कोई बम फोड़े या गोली छोड़े
या आग लगाये
अपनी ही बस्ती में
मैं तो डूबी रहती हूँ
बस अपनी मस्ती में ....
लिखती रहती हूँ प्रेम की कविता
कभी आधा बित्ता कभी एक बित्ता
कभी कोरे पन्नों को
कह देती हूँ कि भर लो
जो तुम्हारे मन में आए -
भावुकता , आत्मीयता , सरलता , सुन्दरता
या भर लो विलासिता भरी व्याकुलता
या फिर कोई भी मधुरता भरी मूर्खता .....
कैसे कह दूँ कि नहीं पता -
कि नप जाएगी मेरी कविता
किसी भी शाल या शंसनीय पत्रों के फीता से
या फिर मुझे ये कहना चाहिए
कि पता है मुझे -
बहुत ही छोटा है सारा फीता
जिनमें कभी भी नहीं अट पायेगी
मेरी कविता .
या आग लगाये
अपनी ही बस्ती में
मैं तो डूबी रहती हूँ
बस अपनी मस्ती में ....
लिखती रहती हूँ प्रेम की कविता
कभी आधा बित्ता कभी एक बित्ता
कभी कोरे पन्नों को
कह देती हूँ कि भर लो
जो तुम्हारे मन में आए -
भावुकता , आत्मीयता , सरलता , सुन्दरता
या भर लो विलासिता भरी व्याकुलता
या फिर कोई भी मधुरता भरी मूर्खता .....
कैसे कह दूँ कि नहीं पता -
कि नप जाएगी मेरी कविता
किसी भी शाल या शंसनीय पत्रों के फीता से
या फिर मुझे ये कहना चाहिए
कि पता है मुझे -
बहुत ही छोटा है सारा फीता
जिनमें कभी भी नहीं अट पायेगी
मेरी कविता .
आपने लिखा...
ReplyDeleteकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 23/02/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 221 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
इस कविता ने कितना कुछ खोल के रख दिया। पर सबसे बड़ी और खास बात अपने को सुंदरतम तरीके से अभिव्यक्त कर दिया।
ReplyDeletebahut kuchsaralta se bayan kiya hai ..sundar
ReplyDeleteSaandaar Jabarjast zindabaad. ..
ReplyDeleteSaandaar Jabarjast zindabaad. ..
ReplyDeleteवाह..बहुत बढ़िया..कविता मन में उपजती है...किसी फीते की मोहताज नहीं
ReplyDeleteकभी कोरे पन्नों को
ReplyDeleteकह देती हूँ कि भर लो
जो तुम्हारे मन में आए .
भावुकता , आत्मीयता , सरलता , सुन्दरता ।
आपकी कविताओं में प्रतीकों के नए प्रयोग उसे सुपठनीय बना देते हैं ।
बधाई ।
कभी कोरे पन्नों को
ReplyDeleteकह देती हूँ कि भर लो
जो तुम्हारे मन में आए -
भावुकता , आत्मीयता , सरलता , सुन्दरता
या भर लो विलासिता भरी व्याकुलता
या फिर कोई भी मधुरता भरी मूर्खता .....
जब कविता पन्नों से आगे निकल जाए तो कोई फीता उसे नाप नहीं सकता. आपके शब्दों की रचनात्मक ज़िद कमाल है.
बहुत बढ़िया ..
ReplyDeleteलोगों की आग को रोकने के लिए कविता से बड़ा और माध्यम क्या हो सकता है? प्रशंसनीय लिखा है आपने|
ReplyDeleteअपनी ही बस्ती में आग लगाने वाले कैसे मूढ़ होते हैं..और अपनी मस्ती में गुनगुनाने वाले आप जैसे कोई बिरले..
ReplyDeleteकविता को फ़ीते से नहीं लेखक और पढने वाले के मन से आँका जाता है ... फीते वालों की दुनिया वहां तक ही होती है ... गहरी रचना ...
ReplyDeleteपता है मुझे -
ReplyDeleteबहुत ही छोटा है सारा फीता
जिनमें कभी भी नहीं अट पायेगी
मेरी कविता .
क्या कहें, सुन्दर !
क्या बात है ! बेहद खूबसूरत रचना....
ReplyDeleteकिसी भी कविता में तो मधुरता भरी मूर्खता चाहिए। इसके बाद तो सबकुछ सहज तरीके से अटने लगता है..... आधा बित्ता या एक बित्ता महज एक कोरा पैमाना है....
ReplyDeleteकोई बम फोड़े या गोली छोड़े
ReplyDeleteया आग लगाये
अपनी ही बस्ती में
मैं तो डूबी रहती हूँ
बस अपनी मस्ती में ....
लिखती रहती हूँ प्रेम की कविता
कभी आधा बित्ता कभी एक बित्ता
अमृता जी - क्या बात कही है कोई बम फोड़े या गोली छोड़े मैं तो डूबी रहती हू अपनेी मस्ती में....... सही बात है नही नप पाएगी आपकी कविता किसी फीते से यह तो इसके भाव को जानने बाला ही जान पाएगा कि इस कविता की गहराई क्या है। बड़ी ही खूबसूरत रचना है आपका लिंक अब मेरे आयुर्वेदिक ब्लाग http://ayurvedlight.blogspot.in/ पर डाल रहा हूँ कृपया मेरे पाठको को भी इसका रसास्वादन करने का अवसर मिलेगा। कृपया आप भी वहाँ आकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराऐंगी तो खुशी होगी।