कृपया किंचित नेत्र न गोल करे
ये कविहृदय है, कल्लोल करे
भांति-भांति कल्पनाएँ-कपोल करे
ये कौतुक-क्रीड़ा है, न तोल करे
मरुत-मार्तण्ड से, होड़ करके
श्रृंखल-श्रृंखला को, तोड़ करके
वह्निमुखी सा, घन-घोर करके
चले , चलन को, मरोड़ करके
पूर्वाग्रही हो, न उपहास्य करें
है सामर्थ्य तो, उचित भाष्य करें
भावोन्मत्त हो, आत्म-आमोद करें
चैतन्य दृग-मिचाव है, विनोद करें.
मरुत---हवा , मार्तण्ड ---सूरज , श्रृंखल-- -व्यवस्थित और ठीक , श्रृंखला--- कतार, वह्निमुखी---ज्वालामुखी , घन-घोर---भीषण ध्वनि , चलन----गति,प्रथा ,रिति-रिवाज
, भाष्य-- -गूढ़ बात की विस्तृत व्याख्या
दृग -मिचाव----आँख मिचौली का खेल .
बहुत खूब ! बेहतर शब्द चयन ....आनंद आया ! शुभकामनायें !!
ReplyDeleteपूर्वाग्रही हो, न उपहास्य करें
ReplyDeleteहै सामर्थ्य तो, उचित भाष्य करें
निशब्द करती पंक्तियाँ..... बहुत सुंदर
क्लिष्ट रचना ... अर्थ लिखा था तो देखते गए, बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत ही खूब.
ReplyDeleteजटिल भी कितना सुन्दर हो सकता है,आपकी रचनायों को पढ़ कर पता चलता है.
साहित्यकार अगर गूढ़ शब्दों का प्रयोग नहीं करेंगे,तो वे विलुप्त हो जायेंगे.
कवि ह्रदय की सोच का विस्तृत फलक पर उदगार प्रकट करती रचना . मन प्रफुल्ल हुआ .
ReplyDeleteकविता के भाव और उसकी शैली लीक से हटकर है।
ReplyDeleteइस उत्कृष्ट कविता के लिए आभार।
यदि क्लिष्ट शब्दों के बजाय सरल शब्दों का प्रयोग किया जाता तो कविता और भी अच्छी हो सकती थी
ReplyDeleteइस उत्कृष्ट कविता के लिए आभार।
काल चिंतन बनके आती है आपकी कविता ,हमें हर बार कुछ नए शब्द ,उनके गहरे अर्थ समझा जाती है -
ReplyDeleteवहिरंमुखी(वोल्केनो को हम अभी ज्वाला मुखी के नाम से ही पढ़े समझे थे ),मार्तंड (सूरज का भी हमें बोध नहीं था ),
मृग -मिचाव (लुका छिपी ,हाइड एंड सीक हम सभी खेलें हैं ,पता नहीं था साहित्यिक प्रयोग मृग -मिचाव )।
रचना अपना प्रवाह ,सर्क्युलेशन लिए होती है आपकी धमनियों में बहते खून सी उबलती उफनती हुई उद्दाम आवेग से फुदकती आगे बढती है .शुक्रिया आपका .
बहुत बढिया कविता..
ReplyDeleteएकदम शुद्द हिन्दी, अपने बस की बात नहीं है
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति शानदार है,
बहुत उम्दा कविता,अमृता जी ! शब्द चयन बढिया है। शब्दावली क्लिष्ट भले जान पड़ती हो पर बोधगम्य है।
ReplyDeleteअच्छी रचना बाँटने के लिये आभार !
कमाल के शब्द सजाये हैं आपने! बेहतरीन..
ReplyDeleteशब्दों का अपरिमित संकलन है आपके पास और उन्हें संजोने की अनूठी कला भी.
ReplyDeleteआपका शब्दचयन आनंददायी है. यह शब्द-संसार को समृद्ध करने वाला है.
ReplyDeleteसुंदर रचना.
ज़बरदस्त शब्द संयोजन.ये कमाल आपका कलम ही कर सकता है.
ReplyDeleteकाल चिंतन की नै कड़ी का इंतज़ार है .
ReplyDeleteअमृता तन्मय जी एक अलग तरह की रचना -जटिल शब्द बन्ध बहुत ही प्यारा
ReplyDeleteपूर्वाग्रही हो न उपहास्य करें
है सामर्थ्य तो उचित भाष्य करें
आनंद आया आप की लेखनी कमाल की है
शुक्ल भ्रमर ५
बहुत सुंदर, संस्कृत के शब्दों का चयन और उनका ताल-मेल पढते ही बनता है !
ReplyDeletesouth me rahte hindi bolne ko nahee miltee blog se jud kar kamee kee bharpaee huee hai meree .
ReplyDeleteek arase baad itnee sunder hindi padne ko milee .
sath hee bahut pyare sandesh .
aabhar
आपकी लेखनी विचार अद्भुत हैं |यह कविता सुंदर है अगर आप भाषा सहज और समकालीन या समयानुकूल प्रयोग करें तो कविता में चार चाँद लग जायेगें |इसे एक मित्रवत सुझाव ही समझें मुझे उम्मीद है कि आप जैसी सहृदय महिला नाराज नहीं होंगी |आभार
ReplyDeleteबढ़िया शब्द चयन और बढ़िया रचना...सुंदर शब्दों के जाल से बुनी गई एक सुंदर कविता...धन्यवाद
ReplyDeleteवीरू भाई से सहमति के आगे ...
ReplyDeleteये नए शिल्प विधान सी लगती कवितायें अपने शब्द संयोजन से चमत्कृत करती हैं -
मगर मगर -कुछ अल्प शंकाएं इस बार -
कृपया किंचित नेत्र न गोल करें -क्या यहाँ अल्प विराम की जरुरत है ? और अगर है भी तो नेत्र के आगे लगेगा न ?
वैसे मेरी अल्प बुद्धि से लगेगा ही नहीं ..
वैसे कवि को शब्दों को कविता के लय ताल के हिसाब से व्याकरणीय छूट मिलती है -मगर मार्तंड यहाँ मर्तंण्ड होकर जम नहीं रहा
उपहास्य =उपहास ?
दृग मिचाव को मान लिया -आप भी क्या कहेगीं :)
अपनी आदत के अनुसार अपना एक नाय पाठक लगता है खो दिया मैंने आज -
मगर प्रोत्साहित तो आपने ही किया था :)
अमृता , गूढ बातों को आसानी से कह देना सबसे बड़ी कला है। कविहृदय तो कल्लोल ही करना चाहे हर वक़्त। कल्पनाएं भांति भांति के रंगों मे कल्पित कपोल हो जाती हैं...ये भी सत्य है की हम होड करने लगते हैं बिना अपना सामर्थ्य जाने..और भाष्य हमारा लीक से हट कर अनर्गल प्रलाप हो जाता है...आपने सर्वथा उचित कहा की सामर्थ्य हो तभी उचित भाष्य करना चाहिए...हम सभी पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर अपने को मुखरित करते हियन और अक्सर गलत हो जाते हैं...चेतना हमारी भावों की नौका पर चढ़ आमोद के लहरों की वेग पे डोले...मन कुछ ऐसा बोले...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...सारगर्भित...और पठ्य....आजकल ऐसी सुंदर और दार्शनिक रचनाएँ कम ही पढ़ने को मिलती हैं...बाहर चला गया था अतः बिलंब हुआ...वरना शुक्रवार का इंतज़ार मुझे रहता है....
आपने कहा था की मेरे चित्रों मे मधुबनी पेंटिंग की झलक है...प्रतुत्तर में यही कहना चाहूँगा की मैथिल ब्राह्मण होने की वजह से अपनी संस्कृति और कला से विमुख नहीं हो सकता...कहीं न कहीं वो दिख ही जाएगा आपको...लेखनी में...काला में या संगीत में...देसिल वयना सब जण मिट्ठा...
कुछ स्केच अपलोड किए हैं ...समय मिले तो देखिएगा ...
शानदार......बेहतरीन.....अगर आपने अर्थ न लिखे होते तो मेरे तो सर के ऊपर से निकल गया होता .........आपके हिंदी ज्ञान के आगे मैं नतमस्तक हूँ .....प्रशंसनीय |
ReplyDeleteबढ़िया कविता....
ReplyDeletebahut hi behatarin aur sunder prastuti............
ReplyDeleteआनंद आ गया इतनी अच्छा शब्द सामर्थ्य देखकर... आप बहुत बेहतरीन किस्म का लिखती हैं...।
ReplyDeleteडॉ.अजीत
अनोखा है आपका शब्द विन्यास ... और उसी से जन्मी कविता ... बहुत खूब ....
ReplyDeleteशानदार। इससे पहले इस तरह की रचना कभी भी नही पढ़ी थी। दिल आनंदित हो उठा। आपसे बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है। आभार।
ReplyDeleteउसी लय ताल नाद का और कब तक करें इंतज़ार ...
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteओ मेरे हमजोली रे,
खेले आंख मिचौली रे,
बहुत सुन्दर शब्द-विन्यास ।
शानदार शब्द संयोजन से सुसज्जित एक अनोखी तरह की प्रस्तुति
ReplyDeleteबधाई इस रचना कर्म के लिए
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आपकी रचना में मौलिकता एवं सहजता बोल रही है ..निर्झर प्रवाह सी .... क्लिष्ट पर कमाल...
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
एकदम नए स्टाइल की कवितायेँ पढ़ने को मिलीं...ये सिर्फ दृग मिचाव के लिए नहीं है...आपकी एक अपनी शैली है...भावों को शब्दों में गूंथने की कला में पारंगत लगती हैं...एक फोलोअर बढ़ा...
ReplyDeleteBAHUT KHUBSURAT SABDO SE SAJI KAVITA LIKHI HAI APNE . . . EK HUM BHI ARJ KARTE HAIN. . . . ..
ReplyDeleteYE TO AAPKE LIYE EK SUNHARA TOHFA HAI,
BLOGING KI PITCH PAR FOLOWER KA SATAK JO THOKA HAI.
HUMNE BHI APNE FOLOWER KO 9 KE PAR ROKA HAI,
10 NUMBRI BANNE KA BHI APKE PAAR MOKA HAI. . . . .
AMRITA MAM AAP KA BAHUT AABHAR JO AAP MERE BLOG PAR AAYE OR MERI RACHNA KO PADHA...
TIME MILE TO AATE RAHIYEGA. . . . . . JAI HIND JAI BHARAT
आपकी अनुपम प्रस्तुति ने 'अमृत' का पान करा दिया है 'अमृता' जी.पढकर 'तन्मय' हो गया हूँ.बार बार पढ़े जा रहा हूँ;
ReplyDelete"भांति भांति कल्पनाएँ -कपोलकर
ये कौतुक क्रीडा है ,न तोलकर "
आप स्वनाम धन्य हैं.
मुझे अफ़सोस है कि मुझे आपके ब्लॉग पर आने में देरी हुई.पता ही नहीं चला आपकी इस पोस्ट का.आपकी मेहरबानी है कि आप मेरे ब्लॉग पर आयीं और मुझे पोस्ट लिखने के लिए याद दिलाया.जल्दी ही कोशिश करूँगा नई पोस्ट लिखने की.
आपका हृदय से आभार.
बहुत सार्थक सोच...अद्भुत शब्द संयोजन..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी रचना में मौलिकता एवं सहजता बोल रही है ..निर्झर प्रवाह सी.....
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