Social:

Sunday, May 6, 2012

एक थकान की मन:स्थिति में


एक थकान की मन:स्थिति में
शरीर के ज्वार-भाटे में
बिना जिद के तिरते रहना....
बेवश विवशता के नियमों को
उसके गतिनुसार चलते देखना...
क्षुद्र स्वार्थों के लिए दौड़ में बनाए
कीर्तिमानों का आकलन करना...
मड़ियल मिश्रित मुस्कान लिए
स्वयं के साथ किये गये
उपघाती उत्पीड़नों का उल्लाप करना
और छटाँक भर राहत के लिए
छद्मावरण तोड़ देने के लिए छटपटाना....
उफ्फ़ !
फिर मन तो मन ही है
उसी थकान की मन:स्थिति में
करता रहता है अपना काम...
मजे से मचल कर वह
विचारों को एक राजसी ठाट-बाट दे
अपने बादशाही बिछौने पर
आराम से लिटा देता है...
हौले-हौले पंखा झलता है
धीरे-धीरे उसके पाँव दबाता है...
कुलबुलाते सवालों व खलबलाते खेदों से
विशेष अनुरोध करता है कि वे
सुबह की ताज़ी हवा का सेवन करें
और एकात्मक एकांत का
मौन अभ्यास व अध्ययन करें....
आह ! उसी मन:स्थिति में
अपनी बुद्धिवादिता पर वह हँसता है
विस्मित होता है , आश्चर्य करता है....
एक आभासी शक्ति से स्वयं को
प्रोत्साहित करता है और देता है
एक खुला आमंत्रण
उस पूर्ण चंद्र को भाँवर रचाने के लिए
उसे कहता है- इन ओठों पर
गहरा व लंबा चुम्बन जड़ने के लिए...
रिझाने व मनाने के लिए
और फिर राव-चाव से
रास-क्रीड़ा करने के लिए....
ताकि सबकुछ भूल कर
इस तिरते ज्वार-भाटे में
तिरते-तिराते हुए सबकुछ
हो जाए पूर्णत: तिरोहित
उसी थकान की मन:स्थिति में .

33 comments:

  1. वाह................
    अद्भुत प्रस्तुति अमृता जी...
    खुला आमंत्रण..पूर्ण चंद्र को...भंवर रचाने के लिए.....

    बहुत सुंदर.

    ReplyDelete
  2. अमृता जी,

    मन तो एक ही होता है दस बीस तो नही । हम अपने जीवन में चाहे कितने भी विवश, विकल एवं संत्रस्त रहते हैं पर मन ही तो है जो हमें एक स्थान से दूसरे स्थान,एक लोक से दूसरे लोक एवं एक जड़ दुनिया से चेतन दुनिया की ओर ले जाकर हमें भुलावा देता रहता है । आपकी कविता "एक थकान की मन:स्थिति में" बहुत ही प्रभावोत्पादक लगी । बहुत-बहुत धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  3. थकान की मन:स्थिति में भी मन...अपना कार्य अविरत करता रहता है...सही कहा आपने!..सुन्दर प्रस्तुति!

    ReplyDelete
  4. एक गहन और सशक्त रचना

    ReplyDelete
  5. हमें तो बस सोना भाता है थकान में...

    ReplyDelete
  6. और इस तरह पैबंद लगी ज़िन्दगी को खुद्दारी से जीता है

    ReplyDelete
  7. मन:स्थिति का सटीक चित्रण ...

    ReplyDelete
  8. मन तो मन ही है ...

    बेहतरीन लिखा है आपने..

    मुझे लगता है कि आपके मन पर कुछ बेमन सा गुबार है..शायद

    ReplyDelete
  9. behad chuninda naveen shabdon ka prayog aapkee behtarin rachnaon me char chan laga deta hai..har rachna se ek nootan chintan aaur naye naye shabdon se parichit hone ka satat mauka milta hai..soch ko naya aayam bhee..sahi bimb tak pahunchne ke liye liye kai baar padhna padhta hai...anatn shubhkamnaon ke sath

    ReplyDelete
  10. बहुत सुंदर भाव...थकान की मन:स्थिति मनुष्य सुख के प्रावधान कर रहा है...पर पुन: उस स्थिति में पहुँच जाता है...और गहरी...

    ReplyDelete
  11. मनस्थिति का बहुत गहन और सशक्त चित्रण...

    ReplyDelete
  12. चंद शब्दों में समाया समुंद्र।
    लेखन का जादू..
    उम्दा

    ReplyDelete
  13. क्या कहने
    बहुत सुदर रचना

    ReplyDelete
  14. Amrita,

    MAN KISI BHI STITHI MEIN APNAA KAAM NAHIN CHHORHTAA, IS KA VARNAN BAHUT SAPASHT TARAH SE KIYAA HAI AAPNE.

    Take care

    ReplyDelete
  15. नए शब्दों का प्रयोग इस सुंदर कविता को नया कलेवर देता है. बहुत सशक्त एवं भावपूर्ण प्रस्तुति परन्तु थोड़ी मुश्किल भी.

    बधाई इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये.

    ReplyDelete
  16. थकी मनः स्थिति दर्शाती गहन अभिव्यक्ति ....!!

    ReplyDelete
  17. एक थके हुए मन की आपने मनोवैज्ञानिक व्याख्या की है।

    ReplyDelete
  18. मन ऐसा ही स्वछन्द पवन की भाति बहता है अपनी मर्ज़ी और गति से तब ही तो उसे मन कहते हैं जिसका मान किया जाता है .तभी तो वो गतिमान और चंचल है
    अति सहज व्यंजना ..........

    ReplyDelete
  19. मनस्थिति को पकड़नेाऔर व्यक्त करना भी एक कला है !

    ReplyDelete
  20. यह थकान की मनः स्थिति जीवन के कुछ ख़ास अनुभवों , खास अहसासों को समेटे है ....! प्रासंगिक रचना ...!

    ReplyDelete
  21. शरीर की थकान का प्रभाव मन की स्थिति पर पड़ना स्वभाविक है लेकिन मन तो अपने गति से स्वछन्द विचरण में ही रहता है .आप गूढ़ मन की तमाम गुत्थियों को कितनी सहजता से व्यक्त कर लेती हो . अति सुन्दर .

    ReplyDelete
  22. मन के खास अहसासों को समेटे है ....! प्रासंगिक रचना ...!

    RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

    ReplyDelete
  23. कोई भी थकान हो मानसिक स्थिति जरूर बदलती है ...अच्छी तरह से शब्दों में बंधा है इसे आपने ...

    ReplyDelete
  24. अजीब है, पढ़ना जितना अच्छा लग रहा है समझना उतना ही मुश्किल है...

    ReplyDelete
  25. कभी कभी स्फूर्ति और ऊर्जा कहीं किसी में खुद को सम्पूर्ण तिरोहित कर देने पर ही मिलती है:)थकान निवारण की भी कारगर दवा है एक और नयी थकान का आह्वान !

    ReplyDelete
  26. is vishay pe bhi koi itni khubsurat rachna gadh sakta hai ye kabhi nahi soncha tha... khubsurat aur adbhut...

    ReplyDelete
  27. स्वाभाविक है .....
    शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  28. मन के हारे हार है मन के जीते जीत,
    मन के उहापोह में ऐसा ही मन डूबता उतराता है

    ReplyDelete
  29. अति सुन्दर! मन तो मन ही है, सचमुच हँसता है, विस्मित भी होता है ... आशा की डोर तो उसी अग्रणी को पकडनी है।

    ReplyDelete
  30. अमृता जी ......वाह....थकान की मानसिकता में भी इतनी उत्कृष्ट हिंदी के साथ इतनी उत्तम रचना.....मान गए आपको......कितनी गहनता है पोस्ट में.....लाजवाब हूँ मैं......हैट्स ऑफ

    ReplyDelete
  31. ladanaa takaraanaa laharon kaa
    phir samaras ho jaanaa ;
    mujhe yaad hai do hridayon ka
    aapas mein mil jaanaa .
    mere kavya sangrah
    'premanjali' se

    ReplyDelete
  32. भाव पूर्ण बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..

    ReplyDelete
  33. थकान की मनःस्थिति का ऐसा मनोवैज्ञानिक चित्रण किसी और कविता में नहीं देखा. जो कहा गया है उसे कहना और सटीक कहना यह इस कविता में किया गया है. बहुत-बहुत बढ़िया.

    ReplyDelete