सबकी अपनी मर्जी
सबका अपना ढंग
कोई मारे सीटी
कोई फोड़े मृदंग
बेसुरा छेड़े सुर
बेताल देवे संग
लकवा मारा नाच
फड़के अंग - अंग
दाद, खाज, खुजली
खूब जमाये रंग
मन-मौजी मलहम
और मिलाये भंग
बेमौसम फूल खिले
कौन करे शैतानी
कैसे छिपाए पतझड़
हँफनी भरी हैरानी
मुश्किल में मानसून
किससे माँगे पानी
छीछालेदर सुन-सुन
और बढ़ी परेशानी
राग-मल्हार छेड़कर
दुश्मनी किसने ठानी
अब नहीं चलती
उसकी ही मनमानी
आसमान सा हुआ
दमड़ी का दाम
रिश्वत खाए बादल
भूले अपना काम
कंबल तले लेटकर
केवल करे आराम
मौसम पैर दबाये
ठोंके जोर सलाम
दलाल बन हवा
खींचे सबका चाम
कितना जहर बाँटे
राहत कमाए नाम
लटापटी खूब करे
धागा बिन पतंग
झुका रहे तराजू
चढ़ा हुआ पासंग
दहाड़ मारे दहाड़
तुनका हुआ उमंग
आवाज़ चुप्पी खाए
गूंगा मचाये हुडदंग
सींकिया मलखंभ चढ़े
दबका हुआ दबंग
देख बदलती दुनिया
खरबूजा कितना दंग
सबकी अपनी मर्जी
सबका अपना ढंग
कोई चढ़े सीढ़ी
कोई करे तंग .
वाह अमृता जी वाह........
ReplyDeleteबढ़िया रचना...
अनु
मौसम ने हास्य का रंग कविता पर छोड़ा है. कविता उच्मछृंखल है लेकिन नए बिंबों के साथ चंचल हास्य छोड़ गई है. वाह...खू़ब लिखी है नए रंग की कविता.
ReplyDeleteमज़ेदार!
ReplyDeleteसादर
अमृता जी, इतना ही कहूँगा-
ReplyDeleteआनंद आ गया.
अलग अलग हैं छेड़े तान,
ReplyDeleteजय जय जय जय, जय भगवान।
Amrita,
ReplyDeleteAAJ KI STITHI AUR MAUSAM KAA VYANGAATMAK VYAGHYAAN ACHCHHA LAGAA.
Take care
बहुत खूब
ReplyDeleteनया और अनूठा अंदाज़
मुश्किल में मानसून
ReplyDeleteकिससे माँगे पानी
छीछालेदर सुन-सुन
और बढ़ी परेशानी
बे हया + आवारा बादल
साथ नहीं दे रहे बेचारा मानसून
बहुत खूब .... उत्तम अभिव्यक्ति !
रविवारीय महाबुलेटिन में 101 पोस्ट लिंक्स को सहेज़ कर यात्रा पर निकल चुकी है , एक ये पोस्ट आपकी भी है , मकसद सिर्फ़ इतना है कि पाठकों तक आपकी पोस्टों का सूत्र पहुंचाया जाए ,आप देख सकते हैं कि हमारा प्रयास कैसा रहा , और हां अन्य मित्रों की पोस्टों का लिंक्स भी प्रतीक्षा में है आपकी , टिप्पणी को क्लिक करके आप बुलेटिन पर पहुंच सकते हैं । शुक्रिया और शुभकामनाएं
ReplyDeleteसुंदर और मनमौजी हायकू
ReplyDeleteक्या बात है वाह!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 09-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-935 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
धार दार कटाक्ष .... बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteहास्य और मानसून का मिला - जुला सुंदर रंग... मनमोहक प्रस्तुति... शुभकामनायें
ReplyDeleteलाजवाब अमृता!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रयोग। आपके एक कुशल कवि होने के नित नए प्रयोग हमें अचंभित करते रहते हैं।
रिश्वत खाए बादल
भूले अपना काम
बहुत सुंदर प्रयोग।
बहुत बढिया
ReplyDeleteहाहहाा
अच्छी रचना
मेरी मर्जी......
ReplyDeleteकुछ भी कहिये...
पर आप तो शब्दों के कान पकड़ कर उसे सीधे अपने पोस्ट पर ले आई हैं.....
रिश्वत खाए बादल ,भूले अपना काम ,...इसके अलावा भी बड़े अभिनव प्रयोग और बिम्ब आपने इस रचना में उकेरें हैं ,बढिया से भी बढिया प्रस्तुति .
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -
शुक्रवार, 6 जुलाई 2012
वो जगहें जहां पैथोजंस (रोग पैदा करने वाले ज़रासिमों ,जीवाणु ,विषाणु ,का डेरा है )
मुश्किल में मानसून
ReplyDeleteकिससे माँगे पानी
छीछालेदर सुन-सुन
और बढ़ी परेशानी...
sabhi panktiyaan prabhavshali hain ...
आप ऐसा भी लिख लेती हैं आनंद आ गया अति प्रभावशाली राग आपने छेड़ दिया मन भीग गया
ReplyDelete:) :) मस्त!!! :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लगी आपकी रचना ... गतिशील, छंदमय ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन , सुन्दर भावाभिव्यक्ति , बधाई .
ReplyDeletejiskko jisaa bhaaye visaa karne do
ReplyDeletekhud ko mast malang rahne do
वाह क्या बात है.बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
सींकिया मलखंभ चढ़े
ReplyDeleteदबका हुआ दबंग
देख बदलती दुनिया
खरबूजा कितना दंग
सबकी अपनी मर्जी
सबका अपना ढंग
कोई चढ़े सीढ़ी
कोई करे तंग .
वाह अमृता जी, कविता आपकी ऐसे पढ़ी, जैसे चढ़ी हो भंग...
वाह ... यह रंग तो सब पर छा गया ...
ReplyDeleteवाह जी वाह ।
ReplyDeletebahut hi khubsurat rachna....
ReplyDeletebahut accha ...
ReplyDeleteसब अपनी मर्जी के मालिक ..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना ..
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १०/७/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आप सादर आमंत्रित हैं |
ReplyDeleteसबकी अपनी मर्जी
ReplyDeleteसबका अपना ढंग
कोई चढ़े सीढ़ी
कोई करे तंग .
....बहुत खूब! एक अलग ही रंग...
वाह वाह |||
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ,,, मजेदार....
:-)
बेहतरीन कविता। व्यंग्य और हास्य के रंगो से सराबोर करती। बारिश के पहले मानसून के बिलंबित ताल में होने के संदर्भ में राग मल्हार को आड़े हाथ लेती हुई। कविता का मर्म- देख बदलती दुनिया...खरबूजा कितना दंग
ReplyDeleteपंक्तियों में उजागर होता है। मुहावरों का पलटवार करने की कला का सुंदर उदाहरण। स्वागत है।
सींकिया मलखंभ चढ़े
ReplyDeleteदबका हुआ दबंग
देख बदलती दुनिया
खरबूजा कितना दंग
सबकी अपनी मर्जी
सबका अपना ढंग
कोई चढ़े सीढ़ी
कोई करे तंग .
हाँ अमृता जी.... देखो दुनिया के बदले हुए रंग ....शमशान में नाचे कोई... कोई बजाये मृदंग
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
ha ha.. ekdum mast...
ReplyDeletemaza aa gaya... apne aap mein behtareen kawita.. behtareen prayog...
शुक्रिया ज़िन्दगी.....
वाह ... सभी चंद बेजोड ... एक से बढ़ के एक ... लाजवाब अभिव्यक्ति ... विभिन्न पहलुओं को बाँधा है इन छंदों में ...
ReplyDeleteआसमान सा हुआ
ReplyDeleteदमड़ी का दाम
रिश्वत खाए बादल
भूले अपना काम
सबकी अपनी मर्जी
सबका अपना ढंग
बहुत खूब, सुंदर !!
कबीराना तेवर हैं रचना के अंग अंग ,
ReplyDelete'तन्मय' हो पढ़ पढ़ ,सब लिखाड़ी दंग .बहुत बढ़िया कबीर की उलटवासी सी प्रस्तुति है अमृता जी तन्मय आपकी .बधाई स्वीकार करें .
लटापटी खूब करे
ReplyDeleteधागा बिन पतंग
झुका रहे तराजू
चढ़ा हुआ पासंग
दहाड़ मारे दहाड़
तुनका हुआ उमंग
आवाज़ चुप्पी खाए
गूंगा मचाये हुडदंगलटापटी खूब करे
धागा बिन पतंग
झुका रहे तराजू
चढ़ा हुआ पासंग
दहाड़ मारे दहाड़
तुनका हुआ उमंग
आवाज़ चुप्पी खाए
गूंगा मचाये हुडदंग
behattarin aur anokhi rachana.
मजेदार प्रयोग , विडंबना , बरजोरी , रंगबाजी , मक्कारी , सब तो इकठ्ठा है यहाँ . आपके बहु आयामी लेखन की प्रतिनिधित्व करती रचना .
ReplyDeleteआसमान सा हुआ
ReplyDeleteदमड़ी का दाम
रिश्वत खाए बादल
भूले अपना काम
कंबल तले लेटकर
केवल करे आराम
मौसम पैर दबाये
ठोंके जोर सलाम
विषमताओं की सुन्दर छंदमयी प्रस्तुति
सबकी अपनी मर्जी
ReplyDeleteसबका अपना ढंग
कोई चढ़े सीढ़ी
कोई करे तंग .
वाह अमृता जी ....ज़ोरदार ...जबर्दस्त ...!!
प्रभावी रंग छोड़ा है कविता ने ...!!
something very new .
ReplyDeleteinteresting and nice one.
बाप रे ई तो रउरा बिल्कुल अलग मिजाज़ में दिखी हैं आज तो आप ..
ReplyDeleteदोहों के मलखम्ब गाड़ दिए .....
गज़ब एक से बढ़कर एक ......
अद्भुत/रोचक सृजन....
ReplyDeleteआनंद आ गया...
सादर।