रोम-रोम को
अकस्मात सुख ने सिहराया है
चिर प्रतीक्षा की
व्याकुलता ने मानो वर पाया है
टिमटिमाते लौ से
जित ज्वाला सा जगमगाया है...
लगता है कि
मेरे प्रीतम का संदेशा आया है
ठहरी हवाओं को
प्रेम पंखो पर झुलाया है
पीपल पातों ने
ये कैसा कोलाहल मचाया है
चुप चातकी ने
चहक-चहक कर चौंकाया है...
हाँ ! प्रीतम का
प्यारा संदेशवाहक ही आया है
मरू नभ पर
घनघोर घन लहराया है
मोर मोरनी के
नयन में नयन दे मुस्काया है
नए-नए गीत
नई ध्वनियों ने मिल गाया है...
हुलस कर जिसे
मैंने भी निज-हाल सुनाया है
हर पल पर
लिखी पाती उसे थमाया है
कि ह्रदय को
कैसे मैंने उपासना-गृह बनाया है
अपने प्रीतम को
उसमें देव सदृश बिठाया है...
हठचेती ह्या ने
हठात भेद उगलवाया है कि
बिन मदिरा के
बेसुध सी रात ने मुझे भरमाया है
और भोर तक
जगते सपने ने निर्मोही को दिखाया है
हर तत्पर दिन
पुन: सूनी संध्या में समाया है...
हलाहल पी कर
मैंने भी ये संदेशा भिजवाया है
कि उसका दिया
विरह उपहार भी बड़ा मनभाया है
और हर्षोन्माद में
बस उसी को तो मैंने पाया है
दुःख देकर भी
आखिर उसी ने तो दुलराया है...
कैसा संदेशा उसने पहुँचाया है .
बढिया है,
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
उसका दिया विरह उपहार भी प्रिय .... प्रेम का चरमोत्कर्ष
ReplyDeleteहर शब्द में उत्साह और उल्लास छलकता हुआ..
ReplyDeleteसचमुच दिल के अंग तरंग को झंकृत कर देने वाले सब्द है अमृता जी
ReplyDeletebhaut hi khubsurat aur saargarbhit rachna....
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत प्रेम की पाती
ReplyDeleteएक थकान की मन:स्थिति के बाद
ReplyDeleteप्रीतम का संदेशा आ ही गया
हमारी शुभकामना....बधाई
दिल की गहराइयों से...निकलती है...विरह की वेदना...
ReplyDeleteप्राकृतिक उपालाम्भों युक्त सुन्दर श्रृंगार रचना
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeleteDURIYAAN BAHUT HI KATHIN HOTI HAIN AUR JAB EISE SANDESH MILTE HAIN TO MANOSTHI KAA VARNAN BILKUL SAHI KIYAA HAI.
Take care
और भोर तक
ReplyDeleteजगते सपने ने निर्मोही को दिखाया है
हर तत्पर दिन
पुन: सूनी संध्या में समाया है...
प्रेम में मन इतना लीं हो जाता है कि उसके सिवा कुछ और न दिखता है ...न सुहाता है ....
निर्मोही सों नेहा लगाये ...
जिया फिर भी उसी के गुण गाये ...
शाश्वत प्रेम की गाथा ...
समर्पण का अद्भुत भाव ...
सुंदर रचना ...अमृता जी ...
कि उसका दिया
ReplyDeleteविरह उपहार भी बड़ा मनभाया है
और हर्षोन्माद में
बस उसी को तो मैंने पाया है
हाय ! प्रीतम तक
कैसा संदेशा उसने पहुँचाया है .
सारगर्भित सुंदर रचना,.....
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
प्रेम पगी सुंदर रचना ...
ReplyDeleteरोम-रोम को
ReplyDeleteअकस्मात सुख ने सिहराया है
चिर प्रतीक्षा की
व्याकुलता ने मानो वर पाया है
टिमटिमाते लौ से
जित ज्वाला सा जगमगाया है...
कुछ ऐसा ही कर जाता है ...प्रीतम का संदेशा
बढ़िया |
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामनायें |
आभार |
कि उसका दिया
ReplyDeleteविरह उपहार भी बड़ा मनभाया है
और हर्षोन्माद में
बस उसी को तो मैंने पाया है
हाय ! प्रीतम तक
कैसा संदेशा उसने पहुँचाया है .
उफ़ ! स्वयं ही उसके आने का मार्ग भी बंद कर दिया..यही तो अहंकार का काम है...बहुत सुंदर कविता !
सुभानाल्लाह बहुत ही खुबसूरत कैसे भी सही संदेशा पहुँच गया :-)
ReplyDeleteकल 012/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
dil ko gudguda gayi..man ko bhaa gayee..aaj to prem kee paati ccha gayee..sadar badhayee ke satb
ReplyDeleteसमर्पण का अद्भुत भाव ...
ReplyDeleteसुंदर रचना ...अमृता जी ...
मुझे सूरदास की पंक्तियाँ याद आई .
ReplyDeleteकहत कत परदेशी की बात
मंदिर अर्ध अवधि बदी हमसो हरि आहार चली जात
ग्रह नक्षत्र वेद जोर अर्ध करि, ताई बनत अब खात
अद्भुत
कि उसका दिया
ReplyDeleteविरह उपहार भी बड़ा मनभाया है
और हर्षोन्माद में
बस उसी को तो मैंने पाया है
दुःख देकर भी
आखिर उसी ने तो दुलराया है...bahut badhiya ......
निःशब्द करती रूमानियत
ReplyDeleteसन्देश को बादलों के पर लगे और हम सब की दुआ भी साथ है.
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
यह वह एहसास है जिसकी अनुभूति होने पर सुध-बुध बेकाबू हो ही जाते हैं।
ReplyDeleteठहरी हवाओं को
ReplyDeleteप्रेम पंखो पर झुलाया है
पीपल पातों ने
ये कैसा कोलाहल मचाया है
चुप चातकी ने
चहक-चहक कर चौंकाया है...
हाँ ! प्रीतम का
प्यारा संदेशवाहक ही आया है ठहरी हवाओं को
प्रेम पंखो पर झुलाया है
पीपल पातों ने
ये कैसा कोलाहल मचाया है
चुप चातकी ने
चहक-चहक कर चौंकाया है...
हाँ ! प्रीतम का
प्यारा संदेशवाहक ही आया है
समर्पण का अद्भुत भाव ...
अमृताजी,
ReplyDeleteअगर गूंगे के मुख गुड रख दिया जाये तो वह उसके स्वाद का क्या बखान कर सकेगा ,सिर्फ सबदहीन होकर इस कविता में जी रहा हूँ.हर शब्द हर पंक्ति बिरह का बाण लिए हर ह्रदय को बेध रहा प्रतीत होता है.परमचैतन्य से इस जीव चैतन्य को भावित इस निर्झर सी रसधारा का प्रवाह सतत रहे .इस यूग की मीरा का हार्दिक नमन .
कि उसका दिया
ReplyDeleteविरह उपहार भी बड़ा मनभाया है
*तब तो ये मधुर रचना बनपाया है .... !!
निशब्द करती समर्पित प्रेम की उत्कृष्ट प्रस्तुति...
ReplyDeleteकि उसका दिया
ReplyDeleteविरह उपहार भी बड़ा मनभाया है
और हर्षोन्माद में
बस उसी को तो मैंने पाया है
दुःख देकर भी
आखिर उसी ने तो दुलराया है...
हाय ! प्रीतम तक
कैसा संदेशा उसने पहुँचाया है .
आपकी कविता विरह भाव से अपने उच्छवासों को अभिव्यक्त करने में सार्थक सिद्ध हुई है । मरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा ।धन्यवाद ।
कि उसका दिया
ReplyDeleteविरह उपहार भी बड़ा मनभाया है
और हर्षोन्माद में
बस उसी को तो मैंने पाया है
दुःख देकर भी
आखिर उसी ने तो दुलराया है
यही प्रेम की परिभाषा है.
समर्पण का भाव जो अहसास जगाता है बह अद्भुत होता है. भाव विभोर करती प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
बहुत बढ़िया अभिवयक्ति |
ReplyDeleteविजुअल बेसिक-6.0 पाठ नंबर - 5, अब हिंदी में
anupam,adbhut bhavmy aur bhaktimy prastuti.
ReplyDeletebas bhaav vibhor avm tanmy hun padhkar.
कि उसका दिया
ReplyDeleteविरह उपहार भी बड़ा मनभाया है
और हर्षोन्माद में
बस उसी को तो मैंने पाया है
दुःख देकर भी
आखिर उसी ने तो दुलराया है...
बहुत सुंदर भाव, सुंदर कविता।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteकि उसका दिया
ReplyDeleteविरह उपहार भी बड़ा मनभाया है
vaah sundar rachna ....
दुःख देकर भी
ReplyDeleteआखिर उसी ने तो दुलराया है...
अलख के प्रति बहुत सुन्दर भाव
सुन्दर रूमानी कविता!!! :)
ReplyDeleteबहुत भावमयी सुंदर कविता.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। आपका मेरे पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा । मेरी कामना है कि आप अहर्निश सृजनरत रहें । मेरे नए पोस्ट अमीर खुसरो पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteवाह अमृता जी कितने जीवंत हैं आपके बिम्ब...और कितनी समृद्ध आपकी भाषा....आशा निराशा के इस असमंजस को कितनी खूबसूरती से पिरोया है आपने .....
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