आँधियाँ तो चल रही है
चुपचाप ही सही
बोझिल-सी , डगमगाती-सी
बिना सन सन सन के
तुम्हारे ही बंद दिशाओं में...
प्राणों में पुंजित पीर है
नयन में नेही नीर है
हिम-दंश सहता ये ह्रदय-हवि
अभी तक जमा नहीं है
साँसों का गीत भी थमा नहीं है...
जो तुम्हारे सागर पर
उत्पीड़ित धूप-सा जलता रहेगा
अपने काँधे पर तुम जाल फैलाए रहो
तो भी तुम्हारे सतह पर पिघलता रहेगा....
आँधियाँ कल जो इधर आ रही थी
अब भी उड़ती है , फड़फड़ाती है
तुम्हारे ही बंद आकाश में
कबतक रोके रहोगे उसे प्रस्तर-पाश में ?
चाहो तो मना कर दो
उन पत्तियों को कि चुटकियाँ न बजाये
उन डालियों को कि चुटकियाँ न ले
और उन तरु-वृंदों को कि चुटकियों में न उड़ाये
आँधियों के इंगित को
इंगित के उन अंत:स्वर को
जो मन्त्र-भेद करता है ...
आँधियाँ है बहती रहेंगी
चुपचाप ही सही
तुम्हारा दिया पीर भी सहती रहेंगी
चुपचाप ही सही
जिसकी पड़पड़ाहट सुन कर
चिड़ियों से चुक-चुक , चिक-चिक चहकेंगी ही
उन मुरझाई कलियों से
किलक कर कुसुमावलि फूटेंगी ही....
तुम लाख उन्हें रोकने की ठानो
या उनके इंगित को मानो न मानो
पर चुपचाप ही सही
आँधियों का धर्म ही है बहना
जो जानती नहीं है कभी थमना...
यदि थम गयी तो स्वयं ही हाँफने लगेंगी
और उस अंतगति की उपकल्पना मात्र से ही
ये पूरी सृष्टि कलप कर काँपने लगेगी .
ओह ....
ReplyDeleteपिंजर बद्ध काव्य .....कितना कुछ है आपके अंदर अमृता जी ....निकाल जाने दीजिये ....काव्य की आंधी है ....आने दीजिये ...अद्भुत सृजनशीलता ...अद्भुत ...!!
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरेया-
सचमुच आपकी सृजनशीलता अद्भुत है ।आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (29.07.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .
ReplyDeleteसुंदर रचना.....
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव
ReplyDeleteमैंने तो देखी है लगता है आप खुद ही हैं.....आंधी।
ReplyDeleteखिलती रहें शब्दों की कलियाँ... बहुत-बहुत सुन्दर रचना...अद्भुत भाव
ReplyDeleteये बोझिल सी आँधियाँ - चुपचाप - कितनों को कितना रुलाएगी ।
ReplyDeleteबहुत ही गहन अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत ही सुन्दर और गहन रचना..
ReplyDeleteबहुत सुंदर, बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत खूब,सुंदर भावपूर्ण रचना,,,
ReplyDeleteRECENT POST: तेरी याद आ गई ...
भाव रूपी आंधियाँ यूँ ही चलने दीजिए .....बहुत खूब
ReplyDeleteचाहो तो मना कर दो
ReplyDeleteउन पत्तियों को कि चुटकियाँ न बजाये
उन डालियों को कि चुटकियाँ न ले
और उन तरु-वृंदों को कि चुटकियों में न उड़ाये
आँधियों के इंगित को
इंगित के उन अंत:स्वर को
जो मन्त्र-भेद करता है ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
तुम लाख उन्हें रोकने की ठानो
ReplyDeleteया उनके इंगित को मानो न मानो
पर चुपचाप ही सही
आँधियों का धर्म ही है बहना
जो जानती नहीं है कभी थमना...
अमृता जी, यही जीवन का सत्य है..सुंदर भाव !
झुक के सलाम अर्ज़ करता हूँ मोहतरमा आपके फ़न को।
ReplyDeleteजॉन मिल्टन के शब्दों में-सब कुछ सहन करते हुए चुपचाप आगे बढ़ने में यकीं रखता हूँ.. जीवन में सब कुछ कभी खत्म नहीं होता...चुपचाप ही सही..चलता रहता है..आंधियां बहती रहती है ..
ReplyDeleteसचमुच अद्भुत पराक्रम...
आँधियों का धर्म ही है बहना
ReplyDeleteजो जानती नहीं है कभी थमना...
बहुत खूब, लाजवाब
भावपूर्ण
यदि थम गयी तो स्वयं ही हाँफने लगेंगी
ReplyDeleteऔर उस अंतगति की उपकल्पना मात्र से ही
ये पूरी सृष्टि कलप कर काँपने लगेगी .
खुबसूरत अंतर्भावों की अभिव्यक्ति लाजवाब
भावभीनी खूबसूरत रचना....
ReplyDeleteसत्यं त्वा ऋतेन ...
ReplyDeleteइन आँधियों को ज्यादा रोका तो तुम्हं भी उड़ा ले जाएंगी ...
ReplyDeleteआज नहीं तो कल उहे तो उड़ना ही है ... अंतर्मन के भाव शब्द बन जाएं तो आंधी हो जाते हैं ...
आप भी मौन चुपचाप लिखे जा रहीं हैं ..
ReplyDeleteएक आंधी सी बही जा रहीं हैं
शब्द पुष्पों से काव्य गुलदस्ता बना रह हैं
दिल से वाह वाह की आवाज आ रही है
कमाल का लेखन है आपका ..ढेरों बधाई
सहज वृत्ति कर यह सहना है,
ReplyDeleteआँधी आयेंगी, जायेंगी।
भावों की अच्छी अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसुन्दर कविता |
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम ...
ReplyDeleteगहन भाव लिए सुन्दर रचना...
ReplyDelete:-)
भावमय सुन्दर रचना
ReplyDeleteजब मन में आँधियों से टकराने का ऐसा जज़बा हो, रेत में फूल खिलाने का हौसला हो तो फिर आखिर आंधियां हहाकर क्यों ना बहे, उसकी तीव्रता को आखिर इस हौसले के सामने नत होना ही होता है.
ReplyDeleteपिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
ReplyDeleteकई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (11) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !