मैं अनवरत
अपनी ही भाषा की खोज में
अपनी प्रकृति से
सतत स्पष्ट-अस्पष्ट
संवाद करती रहती हूँ...
स्वयं ही
दृश्य-अदृश्य गति-तरंगों में
वाक्य-विन्यास सी बनती-बिगड़ती हूँ...
अति आंतरिक किन्तु
जटिल संरचनाओं को उसके
मूलक्रमों में सजाती-संवारती हूँ.....
फिर शब्द-तारों को
सुमधुर स्वरचिह्नों में
समस्वरित-समरसित करती हूँ.....
सरल-विरल भावों के
सुलझे-अनसुलझे
रहस्यों को बुनती-गुनती हूँ.....
उस काव्य-बोध के
चरम-बिंदु का
पहचान-निर्माण करती हूँ....
जिसके द्वारा रचित
चिरजीविता कविता को
उसकी यात्रा पर
अक्षरश: अग्रसर करती हूँ....
सत्यश:
मैं....मैं तो केवल.....
अभिव्यक्ति का व्याकरण बन
नवरसों के नवसृजन का
बस मधुपान-मधुगान करती हूँ .
बेहद उम्दा अभिव्यक्ति।
ReplyDeletenice
ReplyDeleteवाह: बहुत गहन भाव लिए सुन्दर रचना..
ReplyDeleteसत्यश:
ReplyDeleteमैं....मैं तो केवल.....
अभिव्यक्ति का व्याकरण बन
नवरसों के नवसृजन का
बस मधुपान-मधुगान करती हूँ .
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,सुंदर रचना,,,,
MY RECENT POST...:चाय....
sundar shbd sanyojan..
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति ।।
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी !
सूचनार्थ!
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बस यही मधुपान-मधुगान आपकी कविता को चिरजीविता बना देता है... अद्भुत शब्द संयोजन... आभार
ReplyDeleteवाह कितनी सुन्दर कविता कितना सुन्दर भाव ...
ReplyDeleteसुगम अगम मृदु मंजु कठोरे अर्थ अमित अति आखर थोरे
.................................................................
विरोधाभासी भावों का संघर्ष जो कहीं 'स्व' पर आकर शांत हो जाता है.
ReplyDeleteनवरसों के नवसृजन का
बस मधुपान-मधुगान करती हूँ.
कविता को कई बार पढ़ गया हूँ.
मैं बस रचती हूँ .
ReplyDeleteनवरसों के नवसृजन का
बस मधुपान-मधुगान करती हूँ...बढ़िया प्रस्तुति
Amrita,
ReplyDeleteAPNE JAANE KE BAAD BHI KUCHCHH YADEIN CHHOD JAANE KI BHAWANA BAHUT SUNDRATAA SE KAHI HAI.
Take care
सुन्दर रचना सुन्दर शब्दों के संयोजन से पढने को मिली ......................धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना,,
ReplyDeleteमैं....मैं तो केवल.....
ReplyDeleteअभिव्यक्ति का व्याकरण बन
नवरसों के नवसृजन का
बस मधुपान-मधुगान करती हूँ .
पर आप हैं कौन ?
अमृता
या
तन्मय
या
अमृता तन्मय
आपका स्वरुप तो कमाल का है जी.
इस व्याकरण के सूत्र को पकड़कर आपने जिस संसार का सृजन किया है वह उत्तम भविष्य का संकेत करता है।
ReplyDeleteमन के माध्यम से मन के परे उस भावातीत अस्तित्व से प्रस्फुटित काब्य की धाराके प्रवाह को शब्दों का बाना देकर लेखनी के माध्यम से सवारना तथा ध्वनि एवं भावों का चित्रांकन करने की आपकी विधा को नमन .काल प्रवाह में ऐसी रचनाएँ शोध की विषय बन जाएगी.अद्भुत एवं अविस्मरनीय रचना.हार्दिक बधाई.
ReplyDeletebeautiful lines and deep thought.
ReplyDeleteati uttam
ReplyDeleteसरल-विरल भावों के
ReplyDeleteसुलझे-अनसुलझे
रहस्यों को बुनती-गुनती हूँ.....
मैं....मैं तो केवल.....
अलौकिक शब्द.... अनगढ़ भाव....
बढ़िया शब्द.....चिरजीविता....
अस्तित्व को सजगता के साथ जीने का अंदाज आपकी कविता में अभिव्यक्ति पाता है। सृजन प्रक्रिया पर आपकी पकड़ बहुत अच्छी है। अपने को पुर्नपरिभाषित करने की शानदार कोशिश। आपके नवसृजन गीत का हार्दिक स्वागत है। सुंदर रचना के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ,
ReplyDeleteनवरसों के नवसृजन का
ReplyDeleteबस मधुपान-मधुगान करती हूँ .
और हम इस रस में भीगे रहते हैं !
खूबसूरत रचना !
नवरसों के नवसृजन का
ReplyDeleteबस मधुपान-मधुगान करती हूँ
और फिर यही शायद जीवन का मूलमंत्र है
चिरंजीवी भव ! आपके लिए और आपकी रचनाओं के लिए.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, अन्तरतम प्रभावित करती..
ReplyDeleteमैं....मैं तो केवल.....
ReplyDeleteअभिव्यक्ति का व्याकरण बन
नवरसों के नवसृजन का
बस मधुपान-मधुगान करती हूँ ... बेहतरीन अभिव्यक्ति
धन्य हैं गुरु जी.....मुझे तो अपना शिष्य बना लें....हिंदी का ।
ReplyDeleteमैं....मैं तो केवल.....
ReplyDeleteअभिव्यक्ति का व्याकरण बन
नवरसों के नवसृजन का
बस मधुपान-मधुगान करती हूँ .
बहुत सुंदर सृजन ...
नवरसों के नवसृजन का
ReplyDeleteबस मधुपान-मधुगान करती हूँ .
हृदय का सत्य कहती ..सुंदर अभिव्यति...
शुभकामनायें अमृता जी ...
केवल एक शब्द" अद्भुत " --- ना जाने कितने शब्द और भाव आपकी राह तक रहे होगे कविता में ढल जाने के लिए .
ReplyDeleteKUCH JYADA HI TYPICAL SHABD HO GAYE ...
ReplyDeleteVAISE EK ACCHI RACHNA ...
DHANYABAD...
http://yayavar420.blogspot.in/
शानदार लेखनी अपना प्रभाव अवश्य छोडती है !
ReplyDeleteशुभकामनायें ! !
शानदार!!!
ReplyDeleteदीदी सबसे अच्छी बात ये लगती है की आपकी कविता में शब्दों का इतना अच्छा तालमेल रहता है की कविता बहुत ही खूबसूरत लगने लगती है..
और आपसे कभी मिलूँगा तो ऐसी हिन्दी मैं भी सीखना चाहूँगा!!
आपकी कविताओं में शब्दों का चयन एवं सुदर भावों का समावेश बहुत ही अच्छा लगता है। बहुत ही अच्छी प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित है। धन्यवाद।
ReplyDeleteसुन्दर शब्द चयन और अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteआशा
चिरजीविता
ReplyDeleteओह! चिरजीविता ही नही चिरतन्मयता भी.
आपकी अभिव्यक्ति को बार बार पढकर
ऐसा ही अनुभव होता है.
चिरंजीवी रहे यह नवसृजन !!!!
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