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Thursday, January 20, 2022

कैसे भेंट करूँ? ........

गुलाब नहीं मिला 

तो पंँखरियाँ ही लाई हूँ !

बाँसुरी नहीं मिली

तो झंँखड़ियाँ ही लाई हूँ !

कैसे भेंट करूँ ?

सुवासित हुई तो

सुगंधियाँ लाई हूँ !

गुनगुन उठा तो

ध्वनियाँ ही लाई हूँ !

कैसे भेंट करूँ ?

देखो !

प्रेम प्रकट है

निज दर्श लाई हूँ !

तुम्हें छूने के लिए

कोमल से कोमलतम 

स्पर्श लाई हूँ !

कैसे भेंट करूँ ?

संग-संग इक

झिझक भी लाई हूँ !

ये मत कहना कि

विरह जनित

मैं झक ही लाई हूँ !

कैसे भेंट करूँ ?

तुम ही कहो !

तुम्हें देने के लिए

बिन कुछ भेंट लिए

कैसे मैं चली आती ?

लाज के मारे ही

कहीं ये धड़कन 

धक् से रूक न जाती !

यूँ निष्प्राण हो कर भला

जो सर्वस्व देना है तुम्हें

कहो कैसे दे पाती ?

मेरे तेजस्व !

हाँ ! निज देवस्व

देना है तुम्हें

अब तो कहो !

कैसे भेंट करूँ ?

25 comments:

  1. पत्रम पुष्पं फलं तोयं का स्मरण हो आया है भक्ति,प्रेम,अनुराग और श्रद्धा के अमोल भावों से ओतप्रोत इस रचना को पढ़कर, समर्पण की पराकाष्ठा की पावन अभिव्यक्ति!!

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  2. अत्यंत कोमल भाव और समर्पण का सुंदर गीत।
    ------
    गुलाब या पंखुड़ियाँ,
    बांसुरी या झंखडियाँ
    मत करो तूम भेंट
    सुगंधी या ध्वनियाँ
    स्पर्श या झिझकियाँ
    क्षणिक सांसारिक घड़ियाँ
    सुनो! तुम उपहार में
    ले आओ न कुछ प्रार्थनाएँ
    जिसके पवित्र शब्दों के मध्य
    गूँजे हमारे प्रेम की लहरियाँ
    प्रकृति के कण-कण में रचे
    शाश्वत आलाप की कड़ियाँ।
    -----
    सस्नेह।

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    Replies
    1. वाह और सिर्फ वाह प्रिय श्वेता 👌👌👌🌷🌷❤️❤️

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२१-०१ -२०२२ ) को
    'कैसे भेंट करूँ? '(चर्चा अंक-४३१६)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  4. वाह!वाह!गज़ब तारीफ़ करूँ क्या आपके सृजन की डूब कर लिखते हो। शब्द-शब्द मुग्ध करता।

    तुम्हें छूने के लिए
    कोमल से कोमलतम
    स्पर्श लाई हूँ!... वाह!

    आपको भी बहुत बहुत सारा स्नेह

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ जनवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  6. समर्पण भाव से युक्त मनमोहक भक्ति गीत।

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  7. बहुत ही शानदार रचना

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  8. विरह की गहनतम अभिव्यक्ति ।
    बिना उपहार स्वयं को निष्प्राण कर मिलना भी नहीं चाहतीं । चरमसीमा है प्रेम की ।
    यादों के बवंडर में डूबते हुए भावनाओं को खूबसूरत शब्दों का पैरहन दिया है ।
    🙏🙏

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  9. सुन्दर प्रेम-गीत !
    'विरह जनित

    मैं झक ही लाई हूँ !'
    के स्थान पर कुछ और होता तो बेहतर होता.

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  10. तुम्हें छूने के लिए

    कोमल से कोमलतम

    स्पर्श लाई हूँ !

    कैसे भेंट करूँ ?

    संग-संग इक

    झिझक भी लाई हूँ !बेहद खूबसूरत गीत।

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  11. बहुत सुंदर रचना, मुग्ध करते भाव, सुंदर शब्द समायोजन।
    देवस्व कहाँ निज का होता है, तेजस्व का तेजस्व को अर्पित कैसे करना बस यही समझना है।
    अप्रतिम।

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  12. तुम ही कहो !
    तुम्हें देने के लिए
    बिन कुछ भेंट लिए
    कैसे मैं चली आती ?
    लाज के मारे ही
    कहीं ये धड़कन
    धक् से रूक न जाती !
    अद्वितीय..
    सादर

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  13. मेरे तेजस्व !
    हाँ ! निज देवस्व
    देना है तुम्हें
    अब तो कहो !
    कैसे भेंट करूँ ?
    प्रेम भक्ति और समर्पण से ओतप्रोत लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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  14. मेरे तेजस्व !
    हाँ ! निज देवस्व
    देना है तुम्हें
    सुंदर रचना..
    सादर नमन.

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  15. बहुत खूबसूरत वर्णन लाजवाब

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  16. बहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना

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  17. अंतस से निसृत कोमलतम भावों की बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति अमृता जी। प्रेम की सबसे आनंददायी अवस्था वही है जहां स्व का आभास मिट कर दूसरे की सत्ता में विलीन हो एकाकार हो जाता है। सर्वस्व समर्पण की कामना में डूबे हुए हृदय के मधुर उदगारों की मोहक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आपको 🙏🌷🌷🌷🌷

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  18. मिलते जुलते भाव 🙏

    क्या दूं प्रिय! उपहार तुम्हें?
    जब सर्वस्व पे है अधिकार तुम्हें
    मेरी हर प्रार्थना में तुम हो
    निर्मल अभ्यर्थना में तुम हो
    तुम्हें समर्पित हर प्रण मेरा
    माना जीवन आधार तुम्हें
    मुझमें -तुझमें क्या अंतर अब!
    कहां भिन्न दो मन-प्रांतर अब
    क्या शेष रहा भीतर मेरे
    जीता है सब कुछ हार तुम्हें
    मेरे साथ मेरे सखा तुम्हीं
    मन की पीड़ा की दवा तुम्हीं
    क्यों आस कोई जग से रखूं
    जब सौंपा सब उर भार तुम्हें
    🌷🌷🙏🌷🌷🙏🌷🌷

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  19. अमृता जी आपकी रचना को समर्पित मेरे भाव💐💐
    ओह! प्रेम ?
    पहचानती नहीं तुम्हें,
    फिर भी चाहती कुशल क्षेम ।।
    जानती हूं तुम निराकार ब्रह्म हो ।
    फिर भी मेरे जीवन का आरंभ हो ।।
    तुम्हें स्वीकार किया है ।
    अंगीकार किया है ।।
    तुमने कहा था जीवन एक तपस्या है ।
    शेष सब मिथ्या है ।।
    तुम्हारे कहे पे चल रही हूं ।
    दिए की भांति जल रही हूं ।।
    कहीं ये पड़ाव तो नहीं ।
    भावनाओं का बहाव तो नहीं ।।
    डूब गई तो क्या होगा ?
    शायद वहीं हमारा मिलन है जहां भंवर होगा ।।👏👏

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    1. तुम्हें ही स्वीकार किया है ।
      अंगीकार किया है ।।//
      वाह क्या बात है प्रिय जिज्ञासा जी 👌👌👌
      प्रेम की कोई सटीक परिभाषा होती कहां है। सच में निराकार ब्रह्म ही तो है प्रेम 🙏

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  20. प्रेम की भक्ति में परिणति हो रही है, सब स्वीकार होगा ही!

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