Social:

Friday, September 23, 2011

क़िस्मत

जब गद्दाफी की गद्दी  लुट  गयी
तो आप किस खेत  की  मूली हैं

अपने भूलभुलैया में हमें भुला दें
ग्रह-नक्षत्र आपको नहीं  भूली है

तिरेसठ को जरा छतीस होने दें
आपका चुराया सुख  ही सूली है

महामाया  लक्ष्मी  रास   रचाए
एक ही बाँह में   कहाँ  झूली   है

आसमाँ  से जमीं  पर  गिराकर
नाज़ो-नख़रा  पर खूब  फूली है

कब किस माथे तिलक सजा है
कब वहीं कालिख  और धूलि है

दुनिया देख रही  उस  राजा  को
जो अब  मामूली से  मामूली  है

अपने हक़-हिस्सा से ज्यादा लेंगे
तो किस्मत भी कीमत वसूली है .




 

42 comments:

  1. बेहद सटीक विचार अभिव्यक्त किए हैं।

    ReplyDelete
  2. राजा को भी समझना चाहिए कि वह भी किसी के अधीन है. सुंदर भावाभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  3. अच्छा खबरदार किया है आपने!
    कवि का कर्म है चेताना और सहेजना भी ..
    अच्छी लगी कविता

    ReplyDelete
  4. वाह,बहुत खूबसूरत लाइनें,आभार.

    ReplyDelete
  5. सटीक व्यंग्य है अमृता जी |

    ReplyDelete
  6. तिरेसठ को जरा छतीस होने दें--

    अति सुन्दर ||

    बधाई ||

    ReplyDelete
  7. बहुत सुंदर भाव हैं,

    कैसे-कैसे, ऐसे-वैसे हो गए,
    और
    ऐसे-वैसे, कैसे-कैसे हो गए।

    ReplyDelete
  8. बनाना और मिटाना यह तो नियति का कर्म है .पर, जिस मानव की रचना में उसने अपनी चेतना भर दी हो उसे भी नहीं भुलाना चाहिए .आपका अत्मबिश्वाश और भरोसा ही आपके कर्मो के माध्यम से आपको उत्कर्ष तक लिए चलता है .ठीक इसी तरह यह कर्म तथा उससे उतपन्न विचार ही आपको किसी खेत का मुली भी बनाये रखता है.चुनाव के लिए बिधाता ने आपको स्वंत्रता दे राखी है.आप का जनम कंहा हुआ वह आपके हाथ में नहीं.लेकिन जो हाथ में है उसे तो बदल देना आपके हाथ में है.

    ReplyDelete
  9. आसमाँ से जमीं पर गिराकर
    नाज़ो-नख़रा पर खूब फूली है

    कब किस माथे तिलक सजा है
    कब वहीं कालिख और धूलि है

    वाह! वाह! बड़े मियां आखिर कब तक खैर मनाएंगे..कभी तो ऊंट को पहाड के नीचे आना ही पड़ता है, बेहतरीन कविता के लिए आभार!

    ReplyDelete
  10. बहुत सही लिखा है आपने ...

    ReplyDelete
  11. अच्छी लगी कविता

    ReplyDelete
  12. किस्मत के खेल निराले मेरे भैया।

    ReplyDelete
  13. vaah....vyangya bhi...kavita bhi...naaj bhi....khaar bhi...
    acchhi ban padi hai kavitaa aapki...

    ReplyDelete
  14. खूबसूरत लाइनें सही लिखा है आपने...अमृता जी !

    ReplyDelete
  15. अपने हक़-हिस्सा से ज्यादा लेंगे
    तो किस्मत भी कीमत वसूली है .

    jabardast abhivyakti.

    ReplyDelete
  16. बहुत बढ़िया ..व्यंग में बहुत कुछ कह दिया

    ReplyDelete
  17. waha bahut badiya...vyang ki bhasha mei satik lekhni

    ReplyDelete
  18. दुनिया देख रही उस राजा को
    जो अब मामूली से मामूली है
    बहुत सही लिखा .....

    ReplyDelete
  19. होशियार...सारे राजाओं...हटो की अब जनता आती है...

    ReplyDelete
  20. आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी-पुरानी हलचल पर 24-9-11 शनिवार को ...कृपया अनुग्रह स्वीकारें ... ज़रूर पधारें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ...!!

    ReplyDelete
  21. बहुत ही अच्‍छी रचना ।

    ReplyDelete
  22. सघन भावों से भरी रचना अच्छी लगी । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  23. बहुत ही सुन्दर और प्रभावशाली

    ReplyDelete
  24. किस्मत मनुष्य को राजा से रंक बनाती है . धारदार कविता किस्मत के रंग दिखाती है .सुँदर

    ReplyDelete
  25. विश्व राजनीति से बिम्ब लेकर रची सुंदर रचना. बधाई.

    ReplyDelete
  26. जी हां ,वक्त तो करवट बदलेगा ही ।

    ReplyDelete
  27. तीखा व्यंग्य...
    सादर...

    ReplyDelete
  28. तिरेसठ को जरा छतीस होने दें
    आपका चुराया सुख ही सूली है
    ..क्या बात है!

    ReplyDelete
  29. बेहद सुन्दर और सटीक विचार अभिव्यक्त किए हैं। प्रभावशाली रचना...

    ReplyDelete
  30. बहुत खूब लिखा आपने
    मेरे ब्लॉग पर भी आइये
    http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
    आपके ब्लॉग को फोलो कर रहा हूँ

    ReplyDelete
  31. बहुत सुन्दर रचना ! सटीक व्यंग्य ! बेहतरीन प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

    ReplyDelete
  32. आपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
    जय माता दी..

    ReplyDelete




  33. आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  34. बहुत सुंदर रचना.
    आपको नवरात्रि की ढेरों शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  35. आदरणीय अमृता जी आपको नवरात्रि पर्व की असीम शुभकामनायें |ईश्वर आपकी कलम को और अधिक जनोपयोगी बनाये |

    ReplyDelete
  36. बर पंक्ति खूबसुरत है... नवरात्र की आपको सपरिवार मंगलकामनाएं....

    आकर्षण

    ReplyDelete
  37. वाह ! अमृता जी,
    बहुत तीखे कटाक्ष किये हैं आपने आज के सन्दर्भ में.

    ReplyDelete
  38. तिरेसठ को जरा छतीस होने दें
    आपका चुराया सुख ही सूली है----सुंदर भाव व व्यंजना .....हाँ...

    अपने भूलभुलैया में हमें भुला दें
    ग्रह-नक्षत्र आपको नहीं भूली है----गृह- नक्षत्र बहुबचन व नपुंसक लिंग हैं ...भूली है त्रुटिपूर्ण है ...भूले हैं होना चाहिए...

    ReplyDelete