इतना न लिखो मुझे
लोग जान जायेंगे
फिर अर्थों के अधीर अधरों पर
अपना कान लगायेंगे
व शब्दों में घुली सुरभि से ही मुझे
ऐसे पहचान जायेंगे
कि रिक्त स्थानों में भी
अबुध अनुमान लगायेंगे....
बेरोक-टोक फिर तो मैं
बह न पाऊँगी
कोई टोक दे तो कुछ
कह न पाऊँगी
उन चुभती नजरों को तब मैं
सह न पाऊँगी
और बिन चिढ़े भी तो
रह न पाऊँगी.....
मेरी चिढन की चिनक से भी
लोग जान जायेंगे
फिर प्रचल पीड़ा के पदचाप में भी
अपना कान लगायेंगे
और गुप-चुप रोती वेदना को भी
ऐसे पहचान जायेंगे
कि सुषुप्त साँसों के शुष्क-गान में भी
अयुक्त अनुमान लगायेंगे....
बोलने से उथली हो हर बात
बह जाती है
जो न भी कहना चाहो वो भी
कह जाती है
कौड़ियों के उलाहना को भी जाने कैसे
सह जाती है
और न कहो तो ही वह कीमती
रह जाती है....
इसलिए इतना न लिखो मुझे
लोग जान जायेंगे
फिर अर्थों के अधीर अधरों पर
अपना कान लगायेंगे .
लोग जान जायेंगे
फिर अर्थों के अधीर अधरों पर
अपना कान लगायेंगे
व शब्दों में घुली सुरभि से ही मुझे
ऐसे पहचान जायेंगे
कि रिक्त स्थानों में भी
अबुध अनुमान लगायेंगे....
बेरोक-टोक फिर तो मैं
बह न पाऊँगी
कोई टोक दे तो कुछ
कह न पाऊँगी
उन चुभती नजरों को तब मैं
सह न पाऊँगी
और बिन चिढ़े भी तो
रह न पाऊँगी.....
मेरी चिढन की चिनक से भी
लोग जान जायेंगे
फिर प्रचल पीड़ा के पदचाप में भी
अपना कान लगायेंगे
और गुप-चुप रोती वेदना को भी
ऐसे पहचान जायेंगे
कि सुषुप्त साँसों के शुष्क-गान में भी
अयुक्त अनुमान लगायेंगे....
बोलने से उथली हो हर बात
बह जाती है
जो न भी कहना चाहो वो भी
कह जाती है
कौड़ियों के उलाहना को भी जाने कैसे
सह जाती है
और न कहो तो ही वह कीमती
रह जाती है....
इसलिए इतना न लिखो मुझे
लोग जान जायेंगे
फिर अर्थों के अधीर अधरों पर
अपना कान लगायेंगे .
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (04-10-2013) को "लोग जान जायेंगे (चर्चा - 1388)
ReplyDelete" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
कुछ तो लोग कहेंगे...लोगों का काम है कहना....:-)
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना!!!
अनु
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 04/10/2013 को
ReplyDeleteकण कण में बसी है माँ
- हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः29 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
लोग ज़ालिम हैं , हरेक बात का ताना देंगे........उनकी बातों का जरा सा भी असर मत लेना ....वरना चेहरे के तासुर से समझ जाएंगे....
ReplyDeleteबहुत खूब अमृता...
कहना और लिखना जरूरी बातों का ही करना चाहिए। शब्द शस्त्र है, शब्द पानी है, शब्द बिजली है... और न जाने क्या क्या है। शस्त्र के चलने से खुन बहेगा, पानी के समान हो नियंत्रण खो बैठेगा, बिजली हो तो झटका लगेगा। अर्थात् शब्दों का इस्तेमाल संभालकर ही करना चाहिए। 'लोग जान जाएंगे' के माध्यम से आपने शब्द की ताकत और गलत शब्दों की कमजोरी पर बखुबी प्रकाश डाला है।
ReplyDeleteसुख जताने से कम हो जाने का डर, प्रकृति तो इतनी निर्मम कभी रही ही नहीं।
ReplyDeleteलिखेंगे नहीं अनुभव करेंगे
ReplyDeleteकान नहीं मन लगाएंगे...................सशक्त अमृताभिव्यक्ति।
बहुत उत्कृष्ट और सशक्त अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट.....
ReplyDeleteकि रिक्त स्थानों में भी
ReplyDeleteअबुध अनुमान लगायेंगे....
बड़ा प्यारा अनुरोध !
ReplyDeleteशुभकामनायें !
बहुत खूब ,शानदार
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है...
ReplyDeleteबात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी...जाने दो...
ReplyDeleteइसलिए इतना न लिखो मुझे
ReplyDeleteलोग जान जायेंगे
फिर अर्थों के अधीर अधरों पर
अपना कान लगायेंगे .
बहुत खूब अमृता जी पर हम तो कान लगाए बैठे ही रहेंगे
रचनाकार के अंतर्द्वंद का सुन्दर चित्रण. कई बार रचनाओं की अलग व्याख्या अच्छी लगती है और कई बार जब उसके बेतुके अर्थ लगाए जाते हैं तो असहजता का अनुभव भी होता है. लेकिन मेरा मानना है कि जो कवि को समझते हैं वो उसके मन की स्वछंदता को स्वीकार भी करते हैं और उसका आदर भी.
ReplyDeleteप्रेम गोपन रहे भी कैसे जब न में भी अन्तर्निहित रहती है हाँ। बहुत खूब उड़ेला है मन के भावों और अनुरागों को गोपन को। सुन्दर रचना।
ReplyDeleteइतना ना लिखो लोग जान जायेंगे !
ReplyDeleteक्या बात !
यह भय होता है अक्सर ...... कितने सुंदर ढंग से बात कही.....
ReplyDeleteबधाई ब्लॉगर मित्र ..सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगों की सूची में आपका ब्लॉग भी शामिल है |
ReplyDeletehttp://www.indiantopblogs.com/p/hindi-blog-directory.html
बहुत ही नायाब रचना.
ReplyDeleteरामराम.
bahut sundar ...........man ki baat kahi hai aapne
ReplyDeletewAHH ADBHUT BHAW SUNDAR RACHNA BADHAYI
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर। लोगों का इतना डर क्यूं हो, प्रेम निडर भी तो बनाता है।
ReplyDeletenayab!!
ReplyDeletedil se kiya hua anurodh....
itna na likho :)
सुदूर भाव यात्रा को सामाजिक प्रव्रित्तिओ में आरोपित करती सच्चे मन की भावुक अभिव्यक्ति जिसमे अंतर की कोमलता का निश्छल प्रवाह मोहक-मनमोहक है बाल वचन के सदृश पवित्र और निर्मल...... बहुत दिनों बाद मिली पढने को ऐसी रचना. बधाई... ह्रदय से बधाई ..........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ,सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteनवीनतम पोस्ट मिट्टी का खिलौना !
नई पोस्ट साधू या शैतान
निःशब्द करती रचना सचमुच कुछ तो लोग कहेंगे
ReplyDeleteप्रेम का विस्तार लिए सुंदर रचना अमृता जी ...!!
Deleteवाह अमृता जी मजा आ गया... शुक्रिया एक बेहतर रचना के लिए
ReplyDeleteइसलिए इतना न लिखो मुझे
ReplyDeleteलोग जान जायेंगे
फिर अर्थों के अधीर अधरों पर
अपना कान लगायेंगे ."
सुन्दरम मनोहरम -
गोपन ही रहने दो प्रिये !
अपने अन्दर ही रहने दो।
कुछ भी न कह पाऊँ ,
ऐसे ही रहने दो।
शशशss!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द रचना..
ReplyDeleteवाह बहुत ही खुबसूरत रचना |
ReplyDeleteफिर अर्थों के अधीर अधरों पर
ReplyDeleteअपना कान लगायेंगे .
ये पंक्तियाँ रचनात्मकता का उम्दा नमूना हैं जो बहुत कम पढ़ने-देखने में आता है. यह आपकी रचनाओं का विशिष्ट मुहावरा है.
आदरणीय निहार रंजन जी की टिप्पणी से अलग कुछ भी नहीं.....
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