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Friday, September 2, 2011

पिया जो नहीं...

साँझ     फिर   उदास     है
जिया जो   नहीं   पास   है
सब   लौट   रहे   घर   को
कोई कह दे   बेखबर   को
राह कहीं   भटक न   जाए
या   वहीँ   अटक न    जाए


रात     फिर      बेआस       है
पिया    जो    नहीं   पास   है
सब रीझती औ रिझाती होंगी
पिया संग  हँसती- गाती  होंगी
मैं   अँखियों में   तारा भरती
और चंदा को   निहारा करती


प्रात:    पिघलता      आस   है
धुँधला - धुँधला   उजास   है
हाय ! कैसा    ये   खग्रास है
कबतक   का      वनवास    है
जिया    आये   न    रास   है
पिया     जो   नहीं   पास   है.

38 comments:

  1. सुन्दर लिखा है.

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  2. वाह विरह का बहुत सुन्दर वर्णन किया है।

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  3. सुन्दर भाव... अच्छी रचना...
    सादर

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
    आपको बहुत-बहुत --
    बधाई ||

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  5. सरल शब्दों में भावाभिव्यक्ति बहुत सुंदर बन पड़ी है.

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  6. बहुत सुंदर रचना,वाह.

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  7. वाह ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  8. Milan-icchha ki tadap ko bahut hi khubsoorti aur gehraai se pesh kiya hai aapne.. Aabhar..

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  9. मोरा रे अंगनवा चन्दन की रे गछिया , ताहि चढ़ कुरुरे काग रे
    सोने चोंच मढ़ाअसी देबो , मोरा पिया जो आवत आज रे

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  10. बहुत सुंदर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति....

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  11. virah ki tarap ka bakhan karti prastuti........

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  12. पिया जाये तो फिर
    जिया नहीं जाये :)

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  13. पिया के पास न होने पर कितना मन उचाट हो जाता है ....भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति ....आपका आभार

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  14. आजकल विरह की कविता ज्यादा मिल रही हैं ..........क्या बात है अमृता जी?..............वैसे बहुत सुन्दर कविता है.........

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  15. शाम से रात और फिर सुबह भी हो गयी... वह नहीं आए...इस गम में यह कविता भी हो गयी... शब्दों पर आपकी अच्छी पकड़ है...सुंदर कविता!

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  16. बहुत खूबसूरत कविता बधाई और शुभकामनाएं

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  17. पिया नहीं जब गाँव में...
    आग लगे सब गाँव में...

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  18. dil ka hal kahe dil wala..seedhi si baat na mirch masala..badi hi sadgi se behtarin birah vyatha ka chitran..hardik badhayee aaur apni nayi rachnaon ki taraf se aapko nimantran

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  19. कोमल प्यारे भाव....... सुंदर पंक्तियाँ हैं....

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  20. प्रात: पिघलता आस है
    धुँधला - धुँधला उजास है
    हाय ! कैसा ये खग्रास है
    कबतक का वनवास है...
    सुन्दर शब्द चयन और सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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  21. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 05-09-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  22. प्रात: पिघलता आस है
    धुँधला - धुँधला उजास है..sundar bhav...

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  23. अच्छी एवँ भावपूर्ण कविता !!!

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  24. very romantic poetry.

    http://www.belovedlife-santosh.blogspot.com

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  25. महादेवी की पंक्तियाँ बरबस ही याद हो आयीं -
    मैं बनी मधुमास आली ,
    आज मधुर विषाद की घिर करूँ आयी यामिनी
    बरस सुधि के इंदु से छिटकी पुलक की चांदनी
    उमड़ आयी री दृगों में सजन कालिंदी निराली
    मैं बनी ...
    रजत स्वप्नों में उदित अपलक विरल तारावली
    जाग शुक पिक ने अचानक मदिर पंचम तान ली
    अब न क्या प्रिय की बजेगी मुरलिका मधु राग वाली
    मैं बनी ....
    .............

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  26. कितना भी विरह कितनी ही पीड़ा हो फिर भी मिलने आस है. लाजवाब बधाई

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  27. बेहद भाव-पूर्ण कृति..
    विरह का दुःख बहुत बड़ा दुःख होता है..

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  28. पिया के साथ न होने का एहसास सालता है हर पल ... बहुत पीड़ा लिए है यह रचना ...

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  29. वियोगावस्था का सटीक चित्रण.

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  30. विरह की वेदना को प्रदर्शित करती हुई लाजवाब पंक्तियाँ!

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  31. सही है..कभी कभी बस केवल एक ही इंसान के नहीं होने से हर कुछ कैसा बेरंग सा लगता है...आई हेट दिस फिलिंग..

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  32. Oblige us .. Please get your collection published. Proud to know that you belong to our home State.

    Keep it up! People lack feeling of love. Thank you for sharing.

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  33. कविता में इतनी सादगी है कि मन वाह....कह उठता है
    सादगी का एक मतलब कठिन सब्दों से आजादी भी है
    यहाँ पे लगता है जैसे कवी बह रहा है संगीत सरिता बनकर
    उसे समजने के लिए कोई मशक्कत नहीं करनी पड़ी.
    वैसे आपकी कवितायें कोर्स में लगनी चाहिए. मेरा ऐसा माना है.

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