Social:

Saturday, April 6, 2013

किसकी और कितनी बात करूँ ?





बेजुबान लुटने वालों की
कुछ बात करूँ या कि
बेख़ौफ़ लूटने वालों की...
बेकुसूर नुचे खालों की या
बेरहमी से खाल नोचने वालों की...

बेदाम पर बिकने वालों की या
बेहुरमती बेचने वालों की...
लश्करे-जुल्म सहने वालों की या कि
जुल्म-दर-जुल्म बाँटने वालों की...
शीशों के दरकते कतारों की या फिर
उन पत्थर के दिलदारों की...

किसकी और कितनी बात करूँ ?

तबक-दर-तबक बात कर लेने से
ये सिलसिला जो थम जाता तो
बेहयाई से गम खिलाने वाले
ख़ामोशी से खुद ही गम खाते...
अपने खाल के दर्द को
जिस शिद्धत से वे पहचानते
हर खाल के दर्द को भी
उसी शिद्धत से मुजर्र्ब दर्द मानते...

पर इक साँस भी चलती है तो
तेज़ , तड़पती तलवार की तरह...
काफिर बलाएँ यहाँ बढ़ती हैं
खौफ़नाक आजार की तरह...
हवा में हरवक्त मौत है मंडराती
बेदर्दी से बेदाम खालों पर ही
पुरजोर आँधियाँ है बरसाती...

कौन किससे पूछे कि
हाय! ये क्या हो रहा है ?
कहकहा लगा कहर खुद बता रहा है...

अब तो हमारे हिस्से बस यही है
कि पीटे छाती , फाड़े गला
बस बचाते हुए अपना खाल
और निकालते रहें बातों से माल...
उसे खींच कर दूर तक ले जाएँ
मजमा लगाएँ , महफ़िल सजाएँ
कफ़न फाड़कर क़यामत को बुलाएँ...

खुद को ज़िंदा रखते हुए
या तो लुटने वालों में या फिर
लूटने वालों में शामिल हो जाएँ .



42 comments:

  1. खुद को ज़िंदा रखते हुए
    या तो लुटने वालों में या फिर
    लूटने वालों में शामिल हो जाएँ .....

    वाकई घोर असमंजस की स्थिति. सच में कई बार ऐसे हालत में कुछ सूझता नहीं. अच्छा, बुरा, सही या गलत. कैफ़ी साब का शेर याद रहा है-

    बेलचे लाओ, खोलो ज़मीं की तहें
    मैं कहाँ हूँ दफ़न कुछ पता तो चले

    ReplyDelete
  2. सटीक रेखांकन आज के दौर का .... बातें सारी विचारणीय हैं

    ReplyDelete
  3. किसकी और कितनी बात करूँ ?

    मौन हैं.....मूक दर्शक बने देख रहें हैं....बह रहे हैं धार में...

    अनु

    ReplyDelete
  4. अब तो हमारे हिस्से बस यही है....
    खारे रेगिस्तान .....तपता समंदर और चीत्कार करती अनकही वेदना ....

    ReplyDelete
  5. बढ़िया शीशा दिखाया है ..
    बधाई !

    ReplyDelete
  6. कौन किससे पूछे कि
    हाय! ये क्या हो रहा है ?
    कहकहा लगा कहर खुद बता रहा है...
    ...वाकई.....!!!

    ReplyDelete
  7. मजमा लगाएँ , महफ़िल सजाएँ,,

    कफ़न फाड़कर क़यामत को बुलाएँ...बहुत बेहतरीन पंक्तियाँ !!!

    RECENT POST: जुल्म

    ReplyDelete
  8. बहुत ही सटीक प्रस्तुति,आभार.

    ReplyDelete
  9. bhavpurn aur behtareen rachna, khaaskar, nishkarsh ke roop me likhi aakhiri panktiyan hum sabhi ke saamne ek prashn chhod deti hain! bahut khoob.

    ReplyDelete
  10. सामाजिक परिपेक्ष्य पर सटीक रचना ....

    ReplyDelete
  11. बहुत कठिन है इनमे शामिल ना होकर भी खुद को जिंदा रखना...गहन भाव... आभार

    ReplyDelete
  12. सच को प्रस्तुत करती सटीक अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  13. मार्मिक......आज तो आपने अवाक कर दिया......क्या कहूँ लफ्ज़ नहीं हैं बहुत बहुत बेहतरीन है ये रचना.........हैट्स ऑफ इसके लिए।

    ReplyDelete
  14. बहुत सुन्दर रचना |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    ReplyDelete
  15. निशब्द करती रचना
    शुभकामनायें !!

    ReplyDelete
  16. खुद को ज़िंदा रखते हुए
    या तो लुटने वालों में या फिर
    लूटने वालों में शामिल हो जाएँ ....बहुत सुन्दर रचना |

    ReplyDelete
  17. शीशों के दरकते कतारों की या फिर
    उन पत्थर के दिलदारों की......इसके अलावा क्‍या टिप्‍पणी करुं।

    खुद को ज़िंदा रखते हुए
    या तो लुटने वालों में या फिर
    लूटने वालों में शामिल हो जाएँ .......इन में सब कुछ है क्‍या कहूं।

    ReplyDelete
    Replies
    1. कुटिल त्रासदियों पर उल्‍ल्‍ोखनीय कवितामय प्रहार। अंत:करण का ज्‍वालामुखी विद्रूपताओं, समस्‍याओं से तप कर फूट पड़ा है जैसे।

      Delete
  18. कौन किससे पूछे कि
    हाय! ये क्या हो रहा है ?
    कहकहा लगा कहर खुद बता रहा है...
    बहुत सही
    .... अनुपम भाव लिये बेहतरीन प्रस्‍तुति

    ReplyDelete
  19. एक तीसरा मार्ग भी है...और उस मार्ग पर चलना सीखना ही होगा..यथार्थवादी चित्रण !

    ReplyDelete
  20. अमरिता जी वर्तमान वास्तविकताओं का बारिकी से बडे आक्रोश के साथ वर्णन किया है। यह आक्रोश समाज के प्रत्येक का है, अतः आपकी कविता सबकी भावनाओं का वर्णन करने में सक्षम है।
    'अब तो हमारे हिस्से बस यही है
    कि पीटे छाती , फाड़े गला
    बस बचाते हुए अपना खाल
    और निकालते रहें बातों से माल...' यह पंक्तियां आपके वाणी के पैनेपन को दिखाती है।

    ReplyDelete
  21. सुन्दर भाव लिये बेहतरीन प्रस्‍तुति

    ReplyDelete
  22. तुम्हे जो पसंद हो वही बात करेगें ,बस
    बाकी तो बकवास है :-)

    ReplyDelete
  23. किसकी और कितनी बात करू....यदि सोचने बैठे तो ..बस ऐसे ही चलता है सब अनुत्तरित

    ReplyDelete
  24. सुन्दर और सटीक चित्रण .........समाज के हर तबके से सवाल करती और उत्तर देती रचना

    ReplyDelete
  25. कौन किससे पूछे?
    उत्तर किसी के पास नहीं और तटस्थ रहना भी मुश्किल !

    ReplyDelete
  26. खुद को ज़िंदा रखते हुए
    या तो लुटने वालों में या फिर
    लूटने वालों में शामिल हो जाएँ .

    यथार्थवादी चित्रण करती सुंदर कविता.

    ReplyDelete
  27. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार (07-04-2013) के चर्चा मंच 1207 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

    ReplyDelete
  28. बहुत सुंदर रचना...

    ReplyDelete
  29. लूटने ओर लूटने वालों में कोई खास फर्क नहीं है आज ... समय देख के मुखौटा बदलते रहते हैं ...
    उम्दा रचना है ...

    ReplyDelete
  30. बेहतर है चुप रहें मन के कपाट खोल दें - समाधान ऊपरवाला देता ही देता है

    ReplyDelete
  31. शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया .आपके टिपियाने का बेबसी का यथास्थितिवाद से बंद रास्तों का सुन्दर बयान है यह रचना .

    ReplyDelete
  32. अब तो हमारे हिस्से बस यही है
    कि पीटे छाती , फाड़े गला
    बस बचाते हुए अपना खाल
    और निकालते रहें बातों से माल...
    उसे खींच कर दूर तक ले जाएँ
    मजमा लगाएँ , महफ़िल सजाएँ
    कफ़न फाड़कर क़यामत को बुलाएँ...

    खुद को ज़िंदा रखते हुए
    या तो लुटने वालों में या फिर
    लूटने वालों में शामिल हो जाएँ .

    निःशब्द करते जीवन की सच्चाई को बयां करते .....

    ReplyDelete
  33. वर्तमान जीवन की कशमकश को सुंदरता से उकेरा है, वाह् !!!!

    ReplyDelete
  34. कहकहा लगा कर कहर खुद बता रहा है ...
    सकारात्मक बातों के बीच भी जो हो रहा हो आसपास , उसे नजरंदाज कब तक किया जाए , चुपके से तहरीरों में उतर जाता है !

    ReplyDelete
  35. सहनशक्ति की परीक्षा न हो..तभी तक सहन है।

    ReplyDelete
  36. बहुत सुन्दर रचना |

    ReplyDelete
  37. खुद को ज़िंदा रखते हुए
    या तो लुटने वालों में या फिर
    लूटने वालों में शामिल हो जाएँ .


    यही जीवन रह गया है

    ReplyDelete