अब तो मनु नहीं नादान
सृष्टि-ध्वंस का है उसे ज्ञान
जब प्रकृति पर भारी है विज्ञान
तब तो प्रलय की आहट पहचान
भय भी हो रहा है भयभीत
किसकी हार है किसकी जीत
कौन किसका कर रहा है उपहास
या चेतना का हुआ अकल्प ह्रास
पुनः चीख रही है चीत्कार
वही मांसल-चीथड़ों का व्यापार
फैला लहू है दृश्य विकराल
बह रही है आँसुओं की धार
कैसा मचा हुआ है हाहाकार
स्नेही-जन की अधीर पुकार
तेरे विश्व में हे ! भगवान्
निज प्राणों का शत्रु हुआ प्राण
क्या कलियुग का यही अभिशाप
हर ह्रदय कर रहा है विलाप
कैसा घृणित, कुत्सित अभियान
मानवता का है घोर अपमान
वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
आगामी विस्फोटों को दो विराम
शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण
त्राहि - त्राहि हे ! त्रायमाण .
आज अनंत चतुर्दशी के दिन यही प्रार्थना है... मानवता का विकास हो ...
ReplyDeleteमानवता की जय हो ...
दानवता की पराजय हो ...!!!
बहुत ही भावपूर्ण है आपकी कविता ...बधाई ....अमृता जी ...main bhi shamil hoon is prarthana me ...
सृष्टि में होने वाली हर घटना का चित्र खींचा है आपने .....मानव अपने कारण ही खुद के अस्तित्व को दाव पर लगा रहा है और अगर यही हाल रहा तो उसका क्या होगा इस विषय में सोचा जा सकता है ...कविता की अंतिम पंक्तियाँ आशान्वित करती हैं ......आपका आभार
ReplyDeleteक्या कलियुग का यही अभिशाप
ReplyDeleteहर ह्रदय कर रहा है विलाप
कैसा घृणित, कुत्सित अभियान
मानवता का है घोर अपमान... jiske dansh chubhte hain
शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण...
ReplyDeleteहे !त्रायमाण...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....एक पूर्ण काव्य... सादर बधाई...
वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
ReplyDeleteआगामी विस्फोटों को दो विराम
बहुत ही अच्छा संदेश दिया है आपने।
सादर
अहंकार और वासना- शायद यह दो मनोवृत्तियां सभ्यता को ले डूबेंगे :(
ReplyDeleteआज 11- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
आस्था, विश्वास और सर्वकल्याण की भावना से ओतप्रोत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteजब प्रकृति पर भारी है विज्ञान
ReplyDeleteतब तो प्रलय की आहट पहचान
सही वक़्त पर सही पुकार बढ़िया शब्द चयन
वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
ReplyDeleteआगामी विस्फोटों को दो विराम
शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण
त्राहि - त्राहि हे ! त्रायमाण .
satik aahvan
वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
ReplyDeleteआगामी विस्फोटों को दो विराम
शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण
त्राहि - त्राहि हे ! त्रायमाण .
बड़ी सामायिक प्रार्थना है. बहुत बधाई.
मनु को सब पता है . मनु ने प्रलय भी देखी है . लेकिन फिर भी अपने अहंकार में क्षणभंगुरता को भूल गया है . हमारे भी करपुष्प आपकी इस आराधना में .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता बधाई
ReplyDeleteवासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
ReplyDeleteआगामी विस्फोटों को दो विराम
बढ़िया प्रस्तुति |
बधाई ||
Bahut hi saarthak kathya ko prastut karti is rachna ke liye hum aabhar vyakt karte hain...
ReplyDeleteवासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
ReplyDeleteआगामी विस्फोटों को दो विराम
शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण
त्राहि - त्राहि हे ! त्रायमाण . सटीक लिखा है .....
क्या कलियुग का यही अभिशाप
ReplyDeleteहर ह्रदय कर रहा है विलाप
कैसा घृणित, कुत्सित अभियान
मानवता का है घोर अपमान
सटीक और सार्थक आह्वान ... संवेदन शील प्रस्तुति
जब पिता जी ने साईकिल दी थी...तो कहा था छोटे-छोटे गड्ढे बचाओ हैंडिल खुद सध जायेगा...जहाँ गुंडे और छुटभैये पुलिस की पश्रय में ही पनप रहे हों...वहां बाहरी आतंकवाद से निपटने की उम्मीद बेमानी लगती है...
ReplyDeleteक्या कलियुग का यही अभिशाप
ReplyDeleteहर ह्रदय कर रहा है विलाप
कैसा घृणित, कुत्सित अभियान
मानवता का है घोर अपमान
चेतावनी देती कविता।
सामयिक रचना.....दिल को भेदती हुई !
ReplyDeleteआज के हालातों को बखूबी शब्द देती, मानव की चेतना को झकझोरती हुई कविता ! आभा र!
ReplyDeleteपरित्राणाय साधूनाम्...
ReplyDeleteकैसा मचा हुआ है हाहाकार
ReplyDeleteस्नेही-जन की अधीर पुकार
तेरे विश्व में हे ! भगवान्
निज प्राणों का शत्रु हुआ प्राण
....बहुत समसामयिक और सटीक प्रस्तुति..
बहुत ही सुन्दर पोस्ट............बहुत गहरे कहीं चोट करती और फिर इश्वर के सामने उसके लिए प्रार्थना करती ये पोस्ट बहुत पसंद आई.........हैट्स ऑफ |
ReplyDeleteपुनः चीख रही है चीत्कार
ReplyDeleteवही मांसल-चीथड़ों का व्यापार
फैला लहू है दृश्य विकराल
बह रही है आँसुओं की धार
वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
आगामी विस्फोटों को दो विराम
शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण
त्राहि - त्राहि हे ! त्रायमाण
दृढ निश्चय की ओर सकारात्मक कदम !
saarthak rachna, shubhkaamnaayen.
ReplyDelete@@
ReplyDeleteक्या कलियुग का यही अभिशाप
हर ह्रदय कर रहा है विलाप
कैसा घृणित, कुत्सित अभियान
मानवता का है घोर अपमान
वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
आगामी विस्फोटों को दो विराम
शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण
----बहुत बढ़िया,आभार.
वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
ReplyDeleteआगामी विस्फोटों को दो विराम
सटीक और सार्थक आह्वान ...
बहुत ही अच्छा संदेश दिया है आपने।
आस्था, विश्वास और सर्वकल्याण की भावना से ओतप्रोत सटीक और सार्थक रचना ! ...बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सन्देश दिया है आपने अपनी रचना के माध्यम से.
ReplyDeleteकाश! मानव प्रलय के चेतावनी चिन्हों को समझ पाए.
देर से आ पाया हाय हाय दुनियादारी और मजबूरियां ...
ReplyDeleteएक हाहाकारी कविता -ह्रदय को प्रकम्पित करते हए ...
बड़ी संभावनाएं हैं इस कलम में ....दिल दिमाग कुर्बान !
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या कहने
वासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
ReplyDeleteआगामी विस्फोटों को दो विराम
शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण
त्राहि - त्राहि हे त्रायमाण ...
ये दुनिया एक अंधी दौड़ में लिप्त है ... प्राकृति की किसी को नहीं पड़ी है ... बहुत ही विचारणीय रचना है ..
मानव द्वारा सृष्टि में किए जा रहे असर्जक कार्य को रेखांकित करती सुंदर रचना है जो भविष्य के प्रति आशंकित है और चेतावनी देती है. सार्थक कविता.
ReplyDeleteVery vivid presentation of Modern Day's pity situation of our country.
ReplyDeleteवासना-लिप्सा पर लगाओ लगाम
ReplyDeleteआगामी विस्फोटों को दो विराम
शरणागत हैं तेरे करो सबका त्राण
त्राहि - त्राहि हे ! त्रायमाण .
हृदय का यह करुण क्रंदन झकझोर
रहा है.
आपकी मार्मिक ह्रदयस्पर्शी प्रस्तुति
गहराई से'आर्त' हो पुकार रही है
त्राहि त्राहि हे ! त्रायमाण.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.