एक जरा सी शुरूआत भी
बला की तूफ़ान ले आती है
फिर तो हलकी सी थपकी भी
जोरदार चपत लगा जाती है .
***
कोई कैसे बताये कि
कौन किसपर भारी है
हँस जीते या फिर बगुला
सिक्का-उछालू खेल जारी है .
***
गुदड़ी की गुत्थमगुत्थी भी
क्या खूब गुदगुदाती है
और बाँकी बर्बरता बैठकर
मजे में चने चबाती है .
***
टिमटिमाती मशालों की टीमटाम
हेठी दिखा कर हेल देती है
बरजोरी में अग्निशिखाओं को भी
एकदम पीछे धकेल देती है .
***
अनेक को एक ही सोंटे से
सोंटने में ही एकता है
जो ताखा चढ़ तूंबी बजाये
वो ही तुरुप का पत्ता है .
सभी क्षणिकाओं का अपना खूबसूरत रंग है. ये दो बहुत अच्छी लगीं-
ReplyDelete(1)
कोई कैसे बताये कि
कौन किसपर भारी है
हंस जीते या फिर बगुला
सिक्का-उछालू खेल जारी है.
(2)
गुदड़ी की गुत्थमगुत्थी भी
क्या खूब गुदगुदाती है
और बाँकी बर्बरता बैठकर
मजे में चने चबाती है.
sundar kshnikaye.
ReplyDeleteसिक्का उछालू खेल जारी है.... बहुत खूब.... वाह!!!
ReplyDeleteसभी क्षणिकायेँ आसपास चहलकदमी करती महसूस होती हैं...
सादर बधाई स्वीकारें।
वाह....आखिरी वाला सबसे बढ़िया ।
ReplyDeletesabhi behad pasan aayeein per sikka ucchaloon khel jaari bishesh roop se pasand..sadar badhayee ke sath
ReplyDeleteकोई कैसे बताये कि
ReplyDeleteकौन किसपर भारी है
हँस जीते या फिर बगुला
सिक्का-उछालू खेल जारी है .
हर एक क्षणिका काफी सुंदर !
कमाल है ...आज एकदम अलग स्वाद ...!!
ReplyDeleteअमृता जी ...जबर्दस्त ...सभी क्षणिकायें एक से बढ़ कर एक ...!!
प्रभावशाली क्षणिकाएँ
ReplyDeleteसभी बहुत सुन्दर है पर मुझे सबसे अच्छी ये लगी.
ReplyDelete.गुदड़ी की गुत्थमगुत्थी भी
क्या खूब गुदगुदाती है
और बाँकी बर्बरता बैठकर
मजे में चने चबाती है .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (29-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
गुदड़ी की गुत्थमगुत्थी भी
ReplyDeleteक्या खूब गुदगुदाती है
और बाँकी बर्बरता बैठकर
मजे में चने चबाती है .
....बहुत खूब! सभी क्षणिकाएं बहुत सुन्दर...
गुदड़ी की गुत्थमगुत्थी भी
ReplyDeleteक्या खूब गुदगुदाती है
और बाँकी बर्बरता बैठकर
मजे में चने चबाती है.
सभी क्षणिकाएं सुन्दर
गजब कमाल लिख मारती हैं , आप | एकदम तुरुप के इक्के माफिक |
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeleteBILKUL SAHI KAHAA HAI AAPNE KI EK CHHOTI SI BAAT BHI GAJAB KAA TOOFAN KAR DETI HAI.
Take care
बेहतरीन क्षणिकायें..गहरापन लिये..
ReplyDeleteजोरदार चपत लगा जाती है
ReplyDeleteतिल का ताड़ बना जाती है .... !!
सिक्का-उछालू खेल जारी है
इन्तजार अबकी किसकी बारी है .... !!
मजे में चने चबाती है
इठलाती इतराती भी है ?
हर क्षणिका का रंग जोरदार .... तुरुप के इक्के की तरह
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..............
ReplyDeleteएक से बढ़ कर एक क्षणिकाये......
वाह!!
अनु
गुदड़ी की गुत्थमगुत्थी भी
ReplyDeleteक्या खूब गुदगुदाती है
और बाँकी बर्बरता बैठकर
मजे में चने चबाती है .
Behtreen ...Sateek Kshanikayen
प्रभावशाली सुंदर क्षणिकाये,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST,,,इन्तजार,,,
अनेक को एक ही सोंटे से
ReplyDeleteसोंटने में ही एकता है
जो ताखा चढ़ तूंबी बजाये
वो ही तुरुप का पत्ता है .
बहुत खूब है आपके शब्दों की बरजोरी
आपका जवाब नहीं है जी.......
कोई कैसे बताये कि
ReplyDeleteकौन किसपर भारी है
हँस जीते या फिर बगुला
सिक्का-उछालू खेल जारी है .
सभी क्षणिकाएं अच्छी लगीं
चिरन्तनता बन जाएँ ये क्षणिकाएं
ReplyDeleteअलग अलग रंग से जगमगाती क्षणिकाएं.
ReplyDeleteप्रभावशाली प्रस्तुति.
एक जरा सी शुरूआत भी
ReplyDeleteबला की तूफ़ान ले आती है
फिर तो हलकी सी थपकी भी
जोरदार चपत लगा जाती है ... जबरदस्त !
यूँ हर क्षणिकाएं कुछ कहती हैं
सभी क्षणिकाएं प्रभावशाली हैं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएं अमृता जी सभी एक से बढ़कर एक
ReplyDeleteएक जरा सी शुरूआत भी
ReplyDeleteबला की तूफ़ान ले आती है
फिर तो हलकी सी थपकी भी
जोरदार चपत लगा जाती है .
सचमुच, शुरुआत ही करनी है बाकी सब तो हो ही जायेगा...सशक्त लेखन...बधाई !
मुहावरों सी सुंदर और संक्षिप्त मगर गहरे अर्थों से भरी क्षणिकाएं
ReplyDeleteकोई कैसे बताये कि
ReplyDeleteकौन किसपर भारी है
हँस जीते या फिर बगुला
सिक्का-उछालू खेल जारी है .
बहुत ही बढिया ।
अनेक को एक ही सोंटे से
ReplyDeleteसोंटने में ही एकता है
जो ताखा चढ़ तूंबी बजाये
वो ही तुरुप का पत्ता है .
भाव कणिकाएं संवाद करतीं हैं सीधा सीधा ,जिसे फिट आ जाए फांसी का फंदा है बाकी सबको आज़ादी है .
गुदड़ी की गुत्थमगुत्थी भी
ReplyDeleteक्या खूब गुदगुदाती है
और बाँकी बर्बरता बैठकर
मजे में चने चबाती है
solid strong lines.. felt connected..
Thanks
कमाल है . धमाल है . ये रंग भी बेमिसाल है .
ReplyDeleteवाह!
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