बेझिझक बोलों के अब
पोल खुले ही रहते हैं
जिसपर बेमानी बुद्धिवाद
चिथड़ों में सजे रहते हैं .
बबूला भी बलबलाकर
बड़ा होने में ही फूटता है
पर इन्द्रधनुषी इठलाहटों का
कोई भ्रम कहाँ टूटता है .
भला कौन किसको अब
कोई परामर्श दे सकता है
जहाँ एक घास का तिनका भी
अनुभवों को बाँचते फिरता है .
उपद्रवी ब्योरों का भी
ब्योरा-ये-हाल कोई तो कहे
जो चींटियों की धड़कनों पर भी
धड़कन रोके नजरें चुभाये बैठे हैं .
नगाड़ों में खुदुर-बुदुर कौन सुने
सब समय की ही तो बात है
नक्कारखाना भी अब हैरान है
जिसमें तूती की चलती धाक है .
तूफानी विचारों की आँधी में
बेचारा 'देश'तो वही रह जाता है
पर अक्सर आगे लगा 'उप'
बस 'आ' में बदल जाता है .
बहुत बढ़िया...!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अमृता जी......
ReplyDeleteउपदेश को आदेश में बदलते देर नहीं लगती......
सादर.
क्षणिकाओं में भी आप छा गयी हैं !
ReplyDeleteवाह क्या बात है...बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआमंत्रित सादर करे, मित्रों चर्चा मंच |
ReplyDeleteकरे निवेदन आपसे, समय दीजिये रंच ||
--
शुक्रवारीय चर्चा मंच |
Amrita,
ReplyDeleteDESH KI STITHI KAA VARNAN SAHI KIYA HAI. YEH SACH HAI KI BUDHIMAAN BHI AB PRAMARAASH DENE SE HICHKICHAATAA HAI KYONKI GHAAS KA TINKAA BHI ANUBHAV BANTTAA PHIRTAA HAI.
Take care
तूफानी विचारों की आँधी में
ReplyDeleteबेचारा 'देश'तो वही रह जाता है
पर अक्सर आगे लगा 'उप'
बस 'आ' में बदल जाता है .
छोटी-छोटी फेर-बदल से कितने अर्थ बदल जाते हैं। उपदेश देने में तो सब माहिर होते हैं, उसे अपना लें तो भला हॊ।
तूफानी विचारों की आँधी में
ReplyDeleteबेचारा 'देश'तो वही रह जाता है
पर अक्सर आगे लगा 'उप'
बस 'आ' में बदल जाता है .
सम्यक विचारों से ओतप्रोत आपकी यह क्षणिकाएं निश्चित रूप से प्रभावशाली हैं .....!
उप से आ की यात्रा देश के लिये घातक हो रही है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया क्षणिकाए लगी अमृता जी,,,,
ReplyDeleteबेझिझक बोलों के अब
पोल खुले ही रहते हैं
जिसपर बेमानी बुद्धिवाद
चिथड़ों में सजे रहते हैं .
MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
deep thought with worry.
ReplyDeleteso so nice post. i love it .
तूफानी विचारों की आँधी में
ReplyDeleteबेचारा 'देश'तो वही रह जाता है
पर अक्सर आगे लगा 'उप'
बस 'आ' में बदल जाता है .
सभी क्षणिकाएं गहन अर्थ लिए हुये .... बहुत अच्छी प्रस्तुति
तूफानी विचारों की आँधी में
ReplyDeleteबेचारा 'देश'तो वही रह जाता है
पर अक्सर आगे लगा 'उप'
बस 'आ' में बदल जाता है .
शब्दों का बेहतरीन उपयोग ...और सुंदर भाव भारी क्षणिकाएं ....!!
wow! bahut sundar...!
ReplyDeleteअर्थों में लपेट कर अनर्थ करने में तो निपुण हो गये हैं लोग !
ReplyDeleteअनुभवी विनम्र होता है ... पर अधजल गगरी छलके जाए
ReplyDeleteप्रभावशाली और सम्यक क्षणिकाएं . बज रही है जी तूती. अति सुन्दर .
ReplyDeleteगहन अर्थ लिए सुन्दर क्षणिकाएं .. बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeletewaah ati sundar..
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएं अमृता जी
ReplyDeleteतूफानी विचारों की आँधी में
ReplyDeleteबेचारा 'देश'तो वही रह जाता है
पर अक्सर आगे लगा 'उप'
बस 'आ' में बदल जाता है .
...बहुत खूब! सभी क्षणिकाएं बहुत सुन्दर ...
तूफानी विचारों की आँधी में
ReplyDeleteबेचारा 'देश'तो वही रह जाता है
पर अक्सर आगे लगा 'उप'
बस 'आ' में बदल जाता है .
गहरे अर्थ लिये सुन्दर क्षणिकाएं ।
तूफानी विचारों की आँधी में
ReplyDeleteबेचारा 'देश'तो वही रह जाता है
पर अक्सर आगे लगा 'उप'
बस 'आ' में बदल जाता है .
मतलब उप-देश के स्थान पर आ-देशः)
सुंदर क्षणिकाएँ!!!
behtarin chadikayein..kavi ek rang anek..aapke lekhan ke tamam rangon me se ek juda rang..तूफानी विचारों की आँधी में
ReplyDeleteबेचारा 'देश'तो वही रह जाता है
पर अक्सर आगे लगा 'उप'
बस 'आ' में बदल जाता है .
wakahi jara se hera feri se mayne hee badal jaate hain..sadar badhayee ke sath
तूफानी विचारों की आँधी में
ReplyDeleteबेचारा 'देश'तो वही रह जाता है
पर अक्सर आगे लगा 'उप'
बस 'आ' में बदल जाता है .
बहुत सुन्दर ... शब्दों/अर्थों का चमत्कार
आपकी क्षणिकाओं में गहरी संवेदना अपनी पूर्ण समग्रता में परिलक्षित होती है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteवाह ...बेहतरीन क्षणिकाएं
ReplyDeleteबढ़िया विचार कणिकाएं .व्यंग्य लिए .
ReplyDeleteसच है उपदेश देने वाले बहुतेरे होते हैं, लेकिन यदि वे खुद ही उसपर अमल कर लें, तो इतना भी काफी होता है परिवर्तन के लाने लिए... सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार
ReplyDeleteसभी एक से बढ़कर एक
ReplyDeleteउपदेश और आदेश के बीच का सूक्ष्म अंतर बखूबी समझा दिया आपने |
ReplyDeleteवाह दीदी...एकदम सच बात कही है आपने!!
ReplyDeleteक्षणिकाएं अच्छी लगी...आपकी बात ही जुदा है....
ReplyDeleteसभी सुन्दर........तीसरी वाली सबसे अच्छी लगी।
ReplyDeleteबबूला भी बलबलाकर
ReplyDeleteबड़ा होने में ही फूटता है
पर इन्द्रधनुषी इठलाहटों का
कोई भ्रम कहाँ टूटता है.
यह क्षणिका विशेष रूप से बहुत अच्छा लगी.
वाह...बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति...
ReplyDeleteनगाड़ों में खुदुर-बुदुर कौन सुने
ReplyDeleteसब समय की ही तो बात है
नक्कारखाना भी अब हैरान है
जिसमें तूती की चलती धाक है...
बहुत खूब हैं...आपकी क्षणिकाएं...
सुन्दर क्षणिकाएं |
ReplyDeleteआशा
तूफानी विचारों की आँधी में
ReplyDeleteबेचारा 'देश'तो वही रह जाता है
पर अक्सर आगे लगा 'उप'
बस 'आ' में बदल जाता है .
वाह ,,,, बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,, सुंदर क्षणिकाएं
RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं
ReplyDeleteशानदार:-)
एक से बढ़कर एक.
ReplyDeleteबहुत खूब! परामर्श, उपदेश, आदेश में उलझा देश और सन्देश!
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएं दमदार हैं ... सत्य की प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबढिया भाव -वेरेचक प्रस्तुति याद दिलाती हुई मुक्ति गान -हम होंगे कामयाब एक दिन .....कृपया जूझती करलें .
ReplyDeleteअर्थों की एक साथ अनेक छटाएं बिखेरती विचार कणिकाएं वक्त की नव्ज़ से संवाद करती हैं सभी .कृपया यहाँ भी पधारें -
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ram ram bhai
रविवार, 27 मई 2012
ईस्वी सन ३३ ,३ अप्रेल को लटकाया गया था ईसा मसीह को सूली पर
http://veerubhai1947.blogspot.in/
तथा यहाँ भी -
चालीस साल बाद उसे इल्म हुआ वह औरत है
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
भला कौन किसको अब
ReplyDeleteकोई परामर्श दे सकता है
जहाँ एक घास का तिनका भी
अनुभवों को बाँचते फिरता है .
इन पंक्तियों में अच्छा कटाक्ष है।
बढि़या कविता।
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट "कबीर" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद।
ReplyDeleteek ek kshanika gahre bhaav liye....kahan se laati hain aap inhe dhoondh kar aur bun deti hain shabdon ka makarjaal....ati sundar.
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