जब एकोsहं बहुष्यामि
बहुष्यामि एकोsहं
तब केवल
''अहं ब्रह्माष्मी '' का
हम क्यों पाले हैं भरम...
हम क्यों नहीं जानते
निज से औरों का मरम..
सब पोल खुली है फिर भी
हमें नहीं आती हाय! शरम..
काहे का ये झगड़ा - टंटा
फिर काहे कोई अनबन.........
तेरी - मेरी का ये चक्कर
क्यों नहीं बूझे लाल बुझक्कर
बड़े - बड़े भी यहाँ पर
खुद में है महा फक्कड़......
काहे का ये लटका - झटका
फिर काहे कोई उपक्रम....
जब सार- वृत
यही है जीवन का ---
शिवो s हं शिवो s हं
सच्चिदानन्दों s s s हं
अप्रिय बात शुरू करने से पहले
सारी बात करो खतम .
बेहतरीन कविता।
ReplyDeleteसादर
वाह, बहुत सुंदर ||
ReplyDelete'मैं दुनिया के लिए कल्याणकारी बनूँ'- इससे बढ़ कर दूसरा कोई दृष्टिकोण नहीं. लेकिन बातें खत्म नहीं होतीं और फिर बातों से ही तो बात शुरू होती है. बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteबेहतरीन सीख देती रचना।
ReplyDeleteआभार.....
saar nirmit hai, per usse alag apni dafli hai
ReplyDeleteएक गंभीर सी कविता... उलझी हुई सी
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संदेश देती रचना।
ReplyDeleteन चाहते हुए भी कई बार बैल मारने को आ पहुँचते है अमृता जी फिर क्या किया जाये :-).......सुन्दर लगी पोस्ट |
ReplyDeleteअच्छा दृष्टिकोण, गहरी सोच.. बहुत सुंदर रचना...
ReplyDeletebahut achhi rachna
ReplyDeleteThanks Amrita ji
ReplyDeleteतथ्य को पहचानने और हो जाने में बहुत ही अन्तर है।
ReplyDeleteइस समय ब्लॉग जगत पर बड़ी कृपा दृष्टि है :) अब झगडा भी शांत कर रही हैं :) चलिए नेक काम है करिए मुझे क्या ??
ReplyDeletegahan soch k saath likhi shikshaprad rachna.
ReplyDeleteकाश! सबलोग इस द्दृष्टिकोण को अपने जीवन में उतर सकें.
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
दीपावली की शुभकामनायें.
सुन्दर आह्वान की रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति ....
ReplyDeleteबहुत सुदर ..
ReplyDeleteअहं ब्रह्मास्मि का भरम तो रा-वान को भी है जी :)
ReplyDeleteसुन्दर भाव!
ReplyDelete“शिव ही एकाधार है, शिव जीवन का सार
ReplyDeleteशिव ही सुमति दें सबको, मांगूं बारम्बार”
बहुत ही सुन्दर भाव... सशक्त रचना...
आपको सपरिवार दीपावली की बधाइयां....
अप्रिय बात शुरू करने के पहले
ReplyDeleteसारी बातें करो खतम।
सार्थक संदेश देती सुंदर कविता।
सुन्दर सृजन के लिए बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteसमय- समय पर मिले आपके स्नेह, शुभकामनाओं तथा समर्थन का आभारी हूँ.
प्रकाश पर्व( दीपावली ) की आप तथा आप के परिजनों को मंगल कामनाएं.
सुन्दर बचन ...
ReplyDeleteशब्दश : ...अनमोल
ReplyDeleteMuh mein ram bagal mein chhoori isi karan se bhagwan se insan ki hai doori. Achhi rachna. Aapko aur aapke pariwar ko dipawali ki hardik subhkamna.
ReplyDeletesundar rachna...
ReplyDeleteअहं ही इंसान को बडा भी बनाता है और अपने शुभाकांक्षियों से दूर भी
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाऐं!!
अप्रिय बात शुरू करने से पहले बात खत्म करने में ही सार निहित है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ......गहरी बात ....
ReplyDeleteदार्शनिकता से ओतप्रोत रचना.
ReplyDeleteदीपोत्सव की शुभकामनायें.
क्षण भंगुर जीवन की कलिका कल प्रात को जाने खिली न खिली ...
ReplyDeleteप्रकाश पर्व पर आपको
शुभकामनाएं ...
अच्छी सीख देती सुन्दर रचना ..लेकिन सीखना कोई नहीं चाहता ..
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनाएँ
यह कैसी अमृत तान छेडी है आपने ,अमृता जी.
ReplyDelete'शिवोहम' बता कर और अप्रिय बाते खत्म करके तो
आपने तन्मय ही कर दिया है.
सुन्दर सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
'नाम जप' पर अपने अमूल्य विचार और
अनुभव प्रस्तुत करके अनुग्रहित कीजियेगा.
धनतेरस व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
अहम् ब्रम्हास्मि हमारे अन्दर जड़ जमा चुका है . वही हर समस्या के मूल में है . विचारणीय कविता .
ReplyDeleteसुन्दर और झाक्झोड़ने वाली रचना!
ReplyDeleteद्वंदों को तोड़कर ही नव सृजन किया जा सकता है|
दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
जहां जहां भी अन्धेरा है, वहाँ प्रकाश फैले इसी आशा के साथ!
chandankrpgcil.blogspot.com
dilkejajbat.blogspot.com
पर कभी आइयेगा| मार्गदर्शन की अपेक्षा है|
बहुत सार्थक सोच...दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ
अप्रिय बात शुरू करने के पहले
ReplyDeleteसारी बातें करो खतम।
सुन्दर प्रस्तुति .दिवाली मुबारक .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
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