साँझ फिर उदास है
जिया जो नहीं पास है
सब लौट रहे घर को
कोई कह दे बेखबर को
राह कहीं भटक न जाए
या वहीँ अटक न जाए
रात फिर बेआस है
पिया जो नहीं पास है
सब रीझती औ रिझाती होंगी
पिया संग हँसती- गाती होंगी
मैं अँखियों में तारा भरती
और चंदा को निहारा करती
प्रात: पिघलता आस है
धुँधला - धुँधला उजास है
हाय ! कैसा ये खग्रास है
कबतक का वनवास है
जिया आये न रास है
पिया जो नहीं पास है.
सुन्दर लिखा है.
ReplyDeleteवाह विरह का बहुत सुन्दर वर्णन किया है।
ReplyDeleteसुन्दर भाव ...
ReplyDeleteसुन्दर भाव... अच्छी रचना...
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteआपको बहुत-बहुत --
बधाई ||
सरल शब्दों में भावाभिव्यक्ति बहुत सुंदर बन पड़ी है.
ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeletevirah ke apratim bhaw...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,वाह.
ReplyDeleteवाह ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteMilan-icchha ki tadap ko bahut hi khubsoorti aur gehraai se pesh kiya hai aapne.. Aabhar..
ReplyDeleteमोरा रे अंगनवा चन्दन की रे गछिया , ताहि चढ़ कुरुरे काग रे
ReplyDeleteसोने चोंच मढ़ाअसी देबो , मोरा पिया जो आवत आज रे
बहुत सुंदर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति....
ReplyDeletevirah ki tarap ka bakhan karti prastuti........
ReplyDeleteपिया जाये तो फिर
ReplyDeleteजिया नहीं जाये :)
पिया के पास न होने पर कितना मन उचाट हो जाता है ....भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति ....आपका आभार
ReplyDeleteआजकल विरह की कविता ज्यादा मिल रही हैं ..........क्या बात है अमृता जी?..............वैसे बहुत सुन्दर कविता है.........
ReplyDeleteशाम से रात और फिर सुबह भी हो गयी... वह नहीं आए...इस गम में यह कविता भी हो गयी... शब्दों पर आपकी अच्छी पकड़ है...सुंदर कविता!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत कविता बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteपिया नहीं जब गाँव में...
ReplyDeleteआग लगे सब गाँव में...
dil ka hal kahe dil wala..seedhi si baat na mirch masala..badi hi sadgi se behtarin birah vyatha ka chitran..hardik badhayee aaur apni nayi rachnaon ki taraf se aapko nimantran
ReplyDeleteकोमल प्यारे भाव....... सुंदर पंक्तियाँ हैं....
ReplyDeleteप्रात: पिघलता आस है
ReplyDeleteधुँधला - धुँधला उजास है
हाय ! कैसा ये खग्रास है
कबतक का वनवास है...
सुन्दर शब्द चयन और सुन्दर भावाभिव्यक्ति
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 05-09-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeleteप्रात: पिघलता आस है
ReplyDeleteधुँधला - धुँधला उजास है..sundar bhav...
अच्छी एवँ भावपूर्ण कविता !!!
ReplyDeletevery romantic poetry.
ReplyDeletehttp://www.belovedlife-santosh.blogspot.com
महादेवी की पंक्तियाँ बरबस ही याद हो आयीं -
ReplyDeleteमैं बनी मधुमास आली ,
आज मधुर विषाद की घिर करूँ आयी यामिनी
बरस सुधि के इंदु से छिटकी पुलक की चांदनी
उमड़ आयी री दृगों में सजन कालिंदी निराली
मैं बनी ...
रजत स्वप्नों में उदित अपलक विरल तारावली
जाग शुक पिक ने अचानक मदिर पंचम तान ली
अब न क्या प्रिय की बजेगी मुरलिका मधु राग वाली
मैं बनी ....
.............
कितना भी विरह कितनी ही पीड़ा हो फिर भी मिलने आस है. लाजवाब बधाई
ReplyDeleteबेहद भाव-पूर्ण कृति..
ReplyDeleteविरह का दुःख बहुत बड़ा दुःख होता है..
पिया के साथ न होने का एहसास सालता है हर पल ... बहुत पीड़ा लिए है यह रचना ...
ReplyDeleteवियोगावस्था का सटीक चित्रण.
ReplyDeleteविरह की वेदना को प्रदर्शित करती हुई लाजवाब पंक्तियाँ!
ReplyDeleteसही है..कभी कभी बस केवल एक ही इंसान के नहीं होने से हर कुछ कैसा बेरंग सा लगता है...आई हेट दिस फिलिंग..
ReplyDeleteOblige us .. Please get your collection published. Proud to know that you belong to our home State.
ReplyDeleteKeep it up! People lack feeling of love. Thank you for sharing.
कविता में इतनी सादगी है कि मन वाह....कह उठता है
ReplyDeleteसादगी का एक मतलब कठिन सब्दों से आजादी भी है
यहाँ पे लगता है जैसे कवी बह रहा है संगीत सरिता बनकर
उसे समजने के लिए कोई मशक्कत नहीं करनी पड़ी.
वैसे आपकी कवितायें कोर्स में लगनी चाहिए. मेरा ऐसा माना है.