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Thursday, March 27, 2014

अबकी बार....

अब तो
कदम-कदम पर ही कुरुक्षेत्र है
और पल-पल के खरवबें हिस्से को भी
कैप्चर पर कैप्चर करता हुआ
संजयों का टेलीस्कोपी नेत्र है
हर कैरेक्टर से लेकर हर कास्ट में
वही दुर्लभ-सा मिलाप है
और हर निगेटिव का हर पॉजिटिव के लिए
अट्रैक्शन वाला भी वही विलाप है
ओवर एक्साइटेड वेद व्यास जी
या तो पायरेसी के शिकार हुए हैं
या फिर उनके दिमाग पर ही
विदेशी वायरस का हमला हुआ है
ऊपर से इतना चकर-मकर सुन कर
चूहे की पूंछ पकड़ कर अपने गणेश को
चकर-घिरनी सा खोज रहे हैं
पर लगता है कि गणेश जी
कोड ऑफ कंडक्ट के डर से
आई-फोन या लैप-टॉप से ही
चढ़ाये लड्डू को एक्सेप्ट कर रहे हैं
दूसरी तरफ ये भी लगता है कि
सोशल साइट्स के व्यूह में
प्यारे कृष्णा का फंसना तो तय है
और आगे जो शकुनी-दुर्योधन डिक्लेयर होंगे
वे तो युधिष्ठिर-अर्जुन को
पब्लिकली लाइक करके अपना
अगला विजन क्लीयर करेंगे
और ये भी लगता है कि
अबकी बार द्रौपदी भी
कंडीशनर के ओल्ड कंडीशन से
हाइड होकर कम्प्रोमाइज कर लिया है
और अकेले ही गंगोत्री में जाकर
बालों में शैम्पू करने का प्लान बना चुकी है .


17 comments:

  1. बहुत सुंदर ।
    आज के बाद नहीं आऊंगा क्योंकि आपको किसी के ब्लाग पर जा कर उसकी हौसला अफजाई करते हुऐ नहीं देखा । माफी चाहूँगा ।
    \

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  2. अमृता जी सुशील जी की बात पर ध्‍यान दें। आपका अनुसमर्थन उन्‍हें प्रेरित करेगा।

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  3. बेहद दिलचस्प है .. पर पूरी तरह इसे समझना काफी मुश्किल होगा ..

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  4. और हर निगेटिव का हर पॉजिटिव के लिए
    अट्रैक्शन वाला भी वही विलाप है
    ओवर एक्साइटेड वेद व्यास जी
    या तो पायरेसी के शिकार हुए हैं
    या फिर उनके दिमाग पर ही
    विदेशी वायरस का हमला हुआ है

    क्या बात है !!!

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  5. क्या बात है? जवाब नहीं..

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  6. स्थापित परिभाषायें बदलती जा रही हैं, अब तो। सुन्दर रचना।

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  7. वाह..क्या पैनी नजर है आपकी और आधुनिक उपमाएं भी चुन चुन कर लायी हैं..अब कृष्ण कौन है और द्रौपदी कौन...लोग अटकलें लगाने को स्वतंत्र हैं..

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  8. हर युग की अपनी समझदारी होती है. शायद इसे की आधुनिकता कह दिया जाता है. यह भरपूर मिली है आप की इस कविता में. बहुुत खूब.

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  9. तकनिकी में जो फंस गए हैं सब ... यहाँ संवेदनाएं नहीं बटन काम करने लगे हैं ... अच्छा व्यंग है ...

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  10. काव्य में भी फ्यूज़न.....!
    लेकिन कविता में हास्य के साथ-साथ जबर्दस्त व्यंग्य भी है....थोड़ी कन्फ्यूजि़याने वाली भी है ...:-)

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  11. लाज़वाब और सटीक व्यंग...आने वाले समय का सटीक पूर्वानुमान....बहुत खूब..

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  12. अबकी बार...सच! कई मायनों में दिलचस्प.

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  13. आपकी कविता बहुत ही अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

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  14. यह कविता दोबारा पढ़ी है. मिथक का आधुनिकीकरण हुआ है और उसकी शैली भी आधुनिक शब्दावली पहन कर आई है.

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  15. तब तो धर्म की स्थापना का प्रश्न था, मगर अब तो कन्फ्यूज़न ही कन्फ्यूज़न क्रिएट हो रखा है, डिसाइड करना ही मुश्किल है कि कौन किस ओर है. एक्चुअली में सब मिक्स हो रखा है ;)

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  16. वाह !!! टेक्नॉलॉजी को माईथोलोजी से क्या खूब कनैक्ट किया है आपने अच्छी कोशिश की है।

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