सत्य को सत्यता की सत्ता से भी
उपलक्षित करने के लिए
श्रेष्ठ को श्रेष्ठता की श्रेणी से भी
उपदर्शित करने के लिए
और सुन्दर को सुंदरता की समृद्धि से भी
उपपादित करने के लिए
विभिन्न रूपों और विभिन्न स्तरों पर
शब्दों एवं अर्थों के सहभावों व समभावों की
अभिनव अभिव्यक्ति अनवरत होते रहना चाहिए
और चिर प्रतिद्वंद्वी अन्धकार मिटता रहे
इसलिए कवित्व-दीप सतत जलते रहना चाहिए....
आदि काल से ही कवि को
कालज्ञ , सर्वज्ञ , द्रष्टा अथवा ऋषि
अमम आत्मनिष्ठा से कहा जाता है
प्रमाणत: उसकी रचनात्मक कल्पनाशीलता में
आकाश की व्याप्ति भी वाङ्मुख होकर
निर्बाध बहा जाता है
इसलिए तो भिन्न-भिन्न आयामों से
सम्पूर्ण मानवीय ज्ञान को
कवित्व के आलोक में पढ़ा जाता है
इस स्वयं प्रकाशित एवं आप्त उद्घाटित
सहजानुभूति के लिए
हर ह्रदय में प्रेमानुराग प्रज्वलित होते रहना चाहिए
और ये चिर प्रतिद्वंद्वी अन्धकार मिटता रहे
इसलिए कवित्व-दीप सतत जलते रहना चाहिए....
मन उद्दाम भाव-भूमि से लेकर
उद्दिष्ट अनुभव-आकाश तक कुलांचे भरता है
अपने ही चाल की विशिष्टता से विस्तार पा
चमकृत होता रहता है
और अकथ आनंद-आस्वाद को
पल-प्रतिपल पुन: पुन: पाता रहता है
इस प्रेय उद्गार एवं गेय मल्हार की
अभिव्यक्ति के लिए
अप्रतिम तथा अमान्य संवेग
सदैव प्रस्फुटित होते रहना चाहिए
और चिर प्रतिद्वंद्वी अन्धकार मिटता रहे
इसलिए कवित्व-दीप सतत जलते रहना चाहिए....
अत: अतिशयोक्ति नहीं है कि
कवित्व ही
समस्त वस्तुओं का मूल है
अमृत-सा ये अमर फूल है
ये चेतना का चिंतन है
तो अस्तित्व का ये कीर्तन है
प्रेम का ये समर्पण है
तो विरह में भी मिलन है
ये समृद्धि का प्रहसन है
तो दरिद्रों का भी धन है
दुःख में ये धैर्य है
तो सुख का शौर्य है
हर पाश का ये प्रतिपाश है
तो अन्धकार में प्रकाश है.....
दीपों के त्योहार से हमें और क्या चाहिए ?
बस ये चिर प्रतिद्वंद्वी अन्धकार मिटता रहे
इसलिए कवित्व-दीप सतत जलते रहना चाहिए .
( उपलक्षित---संकेतित , उपदर्शित---व्याख्या करना
उपपादित---सिद्ध करना , वाङ्मुख---ग्रंथ की भूमिका
उद्दाम---स्वतंत्र , उद्दिष्ट---चाहा हुआ )
उपलक्षित करने के लिए
श्रेष्ठ को श्रेष्ठता की श्रेणी से भी
उपदर्शित करने के लिए
और सुन्दर को सुंदरता की समृद्धि से भी
उपपादित करने के लिए
विभिन्न रूपों और विभिन्न स्तरों पर
शब्दों एवं अर्थों के सहभावों व समभावों की
अभिनव अभिव्यक्ति अनवरत होते रहना चाहिए
और चिर प्रतिद्वंद्वी अन्धकार मिटता रहे
इसलिए कवित्व-दीप सतत जलते रहना चाहिए....
आदि काल से ही कवि को
कालज्ञ , सर्वज्ञ , द्रष्टा अथवा ऋषि
अमम आत्मनिष्ठा से कहा जाता है
प्रमाणत: उसकी रचनात्मक कल्पनाशीलता में
आकाश की व्याप्ति भी वाङ्मुख होकर
निर्बाध बहा जाता है
इसलिए तो भिन्न-भिन्न आयामों से
सम्पूर्ण मानवीय ज्ञान को
कवित्व के आलोक में पढ़ा जाता है
इस स्वयं प्रकाशित एवं आप्त उद्घाटित
सहजानुभूति के लिए
हर ह्रदय में प्रेमानुराग प्रज्वलित होते रहना चाहिए
और ये चिर प्रतिद्वंद्वी अन्धकार मिटता रहे
इसलिए कवित्व-दीप सतत जलते रहना चाहिए....
मन उद्दाम भाव-भूमि से लेकर
उद्दिष्ट अनुभव-आकाश तक कुलांचे भरता है
अपने ही चाल की विशिष्टता से विस्तार पा
चमकृत होता रहता है
और अकथ आनंद-आस्वाद को
पल-प्रतिपल पुन: पुन: पाता रहता है
इस प्रेय उद्गार एवं गेय मल्हार की
अभिव्यक्ति के लिए
अप्रतिम तथा अमान्य संवेग
सदैव प्रस्फुटित होते रहना चाहिए
और चिर प्रतिद्वंद्वी अन्धकार मिटता रहे
इसलिए कवित्व-दीप सतत जलते रहना चाहिए....
अत: अतिशयोक्ति नहीं है कि
कवित्व ही
समस्त वस्तुओं का मूल है
अमृत-सा ये अमर फूल है
ये चेतना का चिंतन है
तो अस्तित्व का ये कीर्तन है
प्रेम का ये समर्पण है
तो विरह में भी मिलन है
ये समृद्धि का प्रहसन है
तो दरिद्रों का भी धन है
दुःख में ये धैर्य है
तो सुख का शौर्य है
हर पाश का ये प्रतिपाश है
तो अन्धकार में प्रकाश है.....
दीपों के त्योहार से हमें और क्या चाहिए ?
बस ये चिर प्रतिद्वंद्वी अन्धकार मिटता रहे
इसलिए कवित्व-दीप सतत जलते रहना चाहिए .
( उपलक्षित---संकेतित , उपदर्शित---व्याख्या करना
उपपादित---सिद्ध करना , वाङ्मुख---ग्रंथ की भूमिका
उद्दाम---स्वतंत्र , उद्दिष्ट---चाहा हुआ )
बहुत सुन्दर................उत्कृष्ट रचना!!!!
ReplyDeleteदीपोत्सव की अनेकों शुभकामनाएं!!!
अनु
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteशुभकामनायें आदरेया-
बहुत सुंदर, हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
चिर प्रतिद्वंद्वी अन्धकार मिटता रहे
ReplyDeleteइसलिए कवित्व-दीप सतत जलते रहना चाहिए....
अहा! क्या बात कहीं है आपने इन पंक्तियो में
शब्दश: भावमय करती अभिव्यक्ति
दीपोत्सव की अनंत शुभकामनाएँ
अभिव्यक्ति से कवित्व के इतने उजले उदाहरण प्रस्तुत कर दिए गए हैं कि कविता में निहित उपकारी, ऊर्जस्वित, सकार भावनाएं पद्य विधा के उद्देश्य की परिभाषा बन गईं हैं।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसाधो ... सधी हुई रचना के लिए,
ReplyDeleteमेरे साधुवाद प्रेषित करता हूँ ... आ. अमृता जी ..
उत्कृष्ट सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई की पात्र हैं आप ...!!
ReplyDeleteसच में ....इतने सुन्दर व दिव्य पोस्ट को पढ़ने के बाद भला हमें और क्या चाहिए .....इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि ये शब्द दीवाली का सबसे अनमोल उपहार है.................
ReplyDeleteसशक्त भाव सम्प्रेषण उजला पक्ष आया सामने जीवन का। रुक मत लिखता जा।
ReplyDeleteदिवाली मुबारक
सत्य को सत्यता की सत्ता से भी
उपलक्षित करने के लिए
श्रेष्ठ को श्रेष्ठता की श्रेणी से भी
उपदर्शित करने के लिए
और सुन्दर को सुंदरता की समृद्धि से भी
उपपादित करने के लिए
विभिन्न रूपों और विभिन्न स्तरों पर
शब्दों एवं अर्थों के सहभावों व समभावों की
अभिनव अभिव्यक्ति अनवरत होते रहना चाहिए
और चिर प्रतिद्वंद्वी अन्धकार मिटता रहे
इसलिए कवित्व-दीप सतत जलते रहना चाहिए....
सत्य को सत्यता की सत्ता से भी
ReplyDeleteउपलक्षित करने के लिए
श्रेष्ठ को श्रेष्ठता की श्रेणी से भी
उपदर्शित करने के लिए
और सुन्दर को सुंदरता की समृद्धि से भी
उपपादित करने के लिए
विभिन्न रूपों और विभिन्न स्तरों पर
शब्दों एवं अर्थों के सहभावों व समभावों की
अभिनव अभिव्यक्ति अनवरत होते रहना चाहिए
और चिर प्रतिद्वंद्वी अन्धकार मिटता रहे
इसलिए कवित्व-दीप सतत जलते रहना चाहिए....
प्रज्ज्वलित रहे यह दीप सदा. शुभकामनायें.
ReplyDeleteदीप जलाओ प्रेम के, भरो नेह का तेल।
ReplyDeleteअपने भारत में रहे, जन-गण-मन में मेल।।
--
सुप्रभात...।
आरोग्यदेव धन्वन्तरी महाराज की जयन्ती
धनतेरस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
बहुत सुंदर,..............दीपोत्सव की शुभकामनाएँ...........
ReplyDeleteकवयित्री को सपरिवार दीपमालिका की अनंत असीम शुभकामनायें!
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति ,,,
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएं.
RECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना
दीप पर्व आपको सपरिवार शुभ हो !
ReplyDeleteकल 03/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
बहुत ही बढ़िया शब्द चयन है आपका.... कविता का भाव भी बढ़िया.
ReplyDeleteदीपोत्सव कि शुभकामनाएं....
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !!
Happy deepawali.
ReplyDeletehttp://www.parikalpnaa.com/2013/11/blog-post_4.html
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति !
दीपावली की शुभकामनाएं और बधाइयां अमृता जी.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग कि नयी पोस्ट आपके और आपके ब्लॉग के ज़िक्र से रोशन है । वक़्त मिलते ही ज़रूर देखें ।
ReplyDeletehttp://jazbaattheemotions.blogspot.in/2013/11/10-4.html
अति अति सुन्दर ……य़े कवित्व दीप सदा यूँ ही प्रज्वल्लित रहे यही दुआ है |
ReplyDeleteआपकी ये रचना मैंने फेसबुक पर भी साझा की है आप भी देखें - https://www.facebook.com/imranansari84
ReplyDeleteकमाल !!! लेखनी में प्रभावी आकर्षण है ...
ReplyDeleteअभिव्यक्त होना व्यष्टि का समष्टि से जुड़ना है कनेक्ट होना है। कवित्व शिखर है अपना ही।
ReplyDeleteसत्य उद्घाटित हुआ . अति सुन्दर .
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