Social:

Sunday, September 11, 2011

हे ! त्रायमाण .

अब   तो   मनु    नहीं     नादान
सृष्टि-ध्वंस   का   है  उसे  ज्ञान
जब प्रकृति पर भारी   है विज्ञान
तब तो प्रलय की आहट पहचान
 
भय   भी   हो   रहा  है   भयभीत
किसकी   हार  है  किसकी  जीत
कौन किसका कर रहा है उपहास
या चेतना का हुआ अकल्प ह्रास
 
पुनः  चीख   रही   है     चीत्कार
वही मांसल-चीथड़ों का व्यापार
फैला   लहू  है   दृश्य   विकराल
बह रही  है  आँसुओं  की    धार
 
कैसा   मचा   हुआ  है  हाहाकार
स्नेही-जन   की   अधीर  पुकार
तेरे   विश्व   में   हे !    भगवान्
निज प्राणों का  शत्रु  हुआ  प्राण
 
क्या कलियुग का यही अभिशाप
हर  ह्रदय   कर  रहा   है   विलाप
कैसा घृणित, कुत्सित अभियान
मानवता  का   है   घोर   अपमान
 
वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
आगामी विस्फोटों को  दो  विराम
शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण
त्राहि   -  त्राहि       हे !    त्रायमाण . 
  

38 comments:

  1. आज अनंत चतुर्दशी के दिन यही प्रार्थना है... मानवता का विकास हो ...
    मानवता की जय हो ...
    दानवता की पराजय हो ...!!!
    बहुत ही भावपूर्ण है आपकी कविता ...बधाई ....अमृता जी ...main bhi shamil hoon is prarthana me ...

    ReplyDelete
  2. सृष्टि में होने वाली हर घटना का चित्र खींचा है आपने .....मानव अपने कारण ही खुद के अस्तित्व को दाव पर लगा रहा है और अगर यही हाल रहा तो उसका क्या होगा इस विषय में सोचा जा सकता है ...कविता की अंतिम पंक्तियाँ आशान्वित करती हैं ......आपका आभार

    ReplyDelete
  3. क्या कलियुग का यही अभिशाप
    हर ह्रदय कर रहा है विलाप
    कैसा घृणित, कुत्सित अभियान
    मानवता का है घोर अपमान... jiske dansh chubhte hain

    ReplyDelete
  4. शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण...
    हे !त्रायमाण...
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....एक पूर्ण काव्य... सादर बधाई...

    ReplyDelete
  5. वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
    आगामी विस्फोटों को दो विराम

    बहुत ही अच्छा संदेश दिया है आपने।

    सादर

    ReplyDelete
  6. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 12-09-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

    ReplyDelete
  7. अहंकार और वासना- शायद यह दो मनोवृत्तियां सभ्यता को ले डूबेंगे :(

    ReplyDelete
  8. आस्था, विश्वास और सर्वकल्याण की भावना से ओतप्रोत सुन्दर रचना !

    ReplyDelete
  9. जब प्रकृति पर भारी है विज्ञान
    तब तो प्रलय की आहट पहचान

    सही वक़्त पर सही पुकार बढ़िया शब्द चयन

    ReplyDelete
  10. वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
    आगामी विस्फोटों को दो विराम
    शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण
    त्राहि - त्राहि हे ! त्रायमाण .

    satik aahvan

    ReplyDelete
  11. वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
    आगामी विस्फोटों को दो विराम
    शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण
    त्राहि - त्राहि हे ! त्रायमाण .

    बड़ी सामायिक प्रार्थना है. बहुत बधाई.

    ReplyDelete
  12. मनु को सब पता है . मनु ने प्रलय भी देखी है . लेकिन फिर भी अपने अहंकार में क्षणभंगुरता को भूल गया है . हमारे भी करपुष्प आपकी इस आराधना में .

    ReplyDelete
  13. बहुत सुन्दर कविता बधाई

    ReplyDelete
  14. वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
    आगामी विस्फोटों को दो विराम

    बढ़िया प्रस्तुति |
    बधाई ||

    ReplyDelete
  15. Bahut hi saarthak kathya ko prastut karti is rachna ke liye hum aabhar vyakt karte hain...

    ReplyDelete
  16. वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
    आगामी विस्फोटों को दो विराम
    शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण
    त्राहि - त्राहि हे ! त्रायमाण . सटीक लिखा है .....

    ReplyDelete
  17. क्या कलियुग का यही अभिशाप
    हर ह्रदय कर रहा है विलाप
    कैसा घृणित, कुत्सित अभियान
    मानवता का है घोर अपमान

    सटीक और सार्थक आह्वान ... संवेदन शील प्रस्तुति

    ReplyDelete
  18. जब पिता जी ने साईकिल दी थी...तो कहा था छोटे-छोटे गड्ढे बचाओ हैंडिल खुद सध जायेगा...जहाँ गुंडे और छुटभैये पुलिस की पश्रय में ही पनप रहे हों...वहां बाहरी आतंकवाद से निपटने की उम्मीद बेमानी लगती है...

    ReplyDelete
  19. क्या कलियुग का यही अभिशाप
    हर ह्रदय कर रहा है विलाप
    कैसा घृणित, कुत्सित अभियान
    मानवता का है घोर अपमान

    चेतावनी देती कविता।

    ReplyDelete
  20. सामयिक रचना.....दिल को भेदती हुई !

    ReplyDelete
  21. आज के हालातों को बखूबी शब्द देती, मानव की चेतना को झकझोरती हुई कविता ! आभा र!

    ReplyDelete
  22. परित्राणाय साधूनाम्...

    ReplyDelete
  23. आपको हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आज हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
    आप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए..
    MADHUR VAANI कृपया यहाँ चटका लगाये
    BINDAAS_BAATEN कृपया यहाँ चटका लगाये

    ReplyDelete
  24. कैसा मचा हुआ है हाहाकार
    स्नेही-जन की अधीर पुकार
    तेरे विश्व में हे ! भगवान्
    निज प्राणों का शत्रु हुआ प्राण

    ....बहुत समसामयिक और सटीक प्रस्तुति..

    ReplyDelete
  25. बहुत ही सुन्दर पोस्ट............बहुत गहरे कहीं चोट करती और फिर इश्वर के सामने उसके लिए प्रार्थना करती ये पोस्ट बहुत पसंद आई.........हैट्स ऑफ |

    ReplyDelete
  26. पुनः चीख रही है चीत्कार
    वही मांसल-चीथड़ों का व्यापार
    फैला लहू है दृश्य विकराल
    बह रही है आँसुओं की धार
    वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
    आगामी विस्फोटों को दो विराम
    शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण
    त्राहि - त्राहि हे ! त्रायमाण
    दृढ निश्चय की ओर सकारात्मक कदम !

    ReplyDelete
  27. @@
    क्या कलियुग का यही अभिशाप
    हर ह्रदय कर रहा है विलाप
    कैसा घृणित, कुत्सित अभियान
    मानवता का है घोर अपमान
    वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
    आगामी विस्फोटों को दो विराम
    शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण
    ----बहुत बढ़िया,आभार.

    ReplyDelete
  28. वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
    आगामी विस्फोटों को दो विराम
    सटीक और सार्थक आह्वान ...
    बहुत ही अच्छा संदेश दिया है आपने।

    ReplyDelete
  29. आस्था, विश्वास और सर्वकल्याण की भावना से ओतप्रोत सटीक और सार्थक रचना ! ...बहुत सुन्दर....

    ReplyDelete
  30. बहुत सुन्दर सन्देश दिया है आपने अपनी रचना के माध्यम से.
    काश! मानव प्रलय के चेतावनी चिन्हों को समझ पाए.

    ReplyDelete
  31. देर से आ पाया हाय हाय दुनियादारी और मजबूरियां ...
    एक हाहाकारी कविता -ह्रदय को प्रकम्पित करते हए ...
    बड़ी संभावनाएं हैं इस कलम में ....दिल दिमाग कुर्बान !

    ReplyDelete
  32. बहुत सुंदर रचना
    क्या कहने

    ReplyDelete
  33. वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
    आगामी विस्फोटों को दो विराम
    शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण
    त्राहि - त्राहि हे त्रायमाण ...

    ये दुनिया एक अंधी दौड़ में लिप्त है ... प्राकृति की किसी को नहीं पड़ी है ... बहुत ही विचारणीय रचना है ..

    ReplyDelete
  34. मानव द्वारा सृष्टि में किए जा रहे असर्जक कार्य को रेखांकित करती सुंदर रचना है जो भविष्य के प्रति आशंकित है और चेतावनी देती है. सार्थक कविता.

    ReplyDelete
  35. Very vivid presentation of Modern Day's pity situation of our country.

    ReplyDelete
  36. वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
    आगामी विस्फोटों को दो विराम
    शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण
    त्राहि - त्राहि हे ! त्रायमाण .

    हृदय का यह करुण क्रंदन झकझोर
    रहा है.

    आपकी मार्मिक ह्रदयस्पर्शी प्रस्तुति
    गहराई से'आर्त' हो पुकार रही है
    त्राहि त्राहि हे ! त्रायमाण.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

    ReplyDelete