कल्पनाओं के पंख लग गये
मैं देखती रह गयी उन्हें
असीम फलक पर उड़ते हुए...
सपनों में रंग भरने लगे
मैं देखती रह गयी उन्हें
स्याह सिक्त होते हुए.......
आशाओं की कोख उजड़ गयी
मैं देखती रह गयी उन्हें
बेबस बाँझ होते हुए......
सोच को मार गया लकवा
मैं देखती रह गयी उन्हें
जब्रन जड़ होते हुए........
विचारों में युद्ध छिड़ गया
मैं देखती रह गयी उन्हें
धड़ा-धड़ धराशायी होते हुए...
मुझसे एक - एक कर
सब छुट रहे हैं या फिर
साज़िश तहत रूठ रहे हैं.....
अपने खालीपन को कैसे भरूँ
कुछ तो बहाना चाहिए
जिसमें मैं बहूँ .........
अब बिना बहाना किये
इस खालीपन के खज़ाने को
बाँटे जा रही हूँ
बस ...बाँटे ही जा रही हूँ...
मुआ कैसा ख़जाना है कि
खाली होने के बजाय
और भरता ही जा रहा है .
मैं देखती रह गयी उन्हें
असीम फलक पर उड़ते हुए...
सपनों में रंग भरने लगे
मैं देखती रह गयी उन्हें
स्याह सिक्त होते हुए.......
आशाओं की कोख उजड़ गयी
मैं देखती रह गयी उन्हें
बेबस बाँझ होते हुए......
सोच को मार गया लकवा
मैं देखती रह गयी उन्हें
जब्रन जड़ होते हुए........
विचारों में युद्ध छिड़ गया
मैं देखती रह गयी उन्हें
धड़ा-धड़ धराशायी होते हुए...
मुझसे एक - एक कर
सब छुट रहे हैं या फिर
साज़िश तहत रूठ रहे हैं.....
अपने खालीपन को कैसे भरूँ
कुछ तो बहाना चाहिए
जिसमें मैं बहूँ .........
अब बिना बहाना किये
इस खालीपन के खज़ाने को
बाँटे जा रही हूँ
बस ...बाँटे ही जा रही हूँ...
मुआ कैसा ख़जाना है कि
खाली होने के बजाय
और भरता ही जा रहा है .
जिसमें मैं बहूँ .........
ReplyDeleteअब बिना बहाना किये
इस खालीपन के खज़ाने को
बाँटे जा रही हूँ
बस ...बाँटे ही जा रही हूँ...
मुआ कैसा ख़जाना है कि
खाली होने के बजाय
और भरता ही जा रहा है .........
वाह बहुत खूब ...पूरी कविता अर्थ लिए हुए ....मन को छू गई
बहुत अच्छी रचना है, शुक्रिया
ReplyDeleteअब बिना बहाना किये
ReplyDeleteइस खालीपन के खज़ाने को
बाँटे जा रही हूँ
बस ...बाँटे ही जा रही हूँ...
मुआ कैसा ख़जाना है कि
खाली होने के बजाय
और भरता ही जा रहा है ...
Laajawaab Rachna.. Aakhiri line to bas speechless kar diya.. Waise aapki rachnayein aksar speechless kar hi deti hain.. Aabhar...
ये पंक्तियाँ कई अर्थ देती हैं और बहुत खूबसूरत हैं. अकेलेपन और ख़ालीपन को जीती कविता.
ReplyDeleteकुछ तो बहाना चाहिए
ReplyDeleteजिसमें मैं बहूँ .........
अब बिना बहाना किये
इस खालीपन के खज़ाने को
बाँटे जा रही हूँ
बस ...बाँटे ही जा रही हूँ...
बस बांटते जाइये इस खजाने को और बहाते जाइये रचनाओं की शीतल सरिता... आभार
जिसमें मैं बहूँ .........
ReplyDeleteअब बिना बहाना किये
इस खालीपन के खज़ाने को
बाँटे जा रही हूँ
बस ...बाँटे ही जा रही हूँ...
मुआ कैसा ख़जाना है कि
खाली होने के बजाय
और भरता ही जा रहा है ...।
वाह ...सुन्दर शब्दों का संगम ।
अब बिना बहाना किये
ReplyDeleteइस खालीपन के खज़ाने को
बाँटे जा रही हूँ
बस ...बाँटे ही जा रही हूँ...
मुआ कैसा ख़जाना है कि
खाली होने के बजाय
और भरता ही जा रहा है .
waah behtreen rachna ......dil me sama gayi aapki ye bhavpurn rachna badhai
बेहतरीन रचना , सुन्दर प्रस्तुति ,
ReplyDeleteआपको व आपके परिवार को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाये
बिना बहाना किये कह ही दूँ ... लाजवाब लिखा है.
ReplyDeleteखालीपन के खज़ाने ... वाह क्या कन्सेप्ट है ... बहुत सुन्दर कविता !
ReplyDeleteखालीपन का खजाना भरता जाना कह कर आपने गूढ संकेत दिया है।
ReplyDeleteवाह, बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! हर एक शब्द लाजवाब है! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
अब बिना बहाना किये
ReplyDeleteइस खालीपन के खज़ाने को
बाँटे जा रही हूँ
बस ...बाँटे ही जा रही हूँ...
मुआ कैसा ख़जाना है कि
खाली होने के बजाय
और भरता ही जा रहा है .
hai na jadu
काफी अच्छी अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteमुआ कैसा ख़जाना है कि
ReplyDeleteखाली होने के बजाय
और भरता ही जा रहा है .
भावपूर्ण अभिव्यक्ति
बहुत ही बढ़िया कविता।
ReplyDelete-----
कल 30/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत उत्कृष्ट भावपूर्ण रचना...नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनाएं !
ReplyDeleteअब बिना बहाना किये
ReplyDeleteइस खालीपन के खज़ाने को
बाँटे जा रही हूँ
बस ...बाँटे ही जा रही हूँ...
मुआ कैसा ख़जाना है कि
खाली होने के बजाय
और भरता ही जा रहा है .....
वाह …………विचारो को बहुत सुन्दरता से सहेजा है।
usi kajane se ye nayab moti nikala hai ...
ReplyDeletebahut sunder rachna ...badhai.
bahut gahan bhaav darshati hui rachna.
ReplyDeleteआपको बहुत बहुत बधाई हो सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteMADHUR VAANI
BINDAAS_BAATEN
MITRA-MADHUR
कल्पनाओं से उस खजाने के सूत्र मिल जाते हैं।
ReplyDeleteसुंदर रचना,आभार.
ReplyDeleteजितना बांटा , उतना बढ़ता गया ...
ReplyDeleteकारू का खजाना है ये तो !
सुन्दर अभिव्यक्ति!
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना.....
ReplyDeleteखालीपन अनंत की परिभाषा में आता है.
ReplyDeleteकैसे हो आपका खज़ाना खाली.
एक और सुन्दर रचना के लिए आभार.
amrita jee bina kalpana ke bhi koi jindagee hai ,,,bus aap kalpanaoan ki esi hi udan bharte raho or hame ..apne lekhoan se sara bor karte raho .......> bhut sunder
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें....
ReplyDeletekhubshoorat rachna
ReplyDeleteमुआ कैसा ख़जाना है कि
ReplyDeleteखाली होने के बजाय
और भरता ही जा रहा है .........
अब इन पंकतियो पर कोई क्या कहे . दिल उंढेल कर रख दिया आपने
अब बिना बहाना किये
ReplyDeleteइस खालीपन के खज़ाने को
बाँटे जा रही हूँ
बस ...बाँटे ही जा रही हूँ...
मुआ कैसा ख़जाना है कि
खाली होने के बजाय
और भरता ही जा रहा है ...........
वह क्या बात है , मुआ बस भरता ही जा रहा है ,
और ये जीवन इसी में निकला जा रहा है .....!
बहुत खूब।
ReplyDeleteकल्पनाओं की ऊंची उडान.....
भावों का बेहतर तरीके से प्रस्तुतिकरण।
शुभकामनाएं......
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना ........
ReplyDeletesundar rachna ,badhayi
ReplyDeleteमुझसे एक - एक कर
ReplyDeleteसब छुट रहे हैं या फिर
साज़िश तहत रूठ रहे हैं.....
अपने खालीपन को कैसे भरूँ
कुछ तो बहाना चाहिए
जिसमें मैं बहूँ .........
अब बिना बहाना किये
इस खालीपन के खज़ाने को
बाँटे जा रही हूँ..... Khalipan ke khazaane kabhi khaali nahi hua karte..dil ko chhoo gayi aapki rachna. bahut khoob.
http://neelamkahsaas.blogspot.com/2011/09/blog-post.html
कविता बहुत अच्छी लगी. इसमें निम्न पंक्तियाँ कई बिंबों को उभारती हैं इस लिए ये भा गईं-
ReplyDelete"...कुछ तो बहाना चाहिए
जिसमें मैं बहूँ .........
अब बिना बहाना किये
इस खालीपन के खज़ाने को...."
सर्वप्रथम नवरात्रि पर्व पर माँ आदि शक्ति नव-दुर्गा से सबकी खुशहाली की प्रार्थना करते हुए इस पावन पर्व की बहुत बहुत बधाई व हार्दिक शुभकामनायें। बहुत ही मार्मिक व भावपूर्ण रचना…आपका खज़ाना प्रचुर मात्रा मे रचनाओं से भरा है…और पहली पंक्ति से लेकर अंतिम तक बांधे रखता है……
ReplyDeleteजिसमें मैं बहूँ .........
ReplyDeleteअब बिना बहाना किये
इस खालीपन के खज़ाने को
बाँटे जा रही हूँ
बस ...बाँटे ही जा रही हूँ...
मुआ कैसा ख़जाना है कि
खाली होने के बजाय
और भरता ही जा रहा है ...।
bahut sundar mam
जो हम हैं बाँट रहे
ReplyDeleteप्यार से..सदभाव से
वही इकट्ठा हो रहा..
दो गुना और चौगुना होकर
आपके खजाने में..
बहुत अच्छी रचना है..माँ दुर्गा की कृपा आप पर बनी रहे.
bhut hi sundar abhivakti hai
ReplyDeletewww.kavipradeeptiwari.blogspot.com
बहुत ही सुन्दर पोस्ट अमृता जी........बहुत पसंद आई |
ReplyDeleteकल्पना का खजाना अक्षुण रहे , हम मोटी चुनने को तैयार . आभार.
ReplyDeleteखालीपन को बांटना भरने के सामान हजी होता है ... लाजवाब रचना ...
ReplyDeleteBehad khoobsoorat rachna.
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeleteBAHUT DINO BAAD YEHAN AAYAA AUR 8 KAVITAAYEIN PARHI. SAB EK SE EK BARH KE HAIN. DER SE AANE KA BURRA LAG RAHA HAI.
Take care
उत्कृष्ट भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteकभी खत्म न होने वाला ख़जाना।
ReplyDeleteअब बिना बहाना किये
ReplyDeleteइस खालीपन के खज़ाने को
बाँटे जा रही हूँ
बस ...बाँटे ही जा रही हूँ...
मुआ कैसा ख़जाना है कि
खाली होने के बजाय
और भरता ही जा रहा है ...
सुंदर भाव,सुंदर गीत।
Bahut hi khubsurat rachna.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ||
ReplyDeleteबहुत सार्थक पोस्ट ||
प्रस्तुति पर बधाई ||
आपकी हर कविता को बस केवल खूबसूरत कहना कितना रिपिटीटीव लगता है...पटना जब आऊंगा तो आपसे सीखनी है मुझे ऐसी कवितायें लिखना :) :) तैयार रहना आप :)
ReplyDeleteअमृता तन्मय जी बहुत सुन्दर रचना ..हर पंक्ति सटीक और प्यारी ...सच में यही हाल है
ReplyDeleteबधाई आप को लाजबाब ...
धन्यवाद और आभार ..अपना स्नेह और समर्थन दीजियेगा
भ्रमर ५
मुझसे एक - एक कर
सब छुट रहे हैं या फिर
साज़िश तहत रूठ रहे हैं.....
अपने खालीपन को कैसे भरूँ
कुछ तो बहाना चाहिए
जिसमें मैं बहूँ ....
वेदना की भावमयी अभिव्यक्ति .......अति सुन्दर
ReplyDeleteअद्भुत विचार और अनुभूति की कविता -उस परम संज्ञा से यही गुजारिश है कि यह अक्षय घाट कभी न रिक्त हो अन्यथा हम तो अनाथ ही हो जायेगें !
ReplyDeleteइस खालीपन के खज़ाने को
ReplyDeleteबाँटे जा रही हूँ
बस ...बाँटे ही जा रही हूँ...
मुआ कैसा ख़जाना है कि
खाली होने के बजाय
और भरता ही जा रहा है .........
एकदम नई approach.
वाह, क्या कहने हैं.
बहुत बढ़िया ...... सच ऐसा ही होता है ये खजाना.....कल्पनाओं का खज़ाना
ReplyDeleteरिक्त का प्रभाव कैसा
ReplyDeleteआग बिन अलाव कैसा
प्रेम को झटको नहीं तुम
भाव को अभाव कैसा
सब छुट रहे हैं या फिर
ReplyDeleteसाज़िश तहत रूठ रहे हैं.....
अपने खालीपन को कैसे भरूँ
कुछ तो बहाना चाहिए
जिसमें मैं बहूँ .........
अब बिना बहाना किये
अद्भुत अतुलनीय