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Monday, October 1, 2012

न जाने क्यों ... ?


अपनी  ही  कुछ बंदिश में  न जाने क्यों
सीमित -दमित से ही रहते हैं कुछ लोग
इक  छोटा -सा अपना ही  आकाश लिए
क्यों  भ्रमित-चकित  रहते हैं कुछ लोग

चाँद -सूरज भी  पल दो पल के लिए ही
रोज तो  आते  हैं  पर यूँ ही चले जाते हैं
ख़ामोश -सी स्याह रात  को  ओढ़े लोग
अपनी जिक्र-फिक्र में ही भटक जाते हैं

उफ़ ! अकेलेपन का ये कैसा इन्तहां कि
दिल के धड़कने की , कोई आवाज़ नहीं
रोग तो लाखों हैं  ,यूँ  ही जीने के वास्ते
पर ग़म भूलाने को , कोई साज ही नहीं

बवंडर की तरह  और  तूफ़ान की तरह
हर तरफ ही देखो तो ,ये  क्या उठ रहा है?
अपने ही सींखचों  में ऐसे घूम -घूमकर
सब आकाश ही  इतना क्यों घुट रहा है ?

पानी के  बबूलों से बस  मोहब्बत करके
कलक कर  कागज की किश्ती बनाते हैं
अपने-अपने आग को ही अंदर छुपाकर
दावे से  दूसरों पर , कैसे तिलमिलाते हैं

छलावा और दिखावा की  ऐसी नुमाईश
करने वाला  खुद ही  क्या कह सकता है ?
चालाकी से चंद चांदमारी किये बगैर ही
ऐसा आकाश तो भला कैसे रह सकता है ?

अपनी  सारी महफ़िल को  वीराना करके
सबब पूछते  हैं  सब , हर एक से  रोने का
किस्मत  की किलाबंदी करने के बावजूद
खौफ़ रहता ही है  उन्हें  खुद को खोने का

बंदिशों के बंदिखाने में , बंधकर आकाश
सच -सच कहो तो  कितना तड़फड़ाता है
भ्रमों के रेशमी जालों को ही बुन -बुनकर
उसी में खुद ही इतना जो उलझ जाता है

अकेलेपन से कभी अपना दामन छुड़ाकर
अस्ल इंसानियत का भरकर एकअहसास
जब नजरें मिलेंगी उस बड़े आकाश से तो
सीमित न  रह  पायेगा  कोई  भी आकाश .


35 comments:

  1. जब नजरें मिलेंगी उस बड़े आकाश से तो
    सीमित न रह पायेगा कोई भी आकाश ...
    ...................................................
    सुन्दर और लाजवाब रचना

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  2. हमें तो अकेलेपन में न जाने कितना विश्व प्रतीक्षारत मिलता है।

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  3. Amrita,

    KISI KE EKAKIK JEEVAN KAA VARNAN BAHUT SAPASHT SE KIYAA.

    Take care

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  4. बहुत सुन्दर रचना अमृता जी ........आपने सही चित्रण किया है

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  5. खुद में चकित,भ्रमित,विशिष्टता का एहसास लिए चलना
    बिना कुछ किये खुद को स्थापित मानना -
    ... अकेलेपन से कभी अपना दामन छुड़ाकर
    अस्ल इंसानियत का भरकर एकअहसास
    जब नजरें मिलेंगी उस बड़े आकाश से तो
    सीमित न रह पायेगा कोई भी आकाश .

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  6. अकेलेपन से कभी अपना दामन छुड़ाकर
    अस्ल इंसानियत का भरकर एकअहसास
    जब नजरें मिलेंगी उस बड़े आकाश से तो
    सीमित न रह पायेगा कोई भी आकाश,,,,

    अहसासों का बहुत सुंदर चित्रण किया आपने,,,अमृता जी,,,

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  7. दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूंढे...

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  8. इंसानियत के आकाश को आकाश से विस्तृत करके देखने का अदाज-ए-बयां पसंद आया। जीवन के कई आयामों की घुटन को समेटती कविता। जिससे निजात का विकल्प भी कविता की नदी में प्रतिबिंबित होता है। स्वागत है।

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  9. अपनी सारी महफ़िल को वीराना करके
    सबब पूछते हैं सब , हर एक से रोने का
    किस्मत की किलाबंदी करने के बावजूद
    खौफ़ रहता ही है उन्हें खुद को खोने का

    बहु आयामी अभिव्यक्ति

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  10. बंदिशों के बंदिखाने में , बंधकर आकाश
    सच -सच कहो तो कितना तड़फड़ाता है
    भ्रमों के रेशमी जालों को ही बुन -बुनकर
    उसी में खुद ही इतना जो उलझ जाता है

    सत्य को कहती सार्थक रचना .... इंसान अपने ही बनाए जाले में उलझता जाता है ।

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  11. बंदिशों के बंदिखाने(बंदी -खाने ) में , बंधकर आकाश
    सच -सच कहो तो कितना तड़फड़ाता है
    भ्रमों के रेशमी जालों को ही बुन -बुनकर
    उसी में खुद ही इतना जो उलझ जाता है

    अकेलेपन से कभी अपना दामन छुड़ाकर
    अस्ल(असल ) इंसानियत का भरकर एकअहसास
    जब नजरें मिलेंगी उस बड़े आकाश से तो
    सीमित न रह पायेगा कोई भी आकाश .

    बेशक कवि को मात्राओं की छूट लेने का हक़ हासिल है लेकिन असल ,असली .असलियत /असल /नक़ल प्रयोग हैं उर्दू में .बाकी आप विदूषी हैं .सोच समझ के तौल के ही प्रयोग किया होगा .

    कवियित्री ने .

    रचना बेहद सशक्त है परिसीमन के बाँध टूटते ज़रूर हैं .सैलाब आता ज़रूर है भावना का ज्वार भी सारी हदबंदी तब चुक जाती है .खुद से खुद की .आप आशु कवियित्री का दर्ज़ा हैसल करने की देहलीज़ पे खड़ीं हैं दो लाइनें एक पूरा प्रबंध रच दिया आपने भाव का ,अनुभाव का ,विराग का ,और वैयक्तिक सुराग का .ओढ़े हुए सुरक्षा कवच को बींधना बड़े कौशल का काम होता है .

    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    सोमवार, 1 अक्तूबर 2012
    ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
    ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी

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  12. अकेलेपन से कभी अपना दामन छुड़ाकर
    अस्ल इंसानियत का भरकर एकअहसास
    जब नजरें मिलेंगी उस बड़े आकाश से तो
    सीमित न रह पायेगा कोई भी आकाश .
    सच बात है ....अपनी अंतर दृष्टि ही सीमा से असीम की ओर ले जाती है हमें .....

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  13. अपनी सारी महफ़िल को वीराना करके
    सबब पूछते हैं सब , हर एक से रोने का
    किस्मत की किलाबंदी करने के बावजूद
    खौफ़ रहता ही है उन्हें खुद को खोने का

    अमृता जी आपका काव्य चित्रण अच्छा लगा । मेरी नई पोस्ट 'बहती गंगा' पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

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  14. अपनी सारी महफ़िल को वीराना करके
    सबब पूछते हैं सब , हर एक से रोने का
    किस्मत की किलाबंदी करने के बावजूद
    खौफ़ रहता ही है उन्हें खुद को खोने का


    ...जब नजरें मिलेंगी उस बड़े आकाश से तो
    सीमित न रह पायेगा कोई भी आकाश .

    बहुत बढ़िया

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  15. सुन्दर और लाजवाब रचना

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  16. अकेलेपन से कभी अपना दामन छुड़ाकर
    अस्ल इंसानियत का भरकर एकअहसास
    जब नजरें मिलेंगी उस बड़े आकाश से तो
    सीमित न रह पायेगा कोई भी आकाश .

    ....बहुत सच..यही है एक उपाय अकेलापन भगाने का..बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति..

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  17. बंदिशों के बंदिखाने में , बंधकर आकाश
    सच -सच कहो तो कितना तड़फड़ाता है
    भ्रमों के रेशमी जालों को ही बुन -बुनकर
    उसी में खुद ही इतना जो उलझ जाता है
    बहुत सुंदर, क्या बात



    जब भी समय मिले, मेरे नए ब्लाग पर जरूर आएं..

    http://tvstationlive.blogspot.in/2012/09/blog-post.html?spref=fb

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  18. मिश्रित भवनाएँ ,कुछ प्रस्फुटित होती कुछ घुटती सी -कुछ मचलती आकाश छूने को उद्यत !

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  19. पानी के बबूलों से बस मोहब्बत करके
    कलक कर कागज की किश्ती बनाते हैं
    अपने-अपने आग को ही अंदर छुपाकर
    दावे से दूसरों पर , कैसे तिलमिलाते हैं
    वाह....

    बहुत सुन्दर रचना...
    अनु

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  20. अपनी सारी महफ़िल को वीराना करके
    सबब पूछते हैं सब , हर एक से रोने का
    किस्मत की किलाबंदी करने के बावजूद
    खौफ़ रहता ही है उन्हें खुद को खोने का...
    कितना सच ...बहुत ही खुबसूरत शेर..

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  21. भ्रमों के रेशमी जालों को ही बुन -बुनकर
    उसी में खुद ही इतना जो उलझ जाता है!!
    भ्रम के रेशमी जाल में सिमटा आसमान विस्तृत होने की बात जोहता है !
    बहुत खूब !

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  22. अकेलेपन से कभी अपना दामन छुड़ाकर
    अस्ल इंसानियत का भरकर एकअहसास
    जब नजरें मिलेंगी उस बड़े आकाश से तो
    सीमित न रह पायेगा कोई भी आकाश .म्म्बहुत सुन्दर भाव..बहुत खूब !

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  23. आसमान के विस्तार से जुड़कर मन का विस्तार बहुत कुछ समेटना चाहता है।

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  24. बेहतरीन भावार्थ समेटे एक अच्छी कविता |

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  25. komal bhawnaon ko samete ek utkkrist rachana anmol si.

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  26. बंदिशों के बंदिखाने में , बंधकर आकाश
    सच -सच कहो तो कितना तड़फड़ाता है
    भ्रमों के रेशमी जालों को ही बुन -बुनकर
    उसी में खुद ही इतना जो उलझ जाता है

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  27. बंदिशों के बंदिखाने में , बंधकर आकाश
    सच -सच कहो तो कितना तड़फड़ाता है
    भ्रमों के रेशमी जालों को ही बुन -बुनकर
    उसी में खुद ही इतना जो उलझ जाता है

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  28. अपनी ही कुछ बंदिश में न जाने क्यों
    सीमित -दमित से ही रहते हैं कुछ लोग
    .....satya....satya ....aur satya ....

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  29. पानी के बबूलों से बस मोहब्बत करके
    कलक कर कागज की किश्ती बनाते हैं
    हिंदी फ्लेवर की इतनी खूबसूरत नज़्म पहली बार पढ़ी है. बहुत ख़ूब.

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  30. अकेलेपन से कभी अपना दामन छुड़ाकर
    अस्ल इंसानियत का भरकर एकअहसास
    जब नजरें मिलेंगी उस बड़े आकाश से तो
    सीमित न रह पायेगा कोई भी आकाश .


    बहुत ही सच कहा है आपने,अमृता जी.
    उठा बगुला प्रेम का तिनका उड़ा आकाश
    तिनका तिनके से मिला तिनका तिनके पास

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  31. बेहतरीन और लाजवाब करती ये पोस्ट शानदार है ।

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  32. कभी कभी शब्द छोटे पड़ जाते हैं भाव प्रबल हो जाते हैं तब व्याकरण के नियम बेमानी हो जाते हैं..सुंदर रचना !

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  33. अकेलेपन से कभी अपना दामन छुड़ाकर
    अस्ल इंसानियत का भरकर एकअहसास
    जब नजरें मिलेंगी उस बड़े आकाश से तो
    सीमित न रह पायेगा कोई भी आकाश .
    लाजवाब करते शब्‍दों का संगम

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