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Thursday, September 2, 2021

क्षणिकाएँ ...........

जहाँ किसी की परवाह भी 

चलन में अब नहीं रहा

वहाँ जिंदा होने की गवाही

लाउडस्पीकर पर 

साँस लेना हो गया है


***


जहाँ फूँक-फूँक कर भी

छाँछ पीने पर

मुँह में फफोले पड़ जाए तो

वाकई हम कुछ ज्यादा ही

संवेदनशीलता की दौर में हैं


***


जहाँ सबों से जुड़ते हुए

खुद से टूटने का

ज्यादा अहसास होता हो

वहाँ भयावह सच्चाइयों से

नजर न मिलाना ही बेहतर है


***


जहाँ भावनाऐं

हाथी के दांत से भी

बेशकीमती हो गई हों

वहाँ वक्त के फटेहाली पर

यकीन कर लेना चाहिए


***


जहाँ दो गज जमीन पर भी

इतनी मार-काट मची हो

वहाँ सभ्येतर ठहाकों की गूंज

शांति की बातों से 

कहीं ज्यादा डराती हैं . 

22 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 02 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. जबरदस्त.. सभी क्षणिकाएं उत्कृष्ट है.. एक से बढ़कर एक परिदृश्यों का जीवंत चित्रण।
    सस्नेह

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ सितंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  5. जहाँ फूँक-फूँक कर भी
    छाँछ पीने पर
    मुँह में फफोले पड़ जाए तो
    वाकई हम कुछ ज्यादा ही
    संवेदनशीलता की दौर में हैं
    जिन्दगी के अनुभवों से उपजी बहुत ही गहन मननीय क्षणिकाएं।

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  6. सुंदर क्षणिकाएं।

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  7. बहुत सुंदर क्षणिकाएं।

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  8. अनेक मुहावरे का नया प्रयोग अच्छा लगा

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  9. वक्त के नाज़ुक हालातों पर पैनी नज़र और उससे उपजे चंद नायाब तजुर्बे, वाक़ई अब शांति की बात पर यक़ीन करना मुश्किल है, क्योंकि सामने बंदूक़ लेकर तैनात हैं कुछ शांति के पैरोकार

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  10. सुंदर, सार्थक क्षणिकाएं

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  11. एक से बढ़कर एक क्षणिकाएं। बहुत- बहुत शुभकामनायें आपको।

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  12. कड़वे सच को उजागर करती सुन्दर क्षणिकाएं।

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  13. वाह!गज़ब कहा दी।
    एक-एक क्षणिका अंतस को बिंधती।
    सादर

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  14. जहाँ सीधे सीधे
    मर्म पर की जाय चोट
    और झकझोर दिया जाय
    उसे अमृता जी का
    ब्लॉग कहते हैं .....

    हर क्षणिका गहन भब भरी ।

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  15. हर क्षणिका एक सारगर्भित, सटीक, संदेश भरी ।

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  16. सुंदर प्रस्तुति । बहुत बधाइयाँ ।

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  17. आपको पढ़ना मेरा सुकून रहा है ... एक सच का सामना थोड़ी राहत देता है

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  18. समय की भयावहता को कितने सुंदर भावों से प्रस्तुत किया है अमृता जी, यथार्थ की डोर थामें बहुत गहन क्षणिकाएं।

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  19. बहुत बहुत सुन्दर क्षणिकाएं |

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  20. सुन्दर मर्मस्पर्शी सृजन!

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  21. सम्प्रति सच को बयां करती हुई..यथार्थ बोध से लबरेज।

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