तुमसे प्रेम करके
जितना मैंने
खुद को बदला है
तुम्हारी जरूरतों और इच्छाओं के
प्रमादी प्रमेय के हिसाब से
उतना ही तुम
अनुपातों के नियम को
धता देकर सिद्ध करते रहे
कि चाहतों के गणित को
सही-सही समझना
मेरे वश की बात नहीं.....
जबकि मैंने तो
गणितीय भाषा से
केवल जाना है
एक अनंत को....
और तुम जोड़-तोड़ करके
मुझे बंद कर लेते हो
अपनी चाहतों की
छोटी सी कोष्ठक में......
प्रेम किया है तो
तुमसे कोई शत-प्रतिशत
परिणाम पाने की चाहत भी नहीं
बल्कि तुमसे सूत्रबद्ध होने के लिए
करती रहती हूँ सूचकांक को
शून्य से भी नीचे.....
ताकि पूरी तरह से तुम
होते रहो संतुष्ट
और मैं छू-छू आऊँ
उस अनंत को.....
पर तुम मुझे यूँ ही
गुणा कर लेते हो
किसी शून्य से और
अपने संख्यातीत चाहतों के
आगे-पीछे लगा लेते हो
केवल अपने हिसाब से....
क्या तुम नहीं जानते कि
तुम्हारा गणित भी है सूत्रहीन
या तो मेरे अनंत होने मात्र से
या बस कल्पशून्य होने मात्र से .
प्रेम और गणित ..
ReplyDeleteगणितीय हिसाब से भावनाओं को प्रकट करने का अनोखा अंदाज़
मन के भावो को शब्दों में उतर दिया आपने.... बहुत खुबसूरत.....
ReplyDeleteताकि पूरी तरह से तुम
ReplyDeleteहोते रहो संतुष्ट
और मैं छू-छू आऊँ
उस अनंत को.....
वाह!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति.....बेहतरीन भाव की रचना ...
MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
शाश्वत प्रेम....बधाई
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteये विरोधाभास आपस में कितना तोड़ता है ... सच तुम्हारा गणित है सूत्रहीन
ReplyDeleteapne apne daayre mein sabhi shuny hain
ReplyDeleteकविता का गणित गणित की कविता में बहुत ही सुंदरता के साथ आपने पिरोया है। सारे समीकरण सूत्रबद्ध होकर स्पष्ट हो गए हैं। इतना सुंदर प्रयोग मैंने पहली बार पढ़ा है। एक लाजवाब कविता के लिए बधाई।
ReplyDeleteप्रेम का गणित....बड़ा ही विकट होता है....कोई अपनी मर्ज़ी से घटा लेता है...और कोई अपने फाड़े के लिए गुणा कर लेता है...!!
ReplyDeleteप्रेम में गणित प्रेम का अपमान है...और एक तरफ़ा समझदारी कोई कब तक निभा सकता है...
ReplyDeleteअनूठे भाव... प्रेम में गणित के हिसाब किताब का नया प्रयोग बहुत सुन्दर लगा....
ReplyDeleteचाहतों के गणित को
ReplyDeleteसही-सही समझना
मेरे वश की बात नहीं.....
जबकि मैंने तो
गणितीय भाषा से
केवल जाना है
एक अनंत को....
यह गणितीय भाषा और प्रेम का सन्दर्भ .....इसलिए इसका कोई निष्कर्ष नहीं ....कोई हद नहीं ....!
बोडमास सूत्र का प्रेम कविता में प्रयोग अद्भुत रहा . सुँदर .
ReplyDeleteप्रेम से बंधा कोई भी भी रिश्ता गणित की गिनती में सूत्रहीन ही ठीक !
ReplyDeleteमुझे तो वैसे भी गणित नहीं आती ..
ReplyDeleteयह प्रेम का गणित तो उससे भी भारी लग रहा है .. :)
मगर प्रेम में कहाँ गणित ,कहाँ गुणा भाग,
यह तो जीवन को सार्थकता देती,अमरता प्रदान करती एक अजस्र ऊर्जा है ...
ऊर्जा जो उच्च शिखर से ग्राही तक निरंतर प्रवाहमान है ...अब ग्राही कितना
ग्रहण कर रहा है कितना अपक्षय यह उस पर निर्भर है ......
Amrita,
ReplyDeleteKISIKE PYAAR MEIN APNE KO POORI TARAHAN SAMARPIT KARNE PAR BHI JAB APNAA ATAM SAMAAN NAHIN MILTAA TO YEH PRASHAN UTHNAA AAVYASHAK HAI.
Take care
चाहतों के गणित को
ReplyDeleteसही-सही समझना
मेरे वश की बात नहीं.....
जबकि मैंने तो
गणितीय भाषा से
केवल जाना है
एक अनंत को....
बहुत खूब ।
अमृता, प्रेम का यही आनंद है की वहाँ सब शून्य हो जाता ...गणित के सारे मापक तितर बितर हो जाते हैं...जो प्रेम गणित की भाषा को समझे वो कभी आनंद को द्विगुणित नहीं कर सकता....और अनंत तक की यात्रा आनंद के बिना हो नहीं सकती...व्यक्ति प्रेम मय होकर ही आनंदित रह सकता.....
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना के लिए साधुवाद...
मैं आधार में हूँ, तभी तुम अनन्त बने फिरते हो।
ReplyDeleteअमृता जी इतनी गहन व्याख्या गणित के साथ प्रेम.......क्या कहूँ अल्फाज़ नहीं.......हैट्स ऑफ
ReplyDeleteअमृता जी, प्रेम जैसी कोमल भावना को गणित जैसे ठोस विषय के साथ मिलाकर देखने की कला आपमें ही हो सकती है..अभिनव प्रयास !
ReplyDeleteवाह: बहुत सुन्दर गहन व्याख्यान........
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुदंर
prem ka sundar guna bhag samjhati anupam rachna...
ReplyDeleteयह जीवन का गणित है बहुत सुंदर बधाई
ReplyDelete"और मैं छू-छू आऊं ..
ReplyDeleteउस अनंत को.."
गहन अभिव्यक्ति
सादर
मधुरेश
तुमसे कोई शत प्रतिशत परिणाम पाने की चाहत भी नहीं ....
ReplyDeleteतुम्हारा गणित भी है सूत्रहीन ......
मर्म छूती रचना ,प्रेम का गणित
वास्तव में प्रेम और गणित का अनूठा जोड़ घटाना, परिस्थितियों की बहुत ही प्रभावपूर्ण और मार्मिक
ReplyDeleteअभिव्यक्ति
सारे समीकरण सूत्रबद्ध होकर स्पष्ट हो गए हैं। गणित का प्रयोग रचना में अच्छा लगा,...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति, सुंदर रचना,.....
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
prem jaise samvedansheel tathy ko gadit jaise nishthur vishay se jod kar dekhna achha laga.. aapki yah rachna kabiletaarif hai AMRITA JI..
ReplyDeleteबड़ा जटिल है प्रेम का समीकरण समझ पाना.....
ReplyDeleteबढ़िया रचना.
shandar vishleshan .bdhai
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
अगर मैं शून्य हूँ तो तुम्हारा गणित सूत्रहीन है ....
ReplyDeleteशून्य का अर्थ जानो फिर गणित करना ....
बहुत गहन भाव ......
बहुत सुंदर कृति ....!!
अगर मैं शून्य हूँ तो तुम्हारा गणित ही सूत्रहीन है ........
ReplyDeleteपहले शून्य का अर्थ जानो फिर प्रेम में गणित करना .......
गहन ...बहुत सुंदर कृति ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आज चार दिनों बाद नेट पर आना हुआ है। अतः केवल उपस्थिति ही दर्ज करा रहा हूँ!
behtarin rachna..aapke is bhtarin soch ka jawab nahi hai amrita jee...aaj padha prem me ganit..prem ka ganit...prem se ganit...adbhut prem ganit.punah badhayee ..
ReplyDeleteजीवन को भी गणितीय तरीके से जिया और समझा जा सकता है और संग संग प्रेम को भी हम सूत्रों में कर सकते
ReplyDeleteहैं ये हमको आपने सिखाया .शब्दहीन कर दिया .....
प्रेम के गणित में हिसाब-किताब सब बेकार. रटे हुये सूत्र बदल जाते हैं ,
ReplyDeleteकुछ जोड़ो तो कुछ घटा मिलेगा .सोचिये मत दिमाग़ चकरा जायेगा !
prem aur ganit ka sundar sangam------bahut sundar rachna
ReplyDeleteअदभुत गणितीय हिसाब प्रस्तुत किया है आपने.
ReplyDeleteसूत्र हीन गणित कल्प शून्य होने मात्र से.
वाह!
क्या मेरा ब्लॉग विस्मृत हो चूका है,अमृता जी.
प्रेम को कंस में रखना कितना गलत प्रेम तो अनंत है अपार है ।
ReplyDeleteइत गणित और उत गणित,
ReplyDeleteक्यों अंश हर में बँट गये
दो दूनी है चार हम,
इतना पहाड़ा रट गये.
कोष्टकों के टूटने का,
भी सरल होता नियम
प्यार के हम गणित में
जुड़ते हुये भी घट गये.
सुंदर गणितीय रचना.
गणित के नियम प्रेम में कहाँ लागू हो पाते हैं...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteकमाल की रचना है...इतने गहरे भाव सरल शब्दों में परोस दिए हैं आपने...बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteनीरज
आपकी की कविता में अंकगणित,बीजगणित,ज्यामिति एवं क्षेत्रमिति का सम्मिश्रण इसे बहुत ही गणनात्मक बना दिया है । यह कविता बहुत अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteकुछ लोग देखकर खिल उठते
ReplyDeleteकुछ चेहरों पर रौनक आती
कुछ तो पैरों की आहट का
सदियों से इंतज़ार करते !
तुम प्यार और स्नेह भरी, आँखों का अर्थ लगा लेना !
मेरी रचना के मालिक यह,बस यही कहानी जीवन की !
प्रेम का गणित गणित की सिद्धांतों से कहाँ चल पाता है ... उसके तो अपने ही नियम होते हैं .... गहरे भाव लिए सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteप्रेम का अद्भुत गणित प्रस्तुत किया है आपने.
ReplyDeleteआभार !
खूबसूरत रचना ...बहुत बढ़िया प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा पढकर ! मेरे पोस्ट पर आपकी प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
ReplyDeleteहम कविता में आपके छिपे सच्चे जज्बे का सम्मान करते हैं...
ReplyDeleteअसीम का अनंतभाव से प्रेम यही स्थिति उत्पन्न करता है. गणितभाव को सुंदरता से पिरोया है :))
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