Social:

Wednesday, February 10, 2016

सुनो रे आली ! .......

सुनो रे आली !

मेरे प्रिय की
हर बात है निराली !
वो मतवाला
मैं भी मतवाली
मतवाली हो कर मैं
कण- कण में
उस को ही पा ली !

सुनो रे आली !

प्रिय अलिक तो
मैं कुंचित अलका
प्रिय अधर तो
मैं अंचित अधर का !

प्रिय मनहर नयन
तो दृष्टि हूँ मैं
प्रिय है कल्पवृक्ष
तो इष्टि हूँ मैं !

प्रिय पद्म -कपोल
सुमन -वृष्टि हूँ मैं
प्रिय सौंदर्य -मुकुर
तो नव -सृष्टि हूँ मैं !

प्रिय ह्रदय तो
पुकार हूँ मैं
प्रिय श्वास तो
तार हूँ मैं !

प्रिय प्रकृति तो
श्रृंगार हूँ मैं
प्रिय प्राण तो
संचार हूँ मैं !

प्रिय शून्य तो
आधार हूँ मैं
प्रिय पिंड तो
भार हूँ मैं !

प्रिय रूप तो
मैं काया हूँ
प्रिय धूप तो
मैं छाया हूँ !

प्रिय सावन तो
घटा हूँ मैं
प्रिय इन्द्रधनुष तो
छटा हूँ मैं !

प्रिय है मलयज तो
सुगंध हूँ मैं
प्रिय प्रसुन तो
मकरंद हूँ मैं !

प्रिय सरस नीर
मैं गम्भीरा सरिता
प्रिय लोल लहर
मैं मृदु पुलकिता !

प्रिय वन कुञ्ज तो
मैं मुग्धा बयार
प्रिय जलकण तो
मैं मधुर फुहार !

प्रिय स्वर्ण निकष
तो मैं कनक -कामिनी
प्रिय गंभीर गर्जन
तो मैं स्निग्ध दामिनी !

प्रिय है अम्बर
तो विस्तार हूँ मैं
प्रिय है धरा
तो आकार हूँ मैं !

प्रिय प्रकाश तो
मैं झलमल हूँ
प्रिय रात तो
मैं कलकल हूँ !

प्रिय अरुण तो
अरुणिमा हूँ मैं
प्रिय चन्द्र तो
मधुरिमा हूँ मैं !

प्रिय स्वप्न तो
जागरण हूँ मैं
प्रिय चित्त तो
चिंतवन हूँ मैं !

प्रिय उत्सव तो
उद्गार हूँ मैं
प्रिय प्रलय तो
हाहाकार हूँ मैं !

प्रिय आनन्द तो
मुदित हास हूँ मैं
प्रिय विषाद तो
अटूट आस हूँ मैं !

प्रिय अर्घ तो
अर्पण हूँ मैं
प्रिय तृषा तो
तर्पण हूँ मैं !

प्रिय रामरस तो
खुमारी हूँ मैं
प्रिय बाबरा तो
तारी हूँ मैं !

प्रिय यौवन मद तो
क्रीड़ा हूँ मैं
प्रिय परिरम्भन तो
व्रीड़ा हूँ मैं !

प्रिय राग तो
गीत हूँ मैं
प्रिय पुलक तो
प्रीत हूँ मैं !

प्रिय बिंदु तो
मैं रेखा हूँ
प्रिय लिखे तो
मैं लेखा हूँ !

प्रिय मौन तो
मैं वाणी हूँ
प्रिय वैभव तो
मैं ईशानी हूँ !

प्रिय मिलन तो
वियोग हूँ मैं
प्रिय जप तो
योग हूँ मैं !

प्रिय नाद तो
वाद्य हूँ मैं
प्रिय ओंकार तो
आद्य हूँ मैं !

प्रिय ध्यान तो
अभ्यर्चना हूँ मैं
प्रिय तप तो
प्रार्थना हूँ मैं !

प्रिय संकल्प तो
सिद्धि हूँ मैं
प्रिय विषय तो
वृद्धि हूँ मैं !

प्रिय रत्न तो
कनि हूँ मैं
प्रिय शंख तो
ध्वनि हूँ मैं !

प्रिय अपरिमित तो
परिधि हूँ मैं
प्रिय निरतिशय तो
निधि हूँ मैं !

सुनो रे आली !

मैं प्रिय की प्रिया !
प्रतिपल एक ही हैं
कहने को दो हम !
महासुख ने ही
हर घड़ी , हर घड़ी
हमें किया है वरण !
तब तो हर बात है
इतनी निराली !

सुनो रे आली !

13 comments:

  1. सुन्दर प्रेममय रचना ।

    ReplyDelete
  2. प्रिय रूप तो
    मैं काया हूँ
    प्रिय धूप तो
    मैं छाया हूँ !

    बहुत सुंदर .... अनुपम भाव

    ReplyDelete
  3. यानी एक दूजे के लिए
    एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं ...
    बहुत सुन्दर ....

    ReplyDelete
  4. प्रेम रस भरी 'पंक्तियाँ ।
    seetamni.blogspot.in

    ReplyDelete
  5. क्‍या कहूं, नि:शब्‍द हूँ।

    ReplyDelete
  6. वाह इतनी उपमाएं एक ही जगह ... प्रेम का रंग जैसे चहुँ ओर महक रहा है .... सुन्दर भरपूर गेयता लिए भावमय रचना ...

    ReplyDelete
  7. पूर्ण प्रेम का सचित्र वर्णन कर दिया है आपने अमृता| प्रेम में पूर्ण समर्पण इसी प्रकार से होता है जैसा कि अपने प्रस्तुत किया है|अति सुंदर|

    ReplyDelete
  8. सर्वेषाम प्रियम मधुरम

    ReplyDelete
  9. आपकी पुकार.....न जाने कहाँ तक है इसका विस्तार ?

    ReplyDelete
  10. Nice Articale Sir I like ur website and daily visit every day i get here something new & more and special on your site.
    one request this is my blog i following you can u give me some tips regarding seo, Degine,pagespeed
    www.hihindi.com

    ReplyDelete