जब गद्दाफी की गद्दी लुट गयी
तो आप किस खेत की मूली हैं
अपने भूलभुलैया में हमें भुला दें
ग्रह-नक्षत्र आपको नहीं भूली है
तिरेसठ को जरा छतीस होने दें
आपका चुराया सुख ही सूली है
महामाया लक्ष्मी रास रचाए
एक ही बाँह में कहाँ झूली है
आसमाँ से जमीं पर गिराकर
नाज़ो-नख़रा पर खूब फूली है
कब किस माथे तिलक सजा है
कब वहीं कालिख और धूलि है
दुनिया देख रही उस राजा को
जो अब मामूली से मामूली है
अपने हक़-हिस्सा से ज्यादा लेंगे
तो किस्मत भी कीमत वसूली है .
बेहद सटीक विचार अभिव्यक्त किए हैं।
ReplyDeleteराजा को भी समझना चाहिए कि वह भी किसी के अधीन है. सुंदर भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteअच्छा खबरदार किया है आपने!
ReplyDeleteकवि का कर्म है चेताना और सहेजना भी ..
अच्छी लगी कविता
वाह,बहुत खूबसूरत लाइनें,आभार.
ReplyDeleteसटीक व्यंग्य है अमृता जी |
ReplyDeleteतिरेसठ को जरा छतीस होने दें--
ReplyDeleteअति सुन्दर ||
बधाई ||
बहुत सुंदर भाव हैं,
ReplyDeleteकैसे-कैसे, ऐसे-वैसे हो गए,
और
ऐसे-वैसे, कैसे-कैसे हो गए।
बेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
बनाना और मिटाना यह तो नियति का कर्म है .पर, जिस मानव की रचना में उसने अपनी चेतना भर दी हो उसे भी नहीं भुलाना चाहिए .आपका अत्मबिश्वाश और भरोसा ही आपके कर्मो के माध्यम से आपको उत्कर्ष तक लिए चलता है .ठीक इसी तरह यह कर्म तथा उससे उतपन्न विचार ही आपको किसी खेत का मुली भी बनाये रखता है.चुनाव के लिए बिधाता ने आपको स्वंत्रता दे राखी है.आप का जनम कंहा हुआ वह आपके हाथ में नहीं.लेकिन जो हाथ में है उसे तो बदल देना आपके हाथ में है.
ReplyDeleteआसमाँ से जमीं पर गिराकर
ReplyDeleteनाज़ो-नख़रा पर खूब फूली है
कब किस माथे तिलक सजा है
कब वहीं कालिख और धूलि है
वाह! वाह! बड़े मियां आखिर कब तक खैर मनाएंगे..कभी तो ऊंट को पहाड के नीचे आना ही पड़ता है, बेहतरीन कविता के लिए आभार!
बहुत सही लिखा है आपने ...
ReplyDeleteअच्छी लगी कविता
ReplyDeleteकिस्मत के खेल निराले मेरे भैया।
ReplyDeleteसुन्दर रचना ......
ReplyDeletevaah....vyangya bhi...kavita bhi...naaj bhi....khaar bhi...
ReplyDeleteacchhi ban padi hai kavitaa aapki...
खूबसूरत लाइनें सही लिखा है आपने...अमृता जी !
ReplyDeleteअपने हक़-हिस्सा से ज्यादा लेंगे
ReplyDeleteतो किस्मत भी कीमत वसूली है .
jabardast abhivyakti.
बहुत बढ़िया ..व्यंग में बहुत कुछ कह दिया
ReplyDeletewaha bahut badiya...vyang ki bhasha mei satik lekhni
ReplyDeleteदुनिया देख रही उस राजा को
ReplyDeleteजो अब मामूली से मामूली है
बहुत सही लिखा .....
समसामायिक- बढ़िया ॥
ReplyDeleteहोशियार...सारे राजाओं...हटो की अब जनता आती है...
ReplyDeleteआपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी-पुरानी हलचल पर 24-9-11 शनिवार को ...कृपया अनुग्रह स्वीकारें ... ज़रूर पधारें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ...!!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना ।
ReplyDeleteसघन भावों से भरी रचना अच्छी लगी । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और प्रभावशाली
ReplyDeleteकिस्मत मनुष्य को राजा से रंक बनाती है . धारदार कविता किस्मत के रंग दिखाती है .सुँदर
ReplyDeleteविश्व राजनीति से बिम्ब लेकर रची सुंदर रचना. बधाई.
ReplyDeleteजी हां ,वक्त तो करवट बदलेगा ही ।
ReplyDeleteतीखा व्यंग्य...
ReplyDeleteसादर...
तिरेसठ को जरा छतीस होने दें
ReplyDeleteआपका चुराया सुख ही सूली है
..क्या बात है!
बेहद सुन्दर और सटीक विचार अभिव्यक्त किए हैं। प्रभावशाली रचना...
ReplyDeletebahut hi sundar prastuti
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा आपने
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर भी आइये
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
आपके ब्लॉग को फोलो कर रहा हूँ
बहुत सुन्दर रचना ! सटीक व्यंग्य ! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
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आपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
ReplyDeleteजय माता दी..
♥
ReplyDeleteआपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteआपको नवरात्रि की ढेरों शुभकामनायें.
आदरणीय अमृता जी आपको नवरात्रि पर्व की असीम शुभकामनायें |ईश्वर आपकी कलम को और अधिक जनोपयोगी बनाये |
ReplyDeleteबर पंक्ति खूबसुरत है... नवरात्र की आपको सपरिवार मंगलकामनाएं....
ReplyDeleteआकर्षण
वाह ! अमृता जी,
ReplyDeleteबहुत तीखे कटाक्ष किये हैं आपने आज के सन्दर्भ में.
तिरेसठ को जरा छतीस होने दें
ReplyDeleteआपका चुराया सुख ही सूली है----सुंदर भाव व व्यंजना .....हाँ...
अपने भूलभुलैया में हमें भुला दें
ग्रह-नक्षत्र आपको नहीं भूली है----गृह- नक्षत्र बहुबचन व नपुंसक लिंग हैं ...भूली है त्रुटिपूर्ण है ...भूले हैं होना चाहिए...