Social:

Friday, May 20, 2011

सुपरनोवा

यदि
मेरे ऊपर
अल्पमात्र उपलक्षित 
मत्स्य रूपी
शब्द होते तो
जल भरे थाल में
बनते प्रतिबिम्ब को
देखकर कर लेती 
लक्ष्य-भेदन
और प्रमाणित करती
अपनी विद्वता.....
पर
ऊपर तो टंगा है
शब्दों का
अंतहीन आसमान
जिसे बारंबार
भेदना है मुझे
बाण रूपी लेखनी से......
जीर्ण-शीर्ण पड़े शब्दों में
संचार करना है
अपने प्राण का .....
ताकि
सुपरनोवा बनकर
ब्लैक-होल में
समाने को अभिशप्त
शब्द भी जिए
दीर्घायु होकर
और रचना-क्रम
चलता रहे
यूँ ही अनवरत . 
  
 

52 comments:

  1. शब्दों को रचनाक्रम में लाने का उपक्रम करना ही सृजन है. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, उतने ही सुंदर बिंबों के साथ.

    ReplyDelete
  2. शब्द यूँ ही जिए ........बहुत सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई

    ReplyDelete
  3. रचना क्रम अनवरत चले यही कामना है ..सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  4. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  5. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (21.05.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

    ReplyDelete
  6. जहाँ पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि... चरितार्थ करती रचना

    ReplyDelete
  7. अदभुत चिंतन!
    शब्द कभी जीर्ण शीर्ण हो सकतें हैं क्या?
    उत्तम भावों की पोशाक मिले तो खिल उठते हैं ये शब्द.
    क्या कभी 'सुपरनोवा' बन ब्लैक होल में समा सकतें है शब्द?
    लेखनी के 'अमृत' से तो ये जी उठते हैं.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

    ReplyDelete
  8. such hi shabdo ka antheen asmaan hai... bhut sunder...

    ReplyDelete
  9. • इस कविता में आपकी वैचारिक त्वरा की मौलिकता नई दिशा में सोचने को विवश करती है।

    ReplyDelete
  10. बेहद खूबसूरत कविता.

    ReplyDelete
  11. आपकी कविता बहुत कुछ सिखा गयी

    ReplyDelete
  12. कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता
    एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो ॥

    ReplyDelete
  13. सुपरनोवा की आयु कम होती है...पर प्रकाश अत्यंत तीव्र होता है...सूरज की पूरी उम्र जितना...रोज शब्दों का सुपरनोवा खोजना...अभिलाषा अच्छी है...

    ReplyDelete
  14. शब्द भी जिए
    दीर्घायु होकर
    और रचना-क्रम
    चलता रहे
    यूँ ही अनवरत .

    बहुत सुंदर.....

    ReplyDelete
  15. jab taarif aur aalochna ek sath mile to matlab hai, kuch to behtar ho raha hai. kaphi diffrent-diffrent poetries padhne ko mil rahi hain...

    ReplyDelete
  16. @शुक्रिया अमृता,सुनने के लिए -
    अब कविता के बिम्ब विधान और शब्द संयोजन पर पूरे ९५ मार्क !

    ReplyDelete
  17. लक्ष्य भेदन के बहुत करीब है यह रचना

    ReplyDelete
  18. जीना इसी का नाम है ...

    ReplyDelete
  19. शब्दों में प्राण फूंक देने वाली लेखनी है आपकी . कमाल के बिम्ब प्रयोग करती है आप.

    ReplyDelete
  20. कमाल के बिम्ब प्रयोग

    ReplyDelete
  21. शब्द जब बोलने लगे तब उनकी ताकत का अंदाज़ लगाना मुश्किल होता है। शब्दों को अमरत्व मिला हुआ है और जिस तन्मयता के साथ आप उनका प्रयोग करती हैं और उन्हे भाषा के जंगल में विचरण करने को मुक्त करती हैं, वह उन्हे बेबाक बनती।
    कविता अमरता की ओर ले जाती अगर शब्दों का प्रयोग चुन कर और तपस्या स्वरूप किया जाये।वे ही तो हमारे ब्रम्हास्त्र हैं।
    आपकी तपस्या फलीभूत हुयी...आप आज़ार अमर हैं इस काव्य रूपी दुनिया में...हमारा आशीर्वाद।

    ReplyDelete
  22. kya bimb dhundha hai aapne...supernova...kamal ka likhti ho aap!!

    ReplyDelete
  23. बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
    मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

    ReplyDelete
  24. छोटे छोटे शब्द, गंभीर भाव ये देखने को मिलता है आपकी कविताओं में। बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  25. सुन्दर प्रतीक ... संवेदनशील रचना ...

    ReplyDelete
  26. Mam bahut hi achi rachna likhi apne. . Mere blog par aane ke liye sukriya .
    Jai hind jai bharat

    ReplyDelete
  27. अमृता जी,

    एक सुन्दर भावों से सजी पोस्ट......पर एक बात है जो कहना चाहता हूँ.....आप की आजकल की पोस्ट मेरे जैसे अल्पज्ञानी के समझ से परे निकल जाती हैं ....मुझे लगता है अब आप सिर्फ साहित्यिक विद्वानों को समझ में आने वाली पोस्ट ही डालती हैं........इसे अन्यथा मत लीजियेगा..ये बहुत अच्छी बात है की आप साहित्यिक कवियत्री की तरह लिख रही हैं.........पर मुझे आपकी पहले की रचनाएँ ज्यादा पसंद हैं......जो भरी-भरकम शब्दों से मुक्त थी और सीधे शब्दों के साथ सधे दिल में उतर जाती थीं.....आप खुद तुलना कीजियेगा.......अगर कुछ गलत लगा हो तो माफ़ी चाहूँगा |

    ReplyDelete
  28. आपकी कविता कवि हृदय को प्रेरित करती है,शब्दों में प्राण फूंकना व उन्हें नए-नए अर्थ देना ही कवि कर्म है, नूतन प्रतीक का प्रयोग... आभार व बधाई !

    ReplyDelete
  29. साहित्य में वैज्ञानिक और खगोलिप पिंड के प्रतीकों से कही बात जहां अपने लिए व्यापक परिवेश तलाशती है वही विज्ञान वर्ग के मनीषियों को भी बरबस साहित्य के क्षेत्र में खींच लाती है. इस प्रयास और सुन्दर तार्किक कथ्य के लिए बधाई.

    ReplyDelete
  30. शब्द भी जिए
    दीर्घायु होकर
    और रचना-क्रम
    चलता रहे
    यूँ ही अनवरत

    शब्दों को दीर्घायु रखे जाने की कल्पना कविता में नितांत नया प्रतीक है।
    इस उत्तम रचना के लिए बधाई स्वीकार करें, अमृता जी।

    ReplyDelete
  31. अरे वाह्………। क्या बढिया नज़्म पिरोयी है…

    हम भी यही कामना करते हैं कि यह रचना क्रम अनवरत चलता रहे…

    उम्दा अभिव्यक्ति!

    ReplyDelete
  32. वाह...बेहतरीन!

    ReplyDelete
  33. सही कहा आपने...

    शब्दों को भेदना आसान नहीं...

    बस मौन से ही प्राण का संचार हो सकता है..

    कई बार ज्यादा शब्द खुद अपने मायने खो देते हैं..!!

    ReplyDelete
  34. Jitani bhi tarif ki jaye shabdo ki o kam hai...!
    bhawporm rachna ke liye badhai swikare.

    ReplyDelete
  35. दीर्घायु हों तुम्हारे शब्द ,शब्दरुपा | मुझे तो यूँ लगा था वो पहले से ही सुपरनोवा में प्रवेश कर चुके हैं ,जीर्ण शीर्ण हरगिज नहीं है ,अगर होते तो शायद मै दूबारा यहाँ न लौटता ,और हाँ सुपरनोवा से वापस आने की जरुरत नहीं है ,हम पीछे कतार में खड़े हैं ,मौका मिलते ही आते हैं

    ReplyDelete
  36. BAHUT SUNDER SHABDO KI MALA HAI AAPKI..........DHANYAWAD

    ReplyDelete
  37. गज़ब का बिम्ब .सुन्दर कविता.

    ReplyDelete
  38. "ताकि सुपर -नोवा बनकर जीने को अभिशप्त शब्द भी जीयें दीर्घायु होकर हज़ार साल "इस अभिव्यक्ति को अनुभूत ही किया जा सकता है इस पर टिपण्णी करें तो कैसे ?
    फिर भी साहित्य जीवी ब्लॉग जीवियों के लिए कविता में प्रयुक्त कुछ पारिभाषिक शब्दों का अर्थ समझाए बिना हम भी रहें तो कैसे रहें ?
    नोवा :कहतें हैं एक नवजात सद्य पैदा सितारे को ।ए न्यूली बोर्न स्टार इज ए नोवा .
    सुपर -नोवा :मोटापा सितारों को भी रास नहीं आता है .कुछ सितारे (जिनका द्रव्य - मान सौर द्रव्य मान से बहुत ज्यादा होता है ,कमसे कम पांच या और भी सौर द्रव्य मान से ज्यादा वह अपने जीवन सौपान के आखिरी चरण में अपना सारा ईंधन भुगताने के बाद एक भयंकर विस्फोट के साथ फट जातें हैं .तब इनकी चमक हज़ारों - हजार गुना ,ए मिलियन टाइम्स ,या इससे भी ज्यादा बढ़ जाती है .सितारों का बाहरी आवरण उड़ जाता है सुदूर अन्तरिक्ष में कूच के लिए ,बचा हुआ भाग लट्टू की तरह घूमता हुआ अपने ऊपर ही दबता खपता चला जाता है ,गुरुत्व इतना प्रबल जिसके नीचे कुचले जाकर इलेकत्रोंन ,प्रोटोन जैसे द्रव्य के बुनियादी कण भी अपना अस्तित्व खोकर एक विकिरण में तबदील हो जातें हैं ।
    सितारा तब एक ब्लेक होल ,अन्तरिक्ष की काल कोठरी ,अंध कूप बनजाता है .सब कुछ लीलने को आतुर जो भी उसके घटना क्षितिज की ज़द में आये .....

    ReplyDelete
  39. शब्दों का खेल ही रचना है ... सुंदर रचना है आपकी ..

    ReplyDelete
  40. अमृता जी आप ही ने तो प्रेरणा दी नई पोस्ट लिखने की और अब आप ही शांत हैं.
    मेरी नई पोस्ट आपका इंतजार कर रही है.
    'सरयू' स्नान का न्यौता है आपको.

    ReplyDelete
  41. बेहद खूबसूरत कविता| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  42. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति|धन्यवाद|

    ReplyDelete
  43. शब्द अमर रहेंगे ...! शुभकामनायें !!

    ReplyDelete
  44. आदरणीया अमृता जी,
    आपकी लेखन क्षमता बहुत अद्भुत है.
    शब्दों को चढाते रहिये मुलम्मा.
    शुभ कामनाएं.

    ReplyDelete
  45. bahut kam log naya kah rahe hain...yahaan nayapan mila...bahut accha laga....:)

    saadar

    ReplyDelete
  46. मेटास्टेसिस से लेकर सुपरनोवा तक! आपकी विद्वता विलक्षण है।

    सुन्दर शब्दों का संयोजन और उतने ही गहरे भावों में सिक्त रचनाएँ। कई बार सोचा कि आपका ब्लॉग पूरा पढूं, आज जाकर लगभग पूरा किया। आशा है आगे भी आपकी रचनाओं से बहुत कुछ सीखने-समझने-जानने को मिलेगा।
    सादर
    मधुरेश

    ReplyDelete