Social:

Wednesday, September 30, 2020

हाँ ! ये रक्तबीजों का आसन है संजय......

संजय , पीलिया से पीड़ित समाज को देखकर
इस घिनौना से घिनौना आज को देखकर
चाहे क्रोध के ज्वालामुखी को फोड़ लो
या घृणा के बाँध को तोड़ दो
चाहे विरोधों का बवंडर उठाओ
या सिंहासन का ईंट से ईंट बजाओ
पर नया-नया सिर उग-उग आएगा
और वही दमन-शोषण का अगला अध्याय पढ़ायेगा
सब भूलकर तुम वही पाठ दोहराते रहोगे
और नंगी पीठों पर अदृश्य कोड़ों की चोट खाते रहोगे
ये विराट जनतंत्र का भीषण प्रहासन है संजय
ये सिंहासन है संजय
हाँ ! ये रक्तबीजों का आसन है संजय

संजय , अपनी आँखे बंद कर लो
या अपने ही हाथों से फोड़ लो
या देख कर भी कुछ ना देखो
देखो भी तो मत बोलो
यदि बोलोगे भी तो क्या होगा ? 
जो होता आया है वही होता रहेगा
जहाँ बधियाया हुआ सब कान है
और तुम्हारी आवाज बिल्कुल बेजान है
तो तुम भी मूक बधिर हो जाओ
सारे दुख-दर्द को चुपचाप पीते जाओ
ये सिर्फ रामराज्य का भाषण है संजय
ये सिंहासन है संजय
हाँ ! ये रक्तबीजों का आसन है संजय

संजय ,  करते रहो आग्रह , सत्याग्रह या उपवास
या फिर आत्मदाह का ही सामूहिक प्रयास
कहीं सफेद कबूतरों को लेकर बैठ जाओ
या सब सड़कों पर उतर आओ
नारा लगाओ, पुतला जलाओ
या आंदोलन पर आंदोलन कराओ
या चिल्ला- चिल्ला कर खूब दो गालियाँ
या फिर जलाते रहो हजारों-लाखों मोमबत्तियाँ
उन पर जरा सी भी आँच ना आने वाली है
क्योंकि उनकी अपनी ही जगमग दिवाली है
ये बड़ा जहर बुझा डाँसन है संजय
ये सिंहासन है संजय
हाँ ! ये रक्तबीजों का आसन है संजय 

संजय , चाहो तो पीड़कों को भेजवाओ कारा
और पीड़ितों को देते रहो सहानुभूतियों का सहारा
पर जब तक तुम ना रुकोगे कुछ ना रुकेगा
और मानवता का माथा ऐसे ही कुचलेगा
चाहे कितना भी सिंहासन खाली करो का लगाओ नारा
या फिर जनमत-बहुमत का उड़ाते रहो गुब्बारा
सिंहासन है तो खाली कैसे रह पाएगा
एक उतरेगा कोई दूसरा चढ़ जाएगा
तुम खुशियांँ मनाओगे कि रामराज्य आएगा
पर सिंहासन तो सिर्फ अपना असली चेहरा दिखाएगा
ये चतुरों का चुंबकीय फाँसन है संजय
ये सिंहासन है संजय
हाँ ! ये रक्तबीजों का आसन है संजय .

15 comments:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 02-10-2020) को "पंथ होने दो अपरिचित" (चर्चा अंक-3842) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

    "मीना भारद्वाज"

    ReplyDelete
  2. दुनिया की यही रीत है युग बदलते हैं पर इतिहास वही दोहराता है

    ReplyDelete
  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २ अक्टूबर २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
  4. तुम खुशियांँ मनाओगे कि रामराज्य आएगा
    पर सिंहासन तो सिर्फ अपना असली चेहरा दिखाएगा
    ये चतुरों का चुंबकीय फाँसन है संजय
    ये सिंहासन है संजय
    हाँ ! ये रक्तबीजों का आसन है संजय .
    बहुत सटिक रचना अमृता दी।

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर, सार्थक और भावपूर्ण रचना।

    ReplyDelete
  6. Good job Md
    kabirakhadabazarmein.blogspot.com

    ReplyDelete
  7. सिंहासन है तो खाली कैसे रह पाएगा
    एक उतरेगा कोई दूसरा चढ़ जाएगा
    - सही कहा है.

    ReplyDelete
  8. बहुत सुंदर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  9. सब भूलकर तुम वही पाठ दोहराते रहोगे
    और नंगी पीठों पर अदृश्य कोड़ों की चोट खाते रहोगे
    ये विराट जनतंत्र का भीषण प्रहासन है संजय
    ये सिंहासन है संजय
    हाँ ! ये रक्तबीजों का आसन है संजय....वाह अमृता जी... बहुत ही सुंदर रचना

    ReplyDelete
  10. बेहतरीन सृजन।

    ReplyDelete
  11. आपकी यह रचना पढ़ कर मुझे 'अंधायुग' याद आया। सिंहासन पर बैठा हुआ एक दढ़ियल धृतराष्ट्र नज़र आया.

    ReplyDelete
  12. terah-terah panktiyon ke chaar anuchhedon wala yeh sinhasan gaan tantramulak pariwesh aur paristhitiyon ki gehantam chirvisangatiyon se nikle sanvedansheel hriday ke udgaar hain....jinhen utpann-srijan karne ki abhikshamta aap mein hain aur mehsus karne ki paathkon mein.....utkrishtam

    ReplyDelete