जहाँ किसी की परवाह भी
चलन में अब नहीं रहा
वहाँ जिंदा होने की गवाही
लाउडस्पीकर पर
साँस लेना हो गया है
***
जहाँ फूँक-फूँक कर भी
छाँछ पीने पर
मुँह में फफोले पड़ जाए तो
वाकई हम कुछ ज्यादा ही
संवेदनशीलता की दौर में हैं
***
जहाँ सबों से जुड़ते हुए
खुद से टूटने का
ज्यादा अहसास होता हो
वहाँ भयावह सच्चाइयों से
नजर न मिलाना ही बेहतर है
***
जहाँ भावनाऐं
हाथी के दांत से भी
बेशकीमती हो गई हों
वहाँ वक्त के फटेहाली पर
यकीन कर लेना चाहिए
***
जहाँ दो गज जमीन पर भी
इतनी मार-काट मची हो
वहाँ सभ्येतर ठहाकों की गूंज
शांति की बातों से
कहीं ज्यादा डराती हैं .
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 02 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजबरदस्त.. सभी क्षणिकाएं उत्कृष्ट है.. एक से बढ़कर एक परिदृश्यों का जीवंत चित्रण।
ReplyDeleteसस्नेह
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ सितंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जहाँ फूँक-फूँक कर भी
ReplyDeleteछाँछ पीने पर
मुँह में फफोले पड़ जाए तो
वाकई हम कुछ ज्यादा ही
संवेदनशीलता की दौर में हैं
जिन्दगी के अनुभवों से उपजी बहुत ही गहन मननीय क्षणिकाएं।
सुंदर क्षणिकाएं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर क्षणिकाएं।
ReplyDeleteअनेक मुहावरे का नया प्रयोग अच्छा लगा
ReplyDeleteसटीक
ReplyDeleteवक्त के नाज़ुक हालातों पर पैनी नज़र और उससे उपजे चंद नायाब तजुर्बे, वाक़ई अब शांति की बात पर यक़ीन करना मुश्किल है, क्योंकि सामने बंदूक़ लेकर तैनात हैं कुछ शांति के पैरोकार
ReplyDeleteसुंदर, सार्थक क्षणिकाएं
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक क्षणिकाएं। बहुत- बहुत शुभकामनायें आपको।
ReplyDeleteकड़वे सच को उजागर करती सुन्दर क्षणिकाएं।
ReplyDeleteवाह!गज़ब कहा दी।
ReplyDeleteएक-एक क्षणिका अंतस को बिंधती।
सादर
जहाँ सीधे सीधे
ReplyDeleteमर्म पर की जाय चोट
और झकझोर दिया जाय
उसे अमृता जी का
ब्लॉग कहते हैं .....
हर क्षणिका गहन भब भरी ।
हर क्षणिका एक सारगर्भित, सटीक, संदेश भरी ।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति । बहुत बधाइयाँ ।
ReplyDeleteआपको पढ़ना मेरा सुकून रहा है ... एक सच का सामना थोड़ी राहत देता है
ReplyDeleteसमय की भयावहता को कितने सुंदर भावों से प्रस्तुत किया है अमृता जी, यथार्थ की डोर थामें बहुत गहन क्षणिकाएं।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर क्षणिकाएं |
ReplyDeleteसुन्दर मर्मस्पर्शी सृजन!
ReplyDeleteसम्प्रति सच को बयां करती हुई..यथार्थ बोध से लबरेज।
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