जब सब भोंपू लगाकर
गली-गली घूमकर
सबके दिमाग को फिराकर
बार-बार कहते हैं कि
गंदगी को जड़ से साफ़ करने वाले
वे ही सबसे अच्छे मेहतर हैं
तो ऐसी हालत में
मेरा चुप रहना ही बेहतर है....
गंदगी , गंदगी , गंदगी
उठते-बैठते , चलते-फिरते
सोते-जागते , खाते-पीते
बस गंदगी को ही
वे ऐसे बताते हैं कि जैसे
उनकी जिंदगी जिंदगी न होकर
कोई जादुई झाड़ू बन गयी हो
और मूंठ को पकड़े-पकड़े
दूसरों की किसी भी सफाई पर
मानो उनकी मुट्ठी ही तन गयी हो....
मेहतर से महावत बनना
उन्हें बहुत खूब आता है
तब तो अपने हाथी को
जहाँ-तहाँ भगा-भगा कर
वे साबित करते हैं कि
उन्हें भौं-भौं की आवाज
क्यों इतना भाता है....
वे मानते हैं कि
भौंकने वाले भी भौंक-भौंक कर
अपना दुम ज़रूर हिलाएंगे
जो नहीं हिलाएंगे वे भी भला
उनसे बचकर कहाँ जायेंगे ?
उन्हें ये भी लगता है कि
भौंकने वाले उनके भुलावे में आकर
अब काटना भूल गये हैं
पर वे खुद भूल जाते हैं कि
वे काटने के साथ-साथ
अब चाटना भी भूल गये हैं.....
उफ़! जितनी गंदगी नहीं है
उससे कहीं ज्यादा तो
अब किसिम-किसिम के मेहतर हैं
जो बड़ी सफाई से
खुद ही गंदगी फैला-फैला कर
दावा करते हैं कि
वे किसी से किसी मामले में
कहीं से भी न कमतर हैं
तो ऐसी हालत में
मेरा चुप रहना ही बेहतर है .
गली-गली घूमकर
सबके दिमाग को फिराकर
बार-बार कहते हैं कि
गंदगी को जड़ से साफ़ करने वाले
वे ही सबसे अच्छे मेहतर हैं
तो ऐसी हालत में
मेरा चुप रहना ही बेहतर है....
गंदगी , गंदगी , गंदगी
उठते-बैठते , चलते-फिरते
सोते-जागते , खाते-पीते
बस गंदगी को ही
वे ऐसे बताते हैं कि जैसे
उनकी जिंदगी जिंदगी न होकर
कोई जादुई झाड़ू बन गयी हो
और मूंठ को पकड़े-पकड़े
दूसरों की किसी भी सफाई पर
मानो उनकी मुट्ठी ही तन गयी हो....
मेहतर से महावत बनना
उन्हें बहुत खूब आता है
तब तो अपने हाथी को
जहाँ-तहाँ भगा-भगा कर
वे साबित करते हैं कि
उन्हें भौं-भौं की आवाज
क्यों इतना भाता है....
वे मानते हैं कि
भौंकने वाले भी भौंक-भौंक कर
अपना दुम ज़रूर हिलाएंगे
जो नहीं हिलाएंगे वे भी भला
उनसे बचकर कहाँ जायेंगे ?
उन्हें ये भी लगता है कि
भौंकने वाले उनके भुलावे में आकर
अब काटना भूल गये हैं
पर वे खुद भूल जाते हैं कि
वे काटने के साथ-साथ
अब चाटना भी भूल गये हैं.....
उफ़! जितनी गंदगी नहीं है
उससे कहीं ज्यादा तो
अब किसिम-किसिम के मेहतर हैं
जो बड़ी सफाई से
खुद ही गंदगी फैला-फैला कर
दावा करते हैं कि
वे किसी से किसी मामले में
कहीं से भी न कमतर हैं
तो ऐसी हालत में
मेरा चुप रहना ही बेहतर है .
सूरज चाँद गुजर जाते हैं
ReplyDeleteगम केवल रह जाते हैं
जाने कितनी बार नयन से
खुद आंसू बह जाते हैं
हम हारे सा एक जुआरी
चुप रहने की आदत है
टुकड़ों में चलते हैं अक्सर
टुकड़ों में बह जाते हैं
हम आपसे सहमत हैं, हम भी चुप हो जाते हैं।
ReplyDeleteसमझ रहे हो हमको भोला
ReplyDeleteऐसा हर अरमान छोड़ दो
बार-बार दे सकोगे धोखा
तुम ये भूल नादान छोड़ दो.... सुन्दर रचना … हार्दिक शुभकामनायें
चुप रहना ही बेहतर होगा .......राजनिति और किस स्तर तक जायेगी...
ReplyDeleteआज के हालात बयां करती सशक्त रचना .....
गंदगी जुटाने वाले किसिम-किसिम के मेहतर की सफाई तो भगवान भरोसे है... हम सब चुप ही तो हैं.. सब छलावे के लोकतंत्र में अपना नाम-दाम पीट रहे हैं..
ReplyDeleteजो गरजते हैं, वे बरसते नहीं
ReplyDeleteचुप होकर दिल-दिमाग की रक्षा ज़रूरी है
सच कहा आपने ............ चुप रहना ही बेहतर है
ReplyDeleteचुप रहकर भी तो कितना कुछ कह ही दिया आपने..सदके इस चुप्पी पर..
ReplyDeleteइस चुप्पी का अब कोई मायना नहीं ... अप तो चीख चीख कर उनकी सचाई बताने का समय है ... अर्थपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteकब तक हम चुप रहेंगे...अभी तक हम चुप ही तो रहे हैं..अब तो बोलना ही होगा...बहुत सटीक रचना...
ReplyDeleteचुप ही नहीं हो पाते हैं
ReplyDeleteवहाँ कोई नहीं सुनता
तो यहाँ चले आते हैं ।
बहुत सुंदर ।
बहुत खूब.
ReplyDeleteबस........
चुप रहना ही बेहतर है.
उनके शब्दों पर भी तो कंट्रोल लगे !
ReplyDeleteह्रास की हद कब तक देखते रहेंगे ..... कब तक जनता चुप रहेगी ?
ReplyDeleteपर चुप भी कब तक रह सकते हैं।
ReplyDeleteवो मारा झाड़ू वाले को :-)
ReplyDeleteक्हां तो बस खामोश अंतिम नज़ारा देखेंगे
ReplyDeleteHeadstrong.......waah..!!!!
ReplyDeleteआपके हाथ में कलम है...बोलने से बेहतर है अपने विचारों को लिपिबद्ध करना...
ReplyDeleteऔर कोई राह ही कहाँ है ..... ? विचारणीय बात
ReplyDeleteकुछ परिणाम आने में देर लगाते हैं. शायद कुछ साल लगे.
ReplyDeleteअच्छा व्यंग्य। अब तो जी बस जो भी मेहतर चुना जाय, वो वाकई का मेहतर निकले, वार्ना तो सब के सब जो दावेदार हैं, बाद में पता चलता है कि वे स्वयं ही गंदगी फैलाने वाले हैं.
ReplyDeleteबहुत चुप रह लिए अब सहा भी तो नहीं जाता कई बार चुप रहना भी सामने वाले को शय दे जाता है।
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