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Saturday, October 22, 2011

सार - वृत

जब एकोsहं बहुष्यामि
बहुष्यामि एकोsहं
तब केवल
''अहं ब्रह्माष्मी '' का 
हम क्यों पाले हैं भरम...
हम क्यों नहीं जानते
निज से औरों का मरम..
सब पोल खुली है फिर भी
हमें नहीं आती हाय! शरम..
काहे का ये झगड़ा - टंटा
फिर काहे कोई अनबन.........
तेरी - मेरी का ये चक्कर
क्यों नहीं बूझे लाल बुझक्कर
बड़े - बड़े भी यहाँ पर
खुद में है महा फक्कड़......
काहे का ये लटका - झटका
फिर काहे कोई उपक्रम....
जब सार- वृत
यही है जीवन का ---
शिवो s हं  शिवो s हं
सच्चिदानन्दों s s s हं
अप्रिय बात शुरू करने से पहले
सारी बात करो खतम .
   

41 comments:

  1. बेहतरीन कविता।

    सादर

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  2. वाह, बहुत सुंदर ||

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  3. 'मैं दुनिया के लिए कल्याणकारी बनूँ'- इससे बढ़ कर दूसरा कोई दृष्टिकोण नहीं. लेकिन बातें खत्म नहीं होतीं और फिर बातों से ही तो बात शुरू होती है. बहुत सुंदर रचना.

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  4. बेहतरीन सीख देती रचना।
    आभार.....

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  5. एक गंभीर सी कविता... उलझी हुई सी

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  6. वाह ...बहुत खूब।

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  7. बहुत सुन्दर संदेश देती रचना।

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  8. न चाहते हुए भी कई बार बैल मारने को आ पहुँचते है अमृता जी फिर क्या किया जाये :-).......सुन्दर लगी पोस्ट |

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  9. अच्छा दृष्टिकोण, गहरी सोच.. बहुत सुंदर रचना...

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  10. तथ्य को पहचानने और हो जाने में बहुत ही अन्तर है।

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  11. इस समय ब्लॉग जगत पर बड़ी कृपा दृष्टि है :) अब झगडा भी शांत कर रही हैं :) चलिए नेक काम है करिए मुझे क्या ??

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  12. gahan soch k saath likhi shikshaprad rachna.

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  13. काश! सबलोग इस द्दृष्टिकोण को अपने जीवन में उतर सकें.
    सुन्दर रचना.

    दीपावली की शुभकामनायें.

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  14. सुन्दर आह्वान की रचना

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  15. बहुत सुंदर प्रस्तुति ....

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  16. अहं ब्रह्मास्मि का भरम तो रा-वान को भी है जी :)

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  17. “शिव ही एकाधार है, शिव जीवन का सार
    शिव ही सुमति दें सबको, मांगूं बारम्बार”

    बहुत ही सुन्दर भाव... सशक्त रचना...
    आपको सपरिवार दीपावली की बधाइयां....

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  18. अप्रिय बात शुरू करने के पहले
    सारी बातें करो खतम।

    सार्थक संदेश देती सुंदर कविता।

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  19. सुन्दर सृजन के लिए बधाई स्वीकारें.

    समय- समय पर मिले आपके स्नेह, शुभकामनाओं तथा समर्थन का आभारी हूँ.

    प्रकाश पर्व( दीपावली ) की आप तथा आप के परिजनों को मंगल कामनाएं.

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  20. शब्दश : ...अनमोल

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  21. Muh mein ram bagal mein chhoori isi karan se bhagwan se insan ki hai doori. Achhi rachna. Aapko aur aapke pariwar ko dipawali ki hardik subhkamna.

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  22. अहं ही इंसान को बडा भी बनाता है और अपने शुभाकांक्षियों से दूर भी
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाऐं!!

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  23. अप्रिय बात शुरू करने से पहले बात खत्म करने में ही सार निहित है.

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  24. बहुत सुंदर रचना ......गहरी बात ....

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  25. दार्शनिकता से ओतप्रोत रचना.
    दीपोत्सव की शुभकामनायें.

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  26. क्षण भंगुर जीवन की कलिका कल प्रात को जाने खिली न खिली ...

    प्रकाश पर्व पर आपको
    शुभकामनाएं ...

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  27. अच्छी सीख देती सुन्दर रचना ..लेकिन सीखना कोई नहीं चाहता ..

    दीपावली की शुभकामनाएँ

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  28. यह कैसी अमृत तान छेडी है आपने ,अमृता जी.
    'शिवोहम' बता कर और अप्रिय बाते खत्म करके तो
    आपने तन्मय ही कर दिया है.

    सुन्दर सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
    'नाम जप' पर अपने अमूल्य विचार और
    अनुभव प्रस्तुत करके अनुग्रहित कीजियेगा.

    धनतेरस व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  29. अहम् ब्रम्हास्मि हमारे अन्दर जड़ जमा चुका है . वही हर समस्या के मूल में है . विचारणीय कविता .

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  30. सुन्दर और झाक्झोड़ने वाली रचना!
    द्वंदों को तोड़कर ही नव सृजन किया जा सकता है|

    दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
    जहां जहां भी अन्धेरा है, वहाँ प्रकाश फैले इसी आशा के साथ!
    chandankrpgcil.blogspot.com
    dilkejajbat.blogspot.com
    पर कभी आइयेगा| मार्गदर्शन की अपेक्षा है|

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  31. बहुत सार्थक सोच...दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!

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  32. सुंदर भावाभिव्‍यक्ति.
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  33. अप्रिय बात शुरू करने के पहले
    सारी बातें करो खतम।
    सुन्दर प्रस्तुति .दिवाली मुबारक .

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  34. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!

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