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Monday, July 16, 2012

गहूँ - गहूँ


पीली  - पीली
उगूँ    -   उगूँ
सीली - सीली
बहूँ    -    बहूँ

चली  -   चली
रुकूँ    -   रुकूँ
कली  -  कली
फिरूँ   -  फिरूँ

मिली -  मिली
कहूँ     -  कहूँ
खिली -खिली
दिखूँ  -  दिखूँ

घड़ी   -   घड़ी
पगूँ    -   पगूँ
भरी   -   भरी
रहूँ     -    रहूँ

दिया  -  दिया
जलूँ   -   जलूँ
पिया  -  पिया
गहूँ     -    गहूँ  .

43 comments:

  1. बहुत प्यारी सी रचना अमृता जी...

    चली - चली
    रुकूँ - रुकूँ
    कली - कली
    फिरूँ - फिरूँ
    ...यहाँ कली कली की जगह -गली गली तो नहीं लिखने को थीं आप??? या कली कली ,खिलूँ खिलूँ..???
    :-)

    सस्नेह
    अनु

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  2. चली - चली
    रुकूँ - रुकूँ
    कली - कली
    फिरूँ - फिरूँ

    .......................

    आह...



    दो अक्षर...दो शब्द

    दो मुखर... दो मौन

    दो नयन...दो बदन

    दो जीवन...दो जनम

    ....सिर्फ एक सवाल......

    आह......

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  3. पढ़ी - पढ़ी
    लिखूं - लिखूं
    रची - रची
    तूने - तूने

    (बहुत खूब ....इतिहास रची आपने .... !)

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  4. वाह ... अनुपम भाव

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  5. आठ मात्राओं से अलंकृत प्रत्येक पंक्ति अपनी रंगत लिए है.
    घड़ी-घड़ी
    पगूँ-पगूँ
    भरी-भरी
    रहूँ-रहूँ

    बहुत सुंदर.

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  6. बहुत सुंदर रचना

    सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर
    देखन में छोटन लगे, घाव करे गंभीर।

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  7. पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार का अनुपम उदाहरण ...गहन भाव समेटे प्यारी सी रचना

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    1. ek acchi jaankari..alankar ityadi ke bishay me jo school me padh liya wahi jaante hain..aap jaise rachnakar samay samay par kisi rachna ke madhym se sahity ke in pahluon ke baar me jaankaari dete rahenge to sahity se hamara rista aaur gahra hota jaayega,,sadar badhayee ke sath

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  8. सुन्दर प्रस्तुति

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  9. कुछ अलग कुछ नया.....वाह ...वाह।

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  10. बेहतर .......बेहतर ...!

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  11. Amrita ji Namaskar..
    Kuch jyada hi goodh ho gayi hai rachna ...
    hamare jaise pradiyon ke bus ke bahar hai isse samajhna ...

    Dhanyabad

    http://yayavar420.blogspot.in/

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  12. सुंदर, लाजवाब , बहुत खूब ....
    और क्या कहूँ ! :)
    शब्द कम पड़ रहे हैं .....

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  13. पीली ऊगूँ सीली बहू चली रुकूं कली फिरूं मिली कहूं खिली दिखूं घडी पगूँ भरी रहूँ

    आपने मर्म स्थल को छू लिया .

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  14. छा गयी अमृताजी ,
    मै कल्पना भी नहीं कर सकता था इस छोटी छोटी सी अनोखी शब्दों की माला में इतना प्यारा सा हिंदी काब्य जगत को.उपहार.इन दो शब्दों की ध्वनि पाठकों के ह्रदय में धड़कती रहेगी.शानदार.बधाई.

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  15. बहुत सुन्दर रचना
    बेहतरीन अंदाज..
    :-)

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  16. Amrita,

    YEH DHANG BAHUT ACHCHHA LAGAA.

    Take care

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  17. शब्दों का समन्वय अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "अतीत से वर्तमान तक का सफर" पर आपका हार्दिक अभिनंदन है।

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  18. वाह वाह... बहुत खूबसूरत निराला अंदाज़...अद्वितीय रचना... आभार

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  19. वाह अमृता जी ...बहुत ही सुंदर भाव ...
    उड़ी उड़ी फिरूँ फिरूँ ....
    बस गाती जा रही हूँ आपकी रचना ...
    आज बधाई ले लीजिये ....
    सुंदर ...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ... ...!!

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  20. अलग-थलग
    अपना-अपना सा
    जीवन-जीवन
    सपना-सपना सा

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  21. ye to kamal kee rachna hai..shayad pahli baar padhi..aapkee progvadita ko naman.sadar badhayee ke sath

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  22. मेरी तरफ से बहुत सारी
    शुभकामनाएँ!

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  23. वाह, दो शब्दों की है यह कहानी...सुंदर कविता !

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  24. एक्सेलेंट , अद्भुत . कम शब्दों में बहुत कुछ कह गई .

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  25. वाह ... बेहतरीन अभिव्यक्ति ... कुछ शब्दों में पूरे भाव ... सम्पूर्ण रचना ... लाजवाब ...

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  26. बाप रे -अर्थ अमित अति आखर थोड़े को चरितार्थ कर दिया अमृता आपने!
    ब्रेविटी इज द सोल आफ विट-संक्षिप्ति वक्तृता की आत्मा है -
    और यह भी -
    कवयित्री के गहने को पाठकों ने भी ग्राह्य किया ....टिप्पणियाँ बता रही हैं !

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  27. अद्भुत लाजबाब रचना,,,,के लिए बधाई ,,,अमृता जी ,,,,

    RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....

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  28. ध्वन्यात्मक प्रभाव..

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  29. वाह! रचना में तो दम है, बेहतरीन रचना

    शSSSSSSSSSS
    कोई है

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  30. वाह !अद्भुत !
    नज़र नज़र ठहर जाएँ,
    खुशबुओं में तैर जाएँ |

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  31. शब्दों का जाल बिछा के,,,गागर में सागर भर दिया |
    बहुत ही उम्दा रचना...
    मेरा ब्लॉग आपके इंतजार में,समय मिलें तो,बस एक झलक-
    "मन के कोने से..."
    आभार..|

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