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Thursday, November 28, 2013

शुक्रिया ! बोलती हूँ .....

इससे ज्यादा
बेचारगी का आलम
और क्या होता है
कि बेतरतीब से बिखरे
बेजुबान हर्फों को
बड़ी तरकीब से
सजाने के बावजूद
मतलब की बस्ती में बस
मातम पसरा होता है....

वो उँगलियों के सहारे
कागज़ पर खड़ी कलम
इस हाले-दिल को
खूब जानती है
और अपनी मज़बूरी पर
कोई मलाल न करते हुए
घिसट-घिसट कर ही सही
दिए हुकुम को बस मानती है....

कोई तो आकर
मुझको समझाए
कि महज दिल्लगी नहीं है
उम्दा शायरी करना
गर करना ही है तो पहले
इक दर्द का दरिया खोदो
फिर उसमें कूद-कूदकर
सीखो ख़ुदकुशी करके मरना ....

शायद हर्फ़-दर-हर्फ़
महल बनाने वालों ने ही
मुझे इसतरह बहकाया है
व मेरे नाजुक लबों पर
उस 'आह-वाह' का
असली-नकली जाम लगाकर
हाय! किसकदर परकाया है....

असलियत जो भी हो
पर ये कलमकशी भी
फ़ितरतन मैकशी से
जरा सा भी कम नहीं है
और ये बेखुदी
आहिस्ता-आहिस्ता ही मगर
इस खुदी को ही पी जाए
तो कोई ग़म नहीं है....

अब बस
इतनी सी ख्वाहिश है कि
इस महफ़िल की आवाज में
हर किसी को सुनाई देती रहे
अपनी आवाज
वैसे भी क्या ज़ज्ब करने पर
कभी छुपा है किसी का
शौके-बेपनाह का राज ?

आज वही राज जो खुला ही है
उसे फिर से मैं खोलती हूँ
कि इस महफ़िल को
गुलजार करने वालों !
आप सबों को दिल से
इन बेतरतीब हर्फों के सहारे ही
शुक्रिया ! शुक्रिया ! शुक्रिया !
शुक्रिया ! बोलती हूँ .
 

33 comments:

  1. जैसे-जैसे रचना के साथ बढ़ती गयी ..मेरी मुस्कान इंच-दर-इंच भागती रही .
    कहीं व्यंग की महक तो कहीं भोलापन (?) ....मज़ा आ गया
    एक शुक्रिया हमारी ओर से भी बनता है जी

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  2. स्वागत है......

    आपका भी शुक्रिया इस बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिए.....
    अनु

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  3. अद्भूत एक एक शब्द दिल को गलाती पिघलाती चली गयी

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  4. vaah...............vaah.........vaah....................hamari or se bhi itni pyari rachna ke liye shukriya................

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  5. कभी-कभी भावों का ज्वार सा उठता है विचार-सिन्धु में में, लगता है कभी ख़त्म ना होने पाएगा. कभी कभी घोर शान्ति छा जाती है . रचनाकर्म में सातत्य सचमुच आसान नहीं. पर यह अगर बादा है तो आपकी बादाख्वारी निर्बाध चले. बहरहाल हम कहेंगे -धन्यवाद ! बहुत-बहुत धन्यवाद!

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  6. प्रिय ब्लागर
    आपको जानकर अति हर्ष होगा कि एक नये ब्लाग संकलक / रीडर का शुभारंभ किया गया है और उसमें आपका ब्लाग भी शामिल किया गया है । कृपया एक बार जांच लें कि आपका ब्लाग सही श्रेणी में है अथवा नही और यदि आपके एक से ज्यादा ब्लाग हैं तो अन्य ब्लाग्स के बारे में वेबसाइट पर जाकर सूचना दे सकते हैं

    welcome to Hindi blog reader

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  7. बेतरतीब से बिखरे
    बेजुबान हर्फों को
    बड़ी तरकीब से
    सजाने के बावजूद
    मतलब की बस्ती में बस
    मातम पसरा होता है....
    ***
    यही तो हो रहा है हमारे चारो तरफ़, आज, कल, हर रोज़!
    सहज-सरल शब्दों में गहरी बातें ...

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  8. मतलब ढूँढने चलें तो यहाँ इस सृष्टि का भी कोई नहीं है...कृष्ण की लीला है बस..तो अपन भी बेमतलब ही सही...कुछ करते चलें आखिर कुछ तो हरेक को करना है न...

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  9. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीया-

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  10. रचना बनती रहे तो यहाँ भी महफ़िल गुलजार होती रहेगी............. खूबसूरत शुक्रिया ........

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  11. ये हुऩर भी कम नहीं .... शुक्रिया बोलने का लहज़ा
    हर्फ-दर-हर
    एक और शुक्रिया कहता हुआ :)

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  12. शुक्रिया ! बोलती हूँ .....
    इससे ज्यादा
    बेचारगी का आलम
    और क्या होता है
    कि बेतरतीब से बिखरे
    बेजुबान हर्फों को
    बड़ी तरकीब से
    सजाने के बावजूद
    मतलब की बस्ती में बस
    मातम पसरा होता है....
    बहुत अच्छी कविता |आभार

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  13. बहुत ही बेहतरीन, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  14. शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया ओ बेतरतीब हर्फों से तरतीब मतलब निकालनेवाले तेरा लख-लख शुक्रिया।

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  15. असलियत जो भी हो, बेतरतीब हर्फों के सहारे शुक्रिया ..शुक्रिया .................

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  16. कोमल भावो की अभिवयक्ति ..

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  17. शुक्रिया ! बोलती हूँ .....
    इससे ज्यादा
    बेचारगी का आलम
    और क्या होता है
    कि बेतरतीब से बिखरे
    बेजुबान हर्फों को
    बड़ी तरकीब से
    सजाने के बावजूद
    मतलब की बस्ती में बस
    मातम पसरा होता है....

    वो उँगलियों के सहारे
    कागज़ पर खड़ी कलम
    इस हाले-दिल को
    खूब जानती है
    और अपनी मज़बूरी पर
    कोई मलाल न करते हुए
    घिसट-घिसट कर ही सही
    दिए हुकुम को बस मानती है....

    कोई तो आकर
    मुझको समझाए
    कि महज दिल्लगी नहीं है
    उम्दा शायरी करना
    गर करना ही है तो पहले
    इक दर्द का दरिया खोदो
    फिर उसमें कूद-कूदकर
    सीखो ख़ुदकुशी करके मरना ....

    शायद हर्फ़-दर-हर्फ़
    महल बनाने वालों ने ही
    मुझे इसतरह बहकाया है
    व मेरे नाजुक लबों पर
    उस 'आह-वाह' का
    असली-नकली जाम लगाकर
    हाय! किसकदर परकाया है....

    असलियत जो भी हो
    पर ये कलमकशी भी
    फ़ितरतन मैकशी से
    जरा सा भी कम नहीं है
    और ये बेखुदी
    आहिस्ता-आहिस्ता ही मगर
    इस खुदी को ही पी जाए
    तो कोई ग़म नहीं है....

    बहुत खूब बाँधा है भाव और अर्थ को नज़म सा प्रवाह है रचना में।

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  18. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!

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  19. बेहद ज़रूरी है कि अपनी आवाज़ सुनाई देती रहे, आजकल राज़ तो खुला होता है रोशनीनुमा हर्फों में, बस ज़हन ने काले परदे डाल रखें हैं.
    हमेशा की तरह बेहतरीन अभिव्यक्ति।
    और हाँ, आपको भी शुक्रिया कि आपकी अभिव्यक्तियों से कहीं ढ़ेर सा सुकून मिलता रहा है.

    सादर
    मधुरेश

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  20. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 30/11/2013 को मेरा ये मन पंछी बन उड़ जाता है...( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 052)
    - पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....

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  21. असलियत जो भी हो
    पर ये कलमकशी भी
    फ़ितरतन मैकशी से
    जरा सा भी कम नहीं है
    और ये बेखुदी
    आहिस्ता-आहिस्ता ही मगर
    इस खुदी को ही पी जाए
    तो कोई ग़म नहीं है....इस बात पर तो तालियों के साथ शुक्रिया बनता है। :-)

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  22. सुभानल्लाह .......... कितने तीर अभी बाकी है छुपे रुस्तम तेरे तरकश में ………

    कोई तो आकर
    मुझको समझाए
    कि महज दिल्लगी नहीं है
    उम्दा शायरी करना
    गर करना ही है तो पहले
    इक दर्द का दरिया खोदो
    फिर उसमें कूद-कूदकर
    सीखो ख़ुदकुशी करके मरना ....

    हाय ……… हम सुनाये हाल-ए-दिल और वो फरमाएं 'क्या' ????

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  23. तह से निकले भाव अपने अनुकूल आश्रय पा जायें।

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  24. behud sarthak or gudh bhav se saze har shabd....

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  25. सुन्दर अभिव्यक्ति !
    नई पोस्ट वो दूल्हा....

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  26. बहुत-बहुत शुक्रिया. शुक्रगुजार होने के इस अंदाज़-ए-बयाँ के लिए.

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  27. बेहतरीन काव्य /शायरी के लिए हम भी कह देते हैं " शुक्रिा "

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  28. बेजुबान हर्फों को
    बड़ी तरकीब से
    सजाने के बावजूद
    मतलब की बस्ती में बस
    मातम पसरा होता है....
    कितनी सरलता से गहन भाव अभिव्यक्त किये हैं। हमारा भी शुक्रिया कहना बनता है !

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  29. इस एक शुक्रिया में पूरा इतिहास समेट दिया ...
    कौन कहता है हर्फ़ बेज़ुबां होते हैं ...

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  30. असलियत जो भी हो
    पर ये कलमकशी भी
    फ़ितरतन मैकशी से
    जरा सा भी कम नहीं है
    और ये बेखुदी
    आहिस्ता-आहिस्ता ही मगर
    इस खुदी को ही पी जाए
    तो कोई ग़म नहीं है....
    बहुत खूब अमृता जी

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  31. साधो ...... आ. अमृता जी ....
    यूँ आसान होता हकेलना भीतर,
    जहर को कलमकशी के लिए ;
    हर जवाब अमृत होता आदम के,
    जी लेने की आशिकी के लिए |
    ~ प्रदीप यादव ~

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  32. आज वही राज जो खुला ही है
    उसे फिर से मैं खोलती हूँ
    कि इस महफ़िल को
    गुलजार करने वालों !
    आप सबों को दिल से
    इन बेतरतीब हर्फों के सहारे ही
    शुक्रिया ! शुक्रिया ! शुक्रिया !
    शुक्रिया ! बोलती हूँ
    शुक्रिया कहने का लाजवाब अंदाज | शुक्रिया अमृता जी |

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