एक थकान की मन:स्थिति में
शरीर के ज्वार-भाटे में
बिना जिद के तिरते रहना....
बेवश विवशता के नियमों को
उसके गतिनुसार चलते देखना...
क्षुद्र स्वार्थों के लिए दौड़ में बनाए
कीर्तिमानों का आकलन करना...
मड़ियल मिश्रित मुस्कान लिए
स्वयं के साथ किये गये
उपघाती उत्पीड़नों का उल्लाप करना
और छटाँक भर राहत के लिए
छद्मावरण तोड़ देने के लिए छटपटाना....
उफ्फ़ !
फिर मन तो मन ही है
उसी थकान की मन:स्थिति में
करता रहता है अपना काम...
मजे से मचल कर वह
विचारों को एक राजसी ठाट-बाट दे
अपने बादशाही बिछौने पर
आराम से लिटा देता है...
हौले-हौले पंखा झलता है
धीरे-धीरे उसके पाँव दबाता है...
कुलबुलाते सवालों व खलबलाते खेदों से
विशेष अनुरोध करता है कि वे
सुबह की ताज़ी हवा का सेवन करें
और एकात्मक एकांत का
मौन अभ्यास व अध्ययन करें....
आह ! उसी मन:स्थिति में
अपनी बुद्धिवादिता पर वह हँसता है
विस्मित होता है , आश्चर्य करता है....
एक आभासी शक्ति से स्वयं को
प्रोत्साहित करता है और देता है
एक खुला आमंत्रण
उस पूर्ण चंद्र को भाँवर रचाने के लिए
उसे कहता है- इन ओठों पर
गहरा व लंबा चुम्बन जड़ने के लिए...
रिझाने व मनाने के लिए
और फिर राव-चाव से
रास-क्रीड़ा करने के लिए....
ताकि सबकुछ भूल कर
इस तिरते ज्वार-भाटे में
तिरते-तिराते हुए सबकुछ
हो जाए पूर्णत: तिरोहित
उसी थकान की मन:स्थिति में .
वाह................
ReplyDeleteअद्भुत प्रस्तुति अमृता जी...
खुला आमंत्रण..पूर्ण चंद्र को...भंवर रचाने के लिए.....
बहुत सुंदर.
अमृता जी,
ReplyDeleteमन तो एक ही होता है दस बीस तो नही । हम अपने जीवन में चाहे कितने भी विवश, विकल एवं संत्रस्त रहते हैं पर मन ही तो है जो हमें एक स्थान से दूसरे स्थान,एक लोक से दूसरे लोक एवं एक जड़ दुनिया से चेतन दुनिया की ओर ले जाकर हमें भुलावा देता रहता है । आपकी कविता "एक थकान की मन:स्थिति में" बहुत ही प्रभावोत्पादक लगी । बहुत-बहुत धन्यवाद ।
थकान की मन:स्थिति में भी मन...अपना कार्य अविरत करता रहता है...सही कहा आपने!..सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteएक गहन और सशक्त रचना
ReplyDeleteहमें तो बस सोना भाता है थकान में...
ReplyDeleteऔर इस तरह पैबंद लगी ज़िन्दगी को खुद्दारी से जीता है
ReplyDeleteमन:स्थिति का सटीक चित्रण ...
ReplyDeleteमन तो मन ही है ...
ReplyDeleteबेहतरीन लिखा है आपने..
मुझे लगता है कि आपके मन पर कुछ बेमन सा गुबार है..शायद
behad chuninda naveen shabdon ka prayog aapkee behtarin rachnaon me char chan laga deta hai..har rachna se ek nootan chintan aaur naye naye shabdon se parichit hone ka satat mauka milta hai..soch ko naya aayam bhee..sahi bimb tak pahunchne ke liye liye kai baar padhna padhta hai...anatn shubhkamnaon ke sath
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव...थकान की मन:स्थिति मनुष्य सुख के प्रावधान कर रहा है...पर पुन: उस स्थिति में पहुँच जाता है...और गहरी...
ReplyDeleteमनस्थिति का बहुत गहन और सशक्त चित्रण...
ReplyDeleteचंद शब्दों में समाया समुंद्र।
ReplyDeleteलेखन का जादू..
उम्दा
क्या कहने
ReplyDeleteबहुत सुदर रचना
Amrita,
ReplyDeleteMAN KISI BHI STITHI MEIN APNAA KAAM NAHIN CHHORHTAA, IS KA VARNAN BAHUT SAPASHT TARAH SE KIYAA HAI AAPNE.
Take care
नए शब्दों का प्रयोग इस सुंदर कविता को नया कलेवर देता है. बहुत सशक्त एवं भावपूर्ण प्रस्तुति परन्तु थोड़ी मुश्किल भी.
ReplyDeleteबधाई इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये.
थकी मनः स्थिति दर्शाती गहन अभिव्यक्ति ....!!
ReplyDeleteएक थके हुए मन की आपने मनोवैज्ञानिक व्याख्या की है।
ReplyDeleteमन ऐसा ही स्वछन्द पवन की भाति बहता है अपनी मर्ज़ी और गति से तब ही तो उसे मन कहते हैं जिसका मान किया जाता है .तभी तो वो गतिमान और चंचल है
ReplyDeleteअति सहज व्यंजना ..........
मनस्थिति को पकड़नेाऔर व्यक्त करना भी एक कला है !
ReplyDeleteयह थकान की मनः स्थिति जीवन के कुछ ख़ास अनुभवों , खास अहसासों को समेटे है ....! प्रासंगिक रचना ...!
ReplyDeleteशरीर की थकान का प्रभाव मन की स्थिति पर पड़ना स्वभाविक है लेकिन मन तो अपने गति से स्वछन्द विचरण में ही रहता है .आप गूढ़ मन की तमाम गुत्थियों को कितनी सहजता से व्यक्त कर लेती हो . अति सुन्दर .
ReplyDeleteमन के खास अहसासों को समेटे है ....! प्रासंगिक रचना ...!
ReplyDeleteRECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
कोई भी थकान हो मानसिक स्थिति जरूर बदलती है ...अच्छी तरह से शब्दों में बंधा है इसे आपने ...
ReplyDeleteअजीब है, पढ़ना जितना अच्छा लग रहा है समझना उतना ही मुश्किल है...
ReplyDeleteकभी कभी स्फूर्ति और ऊर्जा कहीं किसी में खुद को सम्पूर्ण तिरोहित कर देने पर ही मिलती है:)थकान निवारण की भी कारगर दवा है एक और नयी थकान का आह्वान !
ReplyDeleteis vishay pe bhi koi itni khubsurat rachna gadh sakta hai ye kabhi nahi soncha tha... khubsurat aur adbhut...
ReplyDeleteस्वाभाविक है .....
ReplyDeleteशुभकामनायें !
मन के हारे हार है मन के जीते जीत,
ReplyDeleteमन के उहापोह में ऐसा ही मन डूबता उतराता है
अति सुन्दर! मन तो मन ही है, सचमुच हँसता है, विस्मित भी होता है ... आशा की डोर तो उसी अग्रणी को पकडनी है।
ReplyDeleteअमृता जी ......वाह....थकान की मानसिकता में भी इतनी उत्कृष्ट हिंदी के साथ इतनी उत्तम रचना.....मान गए आपको......कितनी गहनता है पोस्ट में.....लाजवाब हूँ मैं......हैट्स ऑफ
ReplyDeleteladanaa takaraanaa laharon kaa
ReplyDeletephir samaras ho jaanaa ;
mujhe yaad hai do hridayon ka
aapas mein mil jaanaa .
mere kavya sangrah
'premanjali' se
भाव पूर्ण बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteथकान की मनःस्थिति का ऐसा मनोवैज्ञानिक चित्रण किसी और कविता में नहीं देखा. जो कहा गया है उसे कहना और सटीक कहना यह इस कविता में किया गया है. बहुत-बहुत बढ़िया.
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