आप पकाए क्या ख़ालिस खिचड़ी
हांडी को ताकता रह जाए खीर
बड़ा नशीला है ये जालिम नमक
जिसके आगे भागे देखो भीड़
बारह मसाला में तेरह स्वाद
लज्ज़त लुटाये आपका चोखा
लार टपक कर लड़ता रह जाए
और जीभ तो खाता रहे धोखा
चाहे आप कुछ भी कहें न कहें
तनिक न लगती किसी को कड़वी
वर्जिश करना भी भूल चुके सब
आपका घी ही घटाए जो चरबी
मिर्च और खटाई खेले खटराग
तिसपर पर्दापोशी करे आप अचार
एक बार जो जी चढ़ जाए तो
हिचकियाँ लगाए हुड़दंगी विचार
बिन जामन के ही आप जमाए
कफ़ - वात- पित्त नाशक दही
छुआछूत से तौबा कर जीवाणु
हर बात को बस ठहराए सही
कोई हरजाई जो पलटी मारे तो
पटेबाज़ी कर पटाये आपका पापड़
मुँह पर मैंने ऊँगली डाल लिया जी
वर्ना कहीं खिचड़ी कर दे न चापड़ .
:-) ये खिचडी भी पूरे लाव लश्कर के साथ आयी है !
ReplyDeleteबहुत ही अलग सी रचना है एब्सर्ड आर्ट सी .
ReplyDeleteरचना में कवयित्री अपनी बात को अपने प्रियतम तक पहुँचाने के लिए कुलाचे भर्ती है .जिस प्यार को सीधा सीधा व्यक्त नहीं कर सकती उसे कविता के माध्यम से व्यक्त करती है .जिसे रूपक कहतें उसे सही ढंग से निबाह गई .है कविता .भाव यह है तुम जैसे भी हो मुझे स्वीकार्य हो .चापड़ पापड कुछ भी .पहली कविता में शतदल ,पद्म,कमल सभी तो हृदय का प्रतीक हैं .कविता में अपने प्रियतम को पाने की लालसा अधिक प्रबल है .बीच में कवयित्री संस्कृत के तत्सम शब्द ले आती है ,घुमाती रहती है बात को सीधे न कहकर प्रियतम पे ढाल देती है .समर्पित खुद है कविता के माध्यम से कहती है तुम समर्पण करो तो हृदय में बसा लूं अंक में भर लूं एक युवती की प्रगाढ़ प्रेम की लालसा हर कविता में प्रतिबिंबित है यहाँ .
ReplyDeleteनमक का अपना अलग ही स्वाद है
ReplyDeleteस्वाद में रहे तो नमक हलाल
स्वाद से कम या ज्यादा तो नमक हराम
मिर्च और खटाई खेले खटराग
ReplyDeleteतिसपर पर्दापोशी करे आप अचार
एक बार जो जी चढ़ जाए तो
हिचकियाँ लगाए हुड़दंगी विचार
...............
क्या बात है... बहुत ही चटपटा....
खट्टा..तीता... और मजा आ गया
खिचड़ी स्वादिष्ट बनी है। जीवन के कई रस और स्वाद को एक जगह जमा कर दिया है।
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteस्वादिष्ट रचना......
अनु
बहुत बढ़िया प्रस्तुती, सुंदर रचना,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
काव्य की यह रेसिपी नई है. कैसे बनाई है?
ReplyDeleteसुंदर रचना............स्वादिष्ट बनी..........बहुत ही चटपटा....
ReplyDeleteशब्दों के साथ सुंदर प्रयोग। अमूर्त कविताओं की श्रेणी में सबसे अव्वल। स्वागत है।
ReplyDeleteएक बार जो जी चढ़ जाए तो
ReplyDeleteहिचकियाँ लगाए हुड़दंगी विचार
अलहदा खिचड़ी ....रसपूर्ण
BAHUT KHOOB...
ReplyDeleteक्या बात है अमृताजी ..आज चौके पर ही धावा बोल दिया ......
ReplyDeleteखिचड़ी में सबका रोचक भाव, पाचक और स्वादिष्ट..
ReplyDeleteखिचड़ी का चटपटा स्वाद ...
ReplyDeleteसारे स्वाद लिए स्वादिष्ट बनी है खिचड़ी... सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteकहने को खिचड़ी खालिस ..... आपने जितनी भी बातें बिम्ब के रूप में कही हैं उसे मेरी नानी कुछ इस प्रकार कहती थीं ---
ReplyDeleteखिचड़ी तेरे चार यार
दही , पापड़ , घी , आचार । :):)
वाह आज को रसोई घर से ही कविता बुन ली आपने ...
ReplyDeleteबहुत लाजवाब ...
आपकी कविता समझने के लिये एक..दो..तीन..बार पढ़नी पढेगी...
ReplyDeleteसमझ कुछ नहीं आया इस खालिस खिचड़ी में हमारे :-(
ReplyDeleteबड़ा नशीला है ये जालिम नमक
ReplyDeleteजिसके आगे भागे देखो भीड़
बारह मसाला में तेरह स्वाद
यही चीज़ आजकल ज्यादा पसंद करते हैं सब .....
बिल्कुल सही लिखा है आपने ...!!
वाह ... जबरदस्त ख्ुयाल और मसालों का बेमिसाल संगम
ReplyDeleteखिचड़ी के हैं चार यार
Deleteदही, पापड़, घी, अचार :)
हर एक के गुणों से सुसज्जित स्वादिष्ट, लजीज खिचड़ी पकाई आपने
खिलाने के लिए शुक्रिया :)
रसोई से निकली मसाले से भरपूर रचना
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeleteYEH TO CHAKHNI HI PAREHEGI.
Take care
खालिस खिचड़ी का स्वाद जुबान पर आ गया...
ReplyDeleteआप ने अपनी प्रतिभा एक बार फिर खिचड़ी परोस कर दिखला दिया है.आप की हर कविता चाहे जिस भी विषय में लिखी हो अपनी एक बिशिस्टछाप छोड़ ही जाती है.पर सबसे मनभावन होती है प्रेम और समर्पण की अभिब्यक्ति.जीतनी पीड़ा और पुकार होती है उतना ही रहष्य्मय आपकी अभिब्यक्ति भी होती है.पाठको को कहीं बियाबान में अकेला छोड़ आती है किसी यादों में बिचरने के लिए. मीरा को पीछे छोड़ती प्रतीत होती है अमृता जी का बिरह.और अवचेतन मन की गूंज .बधाई.
ReplyDeleteये इश्क की नमकीन इयाँ हैं ,खिचड़ी पकेगी प्यार से ....ब्लॉग पे आपकी दस्तक और उत्साह वर्धक टिप्पणियाँ हमारे लेखन को हवा देती हैं ,आंच है हमारे लिखे की ...
ReplyDeleteबीर सिन्हा जी इस पीड़ा में यहाँ वहां महादेवी जी की पीर भी है निराला का औज़ भी पन्त की मिश्री और प्रकृति (चित्रण ) भी है खुद समर्पित यह मुग्धा नायिका प्रियतम से समर्पण करवाने की जिद ठाने है .इसीलिए यहाँ वहां पग डंडियों पे घुमाए फिरती है पाठक को .
ReplyDeleteआदरणीय बीरू भाईजी,
Deleteमै आपके ब्लॉग का नियमित पाठक हूँ.और आपके बिचारों का प्रशंसक भी.आप के ज्ञान्बर्धक लेखों से अवगत होता रहता हूँ.आज के सन्दर्व में मेरी सोच है उसे रखने का प्रयाश कर रहा हूँ.ब्यक्ति चेतना भाव्पुरित होती है.भाव का प्रवाह भोतिक माधयमो से आनंद की और खींचे लिए चलना चाहता है .प्रति इकाई चैतन्य अपने पूर्णत्वा में समाहित होना चाहती है यह आकर्षण ही है जिसे हम प्रेम के रूप में पहचानते है.यही पीड़ा है यही पुकार भी उस परम पूर्णत्वा की जिसे हम परमात्मा कह लेते हैं.अमृताजी की कविताएँ ब्यक्ति चैतन्य के भाव प्रवाह समस्ति चैतन्य की और प्रवाहित होती रहती है.दिखाती है.ऐसा ही प्रवाह महादेवी जी,मीरा बाई, bachan जी की मधुशाला पद कर होती है.आज हर ह्रदय उसी प्रेम की दिश में यात्रा करता दिखता है कभी कभी यह प्रवाह भोतिकता में ठहरकर भोगों में परिणत होकर दुखों का कारन बन जाता है.अमृताजी की सारी कविताएँ ब्यक्ति चेतना से समस्ति चेतना के लिए प्रेम और समर्पण किब्याथा का ही तो आलेख है.मुझे जैसा लगा मैंने ब्यक्त किया है .इसे सिर्फ मेरी ही सोच समझे.
आपका पाठक बिरेन्द्र .
वाह...लाजवाब खिचड़ी
ReplyDeleteबारह मसाला में तेरह स्वाद
ReplyDeleteलज्ज़त लुटाये आपका चोखा
लार टपक कर लड़ता रह जाए
और जीभ तो खाता रहे धोखा
बहुत सुन्दर ...
बिलकुल अलग अंदाज की कविता |
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