मैंने नहीं जगाया
सूरज खुद किरण कुँज ले कर आ गया
अपनी वेदी पर घुमा कर कोई मंतर बुलवा गया
और मुझे गले लगा कर तुझमें पिघला गया
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?
मैंने नहीं खिलाया
कलियाँ खुद ही खिल कर कसमसाने लगी
वो कुआंरी कोपलिया भी कसक कर कुनकुनाने लगी
तब सब अपने रज से तेरा नाम मुझपर गुदाने लगी
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?
मैंने नहीं चहकाया
चिड़ियाँ खुद ही चसक कर चहचहाने लगी
फिर मेरी डाली कंपा कर पत्तियों को दरकाने लगी
और मेरी अमराई को अंगराई दे दे कर तुझे बिखराने लगी
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?
मैंने नहीं बहाया
हवा खुद कहीं से उठी और बहक गयी
एक सिहरी सनसनाहट मन-प्राणों में मानो छिटक गयी
और तुझसे झड़कर तेरी ये कस्तूरी भी महक गयी
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?
मैंने नहीं बरसाया
भरा बादल आया और खुद ही बरस गया
फिर मुझसे धुला पुँछा कर भीतर से ऐसे हरस गया
सहसा चौंका , स्तब्ध हो मुझमें जैसे तुझे परस गया
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?
मैंने नहीं गवाया
गीत खुद ही अधरों पर आ गाने लगा
एक सुमनित सुमिरनी से गूँथ कर नया प्राण पाने लगा
और सब दिशाओं से गूँज-गूँज कर तेरा ही स्वर आने लगा
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?
मैंने नहीं नचाया
नाच खुद ही खुद को नचाने लगा
फिर मेरी लाज को सतरंगी चुनर बना कर लहराने लगा
और मेरे मना करने पर भी रोम-रोम में तुझे ही थिरकाने लगा
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?
तेरी सौं सच कहती हूँ-
मैंने नहीं बुलाया
चाँद खुद ही घर आ गया
और मतवाला मधु से मुझे ऐसे नहला गया
जैसे वही मदनलहरी से लहरा लहरा कर मधुयामिनी को पा गया
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
मेरी सौं सच सच कहो -
इस वामा के ही तो तुम नाम हुए .
सूरज खुद किरण कुँज ले कर आ गया
अपनी वेदी पर घुमा कर कोई मंतर बुलवा गया
और मुझे गले लगा कर तुझमें पिघला गया
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?
मैंने नहीं खिलाया
कलियाँ खुद ही खिल कर कसमसाने लगी
वो कुआंरी कोपलिया भी कसक कर कुनकुनाने लगी
तब सब अपने रज से तेरा नाम मुझपर गुदाने लगी
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?
मैंने नहीं चहकाया
चिड़ियाँ खुद ही चसक कर चहचहाने लगी
फिर मेरी डाली कंपा कर पत्तियों को दरकाने लगी
और मेरी अमराई को अंगराई दे दे कर तुझे बिखराने लगी
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?
मैंने नहीं बहाया
हवा खुद कहीं से उठी और बहक गयी
एक सिहरी सनसनाहट मन-प्राणों में मानो छिटक गयी
और तुझसे झड़कर तेरी ये कस्तूरी भी महक गयी
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?
मैंने नहीं बरसाया
भरा बादल आया और खुद ही बरस गया
फिर मुझसे धुला पुँछा कर भीतर से ऐसे हरस गया
सहसा चौंका , स्तब्ध हो मुझमें जैसे तुझे परस गया
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?
मैंने नहीं गवाया
गीत खुद ही अधरों पर आ गाने लगा
एक सुमनित सुमिरनी से गूँथ कर नया प्राण पाने लगा
और सब दिशाओं से गूँज-गूँज कर तेरा ही स्वर आने लगा
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?
मैंने नहीं नचाया
नाच खुद ही खुद को नचाने लगा
फिर मेरी लाज को सतरंगी चुनर बना कर लहराने लगा
और मेरे मना करने पर भी रोम-रोम में तुझे ही थिरकाने लगा
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
क्या इस वामा से बदनाम हुए ?
तेरी सौं सच कहती हूँ-
मैंने नहीं बुलाया
चाँद खुद ही घर आ गया
और मतवाला मधु से मुझे ऐसे नहला गया
जैसे वही मदनलहरी से लहरा लहरा कर मधुयामिनी को पा गया
मैंने कुछ नहीं किया फिर तो
बालम बोलो क्यों वाम हुए ?
मेरी सौं सच सच कहो -
इस वामा के ही तो तुम नाम हुए .
मतवाले मौसम में मदमस्त करती बयार सी..सुंदर कविता..
ReplyDeleteजिसके लिए ये कसक है, जिसके लिए बहक है, वो न जाने कहां होगा, होगा जहां कितना खुशनसीब होगा।
ReplyDeleteमैंने इस कविता को कई बार पढ़ा| हर बार रोमांचित सा हो गया| निःशब्द हूँ प्रशंसा में कुछ भी लिखने को|
ReplyDeleteमै ने आपके मूर्त शब्दों के सहारे अमूर्त भाव को समझने की कोशिश की,पर ,,,,,,पर
ReplyDeleteपरम चैतन्य के प्रति आपके प्यार औऱ समर्पण की निष्ठा महान कृष्ण प्रेम मीरा की पदवाली के समक्ष रख दी,
मैंने नहीं तो शायद प्राकृति ने या शायद प्रेम ने ...
ReplyDeleteपर सभी एक ही तो हैं ...
क्या बात ... कुछ बस मन की चाह की सी कहने वाली पंक्तियाँ :) ...
ReplyDeleteयुग्मों और युगलों के बीच उठते अंतर्विरोधी भावों को आपने पखार कर यहाँ रख दिया है. ऐसी सूक्ष्म अभिव्यक्ति बहुत कम देखने में आती है.
ReplyDeleteहाँ, मौसम का असर जब पुरजोर होता है, तब गिला-शिकवा चहुंओर होता है......
ReplyDeleteएकदम सही अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteशब्दों का सटीक चयन।
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