एक तो विकट महामारी
ऊपर से जीवाणुओं , विषाणुओं और कीटाणुओं के
प्रजनन -गति से भी अधिक तीव्रता से
शब्द -प्रसुताओं के हो रहे हैं पाँव भारी
प्रसवोपरांत जो शब्द जितना ज्यादा
आतंक और हिंसा फैलाते हैं
वही युग -प्रवर्तक है , वही है क्रांतिकारी
शब्दों के संक्रमण का
देश -काल से परे ऐसा विस्फोटक प्रसार
जितना मारक है , उतना ही है हाहाकारी
कुकुरमुत्ता हो या नई -पुरानी समस्याएँ
यूँ ही उगते रहना है लाचारी
ऐसे में शब्द -प्रसुताओं के द्वारा
उनके जड़ों पर तीखे , जहरीले , विषैले
शब्द -प्रक्षालकों का सतत छिड़काव
बड़ा पावन है , पुनीत है , है स्वच्छकारी
अति तिक्तातिक्त बोल -वचनों से
जो सर्वाधिक संक्रमण फैलाते हैं
वही रहते हैं आज सबसे अगाड़ी
आह -आह और वाह -वाह कहने वाले
खूब चाँदी काट -काट कर
लगे रहते हैं उनके पिछाड़ी
बाकी सब उनके रैयत आसामी होते हैं
जिनपर चलता है दनादन फौजदारी
मतलब , मुद्दा , मंशा व गरज के खेल में
तर्क , कुतर्क , अतर्क , वितर्क के मेल में
चिरायता नीम कर रहें हैं मगज़मारी
रत्ति भर भी भाव के अभाव में
गाल फुला कर मुँह छिपा रही है
करैला के पीछे मिर्ची बेचारी
जहाँ आकाशीय स्तर पर
चल रहे इतने सारे सुधार अभियानों से
पूर्ण पोषित हो रही है हमारी भुखमरी , बेकारी
वहाँ आरोपों -प्रत्यारोपों के
शब्दाघातों को सह -सह कर और भी
बलवती हो रही है मँहगाई , बेरोजगारी
पर ऐसा लगता है कि
शब्द -प्रसुताओं के वाद -विवाद में ही
सबका सारा हल है , सारा समाधान है
आखिर इन शब्दजीवियों का भी हम सबके प्रति
कुछ तो दायित्व है , कुछ तो है जिम्मेवारी
इसतरह उपेक्षित और तिरस्कृत होकर
चारों तरफ चल रहे तरह -तरह के
नाटक और नौटंकी को देख - देख कर
माथा पीट रही है महामारी
उसके इस विकराल रूप में रहते हुए भी
न ही किसी को चिन्ता है न ही परवाह है
वह सोच रही है कि आखिर क्यों लेकर आई बीमारी
लग रहा है वह बहुत दुखी होकर
भारी मन से बोरिया -बिस्तर समेट कर
वापस जाने का कर रही है तैयारी .
प्रजनन -गति से भी अधिक तीव्रता से
ReplyDeleteशब्द -प्रसुताओं के हो रहे हैं पाँव भारी
अदभुद और लाजवाब सृजन।
बोरिया-बिस्तर लपेटे और जल्दी जाये तभी भला है हम सबका, वरना नए-नए उपाय खोजने पड़ेंगे यानि नए नए मुद्दे ...
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 24 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सार गर्भित लगी कविता आपकी. बहुत सुंदर.
ReplyDeleteशब्द समायोजन बहुत ही रोचक
ReplyDeleteसशक्त एवं प्रभावी भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सराहना से परे ।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteकविता में व्यंग ढूँढ रहा था, नहीं मिला. यह तो आज के हालात पर गंभीरतम टिप्पणी है. सर्जिकल कटारी है यह कविता.
ReplyDeleteशब्द प्रसूता क्या सटीक नाम दिया है । महामारी ही सिर पीट चली जाए तो ऐसे लोगों को बर्दाश्त करने की हिम्मत की जाए । गंभीर कटाक्ष से भरपूर रचना ।
ReplyDeleteUnko mahamari se bhi badi mahamari batatee bhari paanw wali shabd prasuta nichod hai aaj ke sach ka
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