शून्य दिमाग़ में
अचानक दौड़ पड़ता है
रेस लगाता घोड़ा
पछाड़ खाकर
गिरता है
धड़ाम !
शून्य दिमाग में
उग आती है
हरी-हरी घासें
कहीं से गाय बकरी
आकर चरने लगती हैं
कर देती हैं
सपाट !
शून्य दिमाग़ में
रेंग पड़ते हैं
असंख्य कीड़े
मुँह मारते , स्वाद लेते
चूसते हुए कर जाते
सड़ाक !
शून्य दिमाग़ में
अंडे तोड़कर
निकलते हैं मेढ़क
उड़ने की चाह में
फुदकते हुए
गिरते हैं उसी में
छपाक !
शून्य दिमाग़ में
प्रेम करते हैं
शेर और शेरनी
एक-दूसरे को
काटते-नोचते हुए
गूँज उठती है उनकी
दहाड़ !
शून्य दिमाग़ में
टकराते हैं बादल
नसें चटकती हैं
बीजली चमक कर
गिरती हैं
तड़ाक !
शून्य दिमाग़ में
उफनता है समंदर
उठते लहरों को
एक-एक कर
अपने में ही
कर जाता है
गड़ाक !
अचानक दौड़ पड़ता है
रेस लगाता घोड़ा
पछाड़ खाकर
गिरता है
धड़ाम !
शून्य दिमाग में
उग आती है
हरी-हरी घासें
कहीं से गाय बकरी
आकर चरने लगती हैं
कर देती हैं
सपाट !
शून्य दिमाग़ में
रेंग पड़ते हैं
असंख्य कीड़े
मुँह मारते , स्वाद लेते
चूसते हुए कर जाते
सड़ाक !
शून्य दिमाग़ में
अंडे तोड़कर
निकलते हैं मेढ़क
उड़ने की चाह में
फुदकते हुए
गिरते हैं उसी में
छपाक !
शून्य दिमाग़ में
प्रेम करते हैं
शेर और शेरनी
एक-दूसरे को
काटते-नोचते हुए
गूँज उठती है उनकी
दहाड़ !
शून्य दिमाग़ में
टकराते हैं बादल
नसें चटकती हैं
बीजली चमक कर
गिरती हैं
तड़ाक !
शून्य दिमाग़ में
उफनता है समंदर
उठते लहरों को
एक-एक कर
अपने में ही
कर जाता है
गड़ाक !
शून्य दिमाग में सब ओर से विचार घुस आने को उत्सुक रहते हैं।
ReplyDeleteकविता के तौर पर बहुत सुंदर है लोकिन अहसास के तौर पर कँपकपी दे गया यह अहसास.
ReplyDeleteशून्य दिमाग में
ReplyDeleteप्रेम करते हैं
शेर और शेरनी
बाप रे बाप!
क्या शून्य दिमाग सचमुच में है अभिशाप.
आपने तो सचमुच मेरा बढ़ा दिया है ताप.
आपके शब्द 'धडाम','सपाट','सड़ाक'
'छपाक','दहाड़','तडाक','गडाक' तो
गजब के हैं जी.लगता है हर एक शब्द
'टन टन' वजन का हो,जो मेरे शून्य दिमाग
में रह रह कर विस्फोट कर रहा है'फटाक'.
दीपावली की अच्छी आतिशबाजी करा दी है आपने.
शानदार अभिव्यक्ति के लिए बधाई,अमृता जी.
शून्य दिमाग़ में
ReplyDeleteउफनता है समंदर
उठते लहरों को
एक-एक कर
अपने में ही
कर जाता है
गड़ाक !
शून्य दिमाग की यह गड़ाक आपको ना जाने कहाँ ले जाए ........दिमाग का क्या बस सोचना है इसे .....बेहतर रचना ...!
बहुत खूब लिखा है आपने.
ReplyDeleteअपार संभावनाएं है शून्य दिमाग में .
क्योंकि शून्य ही तो आगाज़ है.
शून्य दिमाग में
कभी गिनती हो जाती है शुरू,
एक दो तीन चार,
शून्य दिमाग में,
खुलने लगते हैं
कभी सपनों के द्वार,
शून्य दिमाग
कभी हो जाता है,
बिलकुल ही शून्य,
क्योंकि शून्य में
नज़र आ जाते हो
तुम .
सचमुच शून्य दिमाग में कितनी हलचल रहती है...
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति!!
शून्य पर बहुत अच्छा लिखा है .
ReplyDeleteदिमाग किसी भी समुद्र से बहुत बडा है--- विशाल ब्राह्मन्ड जितना।शून्य से ही तो हमे बहुत कुछ सीखने विचार करने को मिलता है।ाच्छी रचना।
ReplyDeleteVery true...
ReplyDeleteNicely written...
www.poeticprakash.com
शून्य दिमाग में पूरी सृष्टि धमाचौकड़ी मचाती है ...
ReplyDeleteबहुत भयंकर है शून्य दिमाग .. होता तो बहुत कुछ है शून्य दिमाग में पर ऐसे बिम्ब नहीं सूझे कभी :)
ReplyDeleteकभी-कभी मस्तिष्क का सूनापन खूब शोरगुल करता है।
ReplyDeleteअच्छी कविता।
शुन्य दिमाग सभी समस्याओं की जड है !!
ReplyDeleteइसी लिए तो कहते है,
ReplyDeleteखाली दिमाग शैतान का,
कुछ न कुछ करते रहना चाहिए,
नयी सोच की रचना सुंदर पोस्ट,...बधाई
आपका पोस्ट अच्छा लगा । .मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteshi amrita ji shuny dimag me naa jaane kya-kya chalta rahta hai...
ReplyDeleteशून्य दिमाग में उमड़ता है कितना कुछ!
ReplyDeleteअद्भुत लेखन....
ReplyDeleteसादर...
सुन्दर प्रस्तुति, बधाई........
ReplyDeleteशून्य दिमाग में ही तो प्रवेश हो सकता है : विचार
ReplyDeleteवाह-शून्य पर अच्छी रचना.
ReplyDeleteशून्य............सब खाली खाली सा .......विचार की धमाचौकड़ी .......बहुत खूबसूरती से लिख डाला है आपने
ReplyDeleteशून्य दिमाग में .. अच्छी रचना.
ReplyDeleteअद्भुत !!!!!
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण.
ReplyDeleteशून्य दिमाग में उमडते विचारों का बेहतर प्रस्तुतिकरण।
ReplyDeleteआभार।
'फटाक'. 'फटाक' होते होते
ReplyDeleteमेरे शून्य दिमाग में 'ऊं' का गुंजन हो उठा.
गुंजन पर जब ध्यान किया
तो मैं 'तन्मय' हो गया जी.
तन्मय मे अमृत का अहसास हुआ
तो मुझे ज्ञात हुआ
कि 'अमृता तन्मय'यूँ ही नही हुआ जाता.
'शून्य दिमाग' के बिना.
शुन्य को लेकर आपने बहुत सुन्दर कविता लिखा है ! बहुत बहुत बधाई!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
Wonderful Post once again... congratulation
ReplyDeleteशून्य दिमाग में भी इतना कुछ चलता रहेगा अमृता जी तो फिर उसे शून्य कहना क्या उचित होगा ? :-)
ReplyDeleteजहाँ तक मुझे लगता है शून्य का मतलब तो स्थिर है .............खैर नयी तरह की नयी पोस्ट.........पसंद आई|
शून्य दिमाग नहीं होता तो इतने विस्फोट -गडाक सटाक तड़ाक आदि को संभाल नहीं पाता ... शुन्य्पन में गुंजाइश थी मेंढको को चलने के लिए समुन्दर को मचलने के लिए ... और उन अनुभूतियों को उस शून्य दिमाग ने कितनी ही सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ कविता रूप में प्रस्तुत करा दिया .. बहुत अच्छी लगी ये शून्य दिमाग की कथा
ReplyDeleteशून्य दिमाग में जब इतनी हलचल तो जाग्रत दिमाग का क्या हाल होगा ....बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति..
ReplyDeleteBahut hi umda rachna.. Bilkul alag se bhi alag tarah ki rachna.. Aabhar...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुती....
ReplyDeleteशून्य दिमाग भी क्या क्या गुल खिलाता है :)
ReplyDeleteसचमुच शून्य दिमाग में बड़ी हलचल होती रहती है...जाने क्या-क्या चलता रहता है...
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteGyan Darpan
RajputsParinay
शून्य दिमाग में तो क्या कुछ हो गया ...
ReplyDeleteबेहतरीन
गहन भावों को सुन्दर अभिव्यक्ति देती प्रवाहमयी रचना ..
ReplyDeleteशून्य दिमाग एमिन क्या क्या हो सकता है ... उन्दा रचना है ...
ReplyDelete0 par apko milta hai
ReplyDelete10/10
jai hind jai bharat
वाह, बहुत बढिया
ReplyDeleteजो तुमने कहा और फ़ैज़ ने जो फ़रमाया है,
ReplyDeleteसब माया है, सब माया है (इब्ने इंशा)
क्या बात है, बहुत सुंदर
ReplyDeleteशून्य दिमाग अब तो शून्यता से उबर गया होगा?:) बड़ी हाहाकारी कविता !
ReplyDeletewah shoony dimag ke kya kehne ....
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट में स्वागत है ...
ReplyDeleteवाह ....बहुत खूब ।
ReplyDeletesundar prastuti..
ReplyDeleteअमृता तन्मय जी बहुत सही शून्य दिमाग में बहुत कुछ होता है बहुत सुन्दर कल्पना आप की
ReplyDeleteखाली दिमाग तो शैतान का घर भी कहा गया है
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
अपना समर्थन और सुझाव हमें भी देती रहें
शून्य दिमाग़ में
टकराते हैं बादल
नसें चटकती हैं
बीजली चमक कर
गिरती हैं
तड़ाक !
शून्य दिमाग़ में
उफनता है समंदर
उठते लहरों को
एक-एक कर
अपने में ही
कर जाता है
गड़ाक !