Social:

Thursday, October 3, 2013

लोग जान जायेंगे....

इतना न लिखो मुझे
लोग जान जायेंगे
फिर अर्थों के अधीर अधरों पर
अपना कान लगायेंगे
व शब्दों में घुली सुरभि से ही मुझे
ऐसे पहचान जायेंगे
कि रिक्त स्थानों में भी
अबुध अनुमान लगायेंगे....

बेरोक-टोक फिर तो मैं
बह न पाऊँगी
कोई टोक दे तो कुछ
कह न पाऊँगी
उन चुभती नजरों को तब मैं
सह न पाऊँगी
और बिन चिढ़े भी तो
रह न पाऊँगी.....

मेरी चिढन की चिनक से भी
लोग जान जायेंगे
फिर प्रचल पीड़ा के पदचाप में भी
अपना कान लगायेंगे
और गुप-चुप रोती वेदना को भी
ऐसे पहचान जायेंगे
कि सुषुप्त साँसों के शुष्क-गान में भी
अयुक्त अनुमान लगायेंगे....

बोलने से उथली हो हर बात
बह जाती है
जो न भी कहना चाहो वो भी
कह जाती है
कौड़ियों के उलाहना को भी जाने कैसे
सह जाती है
और न कहो तो ही वह कीमती
रह जाती है....

इसलिए इतना न लिखो मुझे
लोग जान जायेंगे
फिर अर्थों के अधीर अधरों पर
अपना कान लगायेंगे .


    

37 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (04-10-2013) को "लोग जान जायेंगे (चर्चा - 1388)
    "
    पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.

    ReplyDelete
  2. कुछ तो लोग कहेंगे...लोगों का काम है कहना....:-)

    बहुत प्यारी रचना!!!

    अनु

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 04/10/2013 को
    कण कण में बसी है माँ
    - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः29
    पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra


    ReplyDelete
  4. लोग ज़ालिम हैं , हरेक बात का ताना देंगे........उनकी बातों का जरा सा भी असर मत लेना ....वरना चेहरे के तासुर से समझ जाएंगे....

    बहुत खूब अमृता...

    ReplyDelete
  5. कहना और लिखना जरूरी बातों का ही करना चाहिए। शब्द शस्त्र है, शब्द पानी है, शब्द बिजली है... और न जाने क्या क्या है। शस्त्र के चलने से खुन बहेगा, पानी के समान हो नियंत्रण खो बैठेगा, बिजली हो तो झटका लगेगा। अर्थात् शब्दों का इस्तेमाल संभालकर ही करना चाहिए। 'लोग जान जाएंगे' के माध्यम से आपने शब्द की ताकत और गलत शब्दों की कमजोरी पर बखुबी प्रकाश डाला है।

    ReplyDelete
  6. सुख जताने से कम हो जाने का डर, प्रकृति तो इतनी निर्मम कभी रही ही नहीं।

    ReplyDelete
  7. लिखेंगे नहीं अनुभव करेंगे
    कान नहीं मन लगाएंगे...................सशक्‍त अमृताभिव्‍यक्ति।

    ReplyDelete
  8. बहुत उत्कृष्ट और सशक्त अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  9. सार्थक पोस्ट.....

    ReplyDelete
  10. कि रिक्त स्थानों में भी
    अबुध अनुमान लगायेंगे....

    ReplyDelete
  11. बड़ा प्यारा अनुरोध !
    शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  12. बहुत खूब ,शानदार

    ReplyDelete
  13. बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी...जाने दो...

    ReplyDelete
  14. इसलिए इतना न लिखो मुझे
    लोग जान जायेंगे
    फिर अर्थों के अधीर अधरों पर
    अपना कान लगायेंगे .

    बहुत खूब अमृता जी पर हम तो कान लगाए बैठे ही रहेंगे

    ReplyDelete
  15. रचनाकार के अंतर्द्वंद का सुन्दर चित्रण. कई बार रचनाओं की अलग व्याख्या अच्छी लगती है और कई बार जब उसके बेतुके अर्थ लगाए जाते हैं तो असहजता का अनुभव भी होता है. लेकिन मेरा मानना है कि जो कवि को समझते हैं वो उसके मन की स्वछंदता को स्वीकार भी करते हैं और उसका आदर भी.

    ReplyDelete
  16. प्रेम गोपन रहे भी कैसे जब न में भी अन्तर्निहित रहती है हाँ। बहुत खूब उड़ेला है मन के भावों और अनुरागों को गोपन को। सुन्दर रचना।

    ReplyDelete
  17. इतना ना लिखो लोग जान जायेंगे !
    क्या बात !

    ReplyDelete
  18. यह भय होता है अक्सर ...... कितने सुंदर ढंग से बात कही.....

    ReplyDelete
  19. बधाई ब्लॉगर मित्र ..सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगों की सूची में आपका ब्लॉग भी शामिल है |
    http://www.indiantopblogs.com/p/hindi-blog-directory.html

    ReplyDelete
  20. बहुत ही नायाब रचना.

    रामराम.

    ReplyDelete
  21. bahut sundar ...........man ki baat kahi hai aapne

    ReplyDelete
  22. wAHH ADBHUT BHAW SUNDAR RACHNA BADHAYI

    ReplyDelete
  23. बहुत ही सुंदर। लोगों का इतना डर क्यूं हो, प्रेम निडर भी तो बनाता है।

    ReplyDelete
  24. सुदूर भाव यात्रा को सामाजिक प्रव्रित्तिओ में आरोपित करती सच्चे मन की भावुक अभिव्यक्ति जिसमे अंतर की कोमलता का निश्छल प्रवाह मोहक-मनमोहक है बाल वचन के सदृश पवित्र और निर्मल...... बहुत दिनों बाद मिली पढने को ऐसी रचना. बधाई... ह्रदय से बधाई ..........

    ReplyDelete
  25. बहुत सुन्दर रचना ,सुन्दर अभिव्यक्ति !
    नवीनतम पोस्ट मिट्टी का खिलौना !
    नई पोस्ट साधू या शैतान

    ReplyDelete
  26. निःशब्द करती रचना सचमुच कुछ तो लोग कहेंगे

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रेम का विस्तार लिए सुंदर रचना अमृता जी ...!!

      Delete
  27. वाह अमृता जी मजा आ गया... शुक्रिया एक बेहतर रचना के लिए

    ReplyDelete
  28. इसलिए इतना न लिखो मुझे
    लोग जान जायेंगे
    फिर अर्थों के अधीर अधरों पर
    अपना कान लगायेंगे ."

    सुन्दरम मनोहरम -

    गोपन ही रहने दो प्रिये !

    अपने अन्दर ही रहने दो।

    कुछ भी न कह पाऊँ ,

    ऐसे ही रहने दो।

    ReplyDelete
  29. बहुत सुन्दर शब्द रचना..

    ReplyDelete
  30. वाह बहुत ही खुबसूरत रचना |

    ReplyDelete
  31. फिर अर्थों के अधीर अधरों पर
    अपना कान लगायेंगे .
    ये पंक्तियाँ रचनात्मकता का उम्दा नमूना हैं जो बहुत कम पढ़ने-देखने में आता है. यह आपकी रचनाओं का विशिष्ट मुहावरा है.

    ReplyDelete
  32. आदरणीय निहार रंजन जी की टिप्पणी से अलग कुछ भी नहीं.....

    ReplyDelete