचक , दोनों सामानांतर भाव एकसाथ गरिमा पूर्वक चल रहे है . मज़ा आ गया बाँच के .. बहुत सुँदर .
ReplyDeleteठिठक गये यदि पग मगर
ReplyDeleteमन लिए ही कहीं बढ़ न जाऊं
....उत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति...सदैव की तरह शब्दों और भावों का अद्भुत संयोजन....
ठिठक गये यदि पग मगर
ReplyDeleteमन लिए ही कहीं बढ़ न जाऊं
लोक - लीकों का तोड़ भरम
सोच के पार ही चढ़ न जाऊं
गरल विरह का पी - पी कर
प्रेम - गीत कहीं गा न जाऊं
मन को गहरे तक छू गई एक-एक पंक्ति...गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई
प्रेमभाव से परिपूर्ण
ReplyDeleteह्रदयस्पर्शी रचना...
उत्कृष्ठ
:-)
आदरणीय अमृता तन्मय जी,
ReplyDeleteआपको सहर्ष सूचित कर रहा हूँ की आपकी कविता "प्रेम वरदान ''यंहां सनीवेल ,कलिफोर्निया ,में प्रवासी भारतीया हिंदी सम्मलेन में मेरे द्वारा प्रस्तुत की गयी.इस कविता की यंहां के लोकल पपेरों में भी छपी .आल अमेरिका प्रवासी हिंदी सम्मलेन जो यंहां नुयार्क में ४ जुलाई को होने जा रही है ,उसमे प्रस्तुत करने के लिए भी चुनी गयी है.आप अगर अपना पता या कोई लिंक हो तो मुझे भेज दे या सनीवेल में सीधे ही भेज दे.आपका मेरे पास न इ मेल है और न ही पोस्टल एड्रेस .सिर्फ बिहार पटना ही लिखा हुआ है.इसलिए कोमेंट बॉक्स में लिख रहा हूँ.यंहां सेमात्र यही एक कविता सर्वसम्मति से चुनी गयी.आपको बधाई
मीरा जैसी समर्पण की भावना लिए भावों की पंक्तियों के लिए अनेक बधाई .....
ReplyDeleteकल्पना जिसकी संजोयी हूँ
ReplyDeleteउसे सामने कहीं पा न जाऊं .
बेहद खूबसूरत रचना...अमृता जी
नई पोस्ट .....मैं लिखता हूँ पर आपका स्वगत है
कल्पना जिसकी संजोयी हूँ
ReplyDeleteउसे सामने कहीं पा न जाऊं .
प्रेम पूर्ण समर्पण. सुंदर भाव. सुंदर गीत.
ठिठक गये यदि पग मगर
ReplyDeleteमन लिए ही कहीं बढ़ न जाऊं
लोक - लीकों का तोड़ भरम
सोच के पार ही चढ़ न जाऊं
गरल विरह का पी - पी कर
प्रेम - गीत कहीं गा न जाऊं
मीरा सी आसक्ति से सनी अद्भुत समर्पण कथा ............
वियोग से योग की ओर अग्रसित भाव | खूबसूरत |
ReplyDeleteनखलिस्तान में बने रहने का अपना सुख है .कल्पना यथार्थ से ऊपर रहती है .यथार्थ में आके कई बार झटका लगता है .बढ़िया लम्बी काव्यात्मक प्रस्तुति .
ReplyDeleteवीरुभाई ,४३,३०९ ,सिल्वर वुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन -४८ १८८ ,यू एस ए .
प्रेम अपनी राह ढूँढता है, राहें बदल बदल कर.
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