गैर जरुरी लोगों का
यह फलता-फूलता धंधा है
जिनके लिए
नैतिकता या आदर्श
लंगड़ा , लूला और अंधा है
जो जात-जात चिल्लाते हैं
और खुलेआम घात लगाते हैं
पर उनके जात का ही
कोई ठिकाना नहीं
फिर तो उनकी बात का
क्या होगा ठिकाना सही ?
जिंदगी में जिसे कुछ और
करने लायक नहीं लगता
वही जनता की छाती पर चढ़
उसका नायक है बनता....
तब तो
तमाशा पर तमाशा चलता रहता है
और जनता के लिए
नमक का बताशा बनता रहता है....
उनसे जरा पूछो कि--
आप लेफ्ट जायेंगे या राइट ?
तो जवाब आएगा--
हम तो भाई स्ट्रेट चलेंगे
और जो सामने होगा उसे गले लगा
किसी को स्ट्रेस न देंगे
फिर उनसे पूछो कि--
आप किस पार्टी में रहेंगे ?
तो जवाब आएगा--
अरे! किसी भी पार्टी में रहेंगे
पर पॉलटीशियन ही कहलायेंगे
और जब हमने ही तो आपके लिए
ये सारा रुल-रेगुलेशन बनाया है
इसलिए आप बस
हमें कोस-कोस कर ही सही
हमपर ही बटन दबाएंगे .
यह फलता-फूलता धंधा है
जिनके लिए
नैतिकता या आदर्श
लंगड़ा , लूला और अंधा है
जो जात-जात चिल्लाते हैं
और खुलेआम घात लगाते हैं
पर उनके जात का ही
कोई ठिकाना नहीं
फिर तो उनकी बात का
क्या होगा ठिकाना सही ?
जिंदगी में जिसे कुछ और
करने लायक नहीं लगता
वही जनता की छाती पर चढ़
उसका नायक है बनता....
तब तो
तमाशा पर तमाशा चलता रहता है
और जनता के लिए
नमक का बताशा बनता रहता है....
उनसे जरा पूछो कि--
आप लेफ्ट जायेंगे या राइट ?
तो जवाब आएगा--
हम तो भाई स्ट्रेट चलेंगे
और जो सामने होगा उसे गले लगा
किसी को स्ट्रेस न देंगे
फिर उनसे पूछो कि--
आप किस पार्टी में रहेंगे ?
तो जवाब आएगा--
अरे! किसी भी पार्टी में रहेंगे
पर पॉलटीशियन ही कहलायेंगे
और जब हमने ही तो आपके लिए
ये सारा रुल-रेगुलेशन बनाया है
इसलिए आप बस
हमें कोस-कोस कर ही सही
हमपर ही बटन दबाएंगे .
आपकी भावनाओं को व्यक्त करने की प्रतिभा कविता पढने से ही पता चलती है,सबसे बड़ी बात है की आप उसका सदुपयोग करती हैं और ये भी एक सच्चे कवि या कवियत्री की पहचान है,
ReplyDeleteभेंड़-बकरी से कम नहीं आँकते हमारे नेता जनता को...और जनता भी जात-पात-बिरादरी से ऊपर नहीं निकल पा रही है...सामयिक कविता...बधाई...
ReplyDeleteजनता की कमजोरी का फायदा उठाना आज के नेता बहुत अच्छी तरह जानते हैं...बहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं समसामयिक प्रस्तुति.
ReplyDeleteबिल्कुल सच कहा आपने ...... सार्थक व सशक्त प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत खूब ... एक नेता ने कहा हम हमेशा एक ही दल में रहे हैं और रहेंगे ताउम्र ... पत्कार ने प्रभावित हो के पूछा अच्छा ... कौन से दल में हैं आप ... नेता जी बोले सत्तारुड़ दल में ...
ReplyDeleteसामयिक और सार्थक रचना ...
समसामयिक और सटीक है ...... हालात ही ऐसे बना दिए हैं .....
ReplyDeleteराजनीति का दुरूह पथ हुआ विचित्र पथ। नमक का बताशा ध्यानाकर्षण प्रयोग रहा।
ReplyDeleteसच.....जाने क्या मजबूरी है !!
ReplyDeleteनमक के बताशे का स्वाद मुँह को कड़वा कर गया...
अनु
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-04-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
ReplyDeleteआभार
बहुत खूब! सुन्दर और प्रासंगिक।
ReplyDeleteसामयिक एवं सार्थक रचना ! कभी-कभी सोचती हूँ नेता पैदाइशी ही ऐसे शातिर होते हैं या पोलीटीशियन का चोगा पहनने के बाद उनमें यह बदलाव आ जाता है ! बहुत सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteनमक का बताशा … जानलेवा भी और मीठा-मीठा भ्रम भी …
ReplyDeleteराजनीति इसी को तो कहते हैं..अमृता जी, जो राजनीति का खेल खेलता है उसे ये गुर आ ही जाते हैं..
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ReplyDeleteलाद ली है लोई तो क्या करेगा कोई.!
खारापन भर गये मुँह में !
सही कहा सभी एक थाली के चट्ठे-बट्ठे ... किसीको भी चुनलो भाई, यहाँ कुआं तो वहां है खाई ...
ReplyDeleteवर्तमान परिस्थितियों और आज के चुनावी माहौल पर सार्थक व सटीक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeletevery nice..............
ReplyDeleteअरे गज़ब का वार करती हैं आप शब्दों से...
ReplyDeleteआपकी ऐसी बातों को खूब एन्जॉय करता हूँ ! :)
"और जनता के लिए
ReplyDeleteनमक का बताशा बनता रहता है...."
यही सच्ची बात है. हमारे सामाजिक तानेबाने में जो ऊँचनीच है वही हमारे चुनावी सिस्टम के मूल में बैठ कर विषबेल बोती है. बढ़िया कविता.
चुनाव आते ही मतलबपरस्ती कैसे इनके 'अंतरात्मा' को आवाज़ दे जाती है कि झट से बहती गंगा में हाथ धो लेते हैं. और पार्टियां भी वैसी ही....'दरियादिली' दिखाते हुए झट से गला लगाए जाते हैं विरोधियों को.
ReplyDeleteनमक का बतासा
ReplyDeleteकहाँ से लातीं आप आप नए नए शब्द चुन चुन कर
क्या सभी पालिटिशियन खराब ही होते हैं.?.
आपकी टिप्पणी ने यहाँ पहुँचा दिया और बहुत कुछ जानदार शानदार पढ़ने को मिला... जब तक आदर्श और नैतिकता अपाहिज रहेंगे तब तक जनता पर भी उसका बुरा असर रहेगा..
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