किसकी आई प्यारी चीठी?
उठी लालसा मीठी-मीठी
मीठा-मीठा दर्द उठा है
सुलगी है प्रीत की अँगीठी
किसकी आई प्यारी चीठी?
बहका फिर से तन और मन
मचला फिर से ये नव यौवन
उखड़ी ऐसी चढ़ती उमरिया
कहती बात काठ-सी कठेठी
किसकी आई प्यारी चीठी?
जब नैन लड़े तो कैसी लाज
चाहे गिर जाए कोई भी गाज
प्रीत ज्वाल धधक-धधक कर
भसम करे उमर की अमेठी
किसकी आई प्यारी चीठी?
जैसे सोलहवाँ साल लगा है
अकारथ सब मनोरथ जगा है
उँगलियाँ अनामिका से ही पूछे
किस अनामा का है ये अँगूठी?
किसकी आई प्यारी चीठी?
जबसे ऐसी-वैसी बात हुई है
विरह की भी लंबी रात हुई है
मिले वो तो हो मेरा भी सबेरा
अब रह न पाऊँ यूँ ही ठूँठी
किसकी आई प्यारी चीठी?
मन क्यों माने उमर की बात
चाहे कोई कहे उसे विजात
हाँ! प्रीत हुआ है मान लिया
जो ना मानूँ तो हो जाऊँ झूठी
किसकी आई प्यारी चीठी?
अब कोई दे कान कनेठी
या कह दे ये है मेरी हेठी
पर दर्द भी है कितना मीठा
लालसा भी है बड़ी मीठी
किसकी आई प्यारी चीठी?
बहुत सुंदर रचना प्यारा सा ख़त ,
ReplyDeleteहमेशा की तरह एक लाजवाब सृजन।
ReplyDeleteवाह कितनी ही भावनाओं को खूबसूरती से उकेरा है, बहुत सुंदर कृति!!❤
ReplyDeleteप्रीत की अंगीठी सुलग गयी है तो उमर को कौन याद करता है, प्रेम शाश्वत है तो प्रेमी भी तो शाश्वत हुए, अनंत जन्मों से जो लुभाता आया है, यकीनन उसकी ही चिट्ठी आयी होगी!
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२८-०५-२०२२ ) को
'सुलगी है प्रीत की अँगीठी'(चर्चा अंक-४४४४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
माधुर्य भावों से सम्पन्न अनुपम कृति !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह वाह!जवाब नहीं प्रीति की अँगीठी का👌👌👍👍
ReplyDeleteबेहतरीन रचना।
ReplyDeleteमन को झंकृत करने वाला काव्य सृजन.
ReplyDeleteबहुत सुंदर मनमोहक
ReplyDeleteमन के भावों को बुनती सुंदर सरस रचना ।
ReplyDeleteचाहे जिसकी भी हो, है एकदम मीठी-मीठी.....
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन
ReplyDeleteअच्छी लगी यह रचना सरल स्पष्ट
ReplyDeleteसुंदर और भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteप्रीत का पथ यूँ प्रेयसी भाए।
ReplyDeleteमंमथ तन-मन मथ-मथ जाय।
एक चिट्ठी कितना कुछ ले आती है ... बदल जाती है ...
ReplyDeleteएहसास दे जाती है ... लाजवाब ...
Love to read it, Waiting For More new Update and I Already Read your Recent Post its Great Thanks.
ReplyDeleteमन के भावों को प्रकट करती बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव से परिपूर्ण रचना, बधाई.
ReplyDeleteओह,
ReplyDeleteतुमने शहर शहर दुंदुभी बजायी
और मुझे पता ही न चला कि
तुम्हारे पास प्यारी चिठी आयी ।।
आज पढा है चिठ्ठी का असर
सोच रही हूँ क्या रह गयी कसर
क्यों चुन लिया तुमने फिर ग्वहर ?
मनभावन सृजन
बहुत सुंदर ब्लॉग बहुत सुंदर rachnayen
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