गिरने दो अपनी अहं - दीवारें
सम्पूर्ण - समर्पण की राहों में
तब मेरा पद्म तुम्हें भर लेगा
मूक -मिलन के मधुर बाँहों में
तुम चाहे जिस -जिस देश रहो
जब -जब चाहे कोई वेश धरो
पल -पल की प्रतिच्छाया बनकर
ये अम्बुज अंक लगा जायेगा
इन अधरों के इति इंद्रधनु बनो
और बस भोले दृग की बात सुनो
तरल -चपल गतिविधियाँ न्यारी
ये कलित कंज कर भरमा जाएगा
ज्यों धरा तरसे तुम भी तरसो
उस धाराधर सा जमकर बरसो
तन - मन -प्राण से भींग जाने को
ये जलज भी खिल-खिल जाएगा
विगत -आगत से तुम विरत रहो
जिधर मैं खींचू बस उधर ही बहो
मंद -मदिर सा अधीर समीर में
ये पुलकित पंक लहरा जाएगा
माना एक से बढ़ एक चुभन है
चंचल चित्त उद्वेलित चिंतन है
पर कोई सुन्दर स्वप्न सुनहला
ये कमल किलक दिखा जाएगा
शब्द - शब्द से कुछ भी न कहो
असह्य वेदना का अनुताप सहो
तेरी धड़कनों की आह का स्वर
ये सरसिज स्वयं में पा जाएगा
कोमल कितने प्रिय!चरण तुम्हारे
कि काँटे हिल -मिल बसुधा बुहारे
और तेरे पथ पर पंखुड़ियों को
ये शतदल सदा बिखरा जाएगा
कितना मृदुल - मोहक है ये पाश
चहुँ ओर प्रिय! लखे तेरा ही भास
जिसपर गर्वित रूप कर निछावर
ये नंदित नलिन निखरा जाएगा
मत घबराओ निज हाथ बढ़ाओ
मिट जाओ इन्हीं शाश्वत चाहों में
तब मेरा पद्म तुम्हें भर लेगा
मूक -मिलन के मधुर बाँहों में .
तुम चाहे जिस-जिस देश रहो
ReplyDeleteजब-जब चाहे कोई वेश धरो
पल-पल की प्रतिच्छाया बनकर
ये अम्बुज अंक लगा जायेगा
शतमन्यु में आरोपित प्रेम भाव की बहुत सशक्त अभिव्यक्ति.
बहुत सुन्दर...(हालांकि अल्पज्ञान की वजह से समझने में थोड़ी मुश्किल आई )
ReplyDeleteअनु
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबधाई ||
सशक्त और प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteशब्द - शब्द से कुछ भी न कहो
ReplyDeleteअसह्य वेदना का अनुताप सहो
तेरी धड़कनों की आह का स्वर
ये सरसिज स्वयं में पा जाएगा
.............................................
कहो शब्द को.. कि वो शब्द-शब्द जी ले..
वेदना का अनुताप तो मिट जाएगा
हमारा जख्म भी अलहदा है...
वो मिटकर भी अपनी बात कह जाएगा.....
शब्द - शब्द से कुछ भी न कहो
ReplyDeleteअसह्य वेदना का अनुताप सहो
तेरी धड़कनों की आह का स्वर
ये सरसिज स्वयं में पा जाएगा
मौन में ही वह मिलता है और दर्द में ही वह खिलता है..बहुत गहरे भाव !
Amrita,
ReplyDeletePAHLI PANKTI MEIN JO AAPNE KAHAA WOH BILKUL SACH HAI - APNAA AHM GIAAO. BAHUT SUNDER RACHI HAI YEH KAVITAA AAPNE.
Take care
मत घबराओ निज हाथ बढ़ाओ
ReplyDeleteमिट जाओ इन्हीं शाश्वत चाहों में
तब मेरा पद्म तुम्हें भर लेगा
मूक -मिलन के मधुर बाँहों में .
लाजबाब अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,,,,
तुम चाहे जिस-जिस देश रहो
ReplyDeleteजब-जब चाहे कोई वेश धरो
पल-पल की प्रतिच्छाया बनकर
ये अम्बुज अंक लगा जायेगा
अनुभूत को शब्दों में ढाल जादू रचा है आपने कविता मोहिनी का .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
शुक्रवार, 20 जुलाई 2012
क्या फर्क है खाद्य को इस्ट्यु ,पोच और ग्रिल करने में ?
क्या फर्क है खाद्य को इस्ट्यु ,पोच और ग्रिल करने में ?
कौन सा तरीका सेहत के हिसाब से उत्तम है ?
http://veerubhai1947.blogspot.de/
जिसने लास वेगास नहीं देखा
जिसने लास वेगास नहीं देखा
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
ज्यों धरा तरसे तुम भी तरसो
ReplyDeleteउस धाराधर सा जमकर बरसो
तन - मन -प्राण से भींग जाने को
ये जलज भी खिल-खिल जाएगा
बहुत खूबसूरत रचना
कितना मृदुल - मोहक है ये पाश
ReplyDeleteचहुँ ओर प्रिय! लखे तेरा ही भास
जिसपर गर्वित रूप कर निछावर
ये
नंदित नलिन निखरा जाएगा , शारीर के बोध के साथ ही अंह का बोध जगता है.शारीर के बोध साथ ही मिलन और बिरह भी जागते हैं उस निराकार शाश्वत सत्ताका साकार स्वरुप ही तो दैहिक सत्ताओं के प्रति प्रेम उत्त्पन्न करता है.किन्ही दो सत्ताओं का आकर्षण मन और भाव के तल पर एक होकर उस परम चैतन्यता का समस्ति में ब्याप्त होता ही दिखलाता है.आप ने इतनी गहरी अभिब्यक्ति इस काब्य के माध्यम से की है की जिसकी प्रसंसा में शब्दों का मिलना कठिन सा लगता है .ऐसी काब्य रचना के लिए अनेक बधाई .
शब्द - शब्द से कुछ भी न कहो
ReplyDeleteअसह्य वेदना का अनुताप सहो
तेरी धड़कनों की आह का स्वर
ये सरसिज स्वयं में पा जाएगा
सात्विक और मनहर भाव
सब बंद मनोहर हृदयंगम हैं
ReplyDeleteमन पुलकित भाव विहंगम हैं
वाह एक अत्युत्तम अभिव्यक्ति!
कितना मृदुल - मोहक है ये पाश
ReplyDeleteचहुँ ओर प्रिय! लखे तेरा ही भास
जिसपर गर्वित रूप कर निछावर
ये नंदित नलिन निखरा जाएगा
अद्भुत शब्द रचना ...!
शब्दों , भावों की अद्भुत छटा .आपकी लेखनी में पद्मासना विराजती है .
ReplyDeleteअद्भुत कविता, उर्वशी के अध्ययन में सहायक..आभार..
ReplyDeleteतुम चाहे जिस -जिस देश रहो
ReplyDeleteजब -जब चाहे कोई वेश धरो
पल -पल की प्रतिच्छाया बनकर
ये अम्बुज अंक लगा जायेगा
हाँ न .... अक्षर अक्षर .. आ पहुंचते है सायो की तरह !
साक्षात मुरली मनोहर की आवाज़ ....धन्य हुए आज आपकी कविता पढ़ कर ...दिव्य रूप कविता का ...इतना समर्पण ..अद्भुत राह पर ले चली ये कविता आपकी ...और हम निशब्द हो साथ चल रहे हैं ...आप तक पहुंचने के लिये ...सुखद अनूभुति है ...बस पढ़ते हैं आपको ...गुन गुन गुनते भी है ...
ReplyDeleteबहुत आभार इस कविता के लिये ....!!
विगत -आगत से तुम विरत रहो
ReplyDeleteजिधर मैं खींचू बस उधर ही बहो
मंद -मदिर सा अधीर समीर में
ये पुलकित पंक लहरा जाएगा
शब्द-शब्द मोती जैसी आभा से दमकता हुआ... बहुत सुन्दर भाव...आभार अमृताजी
मत घबराओ निज हाथ बढ़ाओ
ReplyDeleteमिट जाओ इन्हीं शाश्वत चाहों में
तब मेरा पद्म तुम्हें भर लेगा
मूक -मिलन के मधुर बाँहों में .
सशक्त भाव लिए उत्कृष्ट प्रस्तुति ...आभार
सुन्दर पोस्ट।
ReplyDeletegOOD..
ReplyDeleteaDVITEEYA rACHANA ...
nEW pOST -"aBLA kAOUN"
http://yayavar420.blogspot.in/
कितना मृदुल - मोहक है ये पाश
ReplyDeleteचहुँ ओर प्रिय! लखे तेरा ही भास
जिसपर गर्वित रूप कर निछावर
ये नंदित नलिन निखरा जाएगा
...अद्भुत रचना..बहुत गहन भावाभिव्यक्ति...
शब्द - शब्द से कुछ भी न कहो
ReplyDeleteअसह्य वेदना का अनुताप सहो
तेरी धड़कनों की आह का स्वर
ये सरसिज स्वयं में पा जाएगा... बस अहम् की दीवार तोड़ दो
गिरने दो अपनी अहं - दीवारें
ReplyDeleteसम्पूर्ण - समर्पण की राहों में
तब मेरा पद्म तुम्हें भर लेगा
मूक -मिलन के मधुर बाँहों में
.....कितनी सुन्दर पंक्तियाँ ......सच कितना ज़रूरी है ...मैं को हम बनाना ....तभी पूर्ण समर्पण संभव है ....बहुत सुन्दर !!!!!
बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteशब्द - शब्द से कुछ भी न कहो
ReplyDeleteअसह्य वेदना का अनुताप सहो
तेरी धड़कनों की आह का स्वर
ये सरसिज स्वयं में पा जाएगा......बहुत गहन भावाभिव्यक्ति...
बहुत खूबसूरत रचना....
ReplyDeleteअद्भुत लेखन | वाह |
ReplyDeleteसुन्दर प्रकृति का चित्रण बहुत गहन भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteगिरने दो अपनी अहं - दीवारें
सम्पूर्ण - समर्पण की राहों में
आपकी कुछ कविताएं निःशब्द कर देती हैं। सिर्फ मौन और अनुभूति बचती है। स्वागत है।
ReplyDeletegahre bhaavo se bindhi sunder mala si ye kavita.
ReplyDeleteGreat blog! Very stylish and well diversified. :)
ReplyDeleteWelcome to my blog: http://photographyismyexistence.blogspot.com/
Yours. Patricja [;
मत घबराओ निज हाथ बढ़ाओ
ReplyDeleteमिट जाओ इन्हीं शाश्वत चाहों में
तब मेरा पद्म तुम्हें भर लेगा
मूक -मिलन के मधुर बाँहों में .
वाह ...उत्कृष्ट भाव....बेहतरीन शब्द चयन ....
गिरने दो अपनी अहं - दीवारें
ReplyDeleteसम्पूर्ण - समर्पण की राहों में
तब मेरा पद्म तुम्हें भर लेगा
मूक -मिलन के मधुर बाँहों में.
गहन भावाभिव्यक्ति. सुंदर शब्दों से सजा सुंदर गीत.
bahut khoob ..
ReplyDeleteAdbhut....
ReplyDeleteमाना एक से बढ़ एक चुभन है
ReplyDeleteचंचल चित्त उद्वेलित चिंतन है
पर कोई सुन्दर स्वप्न सुनहला
ये कमल किलक दिखा जाएगा
bahut hee sundar bhav,badhai.
सुब्दर शब्दों और भावों की अभिव्यक्ति का मिश्रण है लाजवाब रचना ...
ReplyDeleteबड़ी सुंदर रचना है यह ...
ReplyDeleteबधाई आपको !
भाव अर्थ और व्यंजना में अमृता जी का ज़वाब नहीं हर रचना अपना अलग पैरहन शब्दों का लिबास लिए आती है नए बिम्ब बिछाती है .
ReplyDeleteरचना में कवयित्री अपनी बात को अपने प्रियतम तक पहुँचाने के लिए कुलाचे भर्ती है .जिस प्यार को सीधा सीधा व्यक्त नहीं कर सकती उसे कविता के माध्यम से व्यक्त करती है .जिसे रूपक कहतें उसे सही ढंग से निबाह गई .है कविता .भाव यह है तुम जैसे भी हो मुझे स्वीकार्य हो .चापड़ पापड कुछ भी .पहली कविता में शतदल ,पद्म,कमल सभी तो हृदय का प्रतीक हैं .कविता में अपने प्रियतम को पाने की लालसा अधिक प्रबल है .बीच में कवयित्री संस्कृत के तत्सम शब्द ले आती है ,घुमाती रहती है बात को सीधे न कहकर प्रियतम पे ढाल देती है .समर्पित खुद है कविता के माध्यम से कहती है तुम समर्पण करो तो हृदय में बसा लूं अंक में भर लूं एक युवती की प्रगाढ़ प्रेम की लालसा हर कविता में प्रतिबिंबित है यहाँ .
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